प्रश्न - *दी, हमारे पिता का देहांत हो चुका है। माता जी है। बड़े-भाई भाभी गृह कलह करके अलग हो चुके है। पिता की दुकान वो सम्हालते हैं। मैं 10-12 हज़ार की छोटी सी नौकरी करता हूँ, दूसरे शहर में पत्नी बच्चो को लेकर रहता हूँ। माता जी आती जाती रहती है लेकिन उनके पास बिल्कुल पैसा नहीं होता। मैं अपनी माता की सेवा करना चाहता हूँ लेकिन भविष्य में उनकी बीमारी में होने वाले खर्च से डरता हूँ। क्या करूँ कि मां की सेवा भी हो जाये, और घर मे कलह भी न हो, माता जी का स्वाभिमान भी बना रहे।*
उत्तर - आत्मीय भाई, समस्या जहां है समाधान भी वहीं है।
धर्म की स्थापना के लिए अपनो से भी युद्ध करना पड़ता है। माता जी को सम्मान और सेवा दोनों मिले इसके सद्बुद्धि का प्रयोग करके साहस का परिचय दो।
पता करो पैतृक सम्पत्ति और दुकान किसके नाम है? भाई से खुलकर निर्भय होकर बात करो और बोलो माता जी का आधा खर्च तुम दो और आधा मैं दूंगा। यदि प्यार से न माने तो कोर्ट जाने की धमकी दो। फिर भी न माने तो लोक अदालत में मुकद्दमा डाल दो। माता जी से भी निर्भय होकर बात कीजिये, कि मां मैं तुम्हारी सेवा करना चाहता हूँ और मैं अपनी आधी रोटी भी तुम्हारे साथ मिल बांटकर खाना चाहता हूँ। पिता की सम्पत्ति पर आपका उतना ही हक है जितना मेरा और भैया का, कानून भी आपके साथ है। चलिए भैया को एक बार समझाते हैं, नहीं तो कोर्ट की मदद लेते हैं।
उम्र बड़ी है, जीवन मे जीने के लिए धन की आवश्यकता पड़ेगी। यदि आप हमारे साथ रूखी सुखी हम जो खाते है वो खा के रह सकती है तो हम उम्रभर आपकी सेवा में उपस्थित हैं। लेकिन स्वाभिमान यही कहता है कि पति की मृत्यु के बाद पत्नी सम्पत्ति की बराबर अधिकारी है। अतः आपके भरण पोषण और भविष्य की दवा के लिए धन आपके पास होना ही चाहिए। आप उसे जैसा चाहे वैसा उपयोग करे।
कुछ पुस्तक पढ़िये और माता को पढाईये:-
1- *शक्तिवान बनिये*
2- *निराशा को पास न फटकने दें*
3- *उज्ज्वल भविष्य के ज्योति कण*
4- *हम अशक्त नहीं, शशक्त बने*
5- *हारिये न हिम्मत*
इस विपरीत परिस्थिति के शमनार्थ कुछ आध्यात्मिक उपाय में *सवा लाख गायत्री का जप अनुष्ठान* कीजिये स्वतः मार्ग मिल जाएगा।
कर्म करिये फल की चिंता मत कीजिये, स्वयं ज्यादा कमाने हेतु योग्यता पात्रता बढ़ाइए। पैतृक सम्पत्ति में तीन हिस्से लगाइए, दो भाई और एक माता का....जो सेवा करेगा वो ही माता के हिस्से का उपयोग कर सकेगा। अर्जुन की तरह अपना धर्म युद्ध स्वयं लड़िये, भाई साहब को उनके माता के प्रति कर्तव्य को साम-दाम-दण्ड-भेद जिससे समझे उस विधि से समझाइए। माता जी को भी कहिए अपनी लड़ाई स्वयं लड़े और वृद्धावस्था के निर्वहन हेतु उचित व्यवस्था की लड़ाई अपने बड़े पुत्र से लड़े। धर्म अपने परिवार क्षेत्र को स्थापित करें, अपना महाभारत स्वयं लड़े और सद्गुरु को अपनी बुद्धिरथ पर बैठाए। माता की तन मन धन से सेवा करें, माता के आशीर्वाद से सन्तान का उज्ज्वल भविष्य बनता है। माता प्रथम देवता है, इनकी सेवा से देवतागण प्रशन्न होते है, धन धान्य की वर्षा करते है।
अर्जुन के साथ कृष्ण भगवान थे, लेकिन अपना युद्ध अर्जुन को स्वयं लड़ना पड़ा। भगवान ने मार्गदर्शन किया। इसी तरह यह पारिवारिक युद्ध आपको स्वयं लड़ना पड़ेगा, उपरोक्त साहित्य गुरु सन्देश आपका मार्गदर्शन करेगा।
किसी का नाज़ायज़ धन मत लो, और अपना जायज़ धन किसी को लेने मत दो। भाई हो या रिश्तेदार अपना जायज़ हिस्सा जरूर लो, मोहबन्धन में पड़कर अनीति को चुपचाप मत सहो और अपनी माता के लिए भी आर्थिक व्यवस्था करो।
न्याय हेतु आन्दोलन और युद्ध घर से ही छेड़ने की जरूरत है।कहाँ क्या कदम उठाना है इसके लिये बहुत बडे पैमाने पर विवेक की जरूरत भी पडेगी और उसके लिये गायत्री मंत्र जप/लेखन और युग साहित्य का स्वाध्याय बहुत सहायता करेगा। अतः नित्य जप-तप-स्वाध्याय करते रहें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई, समस्या जहां है समाधान भी वहीं है।
धर्म की स्थापना के लिए अपनो से भी युद्ध करना पड़ता है। माता जी को सम्मान और सेवा दोनों मिले इसके सद्बुद्धि का प्रयोग करके साहस का परिचय दो।
पता करो पैतृक सम्पत्ति और दुकान किसके नाम है? भाई से खुलकर निर्भय होकर बात करो और बोलो माता जी का आधा खर्च तुम दो और आधा मैं दूंगा। यदि प्यार से न माने तो कोर्ट जाने की धमकी दो। फिर भी न माने तो लोक अदालत में मुकद्दमा डाल दो। माता जी से भी निर्भय होकर बात कीजिये, कि मां मैं तुम्हारी सेवा करना चाहता हूँ और मैं अपनी आधी रोटी भी तुम्हारे साथ मिल बांटकर खाना चाहता हूँ। पिता की सम्पत्ति पर आपका उतना ही हक है जितना मेरा और भैया का, कानून भी आपके साथ है। चलिए भैया को एक बार समझाते हैं, नहीं तो कोर्ट की मदद लेते हैं।
उम्र बड़ी है, जीवन मे जीने के लिए धन की आवश्यकता पड़ेगी। यदि आप हमारे साथ रूखी सुखी हम जो खाते है वो खा के रह सकती है तो हम उम्रभर आपकी सेवा में उपस्थित हैं। लेकिन स्वाभिमान यही कहता है कि पति की मृत्यु के बाद पत्नी सम्पत्ति की बराबर अधिकारी है। अतः आपके भरण पोषण और भविष्य की दवा के लिए धन आपके पास होना ही चाहिए। आप उसे जैसा चाहे वैसा उपयोग करे।
कुछ पुस्तक पढ़िये और माता को पढाईये:-
1- *शक्तिवान बनिये*
2- *निराशा को पास न फटकने दें*
3- *उज्ज्वल भविष्य के ज्योति कण*
4- *हम अशक्त नहीं, शशक्त बने*
5- *हारिये न हिम्मत*
इस विपरीत परिस्थिति के शमनार्थ कुछ आध्यात्मिक उपाय में *सवा लाख गायत्री का जप अनुष्ठान* कीजिये स्वतः मार्ग मिल जाएगा।
कर्म करिये फल की चिंता मत कीजिये, स्वयं ज्यादा कमाने हेतु योग्यता पात्रता बढ़ाइए। पैतृक सम्पत्ति में तीन हिस्से लगाइए, दो भाई और एक माता का....जो सेवा करेगा वो ही माता के हिस्से का उपयोग कर सकेगा। अर्जुन की तरह अपना धर्म युद्ध स्वयं लड़िये, भाई साहब को उनके माता के प्रति कर्तव्य को साम-दाम-दण्ड-भेद जिससे समझे उस विधि से समझाइए। माता जी को भी कहिए अपनी लड़ाई स्वयं लड़े और वृद्धावस्था के निर्वहन हेतु उचित व्यवस्था की लड़ाई अपने बड़े पुत्र से लड़े। धर्म अपने परिवार क्षेत्र को स्थापित करें, अपना महाभारत स्वयं लड़े और सद्गुरु को अपनी बुद्धिरथ पर बैठाए। माता की तन मन धन से सेवा करें, माता के आशीर्वाद से सन्तान का उज्ज्वल भविष्य बनता है। माता प्रथम देवता है, इनकी सेवा से देवतागण प्रशन्न होते है, धन धान्य की वर्षा करते है।
अर्जुन के साथ कृष्ण भगवान थे, लेकिन अपना युद्ध अर्जुन को स्वयं लड़ना पड़ा। भगवान ने मार्गदर्शन किया। इसी तरह यह पारिवारिक युद्ध आपको स्वयं लड़ना पड़ेगा, उपरोक्त साहित्य गुरु सन्देश आपका मार्गदर्शन करेगा।
किसी का नाज़ायज़ धन मत लो, और अपना जायज़ धन किसी को लेने मत दो। भाई हो या रिश्तेदार अपना जायज़ हिस्सा जरूर लो, मोहबन्धन में पड़कर अनीति को चुपचाप मत सहो और अपनी माता के लिए भी आर्थिक व्यवस्था करो।
न्याय हेतु आन्दोलन और युद्ध घर से ही छेड़ने की जरूरत है।कहाँ क्या कदम उठाना है इसके लिये बहुत बडे पैमाने पर विवेक की जरूरत भी पडेगी और उसके लिये गायत्री मंत्र जप/लेखन और युग साहित्य का स्वाध्याय बहुत सहायता करेगा। अतः नित्य जप-तप-स्वाध्याय करते रहें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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