Friday, 7 September 2018

हमारे प्रचलित व्रत कथा मे समस्त कहानी व्रत की बिन सर पैर की होती प्रतीत होती है, कुछ बिंदुओं पर विचार करें:-

हमारे प्रचलित व्रत कथा मे समस्त कहानी व्रत की बिन सर पैर की होती प्रतीत होती है, कुछ बिंदुओं पर विचार करें:-

सब कुछ एक ऐसे साहूकार पर आधारित होता है जिसके 7 पुत्र जरूर होते हैं। पुत्र वाला ही साहूकार के साथ सबकुछ घटता है, किसी अन्य जाति का तब शायद उद्भव न हुआ हो?

सभी कहानियों में पहले पुत्र या पति को मारा जाता है टीवी सीरियल ड्रामा की तरह और फ़िर  उन्हें उस दिन व्रत और पूजन करने के प्रभाव से क्लाइमेक्स में पति और पुत्र को जीवित किया जाता है।

सभी व्रत से पहले सारे संकट पति और पुत्र पर घटते है और व्रत के बाद सारे पुण्य पति और पुत्र को ही जीवनदान रूप में मिलते हैं।

👉🏼ध्यान दें...
कभी भी कोई साहूकार की कहानी में वो बेटियों का बाप नहीं होता। बेटियों की कभी मृत्यु और जन्म व्रत में नहीं होता। कभी गाय के साथ बछिया नहीं पूजी जाती । अर्थात कन्याएं अमृत पीकर हिन्दू धर्म मे आती है और उन पर विपत्ति नहीं घटती, उनका शरीर पत्थर का होता है उन्हें कष्ट नहीं होता । इसलिए उनके उद्धार हेतु व्रत पूजन की जरूरत नहीं।

चलो मनुष्य की स्त्रियों का अपमान कर लो, लेकिन पशुधन के पूजन में भी जेंट्स/पुरुषत्व वाले शिशु की माँ - पुत्र का पूजन??

सोचो सोचो सोचो😨😨😨😔😞😣😭😷😷 लड़कियों का वजूद कहाँ है???

हद है...😢😢😢😢😢

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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