प्रश्न - *मेरी दोस्त का बेटा 29 वर्ष का गुज़र गया। उसकी पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं। मां और पत्नी को इस असीम कष्ट से कैसे उबारूं?*
उत्तर - दी लम्बी गहरी श्वांस लेकर मन ही मन गायत्री मंत्र जपिये। अकाल मृत्यु और ऐसे व्यक्ति की मृत्यु जो परिवार के लिए उपयोगी और जिस पर आर्थिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ हो उसके जाने का कष्ट असीम होता है। क्योंकि उस पर पूरा परिवार विविध कारणों से डिपेंड/निर्भर करता है।
जबकि घर का वृद्ध, असहाय, लम्बी बीमारी में पड़ा व्यक्ति जो लंबे से समय से परिवार की कोई मदद न कर रहा हो बल्कि परिवार से सेवा ले रहा हो, बीमारी हज़ारी में परिवार का ख़र्च उसके इलाज़ में लग रहा हो, ऐसे व्यक्ति की मौत पर दुःख प्रकटीकरण मात्र फॉर्मेलिटी/शो होता है। मन ही मन सब कहते है अच्छा हुआ उसे मुक्ति मिली और हमें भी।
प्रज्ञापुराण कथामृतम के भाग 2 के पंचम अध्याय में - मृत्यु प्रकरण विस्तार से समझाया है लेकिन कुछ बिंदु हम सारांश हेतु दे रहे हैं:-
1- सभी आत्माएं जन्म अपने अपने कर्मो के फलानुसार/अतृप्त इच्छानुसार/कर्जा चुकाने या कर्जा वसूलने हेतु जन्म लेती है। आत्मा शरीर बदलती है, इसलिए उसका पूर्व जन्म का कर्मभोग इस जन्म में भुगतना पड़ेगा ही। उदाहरण -एक ही सिम के फोन बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मोबाइल बदला है नम्बर/सिम नहीं। तो लेनदार/देनदार का फोन आएगा ही। इसी तरह आत्मा का शरीर बदला है आत्मा नहीं, तो लेनदेन तो जो भी शरीर लेगा उसे ही करना और भोगना पड़ेगा।
पहली कहानी -
एक राजा के बच्चे होते और कुछ वर्षों बाद मर जाते, इससे राजा-रानी दुःखी थे। पांचवे बच्चे के जन्म के समय प्रसिद्ध ज्योतिषी को जन्म पत्री दिखा के बच्चे के जीवित रखने का उपाय पूँछा।
ज्योतिषी बोला पिछले चार बच्चों की आत्माओं का कर्ज पिछले जन्म में आपने खाया था, वो अपना कर्जा वसूल के गई। लेकिन पांचवी इस सन्तान को आपका कर्ज चुकाना है। कुछ भी करके ध्यान रखे कि यह आपका कर्ज न चुका पाए। राजा ने ऐसा ही किया बच्चे राजकुमार को अत्यधिक सुख सुविधा दी लेकिन कमाने का या सेवा करने का कोई अवसर न दिया जिससे कर्ज चुक सके। राजकुमार जीवित रहा और राजा खुश था। लेकिन एक दिन राजकुमार राज्य भ्रमण पर निकला, एक युवक को एक्सीडेंट में तड़फते देखा। उसका उपचार करवा के उसे उसके घर छोड़ने गया। वह युवक एक नगरसेठ का इकलौता बेटा था, बेटे की जान बचाने के उपलक्ष्य में उसने राजकुमार को मणियों से जड़ित बहुमूल्य हार दिया। राजकुमार वो हार घर आते ही रानी मां को भेंट कर दिया, हार की मनमोहक सुंदरता पर मां मुग्ध हुई और उसे स्वीकार करके धारण कर लिया। राजकुमार खाना खाते ही सो गया और फिर कभी नहीं उठा। राजकुमार की मृत्यु पर राजा क्रोधित हो उठा और ज्योतिषी को बुलवाया। ज्योतिषी ने घर के सभी सदस्यों को बुलाकर पूँछा कि राजकुमार ने कोई बहुमूल्य चीज़ महल के बाहर से लाकर किसी को भेंट की है क्या? रानी ने वह हार अपने गले से उतारकर महाराज के हाथ मे दे दिया। ज्योतिषी ने कहा, महाराज मैंने आपसे पहले ही कहा था उसका कर्ज उतरते ही वो एक क्षण यहां नहीं ठहरेगा। देखिए राजकुमार ने अपनी मदद से किये गए श्रम से प्राप्त पारितोषिक से कर्ज उतार दिया और चला गया।
दूसरी कहानी - पशु पक्षी रूप में भी कर्ज चुकाने आत्मा आती है। एक सेठ कर्ज देते समय कहता मर्जी हो तो इस जन्म में चुकाओ नहीं तो अगले जन्म में चुका देना। दो ठग पहुंचे उससे कर्ज लेने। कर्ज लेकर रात को वही ठहरे। सोने वाले ही थे कि उनके कान में बैल और गाय के बीच हो रही बात सुनाई दी। गाय बोली भाई कल डेढ़ लीटर दूध देने के बाद मेरा कर्ज चुक जाएगा और मैं मुक्त होते ही शरीर त्याग दूंगी। बैल बोला बहन अभी तो मुझे बहुत दिन लगेंगे कर्ज चुकाने में। सुबह गाय डेढ़ लीटर दूध देकर मर गयीं। यह दृश्य देखकर दोनों ठगों ने कर्ज सेठ को यह कहते हुए लौटा दिया की हम आपके कर्जदार बनके नहीं मरना चाहते।
आपने अपने आसपास रहने वाले लोगों के परिवार को देख के महसूस किया होगा, कोई बेटा माता-पिता की बड़ी सेवा करता है साथ मे परिवार की जिम्मेदारी उठाता है। इसका अर्थ लड़का अपना कर्ज उतार रहा है। जब इसका उल्टा हो माता-पिता बेटे के लिए बहुत कुछ कर रहे हों और बेटा नालायक निकले तो माता-पिता कर्ज चुका रहे होते हैं। इसी तरह दुनियां में समस्त रिश्ते माता-पिता, पति-पत्नी, बेटा-बेटी, दोस्त - नातेदार सबके सब पुराने ऋणानुबन्ध से बंधे है। जिस दिन ऋणमुक्त सबसे हुए शरीर का त्याग कर देते हैं।
बैंक लोन की रकम पूरी होते ही फाइल बन्द कर देता है, इसी तरह हमारे कर्ज मुक्त होते ही फ़ाइल बन्द हो जाती है।
हम वास्तव में किसी की मृत्यु पर दुःखी नहीं होते, क्योंकि भारत, अमेरिका, जापान, चीन इत्यादि विश्व के सभी जगहों पर कोई न कोई जन्म ले रहा है और कोई न कोई मृत्यु को प्राप्त हो रहा है। लाखों लोगों का जन्म और लाखों की मृत्यु। हमारे पूर्वज भी हमारे बीच नहीं है। इसी तरह हम भी एक दिन इस दुनियां को छोड़कर चले जायेंगे।
हम सभी जानते है कि जो जन्मा है वो मरेगा भी, अमर तो यहां कोई भी नहीं। जिस व्यक्ति पर हमारी भावनात्मक या आर्थिक या सामाजिक निर्भरता और रिश्ता होता है, उसके लिए ही हम वास्तव में दुःखी होते हैं। जबकि शरीर की नश्वरता और आत्मा की अमरता से हम सभी परिचित है।
दूसरों को ज्ञान देना आसान होता है लेकिन जब स्वयं पर गुजरती है तब विवेकशून्य हो जाता है इंसान, उस वक्त दूसरे द्वारा दिया सांत्वना और ज्ञान उसे दुःख से उबारता है।
प्रकांड ज्ञानी सेवाभावी पण्डित और वैद्य गुण से सम्पन्न सन्त के आसपास के गांव में महामारी फैली वो सेवा साधना में जुट गए। उन्हें अपने दोनों पुत्रों से अत्यंत मोह था। महामारी विकराल रूप ले रही था कइयों को मौत ने निगल लिया। लेकिन सन्त की ज्ञान वर्धक बाते और सेवा सबको दुख से उबार लेते।
एक दिन जब वो दूसरे गांव में अपनी सेवा दे रहे थे, तो महामारी के कारण उनके दोनों बच्चों की मृत्यु हो गयी। पत्नी भी ज्ञानवान थी, वो जानती थी यदि वैद्य सन्त पिता के रूप में इस दुःख से टूट गए, तो फिर ग्राम वासियों का क्या होगा?
बच्चो की लाश को कफ़न से ढंककर दूसरे कमरे में रख दिया, स्वयं अन्य कमरे में वैद्य जी को भोजन परसा। उन्होंने दोनों पुत्रों को कई दिन से नहीं देखा था क्योंकि वो दूसरे गांव से लौटे थे। आवाज़ दी तो पत्नी ने कहां खेल रहे होंगे गांव में कहीं, थोड़ी देर में आ जाएंगे। पत्नी ने बैद्य जी से कहा ये साड़ी और जेवर पड़ोसन ने रखने को मुझे दिए थे, अब मुझे इन्हें उसे लौटाने का मन नहीं कर रहा। मेरा मोह इससे लग गया है। वैद्य जी ने कहा, भाग्यवान जो अपना नहीं उससे मोह कैसा? जब शरीर ही नश्वर है अपना नहीं इसे भी छोड़ के जाना है। तो तू व्यर्थ इन जेवर साड़ियों का मोह क्यों करती है। जिसका है उसे लौटा दे।
पत्नी वैद्य जी को दूसरे कमरे में पुत्रो की लाश के समीप ले गयी। तो वैद्य जी रो पड़े। पत्नी ने उन्हें समझाते और सांत्वना देते हुए कहा, कि अभी आपने ही कहा शरीर नश्वर है, जो चीज़ जिसकी है उसपर उसका ही अधिकार है। बच्चे भगवान ने हमें दिए थे, अब उन्होंने उन आत्माओ को वापस बुला लिया। अब इसलिए दुःखी मत होइए। यदि आप टूट गए तो ग्राम के अन्य बच्चो के इलाज का क्या होगा। उन्हें सम्हालिये। जीवन किसी के जाने के बाद रुकता नहीं। वैद्य जी ने पुत्रो का दाह संस्कार किया और ग्राम के बच्चों की सेवा में पुनः लग गए।
जाने वाला मृत्यु की गोद मे सो गया। उठते ही नया जन्म लेगा। उसे पुराने रिश्ते और लोग कोई याद नहीं रहेंगे। जैसे हमें अपना पूर्व जन्म याद नहीं। अतः उस आत्मा को याद करके शोक मत कीजिये। जितने पल उसके साथ आनन्द के साथ बीते उन्हें स्मृतियों में रखिये। उसका साथ यहीं तक था, अब शोक न करके उसके बिना जीने की सम्भावनाओ पर विचार कीजिये।आगे अब क्या करना है यह सोचिए। ईश्वर उसकी आत्मा को शांति-सद्गति दें।
ईश्वर का विधान समझ के जीवन मे आगे बढ़ना ही जिंदगी है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - दी लम्बी गहरी श्वांस लेकर मन ही मन गायत्री मंत्र जपिये। अकाल मृत्यु और ऐसे व्यक्ति की मृत्यु जो परिवार के लिए उपयोगी और जिस पर आर्थिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ हो उसके जाने का कष्ट असीम होता है। क्योंकि उस पर पूरा परिवार विविध कारणों से डिपेंड/निर्भर करता है।
जबकि घर का वृद्ध, असहाय, लम्बी बीमारी में पड़ा व्यक्ति जो लंबे से समय से परिवार की कोई मदद न कर रहा हो बल्कि परिवार से सेवा ले रहा हो, बीमारी हज़ारी में परिवार का ख़र्च उसके इलाज़ में लग रहा हो, ऐसे व्यक्ति की मौत पर दुःख प्रकटीकरण मात्र फॉर्मेलिटी/शो होता है। मन ही मन सब कहते है अच्छा हुआ उसे मुक्ति मिली और हमें भी।
प्रज्ञापुराण कथामृतम के भाग 2 के पंचम अध्याय में - मृत्यु प्रकरण विस्तार से समझाया है लेकिन कुछ बिंदु हम सारांश हेतु दे रहे हैं:-
1- सभी आत्माएं जन्म अपने अपने कर्मो के फलानुसार/अतृप्त इच्छानुसार/कर्जा चुकाने या कर्जा वसूलने हेतु जन्म लेती है। आत्मा शरीर बदलती है, इसलिए उसका पूर्व जन्म का कर्मभोग इस जन्म में भुगतना पड़ेगा ही। उदाहरण -एक ही सिम के फोन बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मोबाइल बदला है नम्बर/सिम नहीं। तो लेनदार/देनदार का फोन आएगा ही। इसी तरह आत्मा का शरीर बदला है आत्मा नहीं, तो लेनदेन तो जो भी शरीर लेगा उसे ही करना और भोगना पड़ेगा।
पहली कहानी -
एक राजा के बच्चे होते और कुछ वर्षों बाद मर जाते, इससे राजा-रानी दुःखी थे। पांचवे बच्चे के जन्म के समय प्रसिद्ध ज्योतिषी को जन्म पत्री दिखा के बच्चे के जीवित रखने का उपाय पूँछा।
ज्योतिषी बोला पिछले चार बच्चों की आत्माओं का कर्ज पिछले जन्म में आपने खाया था, वो अपना कर्जा वसूल के गई। लेकिन पांचवी इस सन्तान को आपका कर्ज चुकाना है। कुछ भी करके ध्यान रखे कि यह आपका कर्ज न चुका पाए। राजा ने ऐसा ही किया बच्चे राजकुमार को अत्यधिक सुख सुविधा दी लेकिन कमाने का या सेवा करने का कोई अवसर न दिया जिससे कर्ज चुक सके। राजकुमार जीवित रहा और राजा खुश था। लेकिन एक दिन राजकुमार राज्य भ्रमण पर निकला, एक युवक को एक्सीडेंट में तड़फते देखा। उसका उपचार करवा के उसे उसके घर छोड़ने गया। वह युवक एक नगरसेठ का इकलौता बेटा था, बेटे की जान बचाने के उपलक्ष्य में उसने राजकुमार को मणियों से जड़ित बहुमूल्य हार दिया। राजकुमार वो हार घर आते ही रानी मां को भेंट कर दिया, हार की मनमोहक सुंदरता पर मां मुग्ध हुई और उसे स्वीकार करके धारण कर लिया। राजकुमार खाना खाते ही सो गया और फिर कभी नहीं उठा। राजकुमार की मृत्यु पर राजा क्रोधित हो उठा और ज्योतिषी को बुलवाया। ज्योतिषी ने घर के सभी सदस्यों को बुलाकर पूँछा कि राजकुमार ने कोई बहुमूल्य चीज़ महल के बाहर से लाकर किसी को भेंट की है क्या? रानी ने वह हार अपने गले से उतारकर महाराज के हाथ मे दे दिया। ज्योतिषी ने कहा, महाराज मैंने आपसे पहले ही कहा था उसका कर्ज उतरते ही वो एक क्षण यहां नहीं ठहरेगा। देखिए राजकुमार ने अपनी मदद से किये गए श्रम से प्राप्त पारितोषिक से कर्ज उतार दिया और चला गया।
दूसरी कहानी - पशु पक्षी रूप में भी कर्ज चुकाने आत्मा आती है। एक सेठ कर्ज देते समय कहता मर्जी हो तो इस जन्म में चुकाओ नहीं तो अगले जन्म में चुका देना। दो ठग पहुंचे उससे कर्ज लेने। कर्ज लेकर रात को वही ठहरे। सोने वाले ही थे कि उनके कान में बैल और गाय के बीच हो रही बात सुनाई दी। गाय बोली भाई कल डेढ़ लीटर दूध देने के बाद मेरा कर्ज चुक जाएगा और मैं मुक्त होते ही शरीर त्याग दूंगी। बैल बोला बहन अभी तो मुझे बहुत दिन लगेंगे कर्ज चुकाने में। सुबह गाय डेढ़ लीटर दूध देकर मर गयीं। यह दृश्य देखकर दोनों ठगों ने कर्ज सेठ को यह कहते हुए लौटा दिया की हम आपके कर्जदार बनके नहीं मरना चाहते।
आपने अपने आसपास रहने वाले लोगों के परिवार को देख के महसूस किया होगा, कोई बेटा माता-पिता की बड़ी सेवा करता है साथ मे परिवार की जिम्मेदारी उठाता है। इसका अर्थ लड़का अपना कर्ज उतार रहा है। जब इसका उल्टा हो माता-पिता बेटे के लिए बहुत कुछ कर रहे हों और बेटा नालायक निकले तो माता-पिता कर्ज चुका रहे होते हैं। इसी तरह दुनियां में समस्त रिश्ते माता-पिता, पति-पत्नी, बेटा-बेटी, दोस्त - नातेदार सबके सब पुराने ऋणानुबन्ध से बंधे है। जिस दिन ऋणमुक्त सबसे हुए शरीर का त्याग कर देते हैं।
बैंक लोन की रकम पूरी होते ही फाइल बन्द कर देता है, इसी तरह हमारे कर्ज मुक्त होते ही फ़ाइल बन्द हो जाती है।
हम वास्तव में किसी की मृत्यु पर दुःखी नहीं होते, क्योंकि भारत, अमेरिका, जापान, चीन इत्यादि विश्व के सभी जगहों पर कोई न कोई जन्म ले रहा है और कोई न कोई मृत्यु को प्राप्त हो रहा है। लाखों लोगों का जन्म और लाखों की मृत्यु। हमारे पूर्वज भी हमारे बीच नहीं है। इसी तरह हम भी एक दिन इस दुनियां को छोड़कर चले जायेंगे।
हम सभी जानते है कि जो जन्मा है वो मरेगा भी, अमर तो यहां कोई भी नहीं। जिस व्यक्ति पर हमारी भावनात्मक या आर्थिक या सामाजिक निर्भरता और रिश्ता होता है, उसके लिए ही हम वास्तव में दुःखी होते हैं। जबकि शरीर की नश्वरता और आत्मा की अमरता से हम सभी परिचित है।
दूसरों को ज्ञान देना आसान होता है लेकिन जब स्वयं पर गुजरती है तब विवेकशून्य हो जाता है इंसान, उस वक्त दूसरे द्वारा दिया सांत्वना और ज्ञान उसे दुःख से उबारता है।
प्रकांड ज्ञानी सेवाभावी पण्डित और वैद्य गुण से सम्पन्न सन्त के आसपास के गांव में महामारी फैली वो सेवा साधना में जुट गए। उन्हें अपने दोनों पुत्रों से अत्यंत मोह था। महामारी विकराल रूप ले रही था कइयों को मौत ने निगल लिया। लेकिन सन्त की ज्ञान वर्धक बाते और सेवा सबको दुख से उबार लेते।
एक दिन जब वो दूसरे गांव में अपनी सेवा दे रहे थे, तो महामारी के कारण उनके दोनों बच्चों की मृत्यु हो गयी। पत्नी भी ज्ञानवान थी, वो जानती थी यदि वैद्य सन्त पिता के रूप में इस दुःख से टूट गए, तो फिर ग्राम वासियों का क्या होगा?
बच्चो की लाश को कफ़न से ढंककर दूसरे कमरे में रख दिया, स्वयं अन्य कमरे में वैद्य जी को भोजन परसा। उन्होंने दोनों पुत्रों को कई दिन से नहीं देखा था क्योंकि वो दूसरे गांव से लौटे थे। आवाज़ दी तो पत्नी ने कहां खेल रहे होंगे गांव में कहीं, थोड़ी देर में आ जाएंगे। पत्नी ने बैद्य जी से कहा ये साड़ी और जेवर पड़ोसन ने रखने को मुझे दिए थे, अब मुझे इन्हें उसे लौटाने का मन नहीं कर रहा। मेरा मोह इससे लग गया है। वैद्य जी ने कहा, भाग्यवान जो अपना नहीं उससे मोह कैसा? जब शरीर ही नश्वर है अपना नहीं इसे भी छोड़ के जाना है। तो तू व्यर्थ इन जेवर साड़ियों का मोह क्यों करती है। जिसका है उसे लौटा दे।
पत्नी वैद्य जी को दूसरे कमरे में पुत्रो की लाश के समीप ले गयी। तो वैद्य जी रो पड़े। पत्नी ने उन्हें समझाते और सांत्वना देते हुए कहा, कि अभी आपने ही कहा शरीर नश्वर है, जो चीज़ जिसकी है उसपर उसका ही अधिकार है। बच्चे भगवान ने हमें दिए थे, अब उन्होंने उन आत्माओ को वापस बुला लिया। अब इसलिए दुःखी मत होइए। यदि आप टूट गए तो ग्राम के अन्य बच्चो के इलाज का क्या होगा। उन्हें सम्हालिये। जीवन किसी के जाने के बाद रुकता नहीं। वैद्य जी ने पुत्रो का दाह संस्कार किया और ग्राम के बच्चों की सेवा में पुनः लग गए।
जाने वाला मृत्यु की गोद मे सो गया। उठते ही नया जन्म लेगा। उसे पुराने रिश्ते और लोग कोई याद नहीं रहेंगे। जैसे हमें अपना पूर्व जन्म याद नहीं। अतः उस आत्मा को याद करके शोक मत कीजिये। जितने पल उसके साथ आनन्द के साथ बीते उन्हें स्मृतियों में रखिये। उसका साथ यहीं तक था, अब शोक न करके उसके बिना जीने की सम्भावनाओ पर विचार कीजिये।आगे अब क्या करना है यह सोचिए। ईश्वर उसकी आत्मा को शांति-सद्गति दें।
ईश्वर का विधान समझ के जीवन मे आगे बढ़ना ही जिंदगी है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
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