प्रश्न - *क्या सुख-दुःख का केंद्र हमारा मन है और हमारी सोच और मनःस्थिति पर निर्भर है? कृपया समझाइए...*
उत्तर - आपका गूढ़ प्रश्न बताता है कि आप स्वाध्याय करती हैं, और आपने जो अभी तक समझा वो आप मुझसे पुनः समझना चाहती हैं।
जी यह सत्य है, कि सुख-दुःख का केंद्र हमारी सोच और मनःस्थिति पर निर्भर हैं।
इस संसार में कोई भी बाहरी वस्तु या व्यक्ति जब तक हम न चाहें हमें सुख या दुःख नहीं दे सकता। सच तो यह है कि विश्व मे कभी ऐसी घटना नहीं घटी जब किसी बाहरी वस्तु या व्यक्ति ने किसी को परमानन्द दिया हो।
मल्टीप्लेक्स फ़िल्म हाल का पर्दा दर्शक देखते हैं लेकिन पर्दा तो केवल वह दिखाता है जो पीठ पीछे प्रोजेक्ट हो रहा है। यदि पर्दे का दृश्य बदलना है तो पर्दा नहीं बदलोगे, बल्कि प्रोजेक्टर जहां से दृश्य प्रोजेक्ट कर रहा है वो रील बदलोगे। वो डेटा बदलोगे। इसी तरह हमारा अन्तरमन जो प्रोजेक्ट करता है वही दृश्य और वैसी ही अनुभूति से हमें होती है।
नवविवाहित जोड़े के अन्तर्मन में ख़ुशी का अंबार है, उसके अन्तर्मन का प्रोजेक्टर उसे नज़ारों में, पहाड़ों में और वर्षा की बूंदों के ऊपर प्रोजेक्ट करेगा। सब के सब उसे और आनन्दमय प्रतीत होंगे। उसे रसगुल्ले में मिठास अनुभव होगी, पुष्प रंग बिरंगे मनमोहक लगेंगे औऱ नन्हे बालक की मुस्कान आनंद से भर देगी।
एक वृद्ध जोड़ा जिसकी एक मात्र सन्तान ने उसे घर से अपमानित करके निकाल दिया। उसका अन्तर्मन दुःख और पीड़ा से भरा है। उसी दुःख और पीड़ा को उसके अन्तर्मन का प्रोजेक्टर नज़ारों में, पहाड़ों में और वर्षा की बूंदों के ऊपर प्रोजेक्ट करेगा। सब के सब उसे और नीरस रसहीन प्रतीत होंगे। उसे रसगुल्ले में मिठास अनुभव न होगा, भोजन में स्वाद अनुभव न होगा, पुष्प रंग बिरंगे मनमोहक न लगेंगे औऱ नन्हे बालक की मुस्कान में उसे पुत्र का धोखा याद करवाएगा और अन्तःकरण में दर्द की लहर दौड़ पड़ेगी।
अब कुशल डॉक्टर से उन दोनों जोड़ो की आंखों का, स्वादेन्द्रिय का चेक करवाओ। कोई प्रॉब्लम न मिलेगी। नज़ारे एक जैसे थे। पुष्प सब एक जैसे थे। रसगुल्ला और भोजन एक जैसा था। वह बालक भी एक ही था। नेत्र मे देखने की क्षमता थी, मन में अनुभूत करने की क्षमता थी, जीभ में स्वाद लेने की क्षमता थी, वस्तुओं में भी रूप गन्ध और स्वाद मौजूद था। तो जो विवाहित जोड़े को अनुभव हुआ वो टूटे मन के वृद्ध जोड़ो को अनुभव न हुआ। क्योंकि वृद्ध का शरीर तो मौजूद था लेकिन चेतना तो बेटे के पास थी और मन तो घटी घटना अपमान और यादों के खंडहर में था, जिसे अनुभूत करना था वो चेतना मौजूद न थी।
सिद्ध सन्त दुर्गम जंगल, कठिन परिस्थिति में भी आनन्दित रहते हैं, क्योंकि वो हमेशा चैतन्य, जागरूक रहते हैं। उनकी मनःस्थिति ठीक रहती है। इसलिए हर परिस्थिति में वो आनन्दित रह पाते हैं।
इससे यह सिद्ध होता है कि अन्तर्मन में जैसा भरा भाव है, जैसी मनःस्थिति है, उसी के अनुसार बाहर की वस्तु व्यक्ति से अनुबंध/सम्बन्ध स्थापित करेगा और मन के भरे सुख, दुःख, आनन्द के अनुसार ही सुखी, दुःखी या आनन्दित महसूस करेगा ।
इसलिए युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब ने अपनी पुस्तक 📖 *मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले* में स्पष्ट लिखा है कि परिस्थिति बदलना है तो मनःस्थिति बदलना होगा। मन का प्रबंधन सीख लो तो जॉब, व्यवसाय, घर, परिवार सबको स्वतः व्यवस्थित कर लोगे। अतः इस 👆🏻 पुस्तक को जरूर पढ़ें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आपका गूढ़ प्रश्न बताता है कि आप स्वाध्याय करती हैं, और आपने जो अभी तक समझा वो आप मुझसे पुनः समझना चाहती हैं।
जी यह सत्य है, कि सुख-दुःख का केंद्र हमारी सोच और मनःस्थिति पर निर्भर हैं।
इस संसार में कोई भी बाहरी वस्तु या व्यक्ति जब तक हम न चाहें हमें सुख या दुःख नहीं दे सकता। सच तो यह है कि विश्व मे कभी ऐसी घटना नहीं घटी जब किसी बाहरी वस्तु या व्यक्ति ने किसी को परमानन्द दिया हो।
मल्टीप्लेक्स फ़िल्म हाल का पर्दा दर्शक देखते हैं लेकिन पर्दा तो केवल वह दिखाता है जो पीठ पीछे प्रोजेक्ट हो रहा है। यदि पर्दे का दृश्य बदलना है तो पर्दा नहीं बदलोगे, बल्कि प्रोजेक्टर जहां से दृश्य प्रोजेक्ट कर रहा है वो रील बदलोगे। वो डेटा बदलोगे। इसी तरह हमारा अन्तरमन जो प्रोजेक्ट करता है वही दृश्य और वैसी ही अनुभूति से हमें होती है।
नवविवाहित जोड़े के अन्तर्मन में ख़ुशी का अंबार है, उसके अन्तर्मन का प्रोजेक्टर उसे नज़ारों में, पहाड़ों में और वर्षा की बूंदों के ऊपर प्रोजेक्ट करेगा। सब के सब उसे और आनन्दमय प्रतीत होंगे। उसे रसगुल्ले में मिठास अनुभव होगी, पुष्प रंग बिरंगे मनमोहक लगेंगे औऱ नन्हे बालक की मुस्कान आनंद से भर देगी।
एक वृद्ध जोड़ा जिसकी एक मात्र सन्तान ने उसे घर से अपमानित करके निकाल दिया। उसका अन्तर्मन दुःख और पीड़ा से भरा है। उसी दुःख और पीड़ा को उसके अन्तर्मन का प्रोजेक्टर नज़ारों में, पहाड़ों में और वर्षा की बूंदों के ऊपर प्रोजेक्ट करेगा। सब के सब उसे और नीरस रसहीन प्रतीत होंगे। उसे रसगुल्ले में मिठास अनुभव न होगा, भोजन में स्वाद अनुभव न होगा, पुष्प रंग बिरंगे मनमोहक न लगेंगे औऱ नन्हे बालक की मुस्कान में उसे पुत्र का धोखा याद करवाएगा और अन्तःकरण में दर्द की लहर दौड़ पड़ेगी।
अब कुशल डॉक्टर से उन दोनों जोड़ो की आंखों का, स्वादेन्द्रिय का चेक करवाओ। कोई प्रॉब्लम न मिलेगी। नज़ारे एक जैसे थे। पुष्प सब एक जैसे थे। रसगुल्ला और भोजन एक जैसा था। वह बालक भी एक ही था। नेत्र मे देखने की क्षमता थी, मन में अनुभूत करने की क्षमता थी, जीभ में स्वाद लेने की क्षमता थी, वस्तुओं में भी रूप गन्ध और स्वाद मौजूद था। तो जो विवाहित जोड़े को अनुभव हुआ वो टूटे मन के वृद्ध जोड़ो को अनुभव न हुआ। क्योंकि वृद्ध का शरीर तो मौजूद था लेकिन चेतना तो बेटे के पास थी और मन तो घटी घटना अपमान और यादों के खंडहर में था, जिसे अनुभूत करना था वो चेतना मौजूद न थी।
सिद्ध सन्त दुर्गम जंगल, कठिन परिस्थिति में भी आनन्दित रहते हैं, क्योंकि वो हमेशा चैतन्य, जागरूक रहते हैं। उनकी मनःस्थिति ठीक रहती है। इसलिए हर परिस्थिति में वो आनन्दित रह पाते हैं।
इससे यह सिद्ध होता है कि अन्तर्मन में जैसा भरा भाव है, जैसी मनःस्थिति है, उसी के अनुसार बाहर की वस्तु व्यक्ति से अनुबंध/सम्बन्ध स्थापित करेगा और मन के भरे सुख, दुःख, आनन्द के अनुसार ही सुखी, दुःखी या आनन्दित महसूस करेगा ।
इसलिए युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब ने अपनी पुस्तक 📖 *मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले* में स्पष्ट लिखा है कि परिस्थिति बदलना है तो मनःस्थिति बदलना होगा। मन का प्रबंधन सीख लो तो जॉब, व्यवसाय, घर, परिवार सबको स्वतः व्यवस्थित कर लोगे। अतः इस 👆🏻 पुस्तक को जरूर पढ़ें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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