*जीवन सूत्र- कुछ बातें गौर कीजिए*
1- कुछ भी खाओ, नीम की कड़वी पत्ती या मीठी मिठाई। दोनों का स्वाद एक घण्टे के बाद मुंह मे नहीं रहता। *फ़िर इतना खाने के पीछे पागलपन की क्या आवश्यकता? शरीर रोगी बनाने की क्या आवश्यकता?*
2- कितना भी बढ़िया जोक/चुटकुला हो, उस पर आप बार बार नहीं हंस सकते। *फिर एक ही दुःख पर बार बार रोने की क्या आवश्यकता है?*
3- कितना भी सस्ता कपड़ा हो या बहुत महंगा कपड़ा, तन दोनों से ढकेगा और फटेंगे दोनों एक न एक दिन। *फिर इतने फैशन के दीवाने बनने की क्या आवश्यकता है?*
4- जो जन्मा है वो मरेगा एक न एक दिन और जो मरा है वो पुनः जन्मेगा। आत्मा रूपी अनन्त यात्री शरीर बदलेगा वस्त्रों की तरह.. *फ़िर किसी अपने की मृत्यु पर उम्रभर शोक करने की क्या आवश्यकता है? जबकि मरना तो हमें भी है एक न एक दिन..*
5- जो वस्तु संसार मे बनी है वो एक न एक दिन नष्ट होगी। जो नष्ट हुआ है वैसा कुछ न कुछ बनेगा। *फिर वस्तुओं के प्रति इतना अत्यधिक लोभ क्यों?*
6- जो अन्न-फल आपने खाये वो पचकर रक्त और ऊर्जा में बदल गया, और आपके शरीर का अंग बन जायेगा । बाकी मल मूत्र से निकल गया। फिर यह शरीर भी मृत्यु के पश्चात एक दिन मिट्टी हो जाएगा या राख बन जायेगा। इस संसार मे कुछ नष्ट नहीं होता और वो केवल रूप बदलता है। *फ़िर परिवर्तन को स्वीकार करने में अड़चन क्यों?*
7- जो देख रहे वो वैसा नहीं है जैसा आप देख रहे हो। असल बात तो यह है योगी और सन्त को छोड़कर दुनियाँ जैसी है वैसी कोई इंसान देख ही नहीं सकता। यह संसार एक लाखों दर्पणों का घर है, यदि खुश होकर रहोगे तो सर्वत्र ख़ुशी दिखेगी, सभी दर्पणों में हंसते चेहरे दिखेंगे। यदि दुःखी होकर देखोगे तो सर्वत्र दुःख दिखाई देगा। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। *फ़िर दुनियां को दोष देने की जगह स्वयं के नजरिये और कार्यो को ठीक करने में क्यों नहीं जुटते?*
सुख और दुःख दोनों ही पानी के बुलबुले हैं, स्थायी नहीं है। संसार नश्वर है, अपना नजरिया बदलिए नज़ारे बदल जाएंगे। दुःख संसार मे नहीं मन के उलझे विचारों में है, मनःस्थिति ठीक कीजिये और जहां जिस परिस्थिति में भी हैं आनंद लीजिये।
युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव द्वारा रचित साहित्य पढ़िये:-
1- मैं क्या हूँ?
2- मनःस्थिति बदलिए परिस्थिति बदलिए
3- परिवर्तन के महान क्षण
4- दृष्टिकोण ठीक रखिये
5- सफल जीवन की दिशाधारा
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
http://literature.awgp.org
1- कुछ भी खाओ, नीम की कड़वी पत्ती या मीठी मिठाई। दोनों का स्वाद एक घण्टे के बाद मुंह मे नहीं रहता। *फ़िर इतना खाने के पीछे पागलपन की क्या आवश्यकता? शरीर रोगी बनाने की क्या आवश्यकता?*
2- कितना भी बढ़िया जोक/चुटकुला हो, उस पर आप बार बार नहीं हंस सकते। *फिर एक ही दुःख पर बार बार रोने की क्या आवश्यकता है?*
3- कितना भी सस्ता कपड़ा हो या बहुत महंगा कपड़ा, तन दोनों से ढकेगा और फटेंगे दोनों एक न एक दिन। *फिर इतने फैशन के दीवाने बनने की क्या आवश्यकता है?*
4- जो जन्मा है वो मरेगा एक न एक दिन और जो मरा है वो पुनः जन्मेगा। आत्मा रूपी अनन्त यात्री शरीर बदलेगा वस्त्रों की तरह.. *फ़िर किसी अपने की मृत्यु पर उम्रभर शोक करने की क्या आवश्यकता है? जबकि मरना तो हमें भी है एक न एक दिन..*
5- जो वस्तु संसार मे बनी है वो एक न एक दिन नष्ट होगी। जो नष्ट हुआ है वैसा कुछ न कुछ बनेगा। *फिर वस्तुओं के प्रति इतना अत्यधिक लोभ क्यों?*
6- जो अन्न-फल आपने खाये वो पचकर रक्त और ऊर्जा में बदल गया, और आपके शरीर का अंग बन जायेगा । बाकी मल मूत्र से निकल गया। फिर यह शरीर भी मृत्यु के पश्चात एक दिन मिट्टी हो जाएगा या राख बन जायेगा। इस संसार मे कुछ नष्ट नहीं होता और वो केवल रूप बदलता है। *फ़िर परिवर्तन को स्वीकार करने में अड़चन क्यों?*
7- जो देख रहे वो वैसा नहीं है जैसा आप देख रहे हो। असल बात तो यह है योगी और सन्त को छोड़कर दुनियाँ जैसी है वैसी कोई इंसान देख ही नहीं सकता। यह संसार एक लाखों दर्पणों का घर है, यदि खुश होकर रहोगे तो सर्वत्र ख़ुशी दिखेगी, सभी दर्पणों में हंसते चेहरे दिखेंगे। यदि दुःखी होकर देखोगे तो सर्वत्र दुःख दिखाई देगा। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। *फ़िर दुनियां को दोष देने की जगह स्वयं के नजरिये और कार्यो को ठीक करने में क्यों नहीं जुटते?*
सुख और दुःख दोनों ही पानी के बुलबुले हैं, स्थायी नहीं है। संसार नश्वर है, अपना नजरिया बदलिए नज़ारे बदल जाएंगे। दुःख संसार मे नहीं मन के उलझे विचारों में है, मनःस्थिति ठीक कीजिये और जहां जिस परिस्थिति में भी हैं आनंद लीजिये।
युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव द्वारा रचित साहित्य पढ़िये:-
1- मैं क्या हूँ?
2- मनःस्थिति बदलिए परिस्थिति बदलिए
3- परिवर्तन के महान क्षण
4- दृष्टिकोण ठीक रखिये
5- सफल जीवन की दिशाधारा
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
http://literature.awgp.org
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