प्रश्न - *लोग कहते हैं कि जोड़ियां ऊपर से बनकर आती है, सभी आत्माओं(Soul) के लिए कोई न कोई भगवान बना के (Soulmate) भेजता है? सबकुछ पहले से ही क़िस्मत में लिखा है। इस सम्बंध में आपकी क्या रॉय है...*
उत्तर - आत्मीय बहन, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। अतः लोगों के कहने पर धारणा मत बनाओ। विवाह सम्बन्धी बुढ़िया पुराण और पाश्चात्य ज्ञान बड़ा ख़तरनाक हैआ। बुढ़िया लोग कहती है जो पुत्र पैदा करके सुहागिन मरता है वो स्वर्ग जाता है। यह भ्रामक और बिन सर पैर का ज्ञान है।
इस सम्बंध में सत्य समझना है तो सुनो, तुलसीदास जी कहते हैं:-
*कर्म प्रधान विश्व करि राखा,*
*जो जस करत सो तस फल चाखा।*
पूरा विश्व भगवान ने कर्म प्रधान रखा है, यहां बोया काटा सिद्धांत चलता है। जैसा करोगे वैसा भरोगे। यही कर्म प्रधान ज्ञान श्रीमद्भागवत गीता और सभी धर्म ग्रन्थों में लिखा है। स्त्री हो या पुरुष दोनों की आत्मा की यात्रा अलग है, क्योंकि दोनों साथ साथ एक गर्भ से जन्म नहीं लेते, अतः दोनों को आत्म पुरुषार्थ करना होगा, आत्मतृप्ति के अपने अपने प्रयास करने पड़ेंगे। शरीर तृप्ति और आत्म तृप्ति दोनो अलग है।
अतः विवाह करना या न करना भी मनुष्य के कर्मफ़ल पर आधारित विधिव्यवस्था है, मनुष्य पूर्णरूपेण स्वतन्त्र है।
Soulmate शब्द स्त्री-पुरुष के सम्बंध में अमेरिका से आया है, भारतीय धर्म ग्रन्थ *विज्ञान भैरव तंत्र के अनुसार* जीवात्मा अर्थात प्राण का Soulmate केवल परमात्मा अर्थात महाप्राण होता है। आत्मा को शरीर के सम्बंध से कोई लेना देना ही नहीं है तो भला वो इंसानी रिश्ते में आत्मिक रिश्ता क्यों ढूंढेगा? आत्मा तो केवल परमात्मा को ही ढूंढेंगी, स्वयं विचार करें।
भगवान न आपको विवाह करने के लिए विवश करता है और न ही वह आपको विवाह न करने के लिए कहता है। कर्म करने के लिए आप स्वतन्त्र है। विवेक से निर्णय लेने के लिए आप स्वतन्त्र है। मनुष्य के पास सोचने विचारने की शक्ति उपलब्ध है।
पाश्चात्य देश शरीर को सबकुछ समझते हैं, वहां शरीर तृप्ति को आत्मतृप्ति समझने की मूर्खता की जाती है। अतः शारीरिक-भावनात्मक इच्छाओं को पूर्ति करने वाले अन्य शरीर को Soulmate कहने की मूर्खता करता है। फिर अमेरिका में तो एक व्यक्ति अनेक सम्बन्ध रखता है तो क्या भगवान एक के लिए अनेक soulmate बना ने की गलती कर रहा है???? स्वयं विचार करें..
जो युवा पाश्चात्य का अंधानुकरण करेगा और एक दूसरे शरीर को soulmate मानेगा। शरीर तृप्ति में ही जीवन खपा देगा। वो अंतः खड्डे/गड्ढे में गिरेगा, भटकती प्रेतात्मा की तरह जीवन जियेगा और अतृप्त आत्म भिखारी की तरह मरेगा। शरीर तृप्ति से आत्म तृप्ति संभव ही नहीं।
जो युवा आत्मा के अमरत्व और शरीर की नश्वरता को समझेगा। असली soulmate परमात्मा को ढूंढेगा। वो तृप्त सन्तुष्ट और शांतचित्त होकर जियेगा और अंत मे शांतचित्त तृप्ति के साथ महाप्रयाण करेगा। शरीर त्यागेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। अतः लोगों के कहने पर धारणा मत बनाओ। विवाह सम्बन्धी बुढ़िया पुराण और पाश्चात्य ज्ञान बड़ा ख़तरनाक हैआ। बुढ़िया लोग कहती है जो पुत्र पैदा करके सुहागिन मरता है वो स्वर्ग जाता है। यह भ्रामक और बिन सर पैर का ज्ञान है।
इस सम्बंध में सत्य समझना है तो सुनो, तुलसीदास जी कहते हैं:-
*कर्म प्रधान विश्व करि राखा,*
*जो जस करत सो तस फल चाखा।*
पूरा विश्व भगवान ने कर्म प्रधान रखा है, यहां बोया काटा सिद्धांत चलता है। जैसा करोगे वैसा भरोगे। यही कर्म प्रधान ज्ञान श्रीमद्भागवत गीता और सभी धर्म ग्रन्थों में लिखा है। स्त्री हो या पुरुष दोनों की आत्मा की यात्रा अलग है, क्योंकि दोनों साथ साथ एक गर्भ से जन्म नहीं लेते, अतः दोनों को आत्म पुरुषार्थ करना होगा, आत्मतृप्ति के अपने अपने प्रयास करने पड़ेंगे। शरीर तृप्ति और आत्म तृप्ति दोनो अलग है।
अतः विवाह करना या न करना भी मनुष्य के कर्मफ़ल पर आधारित विधिव्यवस्था है, मनुष्य पूर्णरूपेण स्वतन्त्र है।
Soulmate शब्द स्त्री-पुरुष के सम्बंध में अमेरिका से आया है, भारतीय धर्म ग्रन्थ *विज्ञान भैरव तंत्र के अनुसार* जीवात्मा अर्थात प्राण का Soulmate केवल परमात्मा अर्थात महाप्राण होता है। आत्मा को शरीर के सम्बंध से कोई लेना देना ही नहीं है तो भला वो इंसानी रिश्ते में आत्मिक रिश्ता क्यों ढूंढेगा? आत्मा तो केवल परमात्मा को ही ढूंढेंगी, स्वयं विचार करें।
भगवान न आपको विवाह करने के लिए विवश करता है और न ही वह आपको विवाह न करने के लिए कहता है। कर्म करने के लिए आप स्वतन्त्र है। विवेक से निर्णय लेने के लिए आप स्वतन्त्र है। मनुष्य के पास सोचने विचारने की शक्ति उपलब्ध है।
पाश्चात्य देश शरीर को सबकुछ समझते हैं, वहां शरीर तृप्ति को आत्मतृप्ति समझने की मूर्खता की जाती है। अतः शारीरिक-भावनात्मक इच्छाओं को पूर्ति करने वाले अन्य शरीर को Soulmate कहने की मूर्खता करता है। फिर अमेरिका में तो एक व्यक्ति अनेक सम्बन्ध रखता है तो क्या भगवान एक के लिए अनेक soulmate बना ने की गलती कर रहा है???? स्वयं विचार करें..
जो युवा पाश्चात्य का अंधानुकरण करेगा और एक दूसरे शरीर को soulmate मानेगा। शरीर तृप्ति में ही जीवन खपा देगा। वो अंतः खड्डे/गड्ढे में गिरेगा, भटकती प्रेतात्मा की तरह जीवन जियेगा और अतृप्त आत्म भिखारी की तरह मरेगा। शरीर तृप्ति से आत्म तृप्ति संभव ही नहीं।
जो युवा आत्मा के अमरत्व और शरीर की नश्वरता को समझेगा। असली soulmate परमात्मा को ढूंढेगा। वो तृप्त सन्तुष्ट और शांतचित्त होकर जियेगा और अंत मे शांतचित्त तृप्ति के साथ महाप्रयाण करेगा। शरीर त्यागेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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