Thursday, 7 June 2018

प्रश्न - *दीदी सहनशीलता की क्या सीमा है? किसी भी बात को किस हद तक सहन करना चाहिए?*

प्रश्न - *दीदी  सहनशीलता  की  क्या  सीमा  है? किसी भी  बात को किस हद तक सहन करना चाहिए?*

उत्तर - *इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले एक प्रैक्टिकल कहानी सुनें:-*

एक मैढ़क लें उसे गर्म पानी में डालें, वो उछलकर भाग जाएगा। अपना जीवन बचा लेगा।

अब एक मैढ़क लो, उसे ठंडे पानी मे डालो, थोड़ा इंतज़ार करो जब वो आराम से बैठ जाये तो धीरे धीरे पानी गर्म करो। पानी की गर्मी को मैढ़क सहन करेगा और अपने आप को एडजस्ट करता चलेगा। औऱ पानी के पूर्ण गर्म होने पर भी उछल न सकेगा और उबलकर मर जायेगा। ज्यादा सहिष्णुता/सहनशीलता प्राण घातक है।

*अब दूसरी प्रैक्टिकल कहानी सुनें*

बिन्स, गाज़र, आलू और अंडे को एक साथ पानी में उबाले। उबलने पर परिणाम अलग होंगे सभी के गलने की पकने की अलग रिज़ल्ट होंगे। अंडा नरम था कड़ा हो गया। आलू कड़ा था उबल के नरम हो गया। इसी तरह बिन्स पर भी प्रभाव पड़ा।  इसी तरह सबकी मनोभूमि और सहनशीलता के स्तर और परिणाम अलग होंगें।

यदि आप बुद्ध से सन्त हैं तो डाकू के अत्याचार पर शहनशीलता दिखाइए और कष्ट सहकर उसके भाव परिवर्तन का प्रयास कीजिये। लेकिन यदि आप पुलिस या सैनिक है तो डाकू को पकड़िए और जेल में डालिये। आतंकवादी न पकड़ आये तो गोली मारिये। किसी अन्य स्त्री या पत्नी-बच्चो के रेप, हत्या लूटपाट पर भी सहनशीलता मात्र कायरता प्रतीक है।

स्वजन के ग़लत राह चलने पर और गलत आचरण पर तीखी प्रतिक्रिया और विरोध न करना, मोहवश आंख में पट्टी बांधना भी कायरता का प्रतीक है।

यदि बहु है और आपको ससुराल के ताने पड़ रहे हैं तो सहनशील बनकर एक कान से सुनिए दूसरे से निकाल दीजिये, क्योंकि इनसे उलझने का कोई फायदा नहीं, ज्यादा से ज्यादा कटु शब्दों को बोलने के अलावा, ये और कुछ नहीं कर सकते । लेकिन यदि हाथा पाई या कुछ ज़्यादा बढ़ने लगे तो विरोध करें और आक्रोश जता के कड़ी प्रतिक्रिया दें।

 यदि आप ऑफिस/जॉब में है तो कोई तीखी मेल करे तो पहले उससे वन टू वन फोन पे या चैट पर बात कर लें। यदि जरूरी न लगे तो कड़ी प्रतिक्रिया न दें। जरूरी होने पर ही ऑफिस के तानों/ईमेल पर कड़ी प्रतिक्रिया अवश्य दीजिये।

हम मनुष्यों के लिए सहनशीलता का सार्वभौमिक रूल बनाना सम्भव नहीं। निम्नलिखित चार आधारों 1- परिस्थिति, 2-समय, 3-व्यक्ति/पद और देश/जगह के अनुसार सहनशीलता का पैमाना बदलता है और सीमा तय होती है।

फिर भी सामान्यतः तीन सहनशीलता का स्तर बना लें निम्न, मध्यम और उच्च। निम्न स्तर पर शहनशीलता में ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता। मध्यम  शहनशीलता में दर्द तकलीफ़ होता है फ़िर भी चलता है। उच्चस्तर की शहनशीलता केवल सन्तो के लिए उचित है, गृहस्थों के लिए नहीं। आततायी, रेपिस्ट और आतंकवादी के लिए सहनशीलता गुनाह है, *यदि स्वयं बुद्ध नहीं बने हो तो अंगुलिमाल को ज्ञान देने मत जाओ*, उसके होने की/आने की सूचना पुलिस/सेना को दो। ऐसा न हो की अत्यधिक सहनशीलता में मैढ़क की तरह व्यक्तित्व उबलकर मर जाये  या नारकीय जीवन जीने को बाध्य हो जाएं।

जैसे को तैसा वाला हिसाब किताब असल दुनियाँ में नहीं चलता। कभी प्यार से समझाए, तो कभी बड़ो जैसा विरोध करें, अंतिम स्टेज पर जैसे को तैसा वाला प्रयोग करें।

विरोध/आक्रोश जताने से पहले अपनी तैयारी करें, विवेक के प्रयोग से प्रतिक्रिया के बाद के परिणाम को हैंडल करने की मनोभूमि पूर्व में तैयार कर लें। *सोचे अच्छा लेकिन विपरीत परिणाम के लिए भी तैयार रहें।* विचारक्रांति के लिए अच्छे लॉजिक, उदाहरण और सूझबूझ का परिचय दें। *गायत्री जप, ध्यान और स्वाध्याय विवेक के जागरण में सहायक है। सहनशीलता के सही स्तर/सीमा की पहचान केवल विवेक के जागरण से ही सम्भव है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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