प्रश्न - *किसी की तरक़्क़ी देख कर यदि ईर्ष्या और जलन से मन भर जाए, उसे देख और सुन न पाएँ, तो ऐसे में क्या करें? कैसे ईर्ष्या मुक्त होयें?*
उत्तर - मनुष्य की आत्मा एक स्वतंत्र सत्ता है, और आपका मुकाबला और प्रतिस्पर्धा सिर्फ़ आपसे है। किसी और से नहीं।
यदि क्लास में या किसी संगठन में या टीम में नम्बर वन बनने की होड़ में लगी तो ईर्ष्या उतपन्न होगी और वो तुम्हें पतन की ओर धकेलेगी। तुम्हारे चिंतन व्यवहार में जिसे तुम प्रतिद्वंदी समझते हो छाया रहेगा और एसिडिटी की जलन की तरह तुम्हें जलाता रहेगा। तुम्हारा ख़ूबसूरत चेहरा ईर्ष्या के कारण काला और कुरूप धीरे धीरे होने लगेगा, क्योंकि ईर्ष्या की दाह और जलन का धुंआ चेहरे पर दिखने लगता हैं। ईर्ष्यालु की अंतर की कुरूपता को 90% लोग पहचान लेते हैं। मेकअप और झूठी मुस्कान ईर्ष्यालु के चेहरे को ढंक नहीं पाता।
तो करना क्या चाहिए, कि अपनी यूनिक आइडेंटिटी के लिये स्वयं का बेस्ट तलाशना चाहिए। अपने विषय का सब्जेक्ट मैटर एक्सपर्ट बनना चाहिए। रोज़ अपनी समीक्षा करके स्वयं को बेहतर बनाना चाहिए। यदि पिछले वर्ष 80% आये थे तो 95% के लिए प्रयास करो। अब यदि क्लास में किसी का 95 से कम आये तो सुखी मत हो और किसी का 95 से ज्यादा आये तो दुःखी मत हो। ये सोचो की तुमने 95 सोचा था और उसके लिए प्रयास किया और वो तुम्हें मिल गया। बस उसकी ख़ुशी मनाओ।
खिलाड़ी हो तो ये ईर्ष्या मत करो और दुःखी मत हो कि उसने शतक बनाया और तुम न बना पाए, या किसी के जीरो पर आउट होने पर सुखी मत हो। बल्कि ये सोचो कि तुमने अपनी टीम के लिए कितना बेस्ट परफॉर्मेंस दिया कि नहीं। अपना 100% प्रयास किया कि नहीं। टीम जीत गयी और उसमें तुम्हारा रोल अहम है। बस ख़ुश रहो और नित्य बेस्ट बनने के लिए अभ्यास करो।
किसी धार्मिक या समाजसेवी संगठन में हो तो भी साथी से ईर्ष्या मत करो, कि साथ वाला आपसे बेहतर कैसे और क्यों कर रहा है। आप तो ये देखो कि जो जिम्मेदारी आपको दी गयी उसमें आप कितने खरे उतरे। नित्य स्वयं को बेहतर बनाने में लगाओ। धार्मिक संगठन या लोकसेवी संगठन में अपनी वरीयता सिद्ध करने के चक्कर मे मिशन को नुकसान मत पहुंचाओ।
उदाहरण - एक पिता के दो बेटे पैर दबा रहे थे, छोटा बेटा बड़े आराम से दबा रहा था तो पिता ने छोटे बेटे की प्रशंसा कर दी, बड़ा बेटा जो कि उससे पहले से कई वर्षों से सेवा कर रहा था ईर्ष्या से भर उठा। उसने मौका देखते ही छोटा बेटा जिस पैर को दबा रहा था जोर से दबा दिया जिससे पिता के पैर में दबाव से रक्त जम गया और वो चीख उठे। छोटे बेटे को डांटा और इसे देख के बड़े बेटे की अहंकार की पूर्ति हुई, लेकिन ये बताइये दर्द किसको हुआ पिता को, नुकसान किसको हुआ पिता का हुआ। अब दोनों पैर बड़े बेटे को दबाने को कहा तो अतिरिक्त कार्य का बोझ किस पर आया बड़े बेटे पर....इसी तरह ईर्ष्या में हम अपने धार्मिक या लोकसेवी मिशन को ही नुकसान पहुंचाते हैं, वैसे भी बड़ी मुश्किल से सेवाभावी लोग मिलते है। बेवजह ईर्ष्या में मिशन को गहरी क्षति देते हैं। क्या अंतर्यामी भगवान जो हमारे हृदय में विराजमान है, वो हमारी ईर्ष्या कुंठा को नहीं देख रहा क्या?👀👀👀 स्वयं विचार करें...
पांचो उंगलियां बराबर नहीं होती तो क्या सबका महत्व नहीं होता क्या? देश हो या समाज हो या परिवार हो या संगठन हो या खेल की टीम हो या स्कूल की क्लास, यदि स्वस्थ स्पर्धा केवल स्वयं को बेस्ट बनाने में समय साधन विचार और शब्द खर्च करोगे तो बेस्ट बनोगे। लेकिन किसी को नीचा दिखाने के लिए समय साधन विचार और शब्द खर्च करोगे तो एक न एक दिन पतन निश्चयतः होगा। दूसरे के लिए खोदे गड्ढे में इंसान स्वयं गिरता है। लेकिन यदि दूसरों को आगे बढ़ाओगे और दूसरों कप मेहंदी लगाओगे तो हाथ स्वयं रचेंगे, व्यक्तित्व और कृतित्व स्वयं निखरेगा। दिए का प्रकाश स्वयं सबकुछ कह देता है, आपका कार्य आपका परिचय दे देगा।
अपने दिलो दिमाग़ को मन्दिर की तरह साफ स्वच्छ रखिये, सद्बुद्धि रूपी मां गायत्री की स्थापना कीजिये। आत्मीयता का विस्तार कीजिये, जो कर सकते हो वो बेस्ट करके दिखाओ, बस उसी पर फोकस करो। तुम संसार के महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो और बेस्ट हो, और प्रत्येक काम मे 100% अपना बेस्ट दो बस। निर्मल हृदय, आत्मीयता और भाव सम्वेदना के नूर से आपका चेहरा सुंदर और सौम्य आकर्षण से भरा दिव्यतम लगेगा। निर्मल हृदय व्यक्ति के चेहरे का दिव्यतम नूर से 90% लोग पहचान लेते है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - मनुष्य की आत्मा एक स्वतंत्र सत्ता है, और आपका मुकाबला और प्रतिस्पर्धा सिर्फ़ आपसे है। किसी और से नहीं।
यदि क्लास में या किसी संगठन में या टीम में नम्बर वन बनने की होड़ में लगी तो ईर्ष्या उतपन्न होगी और वो तुम्हें पतन की ओर धकेलेगी। तुम्हारे चिंतन व्यवहार में जिसे तुम प्रतिद्वंदी समझते हो छाया रहेगा और एसिडिटी की जलन की तरह तुम्हें जलाता रहेगा। तुम्हारा ख़ूबसूरत चेहरा ईर्ष्या के कारण काला और कुरूप धीरे धीरे होने लगेगा, क्योंकि ईर्ष्या की दाह और जलन का धुंआ चेहरे पर दिखने लगता हैं। ईर्ष्यालु की अंतर की कुरूपता को 90% लोग पहचान लेते हैं। मेकअप और झूठी मुस्कान ईर्ष्यालु के चेहरे को ढंक नहीं पाता।
तो करना क्या चाहिए, कि अपनी यूनिक आइडेंटिटी के लिये स्वयं का बेस्ट तलाशना चाहिए। अपने विषय का सब्जेक्ट मैटर एक्सपर्ट बनना चाहिए। रोज़ अपनी समीक्षा करके स्वयं को बेहतर बनाना चाहिए। यदि पिछले वर्ष 80% आये थे तो 95% के लिए प्रयास करो। अब यदि क्लास में किसी का 95 से कम आये तो सुखी मत हो और किसी का 95 से ज्यादा आये तो दुःखी मत हो। ये सोचो की तुमने 95 सोचा था और उसके लिए प्रयास किया और वो तुम्हें मिल गया। बस उसकी ख़ुशी मनाओ।
खिलाड़ी हो तो ये ईर्ष्या मत करो और दुःखी मत हो कि उसने शतक बनाया और तुम न बना पाए, या किसी के जीरो पर आउट होने पर सुखी मत हो। बल्कि ये सोचो कि तुमने अपनी टीम के लिए कितना बेस्ट परफॉर्मेंस दिया कि नहीं। अपना 100% प्रयास किया कि नहीं। टीम जीत गयी और उसमें तुम्हारा रोल अहम है। बस ख़ुश रहो और नित्य बेस्ट बनने के लिए अभ्यास करो।
किसी धार्मिक या समाजसेवी संगठन में हो तो भी साथी से ईर्ष्या मत करो, कि साथ वाला आपसे बेहतर कैसे और क्यों कर रहा है। आप तो ये देखो कि जो जिम्मेदारी आपको दी गयी उसमें आप कितने खरे उतरे। नित्य स्वयं को बेहतर बनाने में लगाओ। धार्मिक संगठन या लोकसेवी संगठन में अपनी वरीयता सिद्ध करने के चक्कर मे मिशन को नुकसान मत पहुंचाओ।
उदाहरण - एक पिता के दो बेटे पैर दबा रहे थे, छोटा बेटा बड़े आराम से दबा रहा था तो पिता ने छोटे बेटे की प्रशंसा कर दी, बड़ा बेटा जो कि उससे पहले से कई वर्षों से सेवा कर रहा था ईर्ष्या से भर उठा। उसने मौका देखते ही छोटा बेटा जिस पैर को दबा रहा था जोर से दबा दिया जिससे पिता के पैर में दबाव से रक्त जम गया और वो चीख उठे। छोटे बेटे को डांटा और इसे देख के बड़े बेटे की अहंकार की पूर्ति हुई, लेकिन ये बताइये दर्द किसको हुआ पिता को, नुकसान किसको हुआ पिता का हुआ। अब दोनों पैर बड़े बेटे को दबाने को कहा तो अतिरिक्त कार्य का बोझ किस पर आया बड़े बेटे पर....इसी तरह ईर्ष्या में हम अपने धार्मिक या लोकसेवी मिशन को ही नुकसान पहुंचाते हैं, वैसे भी बड़ी मुश्किल से सेवाभावी लोग मिलते है। बेवजह ईर्ष्या में मिशन को गहरी क्षति देते हैं। क्या अंतर्यामी भगवान जो हमारे हृदय में विराजमान है, वो हमारी ईर्ष्या कुंठा को नहीं देख रहा क्या?👀👀👀 स्वयं विचार करें...
पांचो उंगलियां बराबर नहीं होती तो क्या सबका महत्व नहीं होता क्या? देश हो या समाज हो या परिवार हो या संगठन हो या खेल की टीम हो या स्कूल की क्लास, यदि स्वस्थ स्पर्धा केवल स्वयं को बेस्ट बनाने में समय साधन विचार और शब्द खर्च करोगे तो बेस्ट बनोगे। लेकिन किसी को नीचा दिखाने के लिए समय साधन विचार और शब्द खर्च करोगे तो एक न एक दिन पतन निश्चयतः होगा। दूसरे के लिए खोदे गड्ढे में इंसान स्वयं गिरता है। लेकिन यदि दूसरों को आगे बढ़ाओगे और दूसरों कप मेहंदी लगाओगे तो हाथ स्वयं रचेंगे, व्यक्तित्व और कृतित्व स्वयं निखरेगा। दिए का प्रकाश स्वयं सबकुछ कह देता है, आपका कार्य आपका परिचय दे देगा।
अपने दिलो दिमाग़ को मन्दिर की तरह साफ स्वच्छ रखिये, सद्बुद्धि रूपी मां गायत्री की स्थापना कीजिये। आत्मीयता का विस्तार कीजिये, जो कर सकते हो वो बेस्ट करके दिखाओ, बस उसी पर फोकस करो। तुम संसार के महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो और बेस्ट हो, और प्रत्येक काम मे 100% अपना बेस्ट दो बस। निर्मल हृदय, आत्मीयता और भाव सम्वेदना के नूर से आपका चेहरा सुंदर और सौम्य आकर्षण से भरा दिव्यतम लगेगा। निर्मल हृदय व्यक्ति के चेहरे का दिव्यतम नूर से 90% लोग पहचान लेते है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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