*शक्ति सम्वर्धन चन्द्रायण समूह साधना*
कामना मानव मन की एक सहज स्वाभाविक वृत्ति है ।। यही वह वृत्ति है जो मनुष्य को निरंतर कर्मशील बनाए रखती है ।। यों लौकिक कामनाएँ तो हर व्यक्ति करता है पर पारमार्थिक पारलौकिक या बहुजन हिताय बहुजनसुखाय के लिए अपनी योग्यता, प्रतिभा व शक्ति को नियोजित करते हुए एक महान ध्येय को पा लेने की दैवी अभिलाषाएँ भी कइयों के मन में उठा करती हैं ।। कुछ व्यक्ति उन भावनाओं, अभिलाषाओं को पूर्ण नहीं पाते और कुछ पूर्ण कर लेते हैं ।। इसके पीछे उन लोगों की व्यावहारिक सूझ- बूझ व ध्येयनिष्ठा की प्रखरता जुड़ी रहती है ।।
समूह साधना में भावनाएं प्रबल होती हैं, और इच्छित परिणाम लोककल्याणार्थ समूह में जल्दी मिलता है।
*भंडारा आयोजित हो रहा हो तो कोई 10 रुपये दान दे या कोई लाख रुपये दान दे, समूह में प्रसाद का बराबर लाभ सबको मिलता है।*
समूह साधना के इस शुभ अवसर पर वैसे तो सबको अपनी क्षमता से थोड़ा सा ज्यादा जप करना चाहिए, यदि 10 माला की क्षमता सधी हुई है तो दो या 5 और बढ़ा लें।
लेकिन याद रखें सितार में संगीत तभी बजता है जब वो ज्यादा न कसा और और न ही ढीला छोड़ा हो। साधना में भी भावावेश में अधिक कड़ाई करना या स्वयं को ज़्यादा आराम देने की सोचना दोनों ही सही नहीं है।
केवल जप से काम न चलेगा, अन्यथा तोते रटन्त की तरह हमें भी फल न मिलेगा। जप के साथ अर्थ चिंतन और ध्यान जरुरी है। ध्यान की प्रगाढ़ता ही अभीष्ट सिद्धि देगी।
जितनी उपासना उससे दूनी साधना भी जरूरी है। तो स्वाध्याय में सत्साहित्य पढ़ना और उसे गुनना अर्थात चिंतन करना। फ़िर उसके मुख्य बिंदु को डायरी में नोट करना अनिवार्य है।
योग व्यायाम का उचित समागम साधक के लिए अनिवार्य है। सबसे बड़ा सुख निरोगी काया। साधना हेतू निरोगी काया का निर्माण करें।
आराधना हेतु मनःस्थिति, परिस्थिति प्लानिंग यह सब करें, और समयदान अंशदान प्रतिभादान की सुनिश्चित व्यवस्था करें।
मन चन्द्र का प्रतीक है, मन को नियंत्रण करने में चन्द्र की कलाएं और उसके अनुसार घटते बढ़ते क्रम में आहार अत्यंत लाभ प्रद है।
कामना मानव मन की एक सहज स्वाभाविक वृत्ति है ।। यही वह वृत्ति है जो मनुष्य को निरंतर कर्मशील बनाए रखती है ।। यों लौकिक कामनाएँ तो हर व्यक्ति करता है पर पारमार्थिक पारलौकिक या बहुजन हिताय बहुजनसुखाय के लिए अपनी योग्यता, प्रतिभा व शक्ति को नियोजित करते हुए एक महान ध्येय को पा लेने की दैवी अभिलाषाएँ भी कइयों के मन में उठा करती हैं ।। कुछ व्यक्ति उन भावनाओं, अभिलाषाओं को पूर्ण नहीं पाते और कुछ पूर्ण कर लेते हैं ।। इसके पीछे उन लोगों की व्यावहारिक सूझ- बूझ व ध्येयनिष्ठा की प्रखरता जुड़ी रहती है ।।
समूह साधना में भावनाएं प्रबल होती हैं, और इच्छित परिणाम लोककल्याणार्थ समूह में जल्दी मिलता है।
*भंडारा आयोजित हो रहा हो तो कोई 10 रुपये दान दे या कोई लाख रुपये दान दे, समूह में प्रसाद का बराबर लाभ सबको मिलता है।*
समूह साधना के इस शुभ अवसर पर वैसे तो सबको अपनी क्षमता से थोड़ा सा ज्यादा जप करना चाहिए, यदि 10 माला की क्षमता सधी हुई है तो दो या 5 और बढ़ा लें।
लेकिन याद रखें सितार में संगीत तभी बजता है जब वो ज्यादा न कसा और और न ही ढीला छोड़ा हो। साधना में भी भावावेश में अधिक कड़ाई करना या स्वयं को ज़्यादा आराम देने की सोचना दोनों ही सही नहीं है।
केवल जप से काम न चलेगा, अन्यथा तोते रटन्त की तरह हमें भी फल न मिलेगा। जप के साथ अर्थ चिंतन और ध्यान जरुरी है। ध्यान की प्रगाढ़ता ही अभीष्ट सिद्धि देगी।
जितनी उपासना उससे दूनी साधना भी जरूरी है। तो स्वाध्याय में सत्साहित्य पढ़ना और उसे गुनना अर्थात चिंतन करना। फ़िर उसके मुख्य बिंदु को डायरी में नोट करना अनिवार्य है।
योग व्यायाम का उचित समागम साधक के लिए अनिवार्य है। सबसे बड़ा सुख निरोगी काया। साधना हेतू निरोगी काया का निर्माण करें।
आराधना हेतु मनःस्थिति, परिस्थिति प्लानिंग यह सब करें, और समयदान अंशदान प्रतिभादान की सुनिश्चित व्यवस्था करें।
मन चन्द्र का प्रतीक है, मन को नियंत्रण करने में चन्द्र की कलाएं और उसके अनुसार घटते बढ़ते क्रम में आहार अत्यंत लाभ प्रद है।
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