*Sorry- क्षमा करें शब्द के लाभ*
घर मे श्रीमती गुस्से में गर्म हो घर-गृहस्थी के हितार्थ बिना किसी गलती को किये हुए, चाहे गलती श्रीमती की ही क्यों न हो, श्रीमान *सॉरी* बोल देते हैं। घर मे श्रीमान गुस्से में गर्म हो घर-गृहस्थी के हितार्थ बिना किसी गलती को किये हुए, चाहे गलती श्रीमान की ही क्यों न हो, श्रीमती जी *सॉरी* बोल देते हैं। मामला शांत हो जाता है। इसी तरह बच्चे और माता पिता एक दूसरे के साथ करते है, क्योंकि उन्हें उनसे प्यार होता है और साथ रहना लक्ष्य होता है। इसलिए *गलतियों* को इग्नोर किया जाता है, क्योंकि परिवार टूटने का भय रहता है। आत्मीयता विस्तार की यहां प्रमुखता होती है, अतः स्वयं एडजस्ट करते हैं।
लेकिन जब मिशन के संगठन में ऐसा होता है, तो कोई बेवजह एक दूसरे को *सॉरी* नहीं बोलता। किसी की गलती *इग्नोर* नहीं करता। तब *न्याय दण्ड* लेकर खड़े हो जाते है, संगठन के टूटने का भय नहीं होता, साथ किसी के रहने न रहने पर फर्क नहीं पड़ता। यहां परिवार की मूल उपरोक्त भावनाओं का अभाव हो जाता है और दोषरोपन कि प्रक्रिया का सिलसिला चलता है। अतः एडजस्ट नहीं करते। दूर की नहीं सोचकर निर्णय लेते।
गायत्री परिवार की जगह इसे मिशन और संस्था का नाम न देने के पीछे युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब और माताजी का कारण केवल एकमात्र यह था कि यहां परिवार के नियम से संगठन चले? अपने अपने व्यवहार और संगठन का आत्मावलोकन कीजिये, और विचारिये की क्या हम परिवार सी उदारता और सहिष्णुता अपने गायत्री परिवार के संगठन में अपना रहे है? या कानून व्यवस्था और कॉरपोरेट कल्चर गायत्री परिवार के संगठन में अपना रहे है? स्वयं विचार कीजिये कि कभी बिना किसी गलती के स्वयं सॉरी बोला है? और गलती करने वाले को माफ़ किया है?
यह जवाब अपनी अंतरात्मा में बैठे ऋषियुग्म गुरुदेब और माताजी को ईमानदारी से दीजिये। हम सभी के क्षेत्रों में परिवार का रूल चल रहा है या कॉरपोरेट संस्था का रूल?
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
घर मे श्रीमती गुस्से में गर्म हो घर-गृहस्थी के हितार्थ बिना किसी गलती को किये हुए, चाहे गलती श्रीमती की ही क्यों न हो, श्रीमान *सॉरी* बोल देते हैं। घर मे श्रीमान गुस्से में गर्म हो घर-गृहस्थी के हितार्थ बिना किसी गलती को किये हुए, चाहे गलती श्रीमान की ही क्यों न हो, श्रीमती जी *सॉरी* बोल देते हैं। मामला शांत हो जाता है। इसी तरह बच्चे और माता पिता एक दूसरे के साथ करते है, क्योंकि उन्हें उनसे प्यार होता है और साथ रहना लक्ष्य होता है। इसलिए *गलतियों* को इग्नोर किया जाता है, क्योंकि परिवार टूटने का भय रहता है। आत्मीयता विस्तार की यहां प्रमुखता होती है, अतः स्वयं एडजस्ट करते हैं।
लेकिन जब मिशन के संगठन में ऐसा होता है, तो कोई बेवजह एक दूसरे को *सॉरी* नहीं बोलता। किसी की गलती *इग्नोर* नहीं करता। तब *न्याय दण्ड* लेकर खड़े हो जाते है, संगठन के टूटने का भय नहीं होता, साथ किसी के रहने न रहने पर फर्क नहीं पड़ता। यहां परिवार की मूल उपरोक्त भावनाओं का अभाव हो जाता है और दोषरोपन कि प्रक्रिया का सिलसिला चलता है। अतः एडजस्ट नहीं करते। दूर की नहीं सोचकर निर्णय लेते।
गायत्री परिवार की जगह इसे मिशन और संस्था का नाम न देने के पीछे युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब और माताजी का कारण केवल एकमात्र यह था कि यहां परिवार के नियम से संगठन चले? अपने अपने व्यवहार और संगठन का आत्मावलोकन कीजिये, और विचारिये की क्या हम परिवार सी उदारता और सहिष्णुता अपने गायत्री परिवार के संगठन में अपना रहे है? या कानून व्यवस्था और कॉरपोरेट कल्चर गायत्री परिवार के संगठन में अपना रहे है? स्वयं विचार कीजिये कि कभी बिना किसी गलती के स्वयं सॉरी बोला है? और गलती करने वाले को माफ़ किया है?
यह जवाब अपनी अंतरात्मा में बैठे ऋषियुग्म गुरुदेब और माताजी को ईमानदारी से दीजिये। हम सभी के क्षेत्रों में परिवार का रूल चल रहा है या कॉरपोरेट संस्था का रूल?
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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