प्रश्न - *दीदी हमारे घर के मंदिर में बहुत सारी मुर्तिया रखी है सभी की पूजा संभव नही है उनका क्या किया जाए*
उत्तर - मूर्तियां और फ़ोटो एक प्रकार का देवताओं की चेयर है, जिसे हम उनके लिए निर्धारित करते हैं। जब आह्वाहन करते हैं तो उस मूर्ति या फ़ोटो में वो विराजमान होते है और विसर्जन के बाद चले जाते हैं। ईष्ट आराध्य हेतु हम एक देवस्थापना की फ़ोटो या मूर्ती दैनिक पूजन हेतु रखते है और बाकि यज्ञ के विशेष समय कलश में हम देवताओं का आह्वाहन करते हैं। सभी देवी देवता कलश में वास् करते हैं।
बिना आह्वाहन के मूर्ती सिर्फ मूर्ती है, फ़ोटो सिर्फ फोटो है, चेयर केवल चेयर है। अतः बिना देवता के आह्वाहन के पूजन स्थल में भगवान सूक्ष्म रूप में उपस्थित नहीं होते। नित्य जिनका पूजन होता है केवल वही देवशक्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होती है।
तुलसीदास जी ने कहा है - एक साधे सब सधत् हैं, सब साधे सब जाय।
अतः जो ईष्ट उपास्य हैं और जिनके मन्त्र नित्य आप जपते हैं उनकी फ़ोटो या मूर्ती पूजन स्थल में रखे। बाक़ी अन्य मूर्तियों और फ़ोटो को आप या तो किसी अलमारी में सुरक्षित रख दें और पर्व पूजन के समय केवल सम्बंधित देवता लाएं पूजन करें और विसर्जन के बाद पुनः उसे आलमारी में सुरक्षित रख दें। या पर्व के समय भी सम्बंधित देवता कलश में ही आह्वाहन करके पूजन कर सकते हैं।
अत्यधिक देवी देवता की मूर्ती या फ़ोटो केवल रखने का कोई फ़ायदा नहीं है और इससे पूजन में मन भी नहीं लगता और ध्यान भटकता है।
ध्याता, ध्येय और ध्यान कभी भी एक नहीं हो पायेगा, यदि ध्यान विभिन्न देवताओं में भटकेगा।
बुद्धिमान् साधक वो है क़ि वो एक ही जगह गड्ढा खोदे शक्ति श्रोत का कुआँ खोदने हेतु और अपनी अनन्त जन्मों की प्यास बुझाए। एक ईष्ट चुने और देवपूजन जप और ध्यान नित्य उसी का करें।
लेकिन भटकता हुआ साधक वह है जो कभी एक जगह गड्ढा खोदता है कभी दूसरी जगह। कई गड्ढे ख़ुद जाते है लेकिन प्यासा का प्यासा रह जाएगा। कई देवताओं के पूजन में भटकता है, कभी ये तो कभी वो, ईष्ट निर्धारित नहीं कर पाता। साधना अधूरी रहती है।
तो प्रश्न यह भी उठता है क़ि यज्ञ में इतने सारे देवताओं का आह्वाहन यज्ञ में क्यों?
घर में हम परिवार के साथ रहते हैं, लेकिन फ़ैमिली फंक्शन में विवाहदिवस, जन्मदिवस इत्यादि अवसर पर ईष्ट-मित्रो और रिश्तेदारों को बुलाते हैं। इसी तरह यज्ञ एक समग्र उपचार है, पूरी प्रकृति और मनुष्य जाति का इलाज़ होता है, इसमें सभी देवशक्तियों को यज्ञ का भाग दिया जाता है।
लेकिन फ़िर भी हम *एतद् कर्म प्रधान - श्री गायत्रयै नमः* ये वचन कह कर यज्ञ का मुखिया/प्रधान माँ गायत्री को बताते है स्वागत तो सबका है, यज्ञ का भाग भी सबको मिलेगा लेकिन इस यज्ञ का प्रधान हमारा ईष्ट - गायत्री ही है। और व्यासपीठ पर गुरुदेव का आह्वाहन करते हैं। तो व्यास गुरुदेव, प्रधान देवता गायत्री, यज्ञ भाग बाँटेगा कौन माँ-गायत्री और गुरुदेव। निमित्त कौन हम, सबकुछ उन्हें समर्पित, और हमारा ध्यान गायत्री माता और गुरुदेव रखेंगे।
अतः कोई वहम न पालते हुए, माँ गायत्री और परमपूज्य गुरुदेव का ध्यान कर, घर में विद्यमान की अन्य भगवान की मूर्तियों/फ़ोटो का विसर्जन कर दें और उन्हें अलमारी या अन्य सुरक्षित जगह पर रख दें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन
उत्तर - मूर्तियां और फ़ोटो एक प्रकार का देवताओं की चेयर है, जिसे हम उनके लिए निर्धारित करते हैं। जब आह्वाहन करते हैं तो उस मूर्ति या फ़ोटो में वो विराजमान होते है और विसर्जन के बाद चले जाते हैं। ईष्ट आराध्य हेतु हम एक देवस्थापना की फ़ोटो या मूर्ती दैनिक पूजन हेतु रखते है और बाकि यज्ञ के विशेष समय कलश में हम देवताओं का आह्वाहन करते हैं। सभी देवी देवता कलश में वास् करते हैं।
बिना आह्वाहन के मूर्ती सिर्फ मूर्ती है, फ़ोटो सिर्फ फोटो है, चेयर केवल चेयर है। अतः बिना देवता के आह्वाहन के पूजन स्थल में भगवान सूक्ष्म रूप में उपस्थित नहीं होते। नित्य जिनका पूजन होता है केवल वही देवशक्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होती है।
तुलसीदास जी ने कहा है - एक साधे सब सधत् हैं, सब साधे सब जाय।
अतः जो ईष्ट उपास्य हैं और जिनके मन्त्र नित्य आप जपते हैं उनकी फ़ोटो या मूर्ती पूजन स्थल में रखे। बाक़ी अन्य मूर्तियों और फ़ोटो को आप या तो किसी अलमारी में सुरक्षित रख दें और पर्व पूजन के समय केवल सम्बंधित देवता लाएं पूजन करें और विसर्जन के बाद पुनः उसे आलमारी में सुरक्षित रख दें। या पर्व के समय भी सम्बंधित देवता कलश में ही आह्वाहन करके पूजन कर सकते हैं।
अत्यधिक देवी देवता की मूर्ती या फ़ोटो केवल रखने का कोई फ़ायदा नहीं है और इससे पूजन में मन भी नहीं लगता और ध्यान भटकता है।
ध्याता, ध्येय और ध्यान कभी भी एक नहीं हो पायेगा, यदि ध्यान विभिन्न देवताओं में भटकेगा।
बुद्धिमान् साधक वो है क़ि वो एक ही जगह गड्ढा खोदे शक्ति श्रोत का कुआँ खोदने हेतु और अपनी अनन्त जन्मों की प्यास बुझाए। एक ईष्ट चुने और देवपूजन जप और ध्यान नित्य उसी का करें।
लेकिन भटकता हुआ साधक वह है जो कभी एक जगह गड्ढा खोदता है कभी दूसरी जगह। कई गड्ढे ख़ुद जाते है लेकिन प्यासा का प्यासा रह जाएगा। कई देवताओं के पूजन में भटकता है, कभी ये तो कभी वो, ईष्ट निर्धारित नहीं कर पाता। साधना अधूरी रहती है।
तो प्रश्न यह भी उठता है क़ि यज्ञ में इतने सारे देवताओं का आह्वाहन यज्ञ में क्यों?
घर में हम परिवार के साथ रहते हैं, लेकिन फ़ैमिली फंक्शन में विवाहदिवस, जन्मदिवस इत्यादि अवसर पर ईष्ट-मित्रो और रिश्तेदारों को बुलाते हैं। इसी तरह यज्ञ एक समग्र उपचार है, पूरी प्रकृति और मनुष्य जाति का इलाज़ होता है, इसमें सभी देवशक्तियों को यज्ञ का भाग दिया जाता है।
लेकिन फ़िर भी हम *एतद् कर्म प्रधान - श्री गायत्रयै नमः* ये वचन कह कर यज्ञ का मुखिया/प्रधान माँ गायत्री को बताते है स्वागत तो सबका है, यज्ञ का भाग भी सबको मिलेगा लेकिन इस यज्ञ का प्रधान हमारा ईष्ट - गायत्री ही है। और व्यासपीठ पर गुरुदेव का आह्वाहन करते हैं। तो व्यास गुरुदेव, प्रधान देवता गायत्री, यज्ञ भाग बाँटेगा कौन माँ-गायत्री और गुरुदेव। निमित्त कौन हम, सबकुछ उन्हें समर्पित, और हमारा ध्यान गायत्री माता और गुरुदेव रखेंगे।
अतः कोई वहम न पालते हुए, माँ गायत्री और परमपूज्य गुरुदेव का ध्यान कर, घर में विद्यमान की अन्य भगवान की मूर्तियों/फ़ोटो का विसर्जन कर दें और उन्हें अलमारी या अन्य सुरक्षित जगह पर रख दें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन
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