प्रश्न - *दी, मैं पहले बहुत साधना करता था, लेकिन पिछले तीन वर्षों से साधना लगभग विभिन्न कारणों से बन्द है। समझ नहीं आ रहा पुनः शुरू कैसे करूँ?*
उत्तर - प्रिय भाई, हमारे शरीर को 1% कैल्शियम की नित्य ज़रूरत होती है। यदि हम भोज्य पदार्थ खा कर उसकी पूर्ति कर देते हैं तो अतिउत्तम होता है शरीर की नियमित कार्य के साथ हड्डियां मजबूत होती हैं। लेकिन यदि हम कैल्शियम युक्त पदार्थ नहीं खाएंगे, तो शरीर की कैल्शियम की आपूर्ति हमारे शरीर की हड्डियों को करना पड़ेगा। नित्य हड्डियां कमज़ोर और खोखली होने लगती हैं।
बाह्य से शरीर स्वस्थ दिखने पर भी खोखली हड्डियाँ प्रॉब्लम खड़ी करेंगी, इसी तरह अंतर्जगत अशांत और खोखला हुआ तो बाह्य से जीवन सुखी सम्पन्न दिखने पर भी जीवन अशांत और अवसादग्रस्त रहेगा ही, क्योंकि ऐसे लोगों के पास मकान तो होगा- लेकिन प्रेम सहकार से भरा घर नहीं, बिस्तर तो होगा- नींद नहीं, जीवन तो होगा-चैन नहीं, भोजन तो होगा-पाचन नहीं, परिवार तो होगा-मधुर आत्मीय सम्बन्ध नहीं इत्यादि।
स्वयं विचार करो... जब तुम साधनारत थे तो जीवन मे जो सुकून और आत्मसंतुष्टि की जो अनुभूति थी, वो बिन साधना के मिल रही है क्या???
इसी तरह जो लोग ये सोचते हैं कि मैं तो उपासना/साधना/प्रेयर/जप/ध्यान नहीं करता, फिर भी मेरी जिंदगी मज़े से चल रही है। तो इसका अर्थ यह है कि हड्डियों की तरह उनके संचित पुण्य कर्म ख़र्च हो रहे हैं। पुण्य साधना की नई कमाई न हुई तो पुण्य ख़ज़ाना ख़ाली हो जाएगा, फ़िर रोग-शोक की उतपत्ति होगी। कब तक बासी पुण्य कर्म खा के काम चलेगा? नया पुण्य तो अर्जित करना ही पड़ेगा।
तीन वर्ष साधना नहीं हुई तो अब पुनः साधना शुरू कर दो। 324 मन्त्र अर्थात तीन माला जप, 15 मिनट ध्यान, 15 मिनट योग प्राणायाम और 15 मिनट अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय इतना तो नित्य जीवन की सुचारू व्यवस्था के लिए जरूरी है। इतने की जीवन मे नित्य खपत है।
उपरोक्त से अधिक साधना करने पर पुण्य संचित होगा, पुण्य को अधिक सक्रिय तरीके से संचित करने के लिए नित्य उपासना के साथ साथ वर्ष में दो नवरात्र और एक चांद्रायण व्रत अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए।
जल और वायु में मौजूद बिजली/ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए टरबाइन और पवनचक्की जैसे मशीनों की मदद लेनी पड़ती है। इसी तरह अन्तःउर्जा/आत्मउर्जा को प्राप्त करने के लिए नित्य उपासना-साधना-आराधना तो करना ही पड़ेगा।
जब जागो तभी सवेरा, अब जाग गए हो साधना के महत्त्व को समझ के इस में जुट जाओ, पुण्य संचित करने के लिए, आत्मउद्धार में तन्मय हो जाओ। इस जन्म के साथ साथ अगले जन्म हेतु भी तपबल/आत्मबल/पुण्यफ़ल ऊर्जा का संचय करो।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - प्रिय भाई, हमारे शरीर को 1% कैल्शियम की नित्य ज़रूरत होती है। यदि हम भोज्य पदार्थ खा कर उसकी पूर्ति कर देते हैं तो अतिउत्तम होता है शरीर की नियमित कार्य के साथ हड्डियां मजबूत होती हैं। लेकिन यदि हम कैल्शियम युक्त पदार्थ नहीं खाएंगे, तो शरीर की कैल्शियम की आपूर्ति हमारे शरीर की हड्डियों को करना पड़ेगा। नित्य हड्डियां कमज़ोर और खोखली होने लगती हैं।
बाह्य से शरीर स्वस्थ दिखने पर भी खोखली हड्डियाँ प्रॉब्लम खड़ी करेंगी, इसी तरह अंतर्जगत अशांत और खोखला हुआ तो बाह्य से जीवन सुखी सम्पन्न दिखने पर भी जीवन अशांत और अवसादग्रस्त रहेगा ही, क्योंकि ऐसे लोगों के पास मकान तो होगा- लेकिन प्रेम सहकार से भरा घर नहीं, बिस्तर तो होगा- नींद नहीं, जीवन तो होगा-चैन नहीं, भोजन तो होगा-पाचन नहीं, परिवार तो होगा-मधुर आत्मीय सम्बन्ध नहीं इत्यादि।
स्वयं विचार करो... जब तुम साधनारत थे तो जीवन मे जो सुकून और आत्मसंतुष्टि की जो अनुभूति थी, वो बिन साधना के मिल रही है क्या???
इसी तरह जो लोग ये सोचते हैं कि मैं तो उपासना/साधना/प्रेयर/जप/ध्यान नहीं करता, फिर भी मेरी जिंदगी मज़े से चल रही है। तो इसका अर्थ यह है कि हड्डियों की तरह उनके संचित पुण्य कर्म ख़र्च हो रहे हैं। पुण्य साधना की नई कमाई न हुई तो पुण्य ख़ज़ाना ख़ाली हो जाएगा, फ़िर रोग-शोक की उतपत्ति होगी। कब तक बासी पुण्य कर्म खा के काम चलेगा? नया पुण्य तो अर्जित करना ही पड़ेगा।
तीन वर्ष साधना नहीं हुई तो अब पुनः साधना शुरू कर दो। 324 मन्त्र अर्थात तीन माला जप, 15 मिनट ध्यान, 15 मिनट योग प्राणायाम और 15 मिनट अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय इतना तो नित्य जीवन की सुचारू व्यवस्था के लिए जरूरी है। इतने की जीवन मे नित्य खपत है।
उपरोक्त से अधिक साधना करने पर पुण्य संचित होगा, पुण्य को अधिक सक्रिय तरीके से संचित करने के लिए नित्य उपासना के साथ साथ वर्ष में दो नवरात्र और एक चांद्रायण व्रत अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए।
जल और वायु में मौजूद बिजली/ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए टरबाइन और पवनचक्की जैसे मशीनों की मदद लेनी पड़ती है। इसी तरह अन्तःउर्जा/आत्मउर्जा को प्राप्त करने के लिए नित्य उपासना-साधना-आराधना तो करना ही पड़ेगा।
जब जागो तभी सवेरा, अब जाग गए हो साधना के महत्त्व को समझ के इस में जुट जाओ, पुण्य संचित करने के लिए, आत्मउद्धार में तन्मय हो जाओ। इस जन्म के साथ साथ अगले जन्म हेतु भी तपबल/आत्मबल/पुण्यफ़ल ऊर्जा का संचय करो।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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