Thursday, 4 October 2018

ठहरो! ज़रा, इत्र लगाने से पहले, चरित्र तो निहार लो,

ठहरो! ज़रा,
इत्र लगाने से पहले,
चरित्र तो निहार लो,

चरित्र में खुशबू न हुई तो,
इत्र लगाना बेकार समझो।

यदि मष्तिष्क हुआ विकृत,
हृदय रहा कठोर और निष्ठुर,
तो मुस्कुराना बेकार समझो।

यदि रक्त हुआ दूषित,
और पाचन तंत्र रहा विकृत,
तो भोजन को बेस्वाद समझो।

यदि अंग प्रत्यंगों में,
विषाणुओं की भरमार हो तो,
अगर चंदन और इत्र फुलेल बेकार समझो।

व्यवहार न हुआ सुमधुर,
वाणी न हुई सरल मधुर,
तो समस्त साज श्रृंगार बेकार समझो।

~श्वेता, दिया

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