समस्या - *मेरी 9वीं में पढ़ने वाली बेटी का पढ़ने में मन नहीं लगता, आजकल बहुत झल्लाती है, जिंदगी से नाख़ुश दिखती है। अपने मन की बात मुझसे शेयर भी नहीं करती। और मेरी आजकल बात भी नहीं सुनती। मेरे ईष्ट भोलेनाथ है और मैं भोलेनाथ की भक्त हूँ। कैसे हैंडल करूँ यह सिचुएशन?*
उत्तर - बुखार से शरीर गर्म होने की कई वजह होती हैं, कुशल डॉक्टर रोग की जड़ को समझ के इलाज़ करता है और सफ़लता प्राप्त करता है। इसीतरह बच्चे के न पढ़ने की कई वजह हो सकती है, अतः असली वजह पहचाने और उस पर काम करे।
युद्ध में जब अर्जुन ने यह कहा कि वो युद्ध नहीं करेगा, तो कृष्ण भगवान ने युद्ध क्यों नहीं करेगा इसकी जड़ को समझा।
अब यहां अर्जुन कायर और डरपोक नहीं था, उसने तो अनेकों युद्ध जीते थे, वो मरने-शहीद होने से भी नहीं डरता था। *असली समस्या यह थी कि वो अपनों से युद्ध नहीं करना चाहता था।* जिनकी गोद मे खेल के बड़ा हुआ, जिनसे शिक्षा ली, जिन भाई बहनों के साथ पला बढ़ा, उन्हें युद्ध मे मारना नहीं चाहता था। *इसी तरह आजकल के बच्चे ऐसा नहीं है कि पढ़ाई में कमज़ोर है, बल्कि वो पढ़ सकते हैं। लेकिन वो इसके लिए अपने मन से नहीं लड़ना चाहते, इंटरनेट-टीवी-व्हाट्सएप-शोशल एप-फ़ेसबुक, प्रिय मित्रों से घण्टों गपशप इत्यादि प्रिय कार्यो की इच्छा को युद्ध में मारना नहीं चाहते।* मन की महाभारत में मन की मनोरंजन वाली इच्छाओं से लड़ना नहीं चाहते। *मनोमन्जन(edutainment)(धर्म स्थापना) को राज्य देना है तो मनोरंजन(entertainment)(अनैतिक इच्छाओं) को युद्ध मे मारना ही पड़ेगा*। अब कृष्ण बनकर बच्चो या तो स्वयं उबारिये या बच्चो को स्वाध्याय करवा दीजिये। अच्छी पुस्तकें स्वयं श्रीकृष्ण की भूमिका निभाएंगी।
अब *आपकी बेटी क्यों नहीं पढ़ना चाहती, इसके लिए उसके अन्तर्मन में झांकिए,* उसके पिछले 5 वर्ष के क्रिया कलाप का अवलोकन कीजिये और समस्या की जड़ को समझिए।
1- जब माता-पिता आपस में ज्यादा झगड़े करते है, ऐसे घरों के बच्चे खुन्नस खाते हैं। अपनी बातें माता पिता से शेयर नहीं करते।
2- जब माता बेटी की कही बात की गोपनीयता नहीं रखती, उसे लगता है कि इन्हें बताने का कोई फ़ायदा नहीं।
3- जब माता और बेटी के बीच मे मित्रता नहीं होती। एक शासक की भूमिका में मां होती है।
4- जब पिता अपने बच्चों के सामने माता की बेइज्जती करता हो, उसे फ़ालतू साबित करता हो तो भी बच्चे माता के साथ बात शेयर नहीं करते क्योंकि वो माता को इम्पोर्टेंस नहीं देते।
5- जब माता-पिता दोनों जॉब में हो, बच्चे को पर्याप्त क़्वालिटी समय न दे पाते हो। तो बच्चे और माता पिता के बीच दूरी बढ़ जाती है। बच्चा अपनी समस्या शेयर नहीं करता।
6- बच्चा पढ़ाई में कमज़ोर हो, तो भी अपनी झुंझलाहट चिढ़ के रूप में निकालता है। लेकिन घर के दबाव में उसे पढ़ना पड़ता हो।
7- बच्चा पढ़ाई में तेज भी हो, लेकिन ग़लत संगत में नए शौक और आदतें विकसित हो गयी हो।
8- बच्चे आजकल छोटी उम्र में प्रेम में पड़ जाते है। प्रेम में पड़ने वाले दो प्रकार के बच्चे होते हैं, एक प्रेम भी कर लेते है और पढ़ भी लेते हैं, दूसरे टाइप के बच्चे प्रेम में पड़ते ही दूसरे के बारे में सोचने और कल्पनाओं में समस्त समय व्यतीत करके पढ़ाई छोड़ देते हैं।
9- *जिन बच्चों को यह क्लियर नहीं होता कि पढ़कर आखिर होगा क्या? वो क्यों पढ़ रहे है? उन्हें आगे जीवन मे इस पढ़ाई से क्या हासिल करना है? उनका कैरियर लक्ष्य क्या है? उनका जीवन लक्ष्य क्या है? अगर यह सब क्लियर नहीं तो बच्चे का पढ़ने में मन नहीं लगेगा।*
10 - अच्छे स्कूल और अच्छा ट्यूशन की व्यवस्था मात्र पर्याप्त नहीं है। *बिना गंतव्य के जिस प्रकार यात्रा फालतू सी प्रतीत होती है, अब यात्रा के लिए वाहन कितने ही उत्तम क़्वालिटी का हो या महंगा हो?* लेकिन बिना मंजिल जाने - जाना कहाँ है जाने बिना सफ़र को भला कौन वरीयता देगा? मंजिल तक पहुंचने की जल्दी हो तो खटारा गाड़ी में भी सफर इंसान कर लेगा..
बच्चे को बनना क्या है? करना क्या है जाने बिना भला कौन सा बच्चा पढ़ना पसन्द करेगा? जो बनना है उसे वो उसकी पसन्द और बर्निंग डिज़ायर बना दो।
11- जिन घरों में स्वस्थ आध्यात्मिक वातावरण नहीं होता, वहां भी बच्चों का मन कुविचारों और विकृति के कारण पढ़ने में नहीं लगता।
12- बच्चों को अत्यधिक लाड़-प्यार देकर, उनकी गलतियों को अनदेखा करके उनकी डिमांड पूरी करते जाना। कभी उन पर घर की जिम्मेदारी और काम मे हाथ भी न लगाने देना। उन्हें जिंदगी की हक़ीक़त से रूबरू न करवाना। उन्हें मनमानी अत्यधिक प्राइवेसी देना।
13. बच्चों की तुलना अन्य बच्चों से करना, उन्हें शर्मा जी- वर्मा जी के बच्चो के उदाहरण देकर समझाना। इससे बच्चे कुंठित होते हैं।
14- बच्चो को दिनभर किसी न किसी बात के लिए टोंकना, थोड़ी सी भी प्राइवेसी न देना। अत्यधिक घर के काम लेना।
15 - बढ़ती उम्र और शरीर मे बदलते हार्मोन से उपजे प्रश्नों के समक्ष आने पर उन्हें डांट डपटकर भगा देना। उन्हें हैंडल न करना।
*उपरोक्त में से कारण कौन सा है पता लगाएं, अब उसके समाधान हेतु निम्नलिखित तरीक़े अपनाएं:-*
1- *सबसे पहले बच्चे को अध्यात्म से जोड़े, उन्हें प्रश्नों के उत्तर ढूढ़ने के लिए गहन ध्यान में जाने को प्रेरित करें।* उनके शारीरिक स्वास्थ्य के लिए योग-व्यायाम करवाये, और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जप-ध्यान-स्वाध्याय साथ मे खुद करें और करवाये। अगर ख़ुद ध्यान और योग-प्राणायाम नहीं करते और बच्चो को भी नहीं करवाते तो बच्चे हाथ मे कभी नहीं आएंगे।
2- *अध्यात्म का अर्थ है सन्तुलन, आंखे बंद करो तो मन में शांति और आंखे खोलो तो भगवान से पूंछो भगवान हम आपके लिए क्या कर सकते हैं?* संसार के लिए कुछ कर गुजरने का भाव स्वयं के मन में जागृत कीजिये और बच्चे के मन में भी इस संसार के लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा जगाइये।
3- महापुरुषों की जीवनियां स्वयं पढ़िये और सप्ताह में एक बार कम से कम अपने बच्चे को पढाईये।
4- बच्चे के साथ बैठकर उसके आगे के जीवन के प्लान के बारे में स्वस्थ चर्चा कीजिये कि उसने आगे क्या करने का सोचा है और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसका रोड मैप/प्लान क्या होगा?
5- बच्चे के अंदर देशभक्ति जगाइये आपका कल्याण स्वयमेव हो जाएगा।
6- जीवनोपयोगी युगसाहित्य निम्नलिखित लिंक पर मुफ्त फ्री रीडिंग और डाउनलोड के लिए उपलब्ध है उसे स्वयं पढ़ें और पति और बच्चो को पढ़ाये:-
http://www.vicharkrantibooks.org
7- शंकर भगवान की भक्त हैं तो 16 सोमवार का व्रत बच्ची के लिए रखिये और निम्नलिखित पुस्तक में वर्णित *रुद्राभिषेक* और *रुद्राष्टाध्यायी का पाठ* कीजिये।
पुस्तक - सुगम शिवार्चन विधि
8- 24 हज़ार *गायत्री मंत्र* और 3 हज़ार *महामृत्युंजय मंत्र* बेटी के लिए जपिये।
9- आप पति-पत्नी झगड़े कीजिये तो रूम में कीजिये, चर्चा के तौर पर कीजिये, बच्चे के सामने एक दूसरे से इज्जत से पेश आइये।
10- महीने में एक बार कहीं घूमने फिरने जाइये। परिवार में सब साथ में समय बिताइए। एक दूसरे से बातें कीजिये।
समस्या जहाँ है, समाधान वहीं है। अतः समस्या की जड़ गहन ध्यान में डूब कर पता लगाइए और उस समाधान को अप्पलाई कीजिये। आप पिता,मां, बेटी में पुनः अच्छे दोस्त वाला रिश्ता कायम हो यही महाकाल से प्रार्थना है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - बुखार से शरीर गर्म होने की कई वजह होती हैं, कुशल डॉक्टर रोग की जड़ को समझ के इलाज़ करता है और सफ़लता प्राप्त करता है। इसीतरह बच्चे के न पढ़ने की कई वजह हो सकती है, अतः असली वजह पहचाने और उस पर काम करे।
युद्ध में जब अर्जुन ने यह कहा कि वो युद्ध नहीं करेगा, तो कृष्ण भगवान ने युद्ध क्यों नहीं करेगा इसकी जड़ को समझा।
अब यहां अर्जुन कायर और डरपोक नहीं था, उसने तो अनेकों युद्ध जीते थे, वो मरने-शहीद होने से भी नहीं डरता था। *असली समस्या यह थी कि वो अपनों से युद्ध नहीं करना चाहता था।* जिनकी गोद मे खेल के बड़ा हुआ, जिनसे शिक्षा ली, जिन भाई बहनों के साथ पला बढ़ा, उन्हें युद्ध मे मारना नहीं चाहता था। *इसी तरह आजकल के बच्चे ऐसा नहीं है कि पढ़ाई में कमज़ोर है, बल्कि वो पढ़ सकते हैं। लेकिन वो इसके लिए अपने मन से नहीं लड़ना चाहते, इंटरनेट-टीवी-व्हाट्सएप-शोशल एप-फ़ेसबुक, प्रिय मित्रों से घण्टों गपशप इत्यादि प्रिय कार्यो की इच्छा को युद्ध में मारना नहीं चाहते।* मन की महाभारत में मन की मनोरंजन वाली इच्छाओं से लड़ना नहीं चाहते। *मनोमन्जन(edutainment)(धर्म स्थापना) को राज्य देना है तो मनोरंजन(entertainment)(अनैतिक इच्छाओं) को युद्ध मे मारना ही पड़ेगा*। अब कृष्ण बनकर बच्चो या तो स्वयं उबारिये या बच्चो को स्वाध्याय करवा दीजिये। अच्छी पुस्तकें स्वयं श्रीकृष्ण की भूमिका निभाएंगी।
अब *आपकी बेटी क्यों नहीं पढ़ना चाहती, इसके लिए उसके अन्तर्मन में झांकिए,* उसके पिछले 5 वर्ष के क्रिया कलाप का अवलोकन कीजिये और समस्या की जड़ को समझिए।
1- जब माता-पिता आपस में ज्यादा झगड़े करते है, ऐसे घरों के बच्चे खुन्नस खाते हैं। अपनी बातें माता पिता से शेयर नहीं करते।
2- जब माता बेटी की कही बात की गोपनीयता नहीं रखती, उसे लगता है कि इन्हें बताने का कोई फ़ायदा नहीं।
3- जब माता और बेटी के बीच मे मित्रता नहीं होती। एक शासक की भूमिका में मां होती है।
4- जब पिता अपने बच्चों के सामने माता की बेइज्जती करता हो, उसे फ़ालतू साबित करता हो तो भी बच्चे माता के साथ बात शेयर नहीं करते क्योंकि वो माता को इम्पोर्टेंस नहीं देते।
5- जब माता-पिता दोनों जॉब में हो, बच्चे को पर्याप्त क़्वालिटी समय न दे पाते हो। तो बच्चे और माता पिता के बीच दूरी बढ़ जाती है। बच्चा अपनी समस्या शेयर नहीं करता।
6- बच्चा पढ़ाई में कमज़ोर हो, तो भी अपनी झुंझलाहट चिढ़ के रूप में निकालता है। लेकिन घर के दबाव में उसे पढ़ना पड़ता हो।
7- बच्चा पढ़ाई में तेज भी हो, लेकिन ग़लत संगत में नए शौक और आदतें विकसित हो गयी हो।
8- बच्चे आजकल छोटी उम्र में प्रेम में पड़ जाते है। प्रेम में पड़ने वाले दो प्रकार के बच्चे होते हैं, एक प्रेम भी कर लेते है और पढ़ भी लेते हैं, दूसरे टाइप के बच्चे प्रेम में पड़ते ही दूसरे के बारे में सोचने और कल्पनाओं में समस्त समय व्यतीत करके पढ़ाई छोड़ देते हैं।
9- *जिन बच्चों को यह क्लियर नहीं होता कि पढ़कर आखिर होगा क्या? वो क्यों पढ़ रहे है? उन्हें आगे जीवन मे इस पढ़ाई से क्या हासिल करना है? उनका कैरियर लक्ष्य क्या है? उनका जीवन लक्ष्य क्या है? अगर यह सब क्लियर नहीं तो बच्चे का पढ़ने में मन नहीं लगेगा।*
10 - अच्छे स्कूल और अच्छा ट्यूशन की व्यवस्था मात्र पर्याप्त नहीं है। *बिना गंतव्य के जिस प्रकार यात्रा फालतू सी प्रतीत होती है, अब यात्रा के लिए वाहन कितने ही उत्तम क़्वालिटी का हो या महंगा हो?* लेकिन बिना मंजिल जाने - जाना कहाँ है जाने बिना सफ़र को भला कौन वरीयता देगा? मंजिल तक पहुंचने की जल्दी हो तो खटारा गाड़ी में भी सफर इंसान कर लेगा..
बच्चे को बनना क्या है? करना क्या है जाने बिना भला कौन सा बच्चा पढ़ना पसन्द करेगा? जो बनना है उसे वो उसकी पसन्द और बर्निंग डिज़ायर बना दो।
11- जिन घरों में स्वस्थ आध्यात्मिक वातावरण नहीं होता, वहां भी बच्चों का मन कुविचारों और विकृति के कारण पढ़ने में नहीं लगता।
12- बच्चों को अत्यधिक लाड़-प्यार देकर, उनकी गलतियों को अनदेखा करके उनकी डिमांड पूरी करते जाना। कभी उन पर घर की जिम्मेदारी और काम मे हाथ भी न लगाने देना। उन्हें जिंदगी की हक़ीक़त से रूबरू न करवाना। उन्हें मनमानी अत्यधिक प्राइवेसी देना।
13. बच्चों की तुलना अन्य बच्चों से करना, उन्हें शर्मा जी- वर्मा जी के बच्चो के उदाहरण देकर समझाना। इससे बच्चे कुंठित होते हैं।
14- बच्चो को दिनभर किसी न किसी बात के लिए टोंकना, थोड़ी सी भी प्राइवेसी न देना। अत्यधिक घर के काम लेना।
15 - बढ़ती उम्र और शरीर मे बदलते हार्मोन से उपजे प्रश्नों के समक्ष आने पर उन्हें डांट डपटकर भगा देना। उन्हें हैंडल न करना।
*उपरोक्त में से कारण कौन सा है पता लगाएं, अब उसके समाधान हेतु निम्नलिखित तरीक़े अपनाएं:-*
1- *सबसे पहले बच्चे को अध्यात्म से जोड़े, उन्हें प्रश्नों के उत्तर ढूढ़ने के लिए गहन ध्यान में जाने को प्रेरित करें।* उनके शारीरिक स्वास्थ्य के लिए योग-व्यायाम करवाये, और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जप-ध्यान-स्वाध्याय साथ मे खुद करें और करवाये। अगर ख़ुद ध्यान और योग-प्राणायाम नहीं करते और बच्चो को भी नहीं करवाते तो बच्चे हाथ मे कभी नहीं आएंगे।
2- *अध्यात्म का अर्थ है सन्तुलन, आंखे बंद करो तो मन में शांति और आंखे खोलो तो भगवान से पूंछो भगवान हम आपके लिए क्या कर सकते हैं?* संसार के लिए कुछ कर गुजरने का भाव स्वयं के मन में जागृत कीजिये और बच्चे के मन में भी इस संसार के लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा जगाइये।
3- महापुरुषों की जीवनियां स्वयं पढ़िये और सप्ताह में एक बार कम से कम अपने बच्चे को पढाईये।
4- बच्चे के साथ बैठकर उसके आगे के जीवन के प्लान के बारे में स्वस्थ चर्चा कीजिये कि उसने आगे क्या करने का सोचा है और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसका रोड मैप/प्लान क्या होगा?
5- बच्चे के अंदर देशभक्ति जगाइये आपका कल्याण स्वयमेव हो जाएगा।
6- जीवनोपयोगी युगसाहित्य निम्नलिखित लिंक पर मुफ्त फ्री रीडिंग और डाउनलोड के लिए उपलब्ध है उसे स्वयं पढ़ें और पति और बच्चो को पढ़ाये:-
http://www.vicharkrantibooks.org
7- शंकर भगवान की भक्त हैं तो 16 सोमवार का व्रत बच्ची के लिए रखिये और निम्नलिखित पुस्तक में वर्णित *रुद्राभिषेक* और *रुद्राष्टाध्यायी का पाठ* कीजिये।
पुस्तक - सुगम शिवार्चन विधि
8- 24 हज़ार *गायत्री मंत्र* और 3 हज़ार *महामृत्युंजय मंत्र* बेटी के लिए जपिये।
9- आप पति-पत्नी झगड़े कीजिये तो रूम में कीजिये, चर्चा के तौर पर कीजिये, बच्चे के सामने एक दूसरे से इज्जत से पेश आइये।
10- महीने में एक बार कहीं घूमने फिरने जाइये। परिवार में सब साथ में समय बिताइए। एक दूसरे से बातें कीजिये।
समस्या जहाँ है, समाधान वहीं है। अतः समस्या की जड़ गहन ध्यान में डूब कर पता लगाइए और उस समाधान को अप्पलाई कीजिये। आप पिता,मां, बेटी में पुनः अच्छे दोस्त वाला रिश्ता कायम हो यही महाकाल से प्रार्थना है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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