प्रश्न - *दीदी आज मैं अपनी एक मित्र से मिली जो कि isckon से जुड़ी हुई थी ,,,उन्होंने मुझे उनका कांसेप्ट बताया ,,,ये तो एक विदेशी संस्था है ,,,जो कि अपने आप को परफेक्ट बताती है,,,क्या कृष्णा की पूजा के लिए हरे कृष्णा मंत्र ही काफी है,,,*
उत्तर - आपकी मित्र ने श्रीमद्भागवत गीता स्वयं स्वाध्याय नहीं किया है, न ही उन्होंने भगवान कृष्ण के जीवन चरित्र को समझा है। यज्ञ के ज्ञान विज्ञान की समझ भी उनमें नहीं है। इसलिए वो सुनी सुनाई बातों के आधार पर आधारहीन तर्क प्रस्तुत कर रही हैं।
गुरुमंत्र में प्राचीन ऋषिपरम्परानुसार केवल गायत्री मंत्र ही दिया जाता था, जितनी भी उच्च स्तरीय साधनाएं है वो बिना गायत्री मंत्र के सम्भव ही नहीं है। गायत्री और यज्ञ हमारे धर्म का आधार है। मनुष्य यज्ञ के बिना कोई धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण ही नहीं कर सकता।
श्रीराम अवतार में उनके गुरु वशिष्ठ ने और श्रीकृष्ण अवतार में उनके गुरु संदीपन ऋषि ने उन्हें गुरुमंत्र में गायत्री मंत्र ही दिया था। यज्ञ दोनों ने ही नित्य अपने अवतारों में किया और सबको करने के लिए प्रेरित किया।
श्रीमद्भागवत गीता में स्वयं को गायत्री छंद कहा -
मूल श्लोकः
*बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।*
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः।।10.35।।
।।10.35।।तथा सामवेदके प्रकरणोंमें जो बृहत्साम नामक प्रधान प्रकरण है वह मैं हूँ। *छन्दोंमें मैं गायत्री छन्द हूँ अर्थात् जो गायत्री आदि छन्दोबद्ध ऋचाएँ हैं उनमें गायत्री नामक ऋचा मैं हूँ।* महीनोंमें मार्गशीर्ष नामक महीना और ऋतुओंमें बसन्त ऋतु मैं हूँ।
भक्तिभाव विनिर्मित करने के लिए *हरे कृष्णा* नाम मंन्त्र काफी है।ध्यान और भाव समाधि भी इससे प्राप्त की जा सकती है। लेकिन कृष्ण भगवान की उच्चस्तरीय साधना, यज्ञ अनुष्ठान, आत्म उन्नति की विभिन्न साधनाये इत्यादि के लिए गायत्री मंत्र आवश्यक है।
गायत्री मंत्र द्वारा किसी भी देवता की उच्चस्तरीय साधनाएं और स्वयं की बुद्धि में उनकी स्थापना की जाती है। यग्योपवीत गायत्री की प्रतिमा का ही प्रतीक है और ध्वजा का प्रतीक शिखा है।
भगवान कृष्ण का जब मन्दिर बनता है, तो मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा बिना गायत्री मंत्र के नहीं हो सकती। किसी भी मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा के मंन्त्र पढ़ लीजिये गायत्री मंत्र अवश्य होगा। कोई भी देवता का यज्ञ अनुष्ठान हो वहां गायत्री मंत्र अवश्य होगा।किसी भी व्यक्ति के यग्योपवीत बिना गायत्री मंत्र के सम्भव नहीं। यग्योपवीत के बाद नित्य गायत्री मंत्र जप अनिवार्य है।
यदि आपकी मित्र ज़िद्दी है तो उसे उसके हाल पर छोड़ दीजिए, यदि वह ओपन माइंडेड है तो उसे निम्न पांच पुस्तकें पढ़ने के लिए दीजिये:-
1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
2- गायत्री महाविज्ञान
3- मैं क्या हूँ?
4- ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है?
5- व्यक्तित्व विकास की उच्चस्तरीय साधनाएं
कोई व्यक्ति यदि अपनी जिद पर अड़ जाए तो उसे कोई नहीं समझा सकता। वीडियो और प्रवचन सुनकर बोलने वाले की बलिहारी है, क्योंकि उसने जिसे सुना वो उसकी उधार बुद्धि से चल रही है। स्वयं के स्वाध्याय से नहीं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आपकी मित्र ने श्रीमद्भागवत गीता स्वयं स्वाध्याय नहीं किया है, न ही उन्होंने भगवान कृष्ण के जीवन चरित्र को समझा है। यज्ञ के ज्ञान विज्ञान की समझ भी उनमें नहीं है। इसलिए वो सुनी सुनाई बातों के आधार पर आधारहीन तर्क प्रस्तुत कर रही हैं।
गुरुमंत्र में प्राचीन ऋषिपरम्परानुसार केवल गायत्री मंत्र ही दिया जाता था, जितनी भी उच्च स्तरीय साधनाएं है वो बिना गायत्री मंत्र के सम्भव ही नहीं है। गायत्री और यज्ञ हमारे धर्म का आधार है। मनुष्य यज्ञ के बिना कोई धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण ही नहीं कर सकता।
श्रीराम अवतार में उनके गुरु वशिष्ठ ने और श्रीकृष्ण अवतार में उनके गुरु संदीपन ऋषि ने उन्हें गुरुमंत्र में गायत्री मंत्र ही दिया था। यज्ञ दोनों ने ही नित्य अपने अवतारों में किया और सबको करने के लिए प्रेरित किया।
श्रीमद्भागवत गीता में स्वयं को गायत्री छंद कहा -
मूल श्लोकः
*बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।*
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः।।10.35।।
।।10.35।।तथा सामवेदके प्रकरणोंमें जो बृहत्साम नामक प्रधान प्रकरण है वह मैं हूँ। *छन्दोंमें मैं गायत्री छन्द हूँ अर्थात् जो गायत्री आदि छन्दोबद्ध ऋचाएँ हैं उनमें गायत्री नामक ऋचा मैं हूँ।* महीनोंमें मार्गशीर्ष नामक महीना और ऋतुओंमें बसन्त ऋतु मैं हूँ।
भक्तिभाव विनिर्मित करने के लिए *हरे कृष्णा* नाम मंन्त्र काफी है।ध्यान और भाव समाधि भी इससे प्राप्त की जा सकती है। लेकिन कृष्ण भगवान की उच्चस्तरीय साधना, यज्ञ अनुष्ठान, आत्म उन्नति की विभिन्न साधनाये इत्यादि के लिए गायत्री मंत्र आवश्यक है।
गायत्री मंत्र द्वारा किसी भी देवता की उच्चस्तरीय साधनाएं और स्वयं की बुद्धि में उनकी स्थापना की जाती है। यग्योपवीत गायत्री की प्रतिमा का ही प्रतीक है और ध्वजा का प्रतीक शिखा है।
भगवान कृष्ण का जब मन्दिर बनता है, तो मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा बिना गायत्री मंत्र के नहीं हो सकती। किसी भी मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा के मंन्त्र पढ़ लीजिये गायत्री मंत्र अवश्य होगा। कोई भी देवता का यज्ञ अनुष्ठान हो वहां गायत्री मंत्र अवश्य होगा।किसी भी व्यक्ति के यग्योपवीत बिना गायत्री मंत्र के सम्भव नहीं। यग्योपवीत के बाद नित्य गायत्री मंत्र जप अनिवार्य है।
यदि आपकी मित्र ज़िद्दी है तो उसे उसके हाल पर छोड़ दीजिए, यदि वह ओपन माइंडेड है तो उसे निम्न पांच पुस्तकें पढ़ने के लिए दीजिये:-
1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
2- गायत्री महाविज्ञान
3- मैं क्या हूँ?
4- ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है?
5- व्यक्तित्व विकास की उच्चस्तरीय साधनाएं
कोई व्यक्ति यदि अपनी जिद पर अड़ जाए तो उसे कोई नहीं समझा सकता। वीडियो और प्रवचन सुनकर बोलने वाले की बलिहारी है, क्योंकि उसने जिसे सुना वो उसकी उधार बुद्धि से चल रही है। स्वयं के स्वाध्याय से नहीं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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