Monday, 6 August 2018

प्रश्न - *दी, कैलेंडर में दो एकादशी, स्मार्त और वैष्णव की अलग क्यों होती है? जबकि दोनों ही हिंदू है। जन्माष्टमी में भी ऐसा ही देखा है। मुझे कौन सी माननी चाहिए और एकादशी को चावल क्यों नहीं खाते? मार्गदर्शन करें...*

प्रश्न - *दी, कैलेंडर में दो एकादशी, स्मार्त और वैष्णव की अलग क्यों होती है? जबकि दोनों  ही हिंदू है। जन्माष्टमी में भी ऐसा ही देखा है। मुझे कौन सी माननी चाहिए और एकादशी को चावल क्यों नहीं खाते? मार्गदर्शन करें...*

उत्तर - प्रिय आत्मीय बहन, जी दोनों हिन्दू ही है, केवल मत और मान्यता का भेद है।

*हिंदू पंचाग चन्द्र और सूर्य दोनों के आधार पर गणना करता है।* मुस्लिम केवल चन्द्र उदय-अस्त के आधार पर पंचांग गणना करते है और क्रिश्चन केवल सूर्य के उदय-अस्त के आधार पर गणना करते हैं। जबकि असलियत यह है कि न सूर्य उदय होता है और न अस्त, केवल पृथ्वी घूमती है।

हिन्दू पंचांग इसलिए सटीक होता है और चन्द्रग्रहण हो या सूर्यग्रहण या कोई भी खगोलीय घटना ठीक ठीक समय बता पाता है। क्योंकि यह पृथ्वी के घूमने की भी गणना कर पाता है।

*वैष्णव अधिकतर घर गृहस्थी के बन्धन से मुक्त सन्यासी माने जाते थे* और एक ईष्ट वासुदेव उपासक माने जाते थे। आजकल तो वैष्णव भी ग्रहस्थ मिलते हैं। जबकि दूसरी ओर *एक स्मार्त ग्रहस्थ जिम्मेदारी के बोझ के मारे, बहुदेववाद-पंचदेव (ब्रह्मा , विष्णु , महेश , गणेश , उमा ) पर उपासना करते हैं*। ये सुबह घर गृहस्थी और अतिरिक्त जिम्मेदारी के कारण चंद्रोदय/शाम को जो तिथि लगती है उसे ही मान्यता दे देते हैं। अब तिथि यदि अर्थ रात्रि को भी लगी तो उसे मना लेंगे।

प्रायः पंचांगो में एकादशी व्रत , जन्माष्टमी व्रत स्मार्त जनों के लिए पहले दिन और वैष्णव लोगों के लिए दुसरे दिन बताया जाता है । इससे जनसाधारण भ्रम में पड जाते हैं । दशमी तिथि का मान ५४ घटी से ज्यादा हो तो वैष्णव जन द्वादशी तिथी को व्रत रखते हैं । अन्यथा एकादशी को ही रखते है । इसी तरह स्मार्त जन अर्ध्दरात्री को अष्टमी पड रही हो तो उसी दिन जन्माष्टमी मनाते है । जबकी वैष्णवजन उदया तिथी को जन्माष्टमी मनाते हैं , एवं व्रत भी उसी दिन रखते है ।

*हम सब गायत्री साधक सविता की उपासना-आराधना करते हैं, हमारा ईष्ट आराध्य एक है। तो हम वैष्णव की तरह एक ईष्ट आराध्य को मानते हैं। अतः हम घर गृहस्थी वाले होते हुए भी, वैष्णव व्रत की तिथियों का पालन करेंगे। जिस तिथि में सूर्य उदय होंगे हम उसी तिथि का दिन मानकर अनुष्ठान-व्रत के नियम का पालन करेंगे।*

एकादशी के विषय में शास्त्र कहते हैं, ‘ *न विवेकसमो बन्धुर्नैकादश्या: परं व्रतं* ’ यानी विवेक के सामान कोई बंधु नहीं है और एकादशी से बढ़ कर कोई व्रत नहीं है। पांच ज्ञान इन्द्रियां, पांच कर्म इन्द्रियां और एक मन, इन ग्यारहों को जो साध ले, वह प्राणी एकादशी के समान पवित्र और दिव्य हो जाता है। एकादशी जगतगुरु विष्णुस्वरुप है।

*एकादशी को चावल खाना वर्जित है।*

जहां चावल का संबंध जल और चंद्रमा से है। पांचों ज्ञान इन्द्रियां और पांचों कर्म इन्द्रियों पर मन का ही अधिकार है। *मन ही जीवात्मा का चित्त स्थिर-अस्थिर करता है*, *मन के हाथ मे ही स्वर्ग और नर्क दोनों की सीढ़ी है, साधना भी मन को ही है।* मन और श्वेत रंग के स्वामी भी चंद्रमा ही हैं, जो स्वयं जल, रस और भावना के कारक हैं, इसीलिए जलतत्त्व राशि के जातक भावना प्रधान होते हैं, जो अक्सर धोखा खाते हैं। भावनाओं को जल तत्व की अधिकता के कारण चावल उद्वेलित करता है, अतः चन्द्र तत्व को स्थिर करके सूर्य तत्व को तेज किया जाता है। इसलिए चावल खाना वर्जित किया गया है।

चावल अन्य अनाज की तुलना देरी में पचता है, एक दिन पुराना चावल नशा भी करता है और नींद भी लाता है। पेट मे न पचे तो आलस्य भी उतपन्न करता है। शरीर को शिथिल और भावनाओं को अस्थिर करता है।

भावनायें स्थिर रहे, मन श्रेष्ठ उद्देश्यों की ओर लगे, पंच कर्मेन्द्रियां, पंच ज्ञानेंद्रियां और मन पर नियन्त्रण करने का व्रत एकादशी करना चाहिए।

24 एकादशी 24 अलग अलग ऋषियों की रिसर्च के आधार पर उनके बनाये नियम पर भी कर सकते है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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