Monday 25 June 2018

Art of Giving

*मनुष्य में देवत्व उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण*

कल्पना करें यदि श्वांस ली तो जाए लेकिन छोड़ी न जाये तो क्या जीवन बचेगा?

जब लेंन-देंन का सिस्टम श्वांस के माध्यम से भगवान हमें निरन्तर याद दिलाता है। तो फ़िर प्रकृति से लेकर उसे पुनः लौटाने का क्रम क्यों पूरा नहीं किया जा रहा?

समाज से लेकर पुनः समाज के उद्धार की व्यवस्था क्यों न की गई?

लेवता बनने में व्यस्त हो गए और देवता बनने में क्यों पीछे रह गए।

देवता(Givers) बहुत कम मिलते हैं, लेकिन लेवता(Takers) बहुतायत हैं, इसीलिए तो कलियुग का प्रभाव बढ़ा हुआ है।

जानते हैं, Takers can eat well,
Givers can sleep well।
लेवता खाता मस्त है लेकिन चैन की नींद को तरसता है। देवता हमेशा आत्म संतुष्टि के कारण चैन की नींद सोता है।

Takers can have a great time,
Givers can have great life,

लेवता  कुछ समय के लिए अपना समय अच्छा एन्जॉय कर सकता है। वहीं देवता का सारा जीवन श्रेष्ठ, अच्छा औऱ सुकून भरा होता है, हर पल आनन्द में होता है।

Art of giving - देवता बन यदि देने का भाव बना लिया जाय, अधिकारों की उपेक्षा कर कर्तव्यों का निर्वहन किया जाय तो जीवन धन्य बन जायेगा।

यह समाज सुधर जाएगा जब सभी कुछ न कुछ समाज कल्याण के लिए करने में जुट जाएंगे। सभी वृक्षारोपण, स्वच्छता इत्यादि में लग गए तो प्रकृति में सन्तुलन हो जाएगा। दहेज़ और ख़र्चीली शादी लेने का भाव त्यागते ही बन्द हो जाएगा। भाव सम्वेदना का विस्तार सहज़ ही देवता बनते हो जाएगा। लड़की लड़का का भेद मिट जाएगा और दोनों को आगे बढ़ने का समान अवसर मिलेगा, गृह कलह देवता बनते ही खत्म हो जाएगा। घर स्वर्ग सा सुंदर बन जायेगा।

देवता बनकर उनको भी क्षमा कर दें जिसने आपको कष्ट दिया। तो मन स्वतः हल्का हो जाएगा।

देवता बनने हेतु नित्य उपासना, साधना और आराधना का क्रम अपनाए, उच्च मनःस्थिति और सुकून भरे हृदय का निर्माण करके और धरती पर ही स्वर्ग एन्जॉय करें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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