*मृत्यु क्या सर्प के काटने से हुई? या मृत्यु कुत्ते के काटने से हुई? या गोली लगने से मृत्यु हुई या अमुक बीमारी से?*
पुराणों में एक कथा आती है, शंकर भगवान जिसे स्वयं महाकाल कहते हैं और पार्वती जिसे महाकाली कहते है के बीच का संवाद।
भगवान महाकाल सदा शिव से पार्वती जी ने पूँछा - आप त्रिदेव एक ही शक्ति की तीन अभिव्यक्ति हो। आप संघार के देवता हो और आप ही मृत्यु के देवता हो।
मेरी शंका का समाधान कीजिये कि जब जन्म मृत्यु आपके हाथ है तो लोग फ़िर आपको जन्म मृत्यु के लिये जिम्मेदार क्यों नहीं समझते।
पार्वती, जहाज में बैठने वाला व्यक्ति जानता है कि वो न स्वयं जहाज उड़ा सकता है और न हीं लैंड कर सकता है। सबकुछ कैप्टन के हाथ है। अधिकतर यात्री बिना कैप्टन को देखे ही यात्रा करते है और उसे सेफ लैंडिंग के लिए धन्यवाद भी नहीं देते।
यात्रियों के हाथ मे सिर्फ यह है कि सफर में सोएगा या वीडियो देखेगा या अच्छी पुस्तकें पढ़ेगा या ध्यान करेगा इत्यादि। लेकिन भ्रमवश यात्री लोगों को क्या बताते है कि मैं अमुक प्लेन से फ्लाई कर रहा हूँ और मैं इतने बजे लैंड करूंगा😇😇😇😇।
एक बार मुझसे मिलने नारद आये, उन्हें दिव्यदृष्टि से पता चल गया कि हिमालय में बैठी इस चिड़िया की मृत्यु सर्प के हाथों है। मेरी दृष्टि भी चिड़िया पर पड़ी और मेरे गले के सर्प की भी। नारद दयावश उसे उठाकर मन्दराचल पर्वत पर छोड़ आये, जिससे उसकी मृत्यु टल जाए। जैसे नारद आये तो मैं हंस पड़ा। तो उन्होंने पूँछा कि यह बताये प्रभु आप हंसे क्यों?
मैंने नारद से कहा, कि मैं सोच रहा था कि इस चिड़िया की मृत्यु का समय नजदीक है और मृत्यु स्थल मन्दराचल पर्वत है। जिस सर्प के खाने से इसकी मृत्यु होगी वो भी मन्दराचल पर्वत पर उपस्थित न हुआ था। तभी तुमने दिव्य दृष्टि से मृत्यु का क्षण और कारण तो जान लिया लेकिन जगह देखना भूल गए और उसे बचाने के उद्देश्य से पहुँचा दिया। अब सर्प खेतो में था ठीक उसी समय गरुण ने उसे उठाया और मन्दराचल पर्वत अपने घोंसले पर ले गया। सर्प को जैसे ही गरुण ने छोड़ा सर्प ने चिड़िया को खा लिया, फिर उस सर्प को गरुण ने खा लिया। इसलिए मैं हँसा।
हे पार्वती, मृत्यु अटल है, टाली नहीं जा सकती जिसका स्टेशन आया उसे जीवन के जहाज से उतरना ही पड़ेगा। बहाने मृत्यु के प्रारब्धवश बनते हैं, उदाहरण कृष्ण जी को चरवाहे द्वारा तीर लगने से मृत्यु होना। वो चरवाहा पिछले जन्म का बालि था जिसे श्रीराम ने मारा था।
सर्प के काटने या कुत्ते के काटने से मृत्यु तब तक नहीं हो सकती जब तक मृत्यु का पल न आया हो और मृत्यु का प्रारब्ध बनने वाला सर्प या कुत्ते से उसके पिछले जन्म के लेने देन का वक्त न आ गया हो।
चलो पार्वती मेरे मृत्यु के देवता के कार्य का स्वरूप तुम्हे दिखाता हूँ। पार्वती जी ग्रामीण स्त्री का रूप धारण करके मृत्यु के देवता को देखने चल दी।
माता पार्वती ने देखा कि ज्यों ही मृत्यु का पल आया पड़ोसी जिसके हाथों दूसरे पड़ोसी की मृत्यु थी मृत्यु देवता सवार हुए और मृत्यु घट गई। माता ने ग्रामीणों से पूँछा मृत्यु कैसे हुई तो सबने कहा अमुक पड़ोसी ने मार दिया। जबकि पार्वती इस बात की साक्षी थी कि मृत्यु देवता ने मृत्यु दी।
कुछ बच्चे खेल रहे थे, वहां मृत्यु के देवता सर्प पर सवार हुए और बच्चे की मृत्यु हो गयी। सबसे पार्वती जी ने पूँछा क्या हुआ, तो सबने कहा सर्प ने काटा है, जबकि पार्वती जी इस बात की साक्षी थीं कि मृत्यु के देवता मृत्यु का कारण थे। ऐसे कई घटनाएं दिन भर पार्वती देखती रहीं और लोग स्थूल को दोषारोपण करते जैसे कुएं में गिरकर मौत हो गयी, या कुत्ते के काटने से मौत हो गयी या बिल्डिंग से गिरने पर मौत हो गयी या सेना में गोली लगने से मौत हो गई या हार्ट अटैक से मृत्यु हो गयी या किडनी फेल से मृत्यु हो गयी इत्यादि इत्यादि।
जिस प्रकार महाभारत युध्द का साक्षी भीम पौत्र बर्बरीक ने देखा कि कृष्ण ने ही महाकाल मृत्यु देवता रूप में सबको मार दिया था। अर्जुन तो केवल लाशों पर तीर चलाया। इसी तरह पार्वती साक्षी थी कि सभी मौतों को अंजाम महाकाल मृत्यु देवता स्वयं दे रहे थे।
लेकिन लोग भ्रमवश स्थूल कारणों को दोष दे रहे थे कि अमुक ने मारा, अमुक वजह से मृत्यु हुई, अमुक बीमारी से मृत्यु हुई इत्यादि इत्यादि।
हम सब रंगमंच की कठपुतली है निर्माता निर्देशक दिख भले न रहा हो लेकिन प्रत्येक व्यक्ति मंच पर उसी की मर्जी से आ और जा रहा है।
जहाज का पायलेट दिख भले नहीं रहा हो लेकिन उसी के नियंत्रण में जहाज उड़ेगा भी और लैंड भी करेगा।
हम सबको नहीं पता कि हमारी मृत्यु की लैंडिंग कब कैसे किस समय होगी? लेकिन परम् सत्य यह है कि मृत्यु की लैंडिंग होगी जरूर। आत्मा यात्री का सफर चलता रहेगा कभी इस जहाज पर तो कभी उस नए जहाज पर।
पूर्वजों की फ़ोटो देखो और जान लो हम भी बस एक फोटो ही रह जाएंगे, केवल हमारे कर्म ही हमारे जाने के बाद भी लोगों को याद रहेंगे।
आत्मा की अमरता और शरीर की नश्वरता इंसान अच्छी तरह से जानता है लेकिन मोह वश वो मृत्यु देवता के अस्तित्व को नहीं देख पाता और स्थूल कारणों को दोष देकर जी हल्का करता रहता है और माया में उलझा रहता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
पुराणों में एक कथा आती है, शंकर भगवान जिसे स्वयं महाकाल कहते हैं और पार्वती जिसे महाकाली कहते है के बीच का संवाद।
भगवान महाकाल सदा शिव से पार्वती जी ने पूँछा - आप त्रिदेव एक ही शक्ति की तीन अभिव्यक्ति हो। आप संघार के देवता हो और आप ही मृत्यु के देवता हो।
मेरी शंका का समाधान कीजिये कि जब जन्म मृत्यु आपके हाथ है तो लोग फ़िर आपको जन्म मृत्यु के लिये जिम्मेदार क्यों नहीं समझते।
पार्वती, जहाज में बैठने वाला व्यक्ति जानता है कि वो न स्वयं जहाज उड़ा सकता है और न हीं लैंड कर सकता है। सबकुछ कैप्टन के हाथ है। अधिकतर यात्री बिना कैप्टन को देखे ही यात्रा करते है और उसे सेफ लैंडिंग के लिए धन्यवाद भी नहीं देते।
यात्रियों के हाथ मे सिर्फ यह है कि सफर में सोएगा या वीडियो देखेगा या अच्छी पुस्तकें पढ़ेगा या ध्यान करेगा इत्यादि। लेकिन भ्रमवश यात्री लोगों को क्या बताते है कि मैं अमुक प्लेन से फ्लाई कर रहा हूँ और मैं इतने बजे लैंड करूंगा😇😇😇😇।
एक बार मुझसे मिलने नारद आये, उन्हें दिव्यदृष्टि से पता चल गया कि हिमालय में बैठी इस चिड़िया की मृत्यु सर्प के हाथों है। मेरी दृष्टि भी चिड़िया पर पड़ी और मेरे गले के सर्प की भी। नारद दयावश उसे उठाकर मन्दराचल पर्वत पर छोड़ आये, जिससे उसकी मृत्यु टल जाए। जैसे नारद आये तो मैं हंस पड़ा। तो उन्होंने पूँछा कि यह बताये प्रभु आप हंसे क्यों?
मैंने नारद से कहा, कि मैं सोच रहा था कि इस चिड़िया की मृत्यु का समय नजदीक है और मृत्यु स्थल मन्दराचल पर्वत है। जिस सर्प के खाने से इसकी मृत्यु होगी वो भी मन्दराचल पर्वत पर उपस्थित न हुआ था। तभी तुमने दिव्य दृष्टि से मृत्यु का क्षण और कारण तो जान लिया लेकिन जगह देखना भूल गए और उसे बचाने के उद्देश्य से पहुँचा दिया। अब सर्प खेतो में था ठीक उसी समय गरुण ने उसे उठाया और मन्दराचल पर्वत अपने घोंसले पर ले गया। सर्प को जैसे ही गरुण ने छोड़ा सर्प ने चिड़िया को खा लिया, फिर उस सर्प को गरुण ने खा लिया। इसलिए मैं हँसा।
हे पार्वती, मृत्यु अटल है, टाली नहीं जा सकती जिसका स्टेशन आया उसे जीवन के जहाज से उतरना ही पड़ेगा। बहाने मृत्यु के प्रारब्धवश बनते हैं, उदाहरण कृष्ण जी को चरवाहे द्वारा तीर लगने से मृत्यु होना। वो चरवाहा पिछले जन्म का बालि था जिसे श्रीराम ने मारा था।
सर्प के काटने या कुत्ते के काटने से मृत्यु तब तक नहीं हो सकती जब तक मृत्यु का पल न आया हो और मृत्यु का प्रारब्ध बनने वाला सर्प या कुत्ते से उसके पिछले जन्म के लेने देन का वक्त न आ गया हो।
चलो पार्वती मेरे मृत्यु के देवता के कार्य का स्वरूप तुम्हे दिखाता हूँ। पार्वती जी ग्रामीण स्त्री का रूप धारण करके मृत्यु के देवता को देखने चल दी।
माता पार्वती ने देखा कि ज्यों ही मृत्यु का पल आया पड़ोसी जिसके हाथों दूसरे पड़ोसी की मृत्यु थी मृत्यु देवता सवार हुए और मृत्यु घट गई। माता ने ग्रामीणों से पूँछा मृत्यु कैसे हुई तो सबने कहा अमुक पड़ोसी ने मार दिया। जबकि पार्वती इस बात की साक्षी थी कि मृत्यु देवता ने मृत्यु दी।
कुछ बच्चे खेल रहे थे, वहां मृत्यु के देवता सर्प पर सवार हुए और बच्चे की मृत्यु हो गयी। सबसे पार्वती जी ने पूँछा क्या हुआ, तो सबने कहा सर्प ने काटा है, जबकि पार्वती जी इस बात की साक्षी थीं कि मृत्यु के देवता मृत्यु का कारण थे। ऐसे कई घटनाएं दिन भर पार्वती देखती रहीं और लोग स्थूल को दोषारोपण करते जैसे कुएं में गिरकर मौत हो गयी, या कुत्ते के काटने से मौत हो गयी या बिल्डिंग से गिरने पर मौत हो गयी या सेना में गोली लगने से मौत हो गई या हार्ट अटैक से मृत्यु हो गयी या किडनी फेल से मृत्यु हो गयी इत्यादि इत्यादि।
जिस प्रकार महाभारत युध्द का साक्षी भीम पौत्र बर्बरीक ने देखा कि कृष्ण ने ही महाकाल मृत्यु देवता रूप में सबको मार दिया था। अर्जुन तो केवल लाशों पर तीर चलाया। इसी तरह पार्वती साक्षी थी कि सभी मौतों को अंजाम महाकाल मृत्यु देवता स्वयं दे रहे थे।
लेकिन लोग भ्रमवश स्थूल कारणों को दोष दे रहे थे कि अमुक ने मारा, अमुक वजह से मृत्यु हुई, अमुक बीमारी से मृत्यु हुई इत्यादि इत्यादि।
हम सब रंगमंच की कठपुतली है निर्माता निर्देशक दिख भले न रहा हो लेकिन प्रत्येक व्यक्ति मंच पर उसी की मर्जी से आ और जा रहा है।
जहाज का पायलेट दिख भले नहीं रहा हो लेकिन उसी के नियंत्रण में जहाज उड़ेगा भी और लैंड भी करेगा।
हम सबको नहीं पता कि हमारी मृत्यु की लैंडिंग कब कैसे किस समय होगी? लेकिन परम् सत्य यह है कि मृत्यु की लैंडिंग होगी जरूर। आत्मा यात्री का सफर चलता रहेगा कभी इस जहाज पर तो कभी उस नए जहाज पर।
पूर्वजों की फ़ोटो देखो और जान लो हम भी बस एक फोटो ही रह जाएंगे, केवल हमारे कर्म ही हमारे जाने के बाद भी लोगों को याद रहेंगे।
आत्मा की अमरता और शरीर की नश्वरता इंसान अच्छी तरह से जानता है लेकिन मोह वश वो मृत्यु देवता के अस्तित्व को नहीं देख पाता और स्थूल कारणों को दोष देकर जी हल्का करता रहता है और माया में उलझा रहता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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