प्रश्न - *दी, मैं युगनिर्माण और गुरुसेवा में जीवन समर्पित करना चाहता हूँ। क्या करूँ?कैसे करूँ? पिछले 8 महीनों से जॉब कर रहा हूँ, मेरी उम्र 23 वर्ष है और अविवाहित हूँ। मार्गदर्शन करें.*
उत्तर - अतिउत्तम प्रश्न, तुम्हारी जैसे श्रेष्ठ जीवात्मा के प्रश्न का उत्तर देने में पहली बार परमानन्द आ रहा है।
साधारणतया ईश्वर बिना आह्वान के नहीं आता औऱ आह्वान पर भी अपना कार्य योग्य-सुपात्र को ही देता है। क्यूंकि भगवान की बनाई प्रकृति भी नियम पर आधारित है। सूर्य-चन्द्र-ग्रह-नक्षत्र-पूरी सृष्टि-जन्म-मरण इत्यादि सबके पीछे एक नियम काम करता है। कण कण में भगवान है, भीतर और बाहर सर्वत्र भगवान है ठीक उसी तरह जैसे शरीर के भीतर भी हवा है और हवा में हम रह रहे हैं। फिर भी हवा में विद्यमान प्राण एनर्जी हो या हवा के प्रवाह में विद्यमान विद्युत को उपयोग हेतु कुशल माध्यम चाहिए, जिससे उस विद्युत को निकालकर सही जगह उपयोग किया जा सके।
कभी कभार ही कृपा के चमत्कार बिना नियम के हो सकते हैं। भीख मिल भी सकती है और नहीं भी, लेकिन मज़दूरी निश्चयतः मिलती है। भीख(चमत्कार) का कोई नियम नहीं है, लेकिन मजदूरी(गुरुकार्य) का सुनिश्चित नियम है।
मनुष्य में भावना प्रमुख है कर्मकांड सहयोगी है। जब भगवान का आह्वान मूर्ति में करके उसकी पूजा हो सकती है तो उसी भगवान का अन्तःकरण में आह्वान हम क्यों नहीं करते। अपने तन-मन-धन का मालिक उसे बना दें और *करिष्ये वचनम तव* हृदय की गहराई से बोल के स्वयं को समर्पित कर दें। ईश्वरीय कार्य करने हेतु स्वयं को नित्य योग्य-सुपात्र भी बनाते चलें।
निरन्तर एक स्थान पर जमीन पर खोदने पर अंततः जल निकलता है, इसी तरह निरंतर भाव विह्वलता से सद्गुरु को पुकारने पर अन्तःकरण गुरुमय बनने लगता है।
*रोज़ उपासना भी गुरुमय करो:-*
पवित्रीकरण में भाव करो मैं भीतर और बाहर से पवित्र और गुरुमय हो रहा हूँ। अन्तःकरण और शरीर गुरुकार्य के योग्य बन रहा है।
आचमनम में भाव करो सूक्ष्म-स्थूल-कारण शरीर गुरुमय हो रहे हैं, तीनों गुरुकार्य के योग्य बन रहे है।
शिखा स्पर्श करते समय भाव करो कि अब इस शरीर से गुरुदेव के आदेश का ही पालन होगा, उनसे सम्बन्धित विचारों का ही प्रवेश होगा।
प्राणायाम करते समय भाव करो गुरुचेतना का प्राण तुम्हारे अंदर प्रवेश कर रहा है, हृदय में मिलकर पूरे रक्त धमनियों में गुरुचेतना ही प्रवाहित हो रही है। श्वांस छोड़ते समय भाव करो सभी विजातीय विचार निकल गए है।
न्यास के समय मुख्य अंगों को स्पर्श करते हुए भाव करो, जिह्वा गुरु आदेश पर चलेगी, श्वांस सिर्फ़ गुरु के लिए ही जियूँगा, नेत्र गुरु आदेश से देखेंगे, कर्ण गुरुआज्ञा सुनेंगे, हाथों से गुरुकार्य ही होगा, पैर गुरु द्वारा दिखाए सन्मार्ग की ओर बढ़ेंगे।
चन्दन - सदगुरु मेरे आज्ञा चक्र में मां भगवती के साथ विद्यमान है, उनकी आज्ञा से यह जीवन चलेगा।
कलावा- सदगुरु कार्य के लिए संकल्प बद्ध हूँ।
आह्वान- गुरुदेव हम आपका आह्वान इस शरीर मे करते है, आप हमारे बुद्धि रथ पर विराजमान हो जाइए। जिस प्रकार हे जगतगुरु आप अर्जुन के सारथी बने थे मेरे जीवन के सारथी मित्र बन जाइये। मेरे जीवन के मालिक बन जाइए। मुझे अपना दास स्वीकार कीजिये, मुझ शरणागत को अपनी शरण मे लीजिये। इस तन मन धन से अपना कार्यं करवा लीजिये🙏🏻🙏🏻
जप के समय भी उगते हुए सूर्य का हृदय क्षेत्र में ध्यान करो और सूर्य में गुरुदेव का ध्यान। *20 छोटी पुस्तकों का क्रांतिधर्मी साहित्य का स्वाध्याय अनवरत करो,* जिस प्रकार साधारण खेती में वक्त लगता है किसान धैर्य के साथ फसल पकने का इंतज़ार करता है। उसी तरह आध्यात्मिक खेती में भी धैर्य से सही समय का इंतज़ार करिये।
सांसारिक समस्त कर्मो को गुरु को अर्पण करते चलो, सद्गुरु से प्रार्थना करो कि विवाह गुरुदेव आप करवा रहे हो, जो गुरूपथ पर साथ चले सके ऐसी धर्म पत्नी देना। जो गुरुकार्य कर सके ऐसी सन्तान देना। जिस जॉब के साथ गुरुकार्य अनवरत चलता रहे वो जॉब देना। जिस जगह गुरुकार्य कर सकूं वहां रहने को स्थान देना। गुरुभक्तों की अच्छी संगति देना। जीवन की अंतिम श्वांस तक गुरुयन्त्र बन गुरुकार्य कर सकूं ऐसी बुद्धि, बल और आत्मविश्वास देना। अपनी कृपा दृष्टि सदैव बनाये रखना, गुरुकार्य करवाते रहना।
चलते फिरते जब भी वक्त मिले मौन मानसिक जप करना, गुरु विचारो से लोगो को जोड़ते चलना। आपके गुरुमय उज्ज्वल भविष्य की हम प्रार्थना करते हैं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - अतिउत्तम प्रश्न, तुम्हारी जैसे श्रेष्ठ जीवात्मा के प्रश्न का उत्तर देने में पहली बार परमानन्द आ रहा है।
साधारणतया ईश्वर बिना आह्वान के नहीं आता औऱ आह्वान पर भी अपना कार्य योग्य-सुपात्र को ही देता है। क्यूंकि भगवान की बनाई प्रकृति भी नियम पर आधारित है। सूर्य-चन्द्र-ग्रह-नक्षत्र-पूरी सृष्टि-जन्म-मरण इत्यादि सबके पीछे एक नियम काम करता है। कण कण में भगवान है, भीतर और बाहर सर्वत्र भगवान है ठीक उसी तरह जैसे शरीर के भीतर भी हवा है और हवा में हम रह रहे हैं। फिर भी हवा में विद्यमान प्राण एनर्जी हो या हवा के प्रवाह में विद्यमान विद्युत को उपयोग हेतु कुशल माध्यम चाहिए, जिससे उस विद्युत को निकालकर सही जगह उपयोग किया जा सके।
कभी कभार ही कृपा के चमत्कार बिना नियम के हो सकते हैं। भीख मिल भी सकती है और नहीं भी, लेकिन मज़दूरी निश्चयतः मिलती है। भीख(चमत्कार) का कोई नियम नहीं है, लेकिन मजदूरी(गुरुकार्य) का सुनिश्चित नियम है।
मनुष्य में भावना प्रमुख है कर्मकांड सहयोगी है। जब भगवान का आह्वान मूर्ति में करके उसकी पूजा हो सकती है तो उसी भगवान का अन्तःकरण में आह्वान हम क्यों नहीं करते। अपने तन-मन-धन का मालिक उसे बना दें और *करिष्ये वचनम तव* हृदय की गहराई से बोल के स्वयं को समर्पित कर दें। ईश्वरीय कार्य करने हेतु स्वयं को नित्य योग्य-सुपात्र भी बनाते चलें।
निरन्तर एक स्थान पर जमीन पर खोदने पर अंततः जल निकलता है, इसी तरह निरंतर भाव विह्वलता से सद्गुरु को पुकारने पर अन्तःकरण गुरुमय बनने लगता है।
*रोज़ उपासना भी गुरुमय करो:-*
पवित्रीकरण में भाव करो मैं भीतर और बाहर से पवित्र और गुरुमय हो रहा हूँ। अन्तःकरण और शरीर गुरुकार्य के योग्य बन रहा है।
आचमनम में भाव करो सूक्ष्म-स्थूल-कारण शरीर गुरुमय हो रहे हैं, तीनों गुरुकार्य के योग्य बन रहे है।
शिखा स्पर्श करते समय भाव करो कि अब इस शरीर से गुरुदेव के आदेश का ही पालन होगा, उनसे सम्बन्धित विचारों का ही प्रवेश होगा।
प्राणायाम करते समय भाव करो गुरुचेतना का प्राण तुम्हारे अंदर प्रवेश कर रहा है, हृदय में मिलकर पूरे रक्त धमनियों में गुरुचेतना ही प्रवाहित हो रही है। श्वांस छोड़ते समय भाव करो सभी विजातीय विचार निकल गए है।
न्यास के समय मुख्य अंगों को स्पर्श करते हुए भाव करो, जिह्वा गुरु आदेश पर चलेगी, श्वांस सिर्फ़ गुरु के लिए ही जियूँगा, नेत्र गुरु आदेश से देखेंगे, कर्ण गुरुआज्ञा सुनेंगे, हाथों से गुरुकार्य ही होगा, पैर गुरु द्वारा दिखाए सन्मार्ग की ओर बढ़ेंगे।
चन्दन - सदगुरु मेरे आज्ञा चक्र में मां भगवती के साथ विद्यमान है, उनकी आज्ञा से यह जीवन चलेगा।
कलावा- सदगुरु कार्य के लिए संकल्प बद्ध हूँ।
आह्वान- गुरुदेव हम आपका आह्वान इस शरीर मे करते है, आप हमारे बुद्धि रथ पर विराजमान हो जाइए। जिस प्रकार हे जगतगुरु आप अर्जुन के सारथी बने थे मेरे जीवन के सारथी मित्र बन जाइये। मेरे जीवन के मालिक बन जाइए। मुझे अपना दास स्वीकार कीजिये, मुझ शरणागत को अपनी शरण मे लीजिये। इस तन मन धन से अपना कार्यं करवा लीजिये🙏🏻🙏🏻
जप के समय भी उगते हुए सूर्य का हृदय क्षेत्र में ध्यान करो और सूर्य में गुरुदेव का ध्यान। *20 छोटी पुस्तकों का क्रांतिधर्मी साहित्य का स्वाध्याय अनवरत करो,* जिस प्रकार साधारण खेती में वक्त लगता है किसान धैर्य के साथ फसल पकने का इंतज़ार करता है। उसी तरह आध्यात्मिक खेती में भी धैर्य से सही समय का इंतज़ार करिये।
सांसारिक समस्त कर्मो को गुरु को अर्पण करते चलो, सद्गुरु से प्रार्थना करो कि विवाह गुरुदेव आप करवा रहे हो, जो गुरूपथ पर साथ चले सके ऐसी धर्म पत्नी देना। जो गुरुकार्य कर सके ऐसी सन्तान देना। जिस जॉब के साथ गुरुकार्य अनवरत चलता रहे वो जॉब देना। जिस जगह गुरुकार्य कर सकूं वहां रहने को स्थान देना। गुरुभक्तों की अच्छी संगति देना। जीवन की अंतिम श्वांस तक गुरुयन्त्र बन गुरुकार्य कर सकूं ऐसी बुद्धि, बल और आत्मविश्वास देना। अपनी कृपा दृष्टि सदैव बनाये रखना, गुरुकार्य करवाते रहना।
चलते फिरते जब भी वक्त मिले मौन मानसिक जप करना, गुरु विचारो से लोगो को जोड़ते चलना। आपके गुरुमय उज्ज्वल भविष्य की हम प्रार्थना करते हैं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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