Tuesday 22 May 2018

प्रश्न - *तनाव क्या है? यह कैसे उतपन्न होता है? इसे कैसे दूर करें? तनावप्रबन्धन समझाएं*

प्रश्न - *तनाव क्या है? यह कैसे उतपन्न होता है? इसे कैसे दूर करें? तनावप्रबन्धन समझाएं*

उत्तर - *तनाव का जनक ही तनाव को आसानी से दूर कर सकता है, वह है हम स्वयं।*

तनाव का अर्थ है एक विचार जो आपने उठाया लेकिन अब रख नहीं पा रहे। जब वो विचार उठाया तब तो वो तनाव नहीं था, लेकिन जब उस विचार के समाधान हेतु विचार न करके उस विचार का रोना रोने लगे तो वो तनाव हो गया।

उदाहरण - हाथ में चाय का कप लिया, यह तनाव नहीं है। लेकिन चाय के कप को अब रख नहीं पा रहे। कई घण्टों से वो हाथ मे पकड़ा हुआ है तो यह तनाव बन गया।

अब जिसने पकड़ा वही तो रखेगा...जिसने विचार उठाया वही तो छोड़ेगा। चाय पीकर कप रख दो, समस्या पर काम करके उस विचार को छोड़ दो/रख दो।

एक गाड़ी है उससे बड़ी महंगी गाड़ी चाहिए, तो उसके लिए लोन लिया। अब उस गाड़ी के मेंटेनेंस और लोन की टेंशन उपजी तो इसके मूल में कौन है। इसी तरह बड़ा औऱ बड़े घर की चाहत और फिर नए घर के साथ नए लोन की टेंशन। फिर सैलरी बढ़ाने की टेंशन। पहले मंहगा घर मे समान लाना, फिर उसके टूट न जाने की टेंशन, कांच का फर्नीचर क्रॉकरी बच्चे वाले घर मे लाना फिर उनके न टूटने हेतु प्रयास करना और टेंशन लेना....इन सबकी जड़ में कौन है? हम स्वयं न.…

छोटी जॉब और सैलरी तो टेंशन, बड़ी जॉब और बड़ी सैलरी के साथ बड़ी जिम्मेदारी वो भी टेंशन । पहले शादी करना फिर बच्चे जन्म देना, अब उनके आने से बढ़े खर्च की टेंशन, उनकी पढ़ाई लिखाई और विवाह की टेंशन। इन सबके जड़ में कौन हैं हम ही हैं न...

पहले बड़ी बड़ी इच्छाओं की पूर्ति न होने की टेंशन, फिर जुगाड़ लगा के उन्हें पाने की टेंशन, फिर उस जुगाड़ के आफ्टर इफेक्ट को सम्हालने की टेंशन..कभी कभी लोग क्या कहेंगे की टेंशन....अर्थात मकड़ी की तरह स्वयं ही टेंशन का जाला अपने लिए बुनते है। फिर उसमें फंस के स्वयं ही चिल्लाते हैं। अब भाई जैसे मकड़ी अपना जाल समेट लेती है, हमें भी अपना टेंशन का जाल समेटना आना चाहिए।

कोई व्यक्ति, कोई घटना और कोई वस्तु हमें टेंशन नहीं देती । टेंशन देता है इन सबके प्रति हमारा नज़रिया/हमारी प्रतिक्रिया । रिश्तेदार घर मे आ गया तो आ गया, जो खिला सकते हो खिलाओ और सो जाओ। ये तो करना ही पड़ेगा अब चाहे टेंशन लेकर करो या बिना टेंशन के....

ऑफीस में काम आ गया तो आ गया, काम के लिए ही तो सैलरी मिलती है। अधिक काम और कम सैलरी यही कम्पनी करती है, यदि आपके काम के बराबर आपको पैसा दे दे और उसे प्रॉफिट मार्जिन न मिले तो कम्पनी एक महीने में बंद हो जाएगी और आप बेरोजगार। तो काम तो करना ही है, यदि सकारात्मक भाव से करेंगे तो टेंशन फ़्री रहेंगे और नकारात्मक सोचा तो टेंशन ही टेंशन में भरे रहेंगे।

अब शादी की और बच्चे आए तो खर्च तो बढ़ेगा ही, अब इसे कुशलता से सम्हालना एकमात्र उपाय है।

बड़ी जॉब नहीं मिल रही तो बेकार बैठने से अच्छा है कुछ दिन छोटी जॉब कर ली जाय। और अधिक मेहनत करके बड़ी जॉब हासिल करने का प्रयास किया जाय। बस परिस्थिति को दोष देने के बजाय मनःस्थिति बदल के प्रयास करें।

हम टेंशन इसलिए लेते है क्योंकि हम प्रत्येक व्यक्ति को अपने निर्देशों/कमांड पर चलने वाला व्यक्ति बनाना चाहते है। प्रत्येक जीवन की घटना के निर्माता निर्देशक स्वयं बनना चाहते हैं। इच्छाएं अपेक्षाएं दूसरों से इसी आधार पर करते है। और जब वो पूरी नहीं होती तो टेंशन लेते है। क्योंकि व्यक्ति रोबोट नहीं बल्कि एक स्वतंत्र जीव है। प्रकृति हमारे नियंत्रण में नहीं है और न कभी होगी। हम क्षुद्र मनुष्य नियंता को अपनी मर्जी से चलाना चाहते है। उसे बताते रहते है पूजा के वक्त के हे नियंता तुम्हे मेरे लिए ये सब काम करना है। स्वयं कभी नहीं पूंछते कि हे नियंता प्रकृति संरक्षण में हम आपकी क्या मदद करें... बस यहीं प्रॉब्लम है।

टेंशनमुक्त होने के लिए सिर्फ जीवन के प्रति नजरिये को बदलने की आवश्यकता है। किसी भी घटना के प्रति सकारात्मक कार्यवाही की आवश्यकता है। *स्वयं के दृष्टिकोण के सुधार की आवश्यकता है। इसमें सहायता करेगा योग-प्राणायाम-जप-ध्यान-स्वाध्याय । अब इन टूल्स के प्रयोग से अपने दृष्टिकोण की मरम्मत करो, सोचने का पैटर्न सही करो और उच्च मनःस्थिति बना के धरती पर ही स्वर्गीय आनन्द अनुभूति में जियो।*

Situation हमारे हाथ मे नहीं और Outcome भी हमारे हाथ मे नहीं लेकिन इन दोनों के बीच में  response किस प्रकार देना है यह हमारे हाथ मे है। समस्या केंद्रित दृष्टिकोण रखेंगे और situation को समस्या समझेंगे तो टेंशन लेने वाले बनेंगे। यदि situation को चुनौती की तरह लेकर समाधान केंद्रित दृष्टिकोण रखेंगे तो विजेता बनेंगे। मोह माया से ऊपर आईए, स्वयं के दृष्टिकोण पर काम कीजिये।

तनावप्रबन्धन से जीवन में समस्या आएगी ही नहीं कोई गारंटी नहीं होती , तनावप्रबन्धन से समस्या को हैंडल कैसे करना है बस यह इंसान सीख जाता है। कुशल जीवन का ड्राइवर बन जाता है, कैसी भी रोड हो मंजिल तक पहुंच जाता है।

पुस्तक *निराशा को पास न फटकने दें* , *सफल जीवन की दिशाधारा* औऱ *दृष्टिकोण ठीक रखें* जरूर पढ़ें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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