*क्या आप निराश हो? यदि हाँ तो क्यों?*
रात और दिन की तरह मनुष्य के जीवन में आशा, निराशा के क्षण आते जाते रहते हैं। आशा जहाँ जीवन में संजीवनी शक्ति का संचार करती है, वहाँ निराशा मनुष्य को मृत्यु की ओर ले जाती है, क्योंकि निराश व्यक्ति जीवन से उदासीन और विरक्त होने लगता है। उसे अपने चारों ओर अंधकार फैला हुआ दीखता है। एक दिन निराशा आत्महत्या तक के लिए मजबूर कर देती है मनुष्य को, जब कि मृत्यु के मुँह में जाता हुआ व्यक्ति भी आशावादी विचारों के कारण जी उठता है। श्रेयार्थी को निराशा की बीमारी से बचना आवश्यक है अन्यथा यह तन और मन दोनों को ही नष्ट कर देती है।
निराशा के कुछ कारण
1- स्वास्थ्य खराब है
2- नौकरी नहीं मिल रही
3- विवाह नहीं हो रहा
4- सन्तान नहीं है
5- मनचाही जॉब नहीं मिल रही
6- जॉब छूट गयी
7- जीवनसाथी से तलाक हो गया
8- नौकरी से रिजाइन दे दिया
9- रिश्तों में दरार
10- अनावश्यक ऑफिस कार्य का दबाव/प्रेशर
11- बच्चे का एडमिशन अच्छे स्कूल में नहीं हुआ
12- जैसा आप चाहते है वैसा बच्चा नहीं बन रहा
13- बच्चा मन लगाकर पढ़ नहीं रहा
14- आपका प्रमोशन नहीं हो रहा,
15- दुकान या मकान जल गया
16- प्रियजन की मृत्यु
17- व्यवसाय ठीक नहीं चल रहा इत्यादि
*हमारी निराशा का बहुत कुछ कारण होता है- यथार्थ को स्वीकार न करना, अपनी कल्पना और मनोभावों की दुनिया में रहना।* यह ठीक है कि मनुष्य की कुछ अपनी भावनायें, कल्पनायें होती हैं किंतु सारा संसार वैसा ही बन जायगा यह सम्भव नहीं होता। हाँ अपनी अलग बात है। किंतु दूसरे भी वैसा ही करने लगें वैसे ही बन जाय यह कठिन है। यह ठीक इसी तरह है जैसे कोई व्यक्ति चाहे रात न हो केवल दिन ही दिन रहे या बरसात होवे नहीं। संसार परिवर्तनशील और वैभिन्यपूर्ण है। *अपने मत से भिन्न व्यक्ति का भी संपर्क होता है धरती पर मनुष्य के न चाहने पर भी बुढ़ापा, मृत्यु, संयोग-वियोग लाभ-हानि के क्षण देखने पड़ते हैं।*
*जीवन जैसा है उसी रूप में स्वीकार करने पर ही यहाँ जीवित रहा जा सकता है। यथार्थ का सामना करके ही आप जीवन-पथ पर चल सकते हैं। ऐसा हो नहीं सकता कि जीवन रहे और मनुष्य को विपरीतताओं का सामना न करना पड़े*। यदि आप जीवन में आई विरोधी परिस्थितियों से हार बैठे है, अपनी भावनाओं के प्रतिकूल घटनाओं से ठोकर खा चुके हैं और फिर जीवन की उज्ज्वल सम्भावनाओं से निराश हो बैठे हैं तो उद्धार का एक ही मार्ग है- *उठिए और जीवनपथ की कठोरताओं को स्वीकार कर आगे बढ़िए। तभी कहीं आप उच्च मंज़िल तक पहुँच सकते हैं। जीना है तो यथार्थ को अपनाना ही पड़ेगा। और कोई दूसरा मार्ग नहीं है जो बिना इसके मंजिल तक पहुँचा दे*। कई बार अप्रिय बातों को अक्सर हम रोक नहीं सकते।
विवेकानन्द जी कहते हैं- *उठो जागो और आगे बढ़ो, तबतक मत रुको जब तक मंजिल न मिल जाये।*
आधी ग्लास भरी तो आधी ख़ाली, दोनों ही बात सत्य है। लेकिन खाली में ध्यान फ़ोकस करोगे तो खालीपन बढ़ेगा, चिंताएं और निराशाएं बढ़ेंगी। यदि भरे में ध्यान फ़ोकस करेंगे तो आत्मविश्वास बढ़ेगा, सफ़लता मिलेगी।
एक कॉपी लो, पेज में एक तरफ वो लिखो जो तुम्हारे पास है, और दूसरी तरफ वो लिखो जो तुम्हारे पास नहीं है।
उदाहरण - एक तरफ लिखो मेरे पास निम्नलिखित योग्यता है, दूसरी तरफ लिखो मनचाही जॉब नहीं है।
एक तरफ लिखो मेरे पास हाथ, पैर, दिमाग़, स्वस्थ शरीर है, दूसरी तरफ वो लिखो जो अंग नहीं है, या यह बीमारी है। इत्यादि।
जब लिस्ट बनेगी तो आप पाओगे की आप के पास ऐसा बहुत कुछ है जिस पर आप गर्व कर सको, और ऐसा भी कुछ है जिस पर आप निराश हो सको।
निराशा वाले पन्ने फाड़कर जला दो, और समाधान केंद्रित दृष्टिकोण अपनाते हुए निराशा के कारणों का वीर योद्धा की तरह सामना करो और उससे लड़ो।
जिंदगी का दूसरा नाम ही संघर्ष है।
जंगल मे प्रत्येक पशु भागता है और संघर्ष करता है, कोई जान बचाने के लिए भागता तो कोई शिकार करने के लिए भागता है।
जब छोटे छोटे जीव जीवन के लिए संघर्ष करते हैं, तो फिर ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य जो कि बुद्धिमान भी है वो भला निराश क्यों होता है? क्यों नहीं पूरे तन मन धन स जीवन के लिए संघर्ष क्यों नहीं करता?
सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग- इस रोग से मन को मुक्त कीजिये।
छोटी सोच और पैर की मोच कभी जीवन मे आगे नहीं बढ़ने देती, आप के साथ जब स्वयं परमात्मा है तो फिर अन्य कोई साथ दे या न दे, फिक्र करने की क्या आवश्यकता? जब अरुणिमा जैसे नक़ली पैर से और असली मनोबल से एवरेस्ट हिमालय चढ़ सकती है, तो हम और आप जिनके पास दो पैर, दो हाथ और दिमाग है वो भला क्या नहीं कर सकते?
निम्नलिखित गुरुदेव की पुस्तक पढ़िए, और जीवन को नए उत्साह और उमंग के साथ जियो:-
1- शक्तिवान बनिये
2- निराशा को पास न फटकने दें
3- हारिये न हिम्मत
4- दृष्टिकोण ठीक रखें
5- सङ्कल्प शक्ति की प्रचण्ड प्रक्रिया
6- मन के हारे हार है मन के जीते जीत
7- मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
8- हम निर्बल अशक्त क्यो? शशक्त बनिये
9- सफ़लता के सात सूत्र
विपरीत परिस्थितियों में कोई टूट जाता है और कोई विपरीत परिस्थितियों में नया इतिहास बनाता है। परिस्थिति एक और परिणाम अलग अलग। अरुणिमा जैसे लोग कटे पैर से इतिहास बनाने निकलते हैं, और कुछ कटे पैर लेके कंधे रोने के लिए ढूंढते फिरते हैं। चलते तो दोनों हैं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
रात और दिन की तरह मनुष्य के जीवन में आशा, निराशा के क्षण आते जाते रहते हैं। आशा जहाँ जीवन में संजीवनी शक्ति का संचार करती है, वहाँ निराशा मनुष्य को मृत्यु की ओर ले जाती है, क्योंकि निराश व्यक्ति जीवन से उदासीन और विरक्त होने लगता है। उसे अपने चारों ओर अंधकार फैला हुआ दीखता है। एक दिन निराशा आत्महत्या तक के लिए मजबूर कर देती है मनुष्य को, जब कि मृत्यु के मुँह में जाता हुआ व्यक्ति भी आशावादी विचारों के कारण जी उठता है। श्रेयार्थी को निराशा की बीमारी से बचना आवश्यक है अन्यथा यह तन और मन दोनों को ही नष्ट कर देती है।
निराशा के कुछ कारण
1- स्वास्थ्य खराब है
2- नौकरी नहीं मिल रही
3- विवाह नहीं हो रहा
4- सन्तान नहीं है
5- मनचाही जॉब नहीं मिल रही
6- जॉब छूट गयी
7- जीवनसाथी से तलाक हो गया
8- नौकरी से रिजाइन दे दिया
9- रिश्तों में दरार
10- अनावश्यक ऑफिस कार्य का दबाव/प्रेशर
11- बच्चे का एडमिशन अच्छे स्कूल में नहीं हुआ
12- जैसा आप चाहते है वैसा बच्चा नहीं बन रहा
13- बच्चा मन लगाकर पढ़ नहीं रहा
14- आपका प्रमोशन नहीं हो रहा,
15- दुकान या मकान जल गया
16- प्रियजन की मृत्यु
17- व्यवसाय ठीक नहीं चल रहा इत्यादि
*हमारी निराशा का बहुत कुछ कारण होता है- यथार्थ को स्वीकार न करना, अपनी कल्पना और मनोभावों की दुनिया में रहना।* यह ठीक है कि मनुष्य की कुछ अपनी भावनायें, कल्पनायें होती हैं किंतु सारा संसार वैसा ही बन जायगा यह सम्भव नहीं होता। हाँ अपनी अलग बात है। किंतु दूसरे भी वैसा ही करने लगें वैसे ही बन जाय यह कठिन है। यह ठीक इसी तरह है जैसे कोई व्यक्ति चाहे रात न हो केवल दिन ही दिन रहे या बरसात होवे नहीं। संसार परिवर्तनशील और वैभिन्यपूर्ण है। *अपने मत से भिन्न व्यक्ति का भी संपर्क होता है धरती पर मनुष्य के न चाहने पर भी बुढ़ापा, मृत्यु, संयोग-वियोग लाभ-हानि के क्षण देखने पड़ते हैं।*
*जीवन जैसा है उसी रूप में स्वीकार करने पर ही यहाँ जीवित रहा जा सकता है। यथार्थ का सामना करके ही आप जीवन-पथ पर चल सकते हैं। ऐसा हो नहीं सकता कि जीवन रहे और मनुष्य को विपरीतताओं का सामना न करना पड़े*। यदि आप जीवन में आई विरोधी परिस्थितियों से हार बैठे है, अपनी भावनाओं के प्रतिकूल घटनाओं से ठोकर खा चुके हैं और फिर जीवन की उज्ज्वल सम्भावनाओं से निराश हो बैठे हैं तो उद्धार का एक ही मार्ग है- *उठिए और जीवनपथ की कठोरताओं को स्वीकार कर आगे बढ़िए। तभी कहीं आप उच्च मंज़िल तक पहुँच सकते हैं। जीना है तो यथार्थ को अपनाना ही पड़ेगा। और कोई दूसरा मार्ग नहीं है जो बिना इसके मंजिल तक पहुँचा दे*। कई बार अप्रिय बातों को अक्सर हम रोक नहीं सकते।
विवेकानन्द जी कहते हैं- *उठो जागो और आगे बढ़ो, तबतक मत रुको जब तक मंजिल न मिल जाये।*
आधी ग्लास भरी तो आधी ख़ाली, दोनों ही बात सत्य है। लेकिन खाली में ध्यान फ़ोकस करोगे तो खालीपन बढ़ेगा, चिंताएं और निराशाएं बढ़ेंगी। यदि भरे में ध्यान फ़ोकस करेंगे तो आत्मविश्वास बढ़ेगा, सफ़लता मिलेगी।
एक कॉपी लो, पेज में एक तरफ वो लिखो जो तुम्हारे पास है, और दूसरी तरफ वो लिखो जो तुम्हारे पास नहीं है।
उदाहरण - एक तरफ लिखो मेरे पास निम्नलिखित योग्यता है, दूसरी तरफ लिखो मनचाही जॉब नहीं है।
एक तरफ लिखो मेरे पास हाथ, पैर, दिमाग़, स्वस्थ शरीर है, दूसरी तरफ वो लिखो जो अंग नहीं है, या यह बीमारी है। इत्यादि।
जब लिस्ट बनेगी तो आप पाओगे की आप के पास ऐसा बहुत कुछ है जिस पर आप गर्व कर सको, और ऐसा भी कुछ है जिस पर आप निराश हो सको।
निराशा वाले पन्ने फाड़कर जला दो, और समाधान केंद्रित दृष्टिकोण अपनाते हुए निराशा के कारणों का वीर योद्धा की तरह सामना करो और उससे लड़ो।
जिंदगी का दूसरा नाम ही संघर्ष है।
जंगल मे प्रत्येक पशु भागता है और संघर्ष करता है, कोई जान बचाने के लिए भागता तो कोई शिकार करने के लिए भागता है।
जब छोटे छोटे जीव जीवन के लिए संघर्ष करते हैं, तो फिर ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य जो कि बुद्धिमान भी है वो भला निराश क्यों होता है? क्यों नहीं पूरे तन मन धन स जीवन के लिए संघर्ष क्यों नहीं करता?
सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग- इस रोग से मन को मुक्त कीजिये।
छोटी सोच और पैर की मोच कभी जीवन मे आगे नहीं बढ़ने देती, आप के साथ जब स्वयं परमात्मा है तो फिर अन्य कोई साथ दे या न दे, फिक्र करने की क्या आवश्यकता? जब अरुणिमा जैसे नक़ली पैर से और असली मनोबल से एवरेस्ट हिमालय चढ़ सकती है, तो हम और आप जिनके पास दो पैर, दो हाथ और दिमाग है वो भला क्या नहीं कर सकते?
निम्नलिखित गुरुदेव की पुस्तक पढ़िए, और जीवन को नए उत्साह और उमंग के साथ जियो:-
1- शक्तिवान बनिये
2- निराशा को पास न फटकने दें
3- हारिये न हिम्मत
4- दृष्टिकोण ठीक रखें
5- सङ्कल्प शक्ति की प्रचण्ड प्रक्रिया
6- मन के हारे हार है मन के जीते जीत
7- मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
8- हम निर्बल अशक्त क्यो? शशक्त बनिये
9- सफ़लता के सात सूत्र
विपरीत परिस्थितियों में कोई टूट जाता है और कोई विपरीत परिस्थितियों में नया इतिहास बनाता है। परिस्थिति एक और परिणाम अलग अलग। अरुणिमा जैसे लोग कटे पैर से इतिहास बनाने निकलते हैं, और कुछ कटे पैर लेके कंधे रोने के लिए ढूंढते फिरते हैं। चलते तो दोनों हैं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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