प्रश्न - *सूतक लगने पर क्या यज्ञ कर सकते हैं? यदि यज्ञ चल रहा हो उसके मध्य सूतक लग जाए तो क्या यज्ञ बीच मे बन्द कर देना चाहिए?*
उत्तर - जन्म मरण आदि के कारण सूतक लगता हैं उनमें शुभ कर्म निषिद्ध है। सूतक प्रायः दस (10) दिन का होता है। जब तक शुद्धि न हो जाय तब तक यज्ञ, ब्रह्म भोजन आदि नहीं किये जाते। परन्तु यदि वह शुभ कार्य प्रारंभ हो जाय तो फिर सूतक उपस्थिति होने पर उस कार्य का रोकना आवश्यक नहीं। ऐसे समयों पर शास्त्रकारों की आज्ञा है कि उस यज्ञादि कर्म को बीच में न रोककर उसे यथावत चालू रखा जाय। इस सम्बंध में कुछ शास्त्रीय अभिमत नीचे दिये जाते हैं-
यज्ञे प्रवर्तमाने तु जायेतार्थ म्रियेत वा।
पूर्व संकल्पिते कार्ये न दोष स्तत्र विद्यते।
यज्ञ काले विवाहे च देवयागे तथैव च।
हूय माने तथा चाग्नौ नाशौचं नापि सतकम्।
दक्षस्मृति 6।19-20
यज्ञ हो रहा हो ऐसे समय यदि जन्म या मृत्यु का सूतक हो जाए तो इससे पूर्व संकल्पित यज्ञादि धर्म में कोई दोष नहीं होता। यज्ञ, विवाह, देवयोग आदि के अवसर पर जो सूतक होता है उसके कारण कार्य नहीं रुकता।
प्रश्न - *सूतक- आशौच है क्या?*
किसी घर में किसी शिशु का जन्म या किसी का निधन हो जाता है उस परिवार के सदस्यों को सूतक या अशुचि (शुद्धि) की स्थिति में बिताने होते हैं।। धर्म ग्रन्थों में इस स्थिति को आशौच, आशुच्य तो सूतक कहा गया है। निधारित अवधि के बाद शुद्धि कर्म करने पर वे सहज स्थिति में आते हैं।। शुद्धि के बाद ही परिजन वेदविहित अथवा धार्मिक कृत्यों को सम्पन्न कर सकते है।
🙏🏻श्वेता, दिया
रिफरेन्स - http://l iterature. awgp. org/akhandjyoti/1954/February/v2.14
उत्तर - जन्म मरण आदि के कारण सूतक लगता हैं उनमें शुभ कर्म निषिद्ध है। सूतक प्रायः दस (10) दिन का होता है। जब तक शुद्धि न हो जाय तब तक यज्ञ, ब्रह्म भोजन आदि नहीं किये जाते। परन्तु यदि वह शुभ कार्य प्रारंभ हो जाय तो फिर सूतक उपस्थिति होने पर उस कार्य का रोकना आवश्यक नहीं। ऐसे समयों पर शास्त्रकारों की आज्ञा है कि उस यज्ञादि कर्म को बीच में न रोककर उसे यथावत चालू रखा जाय। इस सम्बंध में कुछ शास्त्रीय अभिमत नीचे दिये जाते हैं-
यज्ञे प्रवर्तमाने तु जायेतार्थ म्रियेत वा।
पूर्व संकल्पिते कार्ये न दोष स्तत्र विद्यते।
यज्ञ काले विवाहे च देवयागे तथैव च।
हूय माने तथा चाग्नौ नाशौचं नापि सतकम्।
दक्षस्मृति 6।19-20
यज्ञ हो रहा हो ऐसे समय यदि जन्म या मृत्यु का सूतक हो जाए तो इससे पूर्व संकल्पित यज्ञादि धर्म में कोई दोष नहीं होता। यज्ञ, विवाह, देवयोग आदि के अवसर पर जो सूतक होता है उसके कारण कार्य नहीं रुकता।
प्रश्न - *सूतक- आशौच है क्या?*
किसी घर में किसी शिशु का जन्म या किसी का निधन हो जाता है उस परिवार के सदस्यों को सूतक या अशुचि (शुद्धि) की स्थिति में बिताने होते हैं।। धर्म ग्रन्थों में इस स्थिति को आशौच, आशुच्य तो सूतक कहा गया है। निधारित अवधि के बाद शुद्धि कर्म करने पर वे सहज स्थिति में आते हैं।। शुद्धि के बाद ही परिजन वेदविहित अथवा धार्मिक कृत्यों को सम्पन्न कर सकते है।
🙏🏻श्वेता, दिया
रिफरेन्स - http://l iterature. awgp. org/akhandjyoti/1954/February/v2.14
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