प्रश्न - *बलिवैश्व में गायत्री मंत्र की जगह किसी अन्य मन्त्र जैसे महामृत्युंजय मंत्र का प्रयोग क्यों नही करते? बलिवैश्व यज्ञ और गायत्री मंत्र आहुति के पीछे का आध्यात्मिक वैज्ञानिक महत्त्व समझाइए*
उत्तर - मनुष्य के जिस प्रकार तीन शरीर होते हैं - स्थूल, सूक्ष्म और कारण। इसी तरह अन्न के भी तीन शरीर होते हैं स्थूल, सूक्ष्म और कारण।
अन्न के स्थूल से हमारा शरीर बनता है, सूक्ष्म एनर्जी में परिवर्तित होता है जिससे हमें ताकत मिलती है, अन्न के कारण से हमारा मन/भावनायें निर्मित होती है। अतः इसलिए कहा जाता है जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन।
अब अन्न के कारण/भाव पर प्रभाव उस व्यक्ति का होता है जो उगाता है, उसका भी भाव होता है जो पकाता है, उसके भाव भी जुड़ते है जो परोसता है और उसके भाव भी जुड़ते है जो खाता है। इसलिए कहते है जब मन आवेगों क्रोध-ईर्ष्या से भरा हो तब न भोजन बनाना चाहिए, न परोसना चाहिए और नहीं ऐसे मनोभाव लेकर खाना चाहिए। क्योंकि आपके मनोभाव भोजन को विषैला बना देंगे।
इतने सारे भावों से अन्न को खाने से मन के सँस्कार प्रभावित होते है। अतः अन्न को संस्कारित करने की विधि बलिवैश्व कहलाती है। स्थूल रूप में अन्न आप धोते हो, लेकिन सूक्ष्म रूप में उसे संस्कारित करते हो।
गायत्री मंत्र के उपयोग के पीछे वैज्ञानिकता यह है कि गायत्री मंत्र जप में 1,10,000 vibes कम्पन तरंगों का होता है, ये तरंगे मनुष्य के भीतर 24 दिव्य ऊर्जा केंद्रों को जागृत करता है, उनमें सविता शक्ति को आरोपित करता है। उसी सविता शक्ति को अन्न को संस्कारित करने में भी उपयोग ले रहे हैं। साथ मे क्योंकि मन के सन्तुलन और अच्छे निर्माण हेतु अन्न संस्कारित कर रहे हैं। तो इसके लिए सद्बुद्धि का पोषण जरूरी है। गायत्री मंत्र का *धी* शब्द और *वरेण्यम* दोनों सविता की शक्ति को वरण करके बुद्धि में धारण करवाता है। अतः इसकी उपयोगिता और ज्यादा बढ़ जाती है। लेकिन विचार शक्ति और भावनाओं की शक्ति को यदि क्रिया शक्ति न मिले तो भी लक्ष्य पूरा न होगा। अतः *प्रचोदयात* अर्थात सन्मार्ग और सत्कर्म हेतु प्रेरणा भी जरूरी है।
हम यह भी तो चाहते है कि समस्त सृष्टि हमारे अनुकूल रहे, सभी देव -पितर भी हमसे सन्तुष्ट रहें। तो उन्हें भी भावनात्मक यज्ञ का भाग मिलना चाहिए। इसलिए बलिवैश्व के छोटे से उपक्रम में *देवता प्रकृति को पुष्ट करने वाले, ऋषि लोककल्याण हेतु रिसर्च करने वाले, ब्रह्म में रमने वाले लोक सेवी ब्राह्मण, नर मनुष्यता-इंसानियत की मिशाल बन जनकल्याण करने वाले, भूत समस्त जीवों शरीरधारी और अशरीरी की तुष्टि की व्यवस्था करता है।*
सद्बुद्धि सबको मिले, सब शारीरिक-मानसिक रूप से स्वस्थ रहे और सबका कल्याण हो इस भाव बलिवैश्व आहुति द्वारा अन्न को पांच आहुति से संस्कारित किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद भोजन प्रसाद बन जाता है, खाने वाला भोजन को प्रसाद समझ के खाता है तो दैवीय गुणों से सम्पन्न मन का निर्माण होता है।
इसलिए गुरुदेव ने बलिवैश्व यज्ञ को गृहणी के हाथ का रिमोट कंट्रोल कहा है।
इसे विस्तार से समझने के लिए वांग्मय पढ़े - *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान*
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - मनुष्य के जिस प्रकार तीन शरीर होते हैं - स्थूल, सूक्ष्म और कारण। इसी तरह अन्न के भी तीन शरीर होते हैं स्थूल, सूक्ष्म और कारण।
अन्न के स्थूल से हमारा शरीर बनता है, सूक्ष्म एनर्जी में परिवर्तित होता है जिससे हमें ताकत मिलती है, अन्न के कारण से हमारा मन/भावनायें निर्मित होती है। अतः इसलिए कहा जाता है जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन।
अब अन्न के कारण/भाव पर प्रभाव उस व्यक्ति का होता है जो उगाता है, उसका भी भाव होता है जो पकाता है, उसके भाव भी जुड़ते है जो परोसता है और उसके भाव भी जुड़ते है जो खाता है। इसलिए कहते है जब मन आवेगों क्रोध-ईर्ष्या से भरा हो तब न भोजन बनाना चाहिए, न परोसना चाहिए और नहीं ऐसे मनोभाव लेकर खाना चाहिए। क्योंकि आपके मनोभाव भोजन को विषैला बना देंगे।
इतने सारे भावों से अन्न को खाने से मन के सँस्कार प्रभावित होते है। अतः अन्न को संस्कारित करने की विधि बलिवैश्व कहलाती है। स्थूल रूप में अन्न आप धोते हो, लेकिन सूक्ष्म रूप में उसे संस्कारित करते हो।
गायत्री मंत्र के उपयोग के पीछे वैज्ञानिकता यह है कि गायत्री मंत्र जप में 1,10,000 vibes कम्पन तरंगों का होता है, ये तरंगे मनुष्य के भीतर 24 दिव्य ऊर्जा केंद्रों को जागृत करता है, उनमें सविता शक्ति को आरोपित करता है। उसी सविता शक्ति को अन्न को संस्कारित करने में भी उपयोग ले रहे हैं। साथ मे क्योंकि मन के सन्तुलन और अच्छे निर्माण हेतु अन्न संस्कारित कर रहे हैं। तो इसके लिए सद्बुद्धि का पोषण जरूरी है। गायत्री मंत्र का *धी* शब्द और *वरेण्यम* दोनों सविता की शक्ति को वरण करके बुद्धि में धारण करवाता है। अतः इसकी उपयोगिता और ज्यादा बढ़ जाती है। लेकिन विचार शक्ति और भावनाओं की शक्ति को यदि क्रिया शक्ति न मिले तो भी लक्ष्य पूरा न होगा। अतः *प्रचोदयात* अर्थात सन्मार्ग और सत्कर्म हेतु प्रेरणा भी जरूरी है।
हम यह भी तो चाहते है कि समस्त सृष्टि हमारे अनुकूल रहे, सभी देव -पितर भी हमसे सन्तुष्ट रहें। तो उन्हें भी भावनात्मक यज्ञ का भाग मिलना चाहिए। इसलिए बलिवैश्व के छोटे से उपक्रम में *देवता प्रकृति को पुष्ट करने वाले, ऋषि लोककल्याण हेतु रिसर्च करने वाले, ब्रह्म में रमने वाले लोक सेवी ब्राह्मण, नर मनुष्यता-इंसानियत की मिशाल बन जनकल्याण करने वाले, भूत समस्त जीवों शरीरधारी और अशरीरी की तुष्टि की व्यवस्था करता है।*
सद्बुद्धि सबको मिले, सब शारीरिक-मानसिक रूप से स्वस्थ रहे और सबका कल्याण हो इस भाव बलिवैश्व आहुति द्वारा अन्न को पांच आहुति से संस्कारित किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद भोजन प्रसाद बन जाता है, खाने वाला भोजन को प्रसाद समझ के खाता है तो दैवीय गुणों से सम्पन्न मन का निर्माण होता है।
इसलिए गुरुदेव ने बलिवैश्व यज्ञ को गृहणी के हाथ का रिमोट कंट्रोल कहा है।
इसे विस्तार से समझने के लिए वांग्मय पढ़े - *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान*
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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