Thursday, 4 October 2018

*युगसाहित्य से क्रांति - विचारपरिवर्तन से नशामुक्ति*

*युगसाहित्य से क्रांति - विचारपरिवर्तन से नशामुक्ति*

प्रज्ञा शुक्ला दी, जबसे गायत्री परिवार से जुड़ी है, उनका अन्य अनेक मिशन गतिविधियों में भागीदारी रहती है, लेकिन जो वो सबसे प्रभावशाली कार्य करती है वो है अपने पर्स में युगसाहित्य और सदवाक्य के स्टिकर रखना और उन्हें बांटते हुए पब्लिक वाहन से यात्रा करना है।

वर्ष 2015 में ट्रेन से लौटते वक्त उन्होंने ने अखण्डज्योति पत्रिका एक स्त्री को दी और साथ मे मिशन के छोटे से परिचय के साथ अपना फोन नम्बर शेयर किया, उस स्त्री ने तो पत्रिका नहीं पढ़ी लेकिन *उसके दस वर्षीय बेटे ने पत्रिका पढ़ी। जिसमे एक आर्टिकल नशे में था। जिसमे लिखा था नशा जो करता है वो अल्पायु होता है, तिल तिल करके मरता है। पूरा लेख बच्चे ने पढ़ा और अपने घर गया।*

*पिता अक्सर बेटे से पास की दुकान से सिगरेट मंगवाया करता था। बेटा पिता के गले लगकर रोते हुए बोला, पापा मैं आपको तिल तिल करते हुए धीमी मौत मरते नहीं देख सकता। मैं आपको सिगरेट रूपी जहर खरीदकर नहीं दूंगा। पापा आप हमें जल्दी छोड़कर क्यों जाना चाहते हैं। मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ। बेटे के फ़ूट फ़ूट कर रोने पर पिता आश्चर्यचकित हुआ। पूंछने पर बच्चे के बताने पर उसने भी वो आर्टिकल पढ़ा। नशा न करने का संकल्प लिया।*

इस घटना के दो वर्ष बाद प्रज्ञा शुक्ला दी को उस स्त्री का फोन आया, और धन्यवाद ज्ञापन किया। शान्तिकुंज जाने हेतु मार्गदशन मांगा साथ ही अखण्डज्योति पत्रिका की आजीवन सदस्यता ली।

*युगसाहित्य वो क्रांतिबीज है जो यदि सही हृदय तक पहुंच गया तो अंकुरित होते ही परिवर्तन कर देता हैं। एक साहित्य ने एक पूरे परिवार को नशामुक्त कर दिया।आज वो परिवार गुरुदीक्षा लेकर नशामुक्ति अभियान में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रहा है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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