*क्या आप भजन संगीत और सत्संग करते हैं? यदि हाँ तो कृपया ध्यान दें...*
मंन्त्र जप हो या भजन संगीत हो, दोनों के पीछे शब्द शक्ति विज्ञान और भावना विज्ञान कार्य करता है। यदि शब्दों को शरीर माने तो भाव उसकी आत्मा जानें।
शब्दों की नींव पर जब भावनाओं का भवन खड़ा होता है, तब उसके अंदर श्रद्धा रूपी भगवान को प्रेम रूपी ज्योति के प्रकाश में पाया जाता है।
पूरा विश्व ब्रह्माण्ड गूगल सर्च/यूट्यूब सर्च की तरह कार्य करता है। ग़लत शब्दों को सर्च करोगे तो गलत डेटा ही रिज़ल्ट में मिलेगा।
मीरा के भजन के शब्दों पर ध्यान दीजिए:-
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो,
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु,
कृपा करी अपनायो।
इस भजन के समस्त शब्द उच्च प्राणऊर्जा के सार्थक शब्द है और ब्रह्माण्ड से ऊर्जा भक्त के अंदर प्रवाहित करेंगे:-
आजकल के कुछ भजन सुनिये जो अर्थ-अनर्थ कारक हैं:-
बम भोले चले कैलाश बुंदिया पड़ने लगी ,
१. पार्वती ने रोप दिया हरी -हरी मेहंदी -२
भोले ने रोप दिया भांग बुंदिया पड़ने लगी,
शिव शंकर चले कैलाश बुंदिया पड़ने लगी
इस भजन पर पार्वती जी के मेहंदी और शिवजी के भंग की चर्चा है। यह शब्द विज्ञान की दृष्टि से बिल्कुल वैसा असर करेगा जैसे मीठी खीर पर दो मुट्ठी नमक डालना और खीर की मेहनत बर्बाद करना।
प्रत्येक शब्द की अपनी ऊर्जा है, जैसे ही शब्द बोले जाते हैं वैसे ही रसायनिक परिवर्तन बोलने और सुनने वाले के शरीर मे होते है। मन कल्पना करता है।
भांग अर्थात नशा, नशा करना जितना हानिकारक है उसी तरह उन शब्दों का उच्चारण भी हानिकारक है। नशे के शब्द के बार उच्चारण से वह उस स्थान की ऊर्जा में नकारात्मक एनर्जी प्रवाहित होती है। जो बोलने और सुनने वाले दोनों को प्रवाहित करेगी।
अतः भजन सत्संग और भजन संध्या में प्रेरक प्रज्ञा गीत अर्थात प्रेरणा देने वाले, सद्बुद्धि और सदविवेक जगाने वाले गीतों को ही सम्मिलित करना चाहिए। जिससे अच्छे शब्दों की नींव पर उच्च भावों का भक्ति महल खड़ा हो, श्रद्धा से बनी प्रभु की मूरत में प्रेम की ज्योति जले और भक्त की चेतना में भगवत चेतना के उतरने का कार्य पूर्ण हो।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
मंन्त्र जप हो या भजन संगीत हो, दोनों के पीछे शब्द शक्ति विज्ञान और भावना विज्ञान कार्य करता है। यदि शब्दों को शरीर माने तो भाव उसकी आत्मा जानें।
शब्दों की नींव पर जब भावनाओं का भवन खड़ा होता है, तब उसके अंदर श्रद्धा रूपी भगवान को प्रेम रूपी ज्योति के प्रकाश में पाया जाता है।
पूरा विश्व ब्रह्माण्ड गूगल सर्च/यूट्यूब सर्च की तरह कार्य करता है। ग़लत शब्दों को सर्च करोगे तो गलत डेटा ही रिज़ल्ट में मिलेगा।
मीरा के भजन के शब्दों पर ध्यान दीजिए:-
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो,
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु,
कृपा करी अपनायो।
इस भजन के समस्त शब्द उच्च प्राणऊर्जा के सार्थक शब्द है और ब्रह्माण्ड से ऊर्जा भक्त के अंदर प्रवाहित करेंगे:-
आजकल के कुछ भजन सुनिये जो अर्थ-अनर्थ कारक हैं:-
बम भोले चले कैलाश बुंदिया पड़ने लगी ,
१. पार्वती ने रोप दिया हरी -हरी मेहंदी -२
भोले ने रोप दिया भांग बुंदिया पड़ने लगी,
शिव शंकर चले कैलाश बुंदिया पड़ने लगी
इस भजन पर पार्वती जी के मेहंदी और शिवजी के भंग की चर्चा है। यह शब्द विज्ञान की दृष्टि से बिल्कुल वैसा असर करेगा जैसे मीठी खीर पर दो मुट्ठी नमक डालना और खीर की मेहनत बर्बाद करना।
प्रत्येक शब्द की अपनी ऊर्जा है, जैसे ही शब्द बोले जाते हैं वैसे ही रसायनिक परिवर्तन बोलने और सुनने वाले के शरीर मे होते है। मन कल्पना करता है।
भांग अर्थात नशा, नशा करना जितना हानिकारक है उसी तरह उन शब्दों का उच्चारण भी हानिकारक है। नशे के शब्द के बार उच्चारण से वह उस स्थान की ऊर्जा में नकारात्मक एनर्जी प्रवाहित होती है। जो बोलने और सुनने वाले दोनों को प्रवाहित करेगी।
अतः भजन सत्संग और भजन संध्या में प्रेरक प्रज्ञा गीत अर्थात प्रेरणा देने वाले, सद्बुद्धि और सदविवेक जगाने वाले गीतों को ही सम्मिलित करना चाहिए। जिससे अच्छे शब्दों की नींव पर उच्च भावों का भक्ति महल खड़ा हो, श्रद्धा से बनी प्रभु की मूरत में प्रेम की ज्योति जले और भक्त की चेतना में भगवत चेतना के उतरने का कार्य पूर्ण हो।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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