Thursday, 19 July 2018

उसका ही अस्तित्व सर्वत्र शेष बच रहा है

*उसका ही अस्तित्व सर्वत्र शेष बच रहा है*

अहा! ध्यान का नया अनुभव हो रहा है,
जैसे भीतर से सो कर कोई उठ रहा है,
भीतर समय जैसे ठहर सा गया है,
मानो शहर का शोर थम सा गया है।

नज़ारे कुछ बदले बदले से लग रहे हैं,
सब अपने अपने से दिख रहे है,
कोई पराया नज़र न आ रहा है,
मानो पूरा ब्रह्मांड मुझमें समा रहा है।

कानों में कोई शोर नहीं है,
शब्दो का कोई रोर नहीं है,
ख़ुद से परे जाने का अनुभव नया नया है,
बिन पंखों के उड़ने का अनुभव नया नया है।

रुई सा मन हल्का हो गया है,
भारमुक्त मन ध्यानस्थ हो गया है,
धरती पर रहकर भी,
बादलों में चलने का अनुभव हो रहा है।

मानो मुझमेँ ही सूर्य का उदय हो रहा है,
मुझसे ही जगत प्रकाशित हो रहा है,
मानो सबकुछ उसमें विलय हो रहा है,
अब उसका ही अस्तित्व सर्वत्र शेष बच रहा है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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