Thursday, 4 October 2018

कोई भी मंन्त्र बिना ॐ के नहीं होता।

कोई भी मंन्त्र बिना ॐ के नहीं होता।

ॐ ब्रह्माण्ड की शक्ति और प्रणव शक्ति है, ॐ निराकार ब्रह्म का प्रतीक है। पूरा ब्रह्माण्ड ॐ का ही कम्पन है।

इस पूर्ण शक्ति(whole power) से विभिन्न निश्चित शक्तियो को प्राप्त(extract) किया जाता है।

गायत्री के पूर्व में जो तीन व्याहृतियाँ हैं, वे भी सहेतुक हैं।
👉🏼 *भू*- पृथ्वीलोक, ऋग्वेद, अग्नि, पार्थिव जगत् और जाग्रत् अवस्था का सूचक है।
👉🏼 *भुव:* - अंतरिक्षलोक, यजुर्वेद, वायु देवता, प्राणात्मक जगत् और स्वप्नावस्था का सूचक है।
👉🏼 *स्व:* द्युलोक, सामवेद, आदित्यदेवता, मनोमय जगत् और सुषुप्ति अवस्था का सूचक है।
इस त्रिक के अन्य अनेक प्रतीक ब्राह्मण, उपनिषद् और पुराणों में कहे गए हैं, किंतु यदि त्रिक के विस्तार में व्याप्त निखिल विश्व को वाक के अक्षरों के संक्षिप्त संकेत में समझना चाहें तो उसके लिए ही यह *ॐ संक्षिप्त संकेत गायत्री के आरंभ में रखा गया है*।

*अ, उ, म इन तीनों मात्राओं से ॐ का स्वरूप बना है*।

👉🏼अ- अग्नि,
👉🏼उ- वायु और
👉🏼म आदित्य का प्रतीक है।

यह विश्व प्रजापति की वाक है। वाक का अनंत विस्तार है किंतु यदि उसका एक संक्षिप्त नमूना लेकर सारे विश्व का स्वरूप बताना चाहें तो अ, उ, म या ॐ कहने से उस त्रिक का परिचय प्राप्त होगा जिसका स्फुट प्रतीक त्रिपदा गायत्री है।

अतः गन्ध चिकित्सा में मंन्त्र आहुति के लिए ॐ के साथ ही मंन्त्र प्रयोग में लेवेँ।

शब्द विज्ञान और आध्यात्मिक चिकित्सा निदान भी मंन्त्र को ॐ से ही शुरू मानता है। वेदों में भी जब किसी छंद को मंन्त्र प्रयोग में लिया जाता है आहुति के लिए तो ॐ जरूर बोला जाता है।

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