प्रश्न - *हमारी एक ताई जी है.... जिनके पास हमारा हमेशा उठना बैठना होता है....और वो भी अपने परिवार की एक कर्मठ कार्यकर्ता रहीं हैं...ताऊजी के जाने के बाद वो एकदम अकेली हैं , कोई संतान भी नही है...पैसा अमाने का कोई जरिया नही है , एक छोटी सी दुकान है जो दिनभर मैं 10-20 रूपया देती है , थोड़ी पैंशन मिल जाती है , घर परिवार मैं ढेर सारी समस्याऐ हैं.... उनके दुःख से दुःखी हूँ ....आप थोड़ा मार्गदर्शन करें .....आपका भाई*
उत्तर - सन्तान न होना कोई समस्या नहीं है, क्योंकि सन्तान वाले लोगों को भी प्रारब्धवश कष्ट भोगते हमने देखा है। सन्तानें उन्हें बेसहारा छोड़ देती हैं। अच्छी किस्मत हो तो सन्तानहीन की भी सेवा दूसरे नाते-रिश्तेदार कर ही देते हैं।
गांव के लोगों से बात करके उनसे अनुरोध करो कि उस बृद्धा के यहां से कुछ न कुछ रोज़ ख़रीद लें। कोई न कोई उनसे मिलकर हफ्ते में हालचाल पूंछने चला जाय। वृद्धावस्था में मीठा या कुछ अलग खाने का बड़ा मन करता है। तो जब आप मिलें कुछ न कुछ अच्छे साहित्य पढ़ने को दें और कुछ खिला-पिला दें, एक ऐसा अहसास दें कि आपको उनकी फिक्र है। छोटी पेंशन और छोटी दुकान भी चल पड़ेगी यदि भगवान की कृपा और आसपास के लोगों का सहयोग मिल जाये तो।
प्रारब्ध से निपटने के दो ही उपाय हैं, पहला उसे भोग लिया जाय और दूसरा गायत्री मंत्र अनुष्ठान से जलाकर भष्म कर दिया जाय।
घर-परिवार जिन देवर/ज्येष्ठ या अन्य किसी न किसी परिवार के साथ वो रह ही रहीं होंगी तो उनके साथ उन्हें सामंजस्य बिठाना पड़ेगा। मृत्यु और विवाह तो निश्चित है, जिसका बुलावा पहले आएगा उसे तो जाना ही पड़ेगा। दूसरे को लम्बी प्रतीक्षा और वियोग प्रारब्धवश झेलना ही पड़ेगा। पिछले जन्म के प्रारब्ध को जब वो स्वयं चाहेंगी तो ही साधना के माध्यम से नष्ट कर सकेंगी।
आप उनके लिए बस उनके आसपास के लोगों के अंदर सम्वेदना जगाने का काम कर सकते है, स्वयं जितनी मदद उनकी कर सकते हैं उतनी मदद कर दें। पूजा में रोज उनके उद्धार की अर्जी लगा दीजिये। रोज उनके लिए कम से कम एक माला गायत्री की जप दीजिये। वो अपनी सद्बुद्धि, सदचिन्तन और सद्व्यवहार से बहुत कुछ ठीक कर सकेंगी, इसलिए उनके स्वाध्याय और सत्संग की व्यवस्था होनी चाहिए।
वृद्धावस्था में अपनी यादों से बाहर निकल सकेंगी, तप्त परिस्थिति में भी स्वयं को सम्हाल सकेंगी।
घर-परिवार में सबकी ढेर सारी समस्याएं होती है, सभी जॉब-व्यवसाय भी समस्याओं से भरे पड़े हैं। इसमें से ही निकलने का मार्ग जिंदगी है। शरीर है तो कोई न कोई बीमारी लगी ही रहती है। सोई भावसम्वेदना लोगों की जनसम्पर्क करके आसपास की जगाएं अच्छे लोगों की संसार मे कमी नहीं है, कोई न कोई साथ उस वृद्धा की मदद को मिल ही जायेगा। नेक उद्देश्य से किये उपाय ईश्वर की इच्छा से जरूर पूरे होते हैं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - सन्तान न होना कोई समस्या नहीं है, क्योंकि सन्तान वाले लोगों को भी प्रारब्धवश कष्ट भोगते हमने देखा है। सन्तानें उन्हें बेसहारा छोड़ देती हैं। अच्छी किस्मत हो तो सन्तानहीन की भी सेवा दूसरे नाते-रिश्तेदार कर ही देते हैं।
गांव के लोगों से बात करके उनसे अनुरोध करो कि उस बृद्धा के यहां से कुछ न कुछ रोज़ ख़रीद लें। कोई न कोई उनसे मिलकर हफ्ते में हालचाल पूंछने चला जाय। वृद्धावस्था में मीठा या कुछ अलग खाने का बड़ा मन करता है। तो जब आप मिलें कुछ न कुछ अच्छे साहित्य पढ़ने को दें और कुछ खिला-पिला दें, एक ऐसा अहसास दें कि आपको उनकी फिक्र है। छोटी पेंशन और छोटी दुकान भी चल पड़ेगी यदि भगवान की कृपा और आसपास के लोगों का सहयोग मिल जाये तो।
प्रारब्ध से निपटने के दो ही उपाय हैं, पहला उसे भोग लिया जाय और दूसरा गायत्री मंत्र अनुष्ठान से जलाकर भष्म कर दिया जाय।
घर-परिवार जिन देवर/ज्येष्ठ या अन्य किसी न किसी परिवार के साथ वो रह ही रहीं होंगी तो उनके साथ उन्हें सामंजस्य बिठाना पड़ेगा। मृत्यु और विवाह तो निश्चित है, जिसका बुलावा पहले आएगा उसे तो जाना ही पड़ेगा। दूसरे को लम्बी प्रतीक्षा और वियोग प्रारब्धवश झेलना ही पड़ेगा। पिछले जन्म के प्रारब्ध को जब वो स्वयं चाहेंगी तो ही साधना के माध्यम से नष्ट कर सकेंगी।
आप उनके लिए बस उनके आसपास के लोगों के अंदर सम्वेदना जगाने का काम कर सकते है, स्वयं जितनी मदद उनकी कर सकते हैं उतनी मदद कर दें। पूजा में रोज उनके उद्धार की अर्जी लगा दीजिये। रोज उनके लिए कम से कम एक माला गायत्री की जप दीजिये। वो अपनी सद्बुद्धि, सदचिन्तन और सद्व्यवहार से बहुत कुछ ठीक कर सकेंगी, इसलिए उनके स्वाध्याय और सत्संग की व्यवस्था होनी चाहिए।
वृद्धावस्था में अपनी यादों से बाहर निकल सकेंगी, तप्त परिस्थिति में भी स्वयं को सम्हाल सकेंगी।
घर-परिवार में सबकी ढेर सारी समस्याएं होती है, सभी जॉब-व्यवसाय भी समस्याओं से भरे पड़े हैं। इसमें से ही निकलने का मार्ग जिंदगी है। शरीर है तो कोई न कोई बीमारी लगी ही रहती है। सोई भावसम्वेदना लोगों की जनसम्पर्क करके आसपास की जगाएं अच्छे लोगों की संसार मे कमी नहीं है, कोई न कोई साथ उस वृद्धा की मदद को मिल ही जायेगा। नेक उद्देश्य से किये उपाय ईश्वर की इच्छा से जरूर पूरे होते हैं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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