Monday, 11 June 2018

तनाव प्रबन्धन 'OCTAPAC' वर्कशाप

*तनाव प्रबन्धन 'OCTAPAC' वर्कशाप*

कठिन से कठिन गणित को यदि सूत्र/फार्मूला ज्ञात हो और उसका किया अभ्यास हो तो हल किया जा सकता है।

युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने
*‘OCTAPAC’ - तनावप्रबंधन*  वर्कशॉप हेतु लिखी नीचे बताई 10 पुस्तकों में तनावप्रबन्धन के ऐसे ही कुछ अचूक और सटीक सूत्र/फार्मूले दिए हैं। इन्हें अपनाए और तनाव से मुक्ति पाएं।

 तनाव मनःस्थिति से उपजा एक विकार है। मनःस्थिति एवं परिस्थिति के बीच असंतुलन एवं असामंजस्य के कारण तनाव उत्पन्न होता है। तनाव एक द्वन्द्व है जो मन एवं भावनाओं में गहरी दरार पैदा करता है। तनाव अन्य अनेक मनोविकारों का प्रवेश द्वार है। उससे मन अशान्त, भावना अस्थिर एवं शरीर अस्वस्थ अनुभव करते हैं। ऐसी स्थिति में हमारी कार्यक्षमता प्रभावित होती है और हमारी शारीरिक व मानसिक विकास यात्रा में व्यवधान आता है। इससे बचने का एकमात्र उपाय है परिस्थिति के साथ तालमेल रखना जिससे तनाव रूपी मनोविकार को हटाया-मिटाया जा सके।

अहंकार किसी न किसी रूप में तनाव की जड़ में होता है। यदि साधना स्वाध्याय से अहंकार गला दिया जाय तो तनाव की गांठे ढीली पड़ जाती हैं।

तनाव परिस्थिति से नहीं मनःस्थिति से उपजता है। अगर ऐसा नहीं होता तो विपरीत एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आशा, उत्साह एवं उमंग की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। जीवट के धनियों एवं मनीषियों ने प्रतिकूलताओं में जीवन की राह खोजी है तथा अपने गंतव्य तथा लक्ष्य को प्राप्त किया है। तनावजन्य मनोविकारों का आक्रमण केवल दुर्बल व कमजोर मानसिकताओं पर होता है। परिस्थिति तो सबके लिए समान होती है। नित्य गायत्री जप, ध्यान, स्वाध्याय, योग, प्राणायाम से मन की संकल्प शक्ति बढ़ा के आत्मविश्वास और सूझबूझ विकसित कर ली जाए तो तनाव की बॉल पर चौके छक्के लगाए जा सकते हैं।

OCTAPAC  इसका तात्पर्य है
 O=openness (खुलापन),
 C=collaboration (सहयोग),
 T=trust (विश्वास),
 A=autonomy (स्वायतता),
 P=possibility (सम्भावना),
 A=authenticity (प्रामाणिकता),
 C=contribution (योगदान)

 तनाव प्रबन्धन की शुरुआत वैचारिक खुलापन अर्थात्, आग्रह, पूर्वाग्रह, हठाग्रह का अभाव। अच्छे विचारों को स्वीकृति एवं समर्थन देना चाहिए। इसी के आधार पर सहयोग-सद्भाव की भूमि तैयार होती है। सहयोग से स्वार्थवृत्ति मिटती है और सेवा का भाव पनपता है जिसमें अपना विश्वास प्रगाढ़ होता है। विश्वास ही विकास का मूल मंत्र है, उन्नति-प्रगति का साधन सोपान है। इस स्थिति में आकर ही स्वायत्तता की परिकल्पना की जा सकती है और स्वतंत्र रूप से अपनी योजना को कार्यरूप प्रदान किया जा सकता है। इसी में आन्तरिक चेतना का परिष्कार तथा बाह्य उन्नति की समस्त सम्भावना सन्निहित है। सम्भावना जब मूर्त रूप लेती है तो प्रामाणिकता के रूप में अभिव्यक्ति पाती है। प्रामाणिकता आत्मविश्वास को जन्म देती है तभी महान् कार्य हेतु स्वयं का योगदान सम्भव हो सकता है और दूसरों का सहयोग मिल सकता है।

तनाव प्रबन्धन के इन सूत्रों में तनाव का समाधान समाहित है। इसके साथ आवश्यक है सर्व शक्तिमान ईश्वर के प्रति श्रद्धा-आस्था की भावना। ईश्वर सर्व समर्थ है। वह हमारी हर समस्याओं का समाधान, हर कठिनाइयों का हल एवं हताशा के कुहासे में ज्योतिर्मय पथ प्रदर्शक है। वह हमारे तनाव का निवारक भी है। वह हमारे हर मनोविकारों के सघन जंजाल को काटकर उत्साह, आनन्द एवं प्रकाश से भर सकता है। अतः उसकी स्मृति को हृदय में बनाये रखने के लिए गायत्री मंत्र की एक माला का न्यूनतम जप करना चाहिए। प्रत्येक दिन अपने नये जीवन का आत्मबोध एवं प्रत्येक रात्रि अपनी मृत्यु का अनुभव तत्त्वबोध भी तनाव मुक्ति के लिए रामबाण साधन है। ईश्वर के प्रति गहन आस्था एवं तत्त्वबोध-आत्मबोध की साधना से मनःस्थिति इतनी सक्षम-समर्थ हो जाती है कि वह किसी भी परिस्थिति से तालमेल कर अपने अभीष्ट लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सकती है। यही तनाव का एकमात्र निदान है और उच्चस्तरीय जीवन का पाथेय पथ भी है।

*निम्नलिखित तनावप्रबन्धन के साहित्य जरूर पढ़ें, अभ्यास करें और तनावप्रबन्धन सीखकर जीवन को आनंदपूर्वक जियें* :-

Reference Book -
1- अखण्डज्योति, अक्टूबर 2003,
2- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
3- मानसिक संतुलन
4- निराशा को पास न फटकने दें
5- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
6- सफलता के सात सूत्र
7- जीवन जीने की कला
8- मन के हारे हार है मन के जीते जीत
9- दृष्टिकोण ठीक रखें
10- मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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