Tuesday 17 April 2018

प्रश्न - विवाह को लेकर टेंशन में हूँ,

प्रश्न - *दी, मैं ख़ुश रहना चाहती हूँ, लेकिन कोई न कोई व्यक्ति या परिस्थिति के कारण मूड ख़राब हो जाता है। पिछले तीन साल से जॉब कर रही हूँ और मेरी शादी होने वाली है। अरेंज मैरिज हो रही है, लड़के से मिल चुकी हूँ। मेरे हाँ करने पर ही ये शादी हो रही है लेकिन फ़िर भी अंजाने भय से ग्रसित हूँ। क्या करूँ?*

उत्तर - पहले लम्बी गहरी श्वांस लो और गायत्री मंत्र एक बार बोलो, अब एक बात बताओ कभी बचपन मे अंधेरे से डर लगा था, हवा से झाड़ियों का हिलना भूत लगा था? इत्यादि बचपन के अनुभव याद करो, हंसी आयी अपनी उन बातों और यादों पर😊..

मन कल्पना करके भय या आनन्द दोनों उतपन्न कर सकता है, तो क्यों न मन से कहो जब कल्पना करना ही है तो कुछ अच्छी कल्पना करो, जैसे झाड़ियों में भगवान की कल्पना इत्यादि...तो इसी तरह वैवाहिक जीवन की कल्पना करनी ही है तो मन को बोलो सुनहरे भविष्य और सुंदर ससुराल की करें न कि डरावने/भय उतपन्न करने वाले रिश्तों और ससुराल की... अच्छा सोचने की आदत डालो..अभ्यास से सम्भव होगा....गन्दा सोचने वाली गन्दी आदत एक दिन में न बदलेगी😔 एक दिन में तुमने पढ़ना-लिखना जब नहीं सीखा तो भला एक दिन में अच्छा सोचना कैसे सीखोगी?...लेकिन अभ्यास से दोनों सम्भव है....

अच्छा ये बताओ, तुम्हारे घर मे टीवी है...होगी ही😇... तुम टीवी देखने बैठो लेकिन रिमोट तुम किसी बच्चे या किसी और के हाथ मे दे दो तो क्या तुम अपना पसंदीदा कार्यक्रम देख पाओगी? नहीं न दूसरा रिमोट में उसकी पसन्द का कार्यक्रम लगाएगा तो तुम्हारा मूड ख़राब हो ही जायेगा। तो यदि कार्यक्रम पसंदीदा देखना है तो रिमोट अपने नियंत्रण में रखो। इसी तरह मन की टीवी में आनन्द उत्सव चलाना है तो रिमोट अपने पास रखो। परिस्थिति या व्यक्ति के हाथ मे अपना रिमोट मत दो कि वो तुम्हारे मन का चैनल बदल सकें। तुम्हारा मन तुम्हारे कंट्रोल में होना चाहिए। तो अपने मन का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ मे रखने हेतु नित्य गायत्री जप, प्राणायाम, स्वाध्याय और ध्यान अनिवार्य है।

अब शादी के बाद, परिवर्तन तो होगा ही। दूध से दही जैसा परिवर्तन, वापसी पुनः पुराने जीवन मे सम्भव नहीं। लेकिन दही से मख्खन और मक्खन से घी के उच्च शिखर प्राप्त किया जा सकता है। तो शादी के बाद पुरानी यादों के खंडहर में प्रवेश मत करना, और न हीं ससुराल की तुलना मायके वालों से करना। दूध और दही की तुलना व्यर्थ है। जो जैसा है उसे वैसा स्वीकार कर लेना, किसी भी रिश्ते में उलझना मत, और किसी दूसरे को सुधारने में अपनी एनर्जी खराब मत करना। पूरे ससुराल के वातावरण में सुख-शांति हेतु घर मे बलिवैश्व यज्ञ (गैस चूल्हे पर तांबे के पात्र को रखकर पांच गायत्री मंत्र के साथ आहुति) करना।

जिंदगी का सफ़र बहुत लंबा है, विवाह एक समझौते का सफर है जहाँ दो हमसफ़र के लिए दो सीट बैठने की नहीं होती। एक वक्त पर कोई एक ही बैठ सकता है अर्थात जीवन का नेतृत्व कर सकता है। तो मिल बांटकर समय और कार्य निश्चित कर लो आपस की समझबूझ से कि इतनी देर मैं चेयर पे बैठूँगी और इतनी देर तक तुम बैठोगे। यदि दोनों को अपने अपने क्षेत्र में स्वतंत्रता और पर्याप्त वक्त बैठने को मिलेगा तो कभी झगड़ा नहीं होगा। लेकिन यदि कोई ज्यादा बैठने और नेतृत्व का लालच करेगा तो महाभारत जरूर होगी, और भारी नुकसान दोनो को होगा। केवल कौरव के वंश का युद्ध मे नाश नहीं हुआ था, पांडवो के वंश का भी समूल नाश हुआ था, दोनो की प्रजाओं के वंश का नाश हुआ था और आर्थिक क्षति भी। भगवान कृष्ण न होते तो उत्तरा का गर्भ भी न बचता। अतः यदि पति पत्नी का युध्द हुआ तो क्षति दोनो को होगी। इसलिए सन्तुलित, आनन्दमय और व्यवस्थित जीवन के लिए निम्नलिखित पुस्तको का स्वाध्याय तुम दोनों करो 📖 *गृहस्थ एक तपोवन* , *मित्रता बढ़ाने की कला*, *सफल जीवन की दिशा धारा*, *दृष्टिकोण ठीक रखें*, *भाव सम्वेदना की गंगोत्री* इत्यादि। हो सके तो शादी से पहले इन सभी को पढ़ लो😇।

जिस प्रकार इलेक्ट्रॉनिक्स सामान खरीदते हो तो मैनुअल पढ़ते हो, साथ मे इंजीनयर डेमो देता है तब सामान उपयोग में लाते हो। तो इसी तरह माता-पिता बनने से पहले सन्तान के लालन-पालन और श्रेष्ठ सन्तान की उतपत्ति का मेनुअल पढ़ना। गर्भ संस्कार(पुंसवन) के लिए गायत्री परिजन को घर बुलाना या नज़दीकी शक्ति पीठ चली जाना। 📖  *आओ गढ़े संस्कारवान पीढ़ी* और 📖 *हमारी भावी पीढ़ी और उसका नवनिर्माण* पुस्तक के साथ अन्य सम्बन्धी साहित्य पढ़ लें, फिर माता-पिता बने।

मन के प्रबंधन ( मन मे सुकून और आनंद का उत्पादन, तनाव प्रबंधन और समाधान केंद्रित दृष्टिकोण )  के उपाय मॉल या ऑनलाइन शॉपिंग से नहीं मंगवाए जा सकते न हीं धन से खरीदे जा सकते है। और न ही आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ऑपरेशन या दवा/इंजेक्शन द्वारा हमारे अंदर ये क्षमता उतपन्न कर सकता है। इसका एक मात्र हल वैज्ञानिक अध्यात्म के पास है जिसे निरन्तर अभ्यास और वैराग्य से पाया जा सकता है। आध्यात्मिक अभ्यास (Spiritual practice) - (जप-ध्यान-प्राणायाम और स्वाध्याय) द्वारा मन प्रबंधन (Mind Management) सीख के प्रत्येक परिस्थितियों में आनंद का मार्ग खोज कर ख़ुशी रह सकती हो।

और अपनी सदा आनन्द में रहने की इच्छा पूर्ण कर सकती हो, जिंदगी के हर पल हर क्षण में आनन्दित रह सकती हो।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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