प्रश्न - *पवित्र दृष्टि कैसे बनाएं? किसी को वासनात्मक दृष्टि या बुरी दृष्टि से न देखें? ऐसा कैसे सम्भव होगा?*
उत्तर - दृष्टि को केवल जड़ तक मत रोकना उसके आगे ले जाना चेतना तक, फिर थोड़ा आगे ले जाना उस परम चेतना परमात्मा तक तो हमेशा पवित्र दृष्टि बनी रहेगी। जब भी किसी को देखो विवेकदृष्टि से चैतन्य और साक्षी भाव से देखो।
उदाहरण - कुम्हार का बनाया सुंदर मटका देख के मटका तो जड़ है उसके केवल सौंदर्य तक मत दृष्टि अटकाना, विवेकदृष्टि से उसे बनाने वाले कारीगर कुम्हार के बारे में सोचना और उस की मन ही मन प्रशंशा करना, फिर उस कुम्हार को बनाने वाले परमात्मा की प्रशंशा करना कि कुम्हार को वाह क्या हुनर दिया है। सुंदरता का स्रोत परमात्मा है याद रखना।
ख़ूबसूरत लड़की देखी तो, उसके नश्वर जड़ शरीर जो कि एक न एक दिन वृद्ध होकर जलेगा की वर्तमान सुंदरता पर दृष्टि केवल मत अटकाना, उसके भीतर के चेतन को सोचना पिछले जन्म में अच्छे कर्म किये थे इसलिए अच्छा शरीर भगवान ने दिया। फिर उस लड़की के रचनाकार उस परमात्मा की मन ही मन प्रशंशा करना, भगवान आपकी कृति बेजोड़ है। हमेशा शुभ दृष्टि बनी रहेगी, परमात्मा है रचनाकार और वो एक आत्मा है और शरीर उसका वस्त्र और वो भी कर्मफलनुसार मिला है, बस यदि इतना लड़की को देख सोच पाए तो वासना कभी जगेगी नहीं।
नाक के आभूषण की प्रसंशा करने के साथ उसे पहनने वाली चेतन आत्मा को सोचो और फिर उस बनाने वाले परमात्मा को सोचो। भगवान नाक न देता तो नथनी कहाँ पहनते भला।
इस तरह दृष्टि बदलते ही सृष्टि बदल जाएगी। नज़रिया बदलते ही नज़ारे बदल जाएंगे। फ़िर तुम सौंदर्य को साक्षी भाव से देखोगे। वस्तु को चैतन्य होकर देखोगे। आसक्त नहीं होंगे। बन्धन में न बंधोगे। वासनात्मक दृष्टि फिर शुभ पवित्र दृष्टि-विवेकदृष्टि में बदल जाएगी।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - दृष्टि को केवल जड़ तक मत रोकना उसके आगे ले जाना चेतना तक, फिर थोड़ा आगे ले जाना उस परम चेतना परमात्मा तक तो हमेशा पवित्र दृष्टि बनी रहेगी। जब भी किसी को देखो विवेकदृष्टि से चैतन्य और साक्षी भाव से देखो।
उदाहरण - कुम्हार का बनाया सुंदर मटका देख के मटका तो जड़ है उसके केवल सौंदर्य तक मत दृष्टि अटकाना, विवेकदृष्टि से उसे बनाने वाले कारीगर कुम्हार के बारे में सोचना और उस की मन ही मन प्रशंशा करना, फिर उस कुम्हार को बनाने वाले परमात्मा की प्रशंशा करना कि कुम्हार को वाह क्या हुनर दिया है। सुंदरता का स्रोत परमात्मा है याद रखना।
ख़ूबसूरत लड़की देखी तो, उसके नश्वर जड़ शरीर जो कि एक न एक दिन वृद्ध होकर जलेगा की वर्तमान सुंदरता पर दृष्टि केवल मत अटकाना, उसके भीतर के चेतन को सोचना पिछले जन्म में अच्छे कर्म किये थे इसलिए अच्छा शरीर भगवान ने दिया। फिर उस लड़की के रचनाकार उस परमात्मा की मन ही मन प्रशंशा करना, भगवान आपकी कृति बेजोड़ है। हमेशा शुभ दृष्टि बनी रहेगी, परमात्मा है रचनाकार और वो एक आत्मा है और शरीर उसका वस्त्र और वो भी कर्मफलनुसार मिला है, बस यदि इतना लड़की को देख सोच पाए तो वासना कभी जगेगी नहीं।
नाक के आभूषण की प्रसंशा करने के साथ उसे पहनने वाली चेतन आत्मा को सोचो और फिर उस बनाने वाले परमात्मा को सोचो। भगवान नाक न देता तो नथनी कहाँ पहनते भला।
इस तरह दृष्टि बदलते ही सृष्टि बदल जाएगी। नज़रिया बदलते ही नज़ारे बदल जाएंगे। फ़िर तुम सौंदर्य को साक्षी भाव से देखोगे। वस्तु को चैतन्य होकर देखोगे। आसक्त नहीं होंगे। बन्धन में न बंधोगे। वासनात्मक दृष्टि फिर शुभ पवित्र दृष्टि-विवेकदृष्टि में बदल जाएगी।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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