प्रश्न - *दी मैं करना तो बहुत कुछ चाहता हूँ देश समाज के लिए, लेकिन मुझसे कुछ हो नहीं पा रहा। क्या करूँ?*
उत्तर - समस्या जहाँ है समाधान वहीं है। सबसे पहले ये समझो कि बहुत कुछ सोचने से कुछ भी नहीं होता है।
मन एक समय मे एक बार में बहुत कुछ सोच सकता है, लेकिन शरीर एक समय में एक बार में केवल एक ही कार्य कर सकता है। इस बात को 100 बार पढ़ के समझ लो।
तो बहुत कुछ वाली सोच में से एक कार्य को छांटकर निकाल लो, अब उस एक कार्य के लिए अपनी योग्यता क्षमता नाप लो। अब उस कार्य की योजना बनाओ, समय संशाधन जुटाओ। योजना अपने संगी साथी को समझाओ। कार्य शुरू करो।
सेवा कार्य मे जूटे लोग सैलरी नहीं लेते अतः उन पर दबाव डालकर कार्य नहीं करवाया जा सकता।
मनोवैज्ञानिक सूझ बूझ और आत्मीयता विस्तार से लोगो को साथ जोड़ो। उनके अच्छे कार्यो की प्रसंशा करो। किसी के गलत करने पर अकेले में समझाओ, समूह में नहीं।
कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, जो कर सकते हो उसे कर डालो। आज का काम कल पर मत छोड़ो। देशहित लिए संकल्प को पूरा करो।
उदाहरण - यदि आप किसी के घर गए और उसे आपको स्वागत में बहुत कुछ खिलाने का मन कर रहा है। वो निर्णय नहीं ले पा रही कि वो क्या खिलाये? वो आपसे कहे कि खिलाना तो बहुत कुछ चाहती हूँ तुम्हें पर क्या करूँ समझ नहीं पा रही कि क्या खिलाऊँ। तो आप कहेंगे बहन तेरे घर मे जो समान उपलब्ध है वो पहले चेक कर, फिर उस समान से जो भी कुछ तू बेहतर बना सकती है जल्दी से वो बना दे। मुझे भूख लगी है, मुझे बहुत कुछ नहीं चाहिए केवल कुछ ऐसा बना दे जिसे खा के मेरी भूख शांत हो जाये। बाद में सोचना कि शाम को और क्या खिला सकती है।
इसी तरह, देश भी आपसे कह रहा है, बहुत कुछ बाद में करना, पहले चेक करो कि समयदान, प्रतिभादान और अंशदान द्वारा जल्दी क्या मेरी सेवा शुरू कर सकते हो। पहले मुझे थोड़ी राहत एक प्रोजेक्ट पर काम शुरू करके दे दो, फिर अगला प्रोजेक्ट सोच विचार कर उठाना।
📖 पुस्तक *हमारे सप्त आंदोलन* और *वर्तमान युवावर्ग औऱ चुनौती* पढो और नज़दीकी गायत्री परिवार और दिया के कार्यकर्ताओं से वर्तमान में चल रहे प्रोजेक्ट समझो। जिसको आप आसानी से शुरू कर सकते है वो कार्य पहले शुरू कर दें।
महाकाल से प्रार्थना है कि आपको आपका पहला सेवा के सौभाग्य का प्रोजेक्ट शीघ्र मिले।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - समस्या जहाँ है समाधान वहीं है। सबसे पहले ये समझो कि बहुत कुछ सोचने से कुछ भी नहीं होता है।
मन एक समय मे एक बार में बहुत कुछ सोच सकता है, लेकिन शरीर एक समय में एक बार में केवल एक ही कार्य कर सकता है। इस बात को 100 बार पढ़ के समझ लो।
तो बहुत कुछ वाली सोच में से एक कार्य को छांटकर निकाल लो, अब उस एक कार्य के लिए अपनी योग्यता क्षमता नाप लो। अब उस कार्य की योजना बनाओ, समय संशाधन जुटाओ। योजना अपने संगी साथी को समझाओ। कार्य शुरू करो।
सेवा कार्य मे जूटे लोग सैलरी नहीं लेते अतः उन पर दबाव डालकर कार्य नहीं करवाया जा सकता।
मनोवैज्ञानिक सूझ बूझ और आत्मीयता विस्तार से लोगो को साथ जोड़ो। उनके अच्छे कार्यो की प्रसंशा करो। किसी के गलत करने पर अकेले में समझाओ, समूह में नहीं।
कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, जो कर सकते हो उसे कर डालो। आज का काम कल पर मत छोड़ो। देशहित लिए संकल्प को पूरा करो।
उदाहरण - यदि आप किसी के घर गए और उसे आपको स्वागत में बहुत कुछ खिलाने का मन कर रहा है। वो निर्णय नहीं ले पा रही कि वो क्या खिलाये? वो आपसे कहे कि खिलाना तो बहुत कुछ चाहती हूँ तुम्हें पर क्या करूँ समझ नहीं पा रही कि क्या खिलाऊँ। तो आप कहेंगे बहन तेरे घर मे जो समान उपलब्ध है वो पहले चेक कर, फिर उस समान से जो भी कुछ तू बेहतर बना सकती है जल्दी से वो बना दे। मुझे भूख लगी है, मुझे बहुत कुछ नहीं चाहिए केवल कुछ ऐसा बना दे जिसे खा के मेरी भूख शांत हो जाये। बाद में सोचना कि शाम को और क्या खिला सकती है।
इसी तरह, देश भी आपसे कह रहा है, बहुत कुछ बाद में करना, पहले चेक करो कि समयदान, प्रतिभादान और अंशदान द्वारा जल्दी क्या मेरी सेवा शुरू कर सकते हो। पहले मुझे थोड़ी राहत एक प्रोजेक्ट पर काम शुरू करके दे दो, फिर अगला प्रोजेक्ट सोच विचार कर उठाना।
📖 पुस्तक *हमारे सप्त आंदोलन* और *वर्तमान युवावर्ग औऱ चुनौती* पढो और नज़दीकी गायत्री परिवार और दिया के कार्यकर्ताओं से वर्तमान में चल रहे प्रोजेक्ट समझो। जिसको आप आसानी से शुरू कर सकते है वो कार्य पहले शुरू कर दें।
महाकाल से प्रार्थना है कि आपको आपका पहला सेवा के सौभाग्य का प्रोजेक्ट शीघ्र मिले।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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