प्रश्न - *यदि किसी परिचित के घर किसी की मृत्यु हो जाये तो क्या उसके घर बुधवार को नहीं जाना चाहिए? गुरुदेव इस सम्बंध में कही किसी पुस्तक में लिखा है? कृपया बताएं।*
उत्तर - मृत्यु एक अटल सत्य है, जो जन्मा है वो उसकी मृत्यु निश्चित है। अब साधारण इंसान जिसे जन्म और मृत्यु कहता है उसे सन्त और योगीजन आत्मा का नया शरीर रूपी वस्त्र धारण और पुराने शरीर रूपी वस्त्र का त्याग कहते हैं।
आत्मा अजर अमर है, अनन्त यात्री है, अपने अपने कर्मो के फलानुसार शरीर धारण करती है और उनका समय आने पर उसी जर्जर शरीर का त्याग कर देती है।
जो जिंदा रहते जैसा अच्छा या बुरा प्रवृत्ति का होता है, उसके पास रहने की जैसी अच्छी या बुरी अनुभूति होती है, उसके मरने पर भी उसका औरा 13 दिन तक रहता है। अतः लोगों को अच्छा या बुरा उसी अनुसार महसूस होता है।
परम् पूज्य गुरुदेव की लिखी पुस्तक -
1- *मरणोत्तर जीवन और उसकी सच्चाई* ,
2- *मरने के बाद हमारा क्या होता है*
3- *भूत कौन है कैसे होते है?*
4- *मृतक भोज की क्या आवश्यकता*
5- *कर्मकांड भाष्कर - अंत्येष्टि सँस्कार*
इनमें से किसी भी पुस्तक में ऐसा कोई जिक्र नहीं किया है कि मृतक के घर सांत्वना देने अमुक दिन या बुधवार नहीं जाना चाहिए। गुरुदेव ने कर्मकांड भाष्कर में मन्त्रों के साथ चितारोहण को विधवत यज्ञ और मन्त्रों के साथ करवाने का सँस्कार विधि दिया हुआ है। मन्त्रों का उच्चारण के साथ चिता रूपी यज्ञ में मृत शरीर की आहुति ही चितारोहण कहलाता है।
लोकमान्यता अनुसार कुछ भारत के राज्य *मंगलवार और रविवार* को *खर वार* मानते है और कुछ राज्यो में *बुध वार* को *खर वार* मानते हैं। बढ़े बुजुर्ग रूढ़िवादी मान्यतानुसार मृतक के घर सांत्वना देने इन दिनों में जाने को मना करते हैं।
*बुढ़िया पुराण और रूढ़िवादी परम्परा किसी भी धर्म ग्रन्थ पर आधारित नहीं होती, अतः इन परम्पराओं के उद्गम और इसके बनाने के पीछे के कारण को बता पाना किसी के लिए सम्भव नहीं है*। परम्पराए और मान्यताएं लाखो प्रकार की मृतक से सम्बन्धित भारत के विभिन्न राज्यों में मिलती है।
*भारत मे भूत पलीत सम्बन्धी 90% घटनाएं कपोल कल्पित होती है, निराधार और वहम पर आधारित होती है।*
गांवों में 90% बीमारी के पीछे नज़र, टोटका, भूत और देवी देवता के नाराज़ होने इत्यादि को माना जाता है, जबकि शहरों में उन्ही बीमारियों का सफलतापूर्वक इलाज किया जाता है। अतः किसी भी मृतक के घर सान्त्वना देने सुविधानुसार किसी भी दिन जा सकते हैं।
सूतक बच्चे के जन्म का हो या किसी मृतक का, वो अशौच और अशुद्धिकारक होता है। अतः अशौच/सूतक के वक्त बच्चे जन्म की बधाई देने या मृत्यु के वक्त किसी के सांत्वना देने जाएं तो यज्ञ भष्म माथे पर लगा कर जाएं, जिससे वहां की नकारात्मकता और विषाद/अवसाद आप पर प्रभाव न डाले। हो सके तो वहां कुछ खाये पिये नहीं। यदि मजबूरन खाना पड़े तो मंन्त्र जपकर ही खाये। वहां से आकर सर से स्त्री हो या पुरुष या बच्चा नहायेगा। अगर सम्भव हो तो थोड़े से नमक मिले पानी से नहा लें।
जब तक कोई प्रगाढ़ मोहबन्धन या कोई भयंकर प्रतिशोध की भावना न हो , कोई भी आत्मा किसी दूसरे जीवित व्यक्ति के शरीर में न तो प्रवेश कर सकती है और न ही उसको परेशान कर सकती।
सभी प्रेतात्माएँ शिव आज्ञा से नियंत्रित होती है और नियमो का उल्लंघन नहीं कर सकती। अतः व्यर्थ के वहम पालने की जरूरत नहीं है। आराम से किसी भी दिन जाकर सांत्वना देकर आये।
जाने वाला तो वार का विचार न करे तो अच्छा है, लेकिन जिसके घर जा रहे हैं वह यदि विचार करे या घर वाले मना करें और या जिसके घर आप जा रहे हो उसे किसी दिन आपका आना अच्छा न लगे तो जाना उचित नहीं है। इस सम्बंध में क्षेत्र विशेष की मान्यता का पालन करना ही उचित है। गघर वालो की सुन लेने में कोई आपत्ति भी नहीं है, इससे बेकार की बहस से बचाव होता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - मृत्यु एक अटल सत्य है, जो जन्मा है वो उसकी मृत्यु निश्चित है। अब साधारण इंसान जिसे जन्म और मृत्यु कहता है उसे सन्त और योगीजन आत्मा का नया शरीर रूपी वस्त्र धारण और पुराने शरीर रूपी वस्त्र का त्याग कहते हैं।
आत्मा अजर अमर है, अनन्त यात्री है, अपने अपने कर्मो के फलानुसार शरीर धारण करती है और उनका समय आने पर उसी जर्जर शरीर का त्याग कर देती है।
जो जिंदा रहते जैसा अच्छा या बुरा प्रवृत्ति का होता है, उसके पास रहने की जैसी अच्छी या बुरी अनुभूति होती है, उसके मरने पर भी उसका औरा 13 दिन तक रहता है। अतः लोगों को अच्छा या बुरा उसी अनुसार महसूस होता है।
परम् पूज्य गुरुदेव की लिखी पुस्तक -
1- *मरणोत्तर जीवन और उसकी सच्चाई* ,
2- *मरने के बाद हमारा क्या होता है*
3- *भूत कौन है कैसे होते है?*
4- *मृतक भोज की क्या आवश्यकता*
5- *कर्मकांड भाष्कर - अंत्येष्टि सँस्कार*
इनमें से किसी भी पुस्तक में ऐसा कोई जिक्र नहीं किया है कि मृतक के घर सांत्वना देने अमुक दिन या बुधवार नहीं जाना चाहिए। गुरुदेव ने कर्मकांड भाष्कर में मन्त्रों के साथ चितारोहण को विधवत यज्ञ और मन्त्रों के साथ करवाने का सँस्कार विधि दिया हुआ है। मन्त्रों का उच्चारण के साथ चिता रूपी यज्ञ में मृत शरीर की आहुति ही चितारोहण कहलाता है।
लोकमान्यता अनुसार कुछ भारत के राज्य *मंगलवार और रविवार* को *खर वार* मानते है और कुछ राज्यो में *बुध वार* को *खर वार* मानते हैं। बढ़े बुजुर्ग रूढ़िवादी मान्यतानुसार मृतक के घर सांत्वना देने इन दिनों में जाने को मना करते हैं।
*बुढ़िया पुराण और रूढ़िवादी परम्परा किसी भी धर्म ग्रन्थ पर आधारित नहीं होती, अतः इन परम्पराओं के उद्गम और इसके बनाने के पीछे के कारण को बता पाना किसी के लिए सम्भव नहीं है*। परम्पराए और मान्यताएं लाखो प्रकार की मृतक से सम्बन्धित भारत के विभिन्न राज्यों में मिलती है।
*भारत मे भूत पलीत सम्बन्धी 90% घटनाएं कपोल कल्पित होती है, निराधार और वहम पर आधारित होती है।*
गांवों में 90% बीमारी के पीछे नज़र, टोटका, भूत और देवी देवता के नाराज़ होने इत्यादि को माना जाता है, जबकि शहरों में उन्ही बीमारियों का सफलतापूर्वक इलाज किया जाता है। अतः किसी भी मृतक के घर सान्त्वना देने सुविधानुसार किसी भी दिन जा सकते हैं।
सूतक बच्चे के जन्म का हो या किसी मृतक का, वो अशौच और अशुद्धिकारक होता है। अतः अशौच/सूतक के वक्त बच्चे जन्म की बधाई देने या मृत्यु के वक्त किसी के सांत्वना देने जाएं तो यज्ञ भष्म माथे पर लगा कर जाएं, जिससे वहां की नकारात्मकता और विषाद/अवसाद आप पर प्रभाव न डाले। हो सके तो वहां कुछ खाये पिये नहीं। यदि मजबूरन खाना पड़े तो मंन्त्र जपकर ही खाये। वहां से आकर सर से स्त्री हो या पुरुष या बच्चा नहायेगा। अगर सम्भव हो तो थोड़े से नमक मिले पानी से नहा लें।
जब तक कोई प्रगाढ़ मोहबन्धन या कोई भयंकर प्रतिशोध की भावना न हो , कोई भी आत्मा किसी दूसरे जीवित व्यक्ति के शरीर में न तो प्रवेश कर सकती है और न ही उसको परेशान कर सकती।
सभी प्रेतात्माएँ शिव आज्ञा से नियंत्रित होती है और नियमो का उल्लंघन नहीं कर सकती। अतः व्यर्थ के वहम पालने की जरूरत नहीं है। आराम से किसी भी दिन जाकर सांत्वना देकर आये।
जाने वाला तो वार का विचार न करे तो अच्छा है, लेकिन जिसके घर जा रहे हैं वह यदि विचार करे या घर वाले मना करें और या जिसके घर आप जा रहे हो उसे किसी दिन आपका आना अच्छा न लगे तो जाना उचित नहीं है। इस सम्बंध में क्षेत्र विशेष की मान्यता का पालन करना ही उचित है। गघर वालो की सुन लेने में कोई आपत्ति भी नहीं है, इससे बेकार की बहस से बचाव होता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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