Friday, 8 June 2018

*कथा नाटिका - गर्भ से ही देवमानव गढ़ने की योजना-"गर्भ सँस्कार"*

*कथा नाटिका - गर्भ से ही देवमानव गढ़ने की योजना-"गर्भ सँस्कार"*

(विचलित पृथ्वी भगवान नारद साथ,
पहुंची विष्णु भगवान के बैकुंठ धाम,
करके प्रणाम,
पूँछा प्रश्न महान)

धरती बोली - *जब जब धर्म की होगी हानि तब तब लोगे देवताओं सहित अंशावतार, कलियुग में कब और कैसे लोगे प्रभु अंशावतार? क्या योजना है बताएं प्रभु...*

*नारद बोले* - प्रभु मानव ने ऊंची ऊंचे भवन बनाये औऱ दिल को छोटा कर लिया है, माता पिता वृद्धाश्रम में छोड़ रहे हैं। बाहर वातावरण के लिए घर और गाड़ी और AC लगाया लेकिन दिल दिमाग़ गर्म कर लिया है। भौतिक जगत में उन्नत और सभ्यता का ढिंढोरा पीटने वाला मनुष्य अंदर से राक्षस, खोखला और भयावह हो गया है। मनुष्य ही मनुष्य से डरने लगा है, बड़ी लड़कियों की तो बात ही क्या दूध मुँही नन्ही बच्चियों का रेप नर पिशाच मानव करने लगा है। इंसान इंसान को बेंच रहा है और इंसान ही ख़रीद रहा है। बाहर से समृद्धि और अंदर से कंगाली-अशांति सर्वत्र है। प्रकृति का अंधाधुंध दोहन हो रहा है, न पीने को साफ जल है, न श्वांस लेने को शुद्ध वायु है, न शुद्ध भोजन है। शरीर बीमारी का घर है। इंटरनेट में शोशल और आसपड़ोस से अपरिचित है।

*धरती* - प्रभु व्यसन और नशे का बोलबाला है, धरती पर अब सुरक्षित नहीं कन्या बाला है। सुन लो पुकार और अब ले लो अवतार।

(प्रभु मुस्कराए और बोले)

*भगवान विष्णु* - धरती तुम्हारा बोझ हल्का करने को मैंने आवलखेड़ा आगरा में ले लिया हैं युगऋषि पण्डित श्रीराम के रूप में ले लिया अंशावतार। योजना युगनिर्माण की कर ली है तैयार। पुनः देवमानव गढ़ने की फैक्ट्री कर ली है तैयार। आओ समझाता हूँ तुम्हें *विचार क्रांति अभियान* और *युगनिर्माण योजना*।

*नारद* - प्रभु मुझे अपने अंशावतार के बारे में कुछ बताएं और आपके देवतागणों के अंशावतार भी तो आपके साथ होते हैं। वे सब कहाँ है ये बतायें।

*भगवान विष्णु* - रावण एक था तो मैं राम के रूप में उसका संघार कर सका। प्राचीन समय मे राजाओं के अनुसार प्रजा होती थी। तो प्रजा को ठीक करने के लिए राजा बदलने से काम चल जाता था। इसलिए पांडवों सहित मैंने श्रीकृष्ण रूप में महाभारत करवाया और युग परिवर्तन सम्भव हुआ।

*नारद* - लेकिन प्रभु कलियुग में तो कौरव सबके मन के अंदर छुपा बैठे है, भारतीय संस्कृति रूपी द्रौपदी का सर्वत्र चीर हरण हो रहा है। तो ऐसी परिस्थिति में युद्ध हुआ तो मर्ज़ और मरीज़ दोनों मरेंगे। सत्ता तो जनता के हाथ में है। फ़िर युग परिवर्तन कैसे करेंगे आप?

*पृथ्वी* - दो दो विश्वयुद्ध हो चुके लेकिन समस्याएं न मिटी प्रभु। तृतीय विश्वयुद्ध परमाणु अस्त्रों का हुआ तो मर्ज़ और मरीज़, जीव वनस्पति सब नष्ट हो जाएंगे। कुछ न बचेगा।

*भगवान विष्णु* - देवी चिंता न करो। जानता हूँ कि अब परिवर्तन अस्त्रों से सम्भव नहीं केवल विचारों के परिवर्तन से युगपरिवर्तन करना है। इसलिए तो मैंने पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य के रूप में जन्म आश्विन कृष्ण त्रयोदशी विक्रमी संवत् १९६७ (२० सितम्बर १९११) को उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद के आँवलखेड़ा ग्राम में (जो जलेसर मार्ग पर आगरा से पन्द्रह मील की दूरी पर स्थित है) में पिता श्री पं.रूपकिशोर जी शर्मा और माता दान कुँवरि के रूप में जन्म लिया था और गायत्री जयंती ०२ जून १९९० को स्थूल शरीर को त्याग के उन्हीं कार्यो को सूक्ष्म शरीर से कर रहा हूँ। मेरे साथ देवतागण गायत्री परिजन के रूप में पूरे विश्व मे अवतार लेकर कार्य कर रहे हैं।

*नारद* - प्रभु, कृपया युगनिर्माण योजना क्या है और क्यों बनाई ये समझाएं।

*भगवान विष्णु* - नारद मैंने सप्त आंदोलन और शत सूत्रीय कार्यक्रम बनाकर युगनिर्माण योजना की पृष्ठभूमि तैयार की है। इसके लिए 3200 पुस्तकों के माध्यम से मार्गदर्शन हेतु सभी ज्ञान विज्ञान लिख कर जनकल्याण हेतु दे दिया है। युग अर्थात विश्व का सामूहिक चिंतन। स्वार्थ केंद्रित विकृत चिंतन से समस्या उपजी है, अतः इसका समाधान परमार्थ भाव, आत्मीयता विस्तार और सद्चिन्तन ही है। इसलिए विचारक्रांति अभियान की घोषणा की है, इसलिए सृजन सैनिक तैयार किये हैं।

*धरती* - प्रभु युगनिर्माण हेतु बनाये सप्तआंदोलन के बारे में कुछ बतायें।

*भगवान विष्णु* - देवी, बारहवर्षीय युगसंधि महापुरश्चरण के शक्तिप्रवाह से जीवन-साधना तथा महापूर्णाहुति के पाँच चरणों ने जिन व्यक्तित्वों को, देवमानवों को जन्म दिया है, उन्हें सप्त आँदोलनों में नियोजित करने हेतु सप्त आंदोलन चलाया है, इनके कार्यान्वयन को व्यवस्थित चलाने हेतु विश्वभर में जनजागृति केंद्र शक्तिपीठों का निर्माण किया है। सप्त आंदोलन के बारे में ये सात देवियां आपको बताएंगी।
(सात रंगों के अलग अलग रंग वस्त्रों में इंद्रधनुषी आभा लिए सात देवियां प्रकट होती हैं और एक एक आंदोलन के बारे में बताती है।)

*पहली देवी* - *साधना आँदोलन*-  जो साधक नहीं होता वो स्वतः प्रकृति हेतु बाधक बनता है। मनुष्य को समझना चाहिए “सारा जीवन ही योग है” और हर श्वास को साधनामय बनाएँ, जीवनदेवता की साधना आराधना करें और जप-ध्यान से शुरुआत करें। उपासना(गायत्री जप और ध्यान), साधना(आत्मशोधन, योग, प्राणयाम, स्वाध्याय) और आराधना(लोक कल्याण हेतु अंशदान, समयदान, प्रतिभदान) रूपी त्रिशूल से जीवन के संकटो का स्वतः निवारण करें। गायत्री, यज्ञ और स्वाध्याय को जन जन तक पहुंचाए।

*दूसरी देवी* - *शिक्षा आँदोलन* - शिक्षा जीवन विद्या के साथ जुड़े। जीवन जीने की कला के सूत्र शिक्षा के साथ गूँथकर पहुँचाए जाएँ। विज्ञान के साथ अध्यात्म से जुड़े। जड़ के साथ चेतना का ज्ञान विज्ञान भी पढ़े। *तत्सवितुर्वरेण्यं* उस ईश्वर का बुद्धि में वरण करें और *प्रचोदयात* सन्मार्ग की ओर बढ़े। गली मोहल्ले स्कूल कॉलेज सर्वत्र सँस्कार शाला चलाएं।

*तीसरी देवी* - *स्वास्थ्य आँदोलन* - बीमार ही न पड़े इस हेतु आहार-विहार, चिंतन, जीवन शैली को संतुलित बनाएँ। योग-व्यायाम-प्राणायाम आदि दिनचर्या का अंग बने। रोगों की जड़ पेट और मन दोनों को साफ रखें। सन्तुलित आहार और सन्तुलित विचार ग्रहण करें। यग्योपैथी और वनोषधियों द्वारा उपचार को प्राथमिकता दें।

*चौथी देवी* - *स्वावलंबन आँदोलन* - प्रकृति में कोई भी पदार्थ व्यर्थ नहीं हैं। अतः प्राकृतिक संसाधनों, पशुओं, खेती इत्यादि से स्वरोजगार के अवसर उतपन्न करें। स्वयं सहायता समूह बनाएं। श्रम को महत्तव दें रचनात्मक कार्यो में सहयोग करें।

*पांचवी देवी* - *पर्यावरण आँदोलन* - सूक्ष्म पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रकृति को जड़ नहीं चेतन, अपनी माँ समान मानकर डीप इकोलॉजी के महत्त्व को स्वीकार करें। प्रकृति मां से जितना लें उतना उन्हें लौटाए। यज्ञीय क्रम अपनाएं। जितने पेड़ काटे उससे दसगुना पेड़ लगाएं। अप्राकृतिक प्लास्टिक का उपयोग बन्द करें जिसे प्रकृति ग्रहण नहीं कर सकती। पत्तल, दोनों और मिट्टी के बर्तन का उपयोग करे। कूड़े का सही निस्तारण करें। केमिकल उपयोग न करे। पेड़ लगाए और स्वच्छता अपनाएं।

*छठी देवी* - *व्यसन मुक्ति/कुरीति उन्मूलन आँदोलन* - व्यसन से बचाएँ, सृजन में लगाएँ, कुरीतियों में लगने वाला श्रम, समय, साधन श्रेष्ठ कार्यों में लगाएँ। जनशिक्षा हेतु आँदोलन छेड़ें। रूढ़िवादी परम्पराओं को छोड़े, भौंडे फैशन से मुंह मोड़े और नशे के विरुद्ध आंदोलन करें।

*सातवीं देवी* - *नारी जागरण आँदोलन* - यज्ञ पूरे संसार की धुरी है। उसी तरह नारी पूरे परिवार की धुरी है। यदि माता हुई अज्ञान तो सन्तान कैसे बनेगी महान। नारी स्वयं में सक्षम-समर्थ बन अन्य नारियों को साथ ल चल सके, इस योग्य उसे खड़ा करें।
नारी का आत्मविश्वास जगाएँ, सुरक्षा बोध, स्वावलंबन, सुसंस्कारिता का ज्ञान कराएँ।नारी को लोहे(रूढ़िवादी परम्पराओं) और सोने(भौंडे फैशन और व्यसन) की जंजीरों से मुक्त कराएँ।बेटा-बेटी, बेटी-बहू के भेद मिटें। नारी के प्रति नारी की संवेदना जागे।

*धरती* - प्रभु आपने तो मेरे उद्धार की योजना को कार्यान्वित भी कर दिया। देवगण नर-नारी रूप में मेरे प्यारे बच्चे बनकर डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन और गायत्री परिवार के माध्यम से मेरे उद्धार हेतु कार्य यंत्र तंत्र सर्वत्र कर रहे हैं। धन्यवाद प्रभु, धरती पर देवसेना सृजन सेना युगशिल्पी बनाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार।

*नारद* - प्रभु आपने शुरु में कहा था कि *आप गर्भ से देवसेना गढ़ रहे हो, देवमानव बनाने की योजना तैयार किये हो*, कृपया इस बारे में कुछ बतायें...

*भगवान विष्णु* - नारद तुम आज सारे रहस्य जानना चाहते हो, बड़े कल्याणकारी तुम्हारे भाव हैं। देवी लक्ष्मी आप बहुत देर से मौन हैं, कृपया *गर्भ सँस्कार* के सुप्रजनन रहस्य और गर्भ विज्ञान के बारे में धरती माँ और देवर्षि नारद को बताएं। साथ ही अपना धरती वाला जन्म का परिचय भी दें।

*देवी लक्ष्मी* - जैसी आज्ञा प्रभु, नारद और धरती माँ आप तो जानते ही है प्रभु की लीला सहचरी हूँ मैं, तो उनके साथ जन्मती हूँ। धरती पर भगवती देवी शर्मा के रूप में प्रभु के साथ आई। स्थूल शरीर त्याग कर और सूक्ष्म शरीर धारण करके, मैं भी अपने आराध्य श्रीराम का युग निर्माण योजना में साथ दे रही हूँ।

*श्रेष्ठ आत्माएं श्रेष्ठ गर्भ में ही प्रवेश करती हैं।* धरती के उद्धार के लिए बहुत सारी श्रेष्ठ आत्माओ का गर्भ में आह्वाहन और उनको गर्भ में ही देव मानव बनाने की योजना बनाई है। जिससे बालक का गर्भ से ही चन्दन की तरह श्रेष्ठ व्यक्तित्व बन जाये और जन्म के बाद संसार की विषाक्तता उसपर असर न करे। अभिमन्यु की तरह ज्ञान की संरचना गर्भ में ही हो जाये।

गर्भ के तीनों शरीर स्थूल(शारीरिक विकास), सूक्ष्म (मानसिक विकास) और कारण(भावनात्मक विकास) हेतु गर्भिणी को गर्भ सँस्कार के माध्यम से प्रशिक्षित किया जाता है। गर्भ सँस्कार तीन महीने में करवाया जाता है यह एक प्रकार का आध्यात्मिक टीका होता है साथ ही दैवीय चेतना का गर्भ में आह्वाहन होता है। बिना आह्वाहन देवता नहीं आते। अतः गर्भ सँस्कार के माध्यम से दैवीय श्रेष्ठ ऋषि आत्माओं का गर्भ में आह्वाहन किया जाता है। जो जन्म लेकर धरती का उद्धार करें। सांसारिक और आध्यात्मिक रूप में सफल बने। आत्मकल्याण और लोककल्याण के मार्ग का वरण करें। गर्भ से ही देवमानव गढ़ने का अभियान है यह। सूक्ष्म-स्थूल और कारण के परिशोधन का विज्ञान है यह। सन्तुलित आहार, सन्तुलित विचार और श्रेष्ठ चिंतन के साथ व्यवस्थित दिनचर्या के अनुपालन से गर्भिणी दिव्य सन्तान की माता बनने का गौरव प्राप्त करती है। धरती का भार हरती है।

*धरती* - धन्यवाद माँ, पापियों का भार ढोते ढोते थक गई हूँ। आपने मुझे अपार खुशी दी है। मेरे उद्धार का मार्ग सुनिश्चित कर दिया। अब निश्चिंत हो गयी हूँ।

*नारद* - धन्यवाद प्रभु, युगनिर्माण योजना और अपने जन्म रहस्य को बताने के लिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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