Sunday, 16 December 2018

प्रश्न - *सन 1980 से 2000 तक को युगसंधि काल कहा गया है। ऐसा क्या विलक्षण घटित हुआ जिससे ये माना जाए कि यह युगसंधि काल था, और एक बहुत बड़ा यू टर्न पूरे विश्व का हुआ?*

प्रश्न - *सन 1980 से 2000 तक को युगसंधि काल कहा गया है। ऐसा क्या विलक्षण घटित हुआ जिससे ये माना जाए कि यह युगसंधि काल था, और एक बहुत बड़ा यू टर्न पूरे विश्व का हुआ?*

उत्तर - आत्मीय भाई, जिस प्रकार दिन के अंत और रात के शुरू के बीच के समय को सायंकाल(शाम) कहते है, वैसे ही दो युगों के बीच का समय संधि काल या युग संधि नाम से जाना जाता है|

*युगसंधि काल की गणना, अखण्डज्योति मार्च 1980 के अनुसार 20 वर्ष की बताई गई है जो 1980 से 2000 तक है।*

अतः आपके प्रश्न में 1990 से शुरुआत की सूचना आपको कहाँ से मिली है? जिसका विवरण मुझे नहीं पता।

Visit Online reference:- http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1980/March/v2.3

ज्योतिष के अनुसार - जब एक युग समाप्त होकर दूसरे युग का प्रारम्भ होने को होता है; तब संसार में संघर्ष और तीव्र हलचल उत्पन्न हो जाती हैं। जब चन्द्र, सूर्य, बृहसपति तथा पुष्य नक्षत्र एक राशि पर आयेंगे तब सतयुग का शुभारम्भ होगा। इसके बाद शुभ नक्षत्रों की कृपा वर्षा होती है। पदार्थों की वृद्धि से सुख-समृद्धि बढ़ती हैं।

ज्योतिष गणनाओं के अनुसार हिसाब फैलाने से पता चलता है कि वर्तमान समय संक्रमण काल है। प्राचीन ग्रन्थों में हमारे इतिहास को पाँच कल्पों में बाँटा गया है। (1) महत् कल्प 1 लाख 9 हजार 8सौ वर्ष विक्रमीय पूर्व से आरम्भ होकर 85800 वर्ष पूर्व तक (2) हिरण्य गर्भ 85800 विक्रमीय पूर्व से 61800 वर्ष पूर्व तक (3) ब्राह्म कल्प 60800 विक्रमीय पूर्व से 37800 वर्ष पूर्व तक (4) पाद्म कल्प 37800 वर्ष तक और (5) वाराह कल्प 13800 विक्रम पूर्व से आरम्भ होकर अब तक चल रहा है।

युग संधि प्रसव पीड़ा जैसा समय है। शिशु जन्म के समय जननी पर क्या बीतती है, इसे सभी जानते हैं, पर पुत्र रत्न को पाकर उसकी खुशी का ठिकाना भी नहीं रहता। फसल, जिन दिनों पकने को होती है उन्हीं दिनों खेतों में पक्षियों के झुण्ड टूटते हैं। युग सन्धि की इस वेला में जहां पके फोड़े को फूटने और दुर्गन्ध भरी मवाद निकलने की सम्भावना है, वहां यह भी निश्चित है कि आपरेशन के बाद दर्द घटेगा, घाव भरेगा और संचित विकारों से छुटकारा मिलेगा।

अतः युगऋषि कहते है - पतझड़ के बाद बसन्त आता है। तपती गर्मी के बाद बरसाती घटायें जल थल कर करतीं और हरीतिमा का मखमली फर्श बिछाती है। अंधेरी रात का भी अन्त होती है और प्रभात का अरुणोदय सर्वत्र उल्लास भरी उमंगें बिखेरता है। लम्बी अवधि आतंक और असमंजस के बीच गुजर जाने के बाद अब निकट भविष्य में ऐसी सम्भावनायें बन रही है, जिसमें चैन की सांस ली जा सके। इसे एक प्रकार से सतयुग की वापसी, या नव युग के अवतरण के नाम से भी जाना जा सकता है।

भूतकाल की भूलों और वर्तमान की भ्रान्तियों को गम्भीरता पूर्वक देखा जाय तो आश्चर्य होता है कि समझदार कहलाने वाले मनुष्य ने क्यों इतनी नासमझी बरती और क्यों अपने लिए सबके लिए विपत्ति न्यौत बुलायी? फिर भी-इतना निश्चय है कि विपत्ति भूलों को सुधारने के लिए मजबूर करती है। भटकाव के बाद भी सही राह और रोग पता होने पर उपचार की विधि खोज ही ली जाती है। लम्बा समय दुखद-दुर्भाग्य में बोता; पर वह स्थिति सदा क्यों बनी रहेगी? शांति और प्रगति सदैव प्रतीक्षा सूची में ही रहे ऐसा तो नहीं हो सकता। इक्कीसवीं सदी सन्निकट है। इसमें हम सब सुखद परिस्थितियों का आनन्द ले सकेंगे ऐसी आशा की जानी चाहिए।

Reference :- http://literature.awgp.org/book/yug_sandhi_purshcharan_prayojan_aur_prayas/v1.1

भगवान जब जब धर्म की हानि होती है जन्म लेता है, तो देवी देवता और हिमालय में तपलीन आत्माएं मनुष्य के रूप में जन्म लेती है। सहयोगी बनती है। हम सभी प्रज्ञावतार महाकाल युगऋषि के अंग अवयव बनकर जन्मे है, जो उनकी इस योजना में सहयोगी बनने आए है। भविष्य उज्ज्वल है और सतयुग की वापसी होकर रहेगी। ऐसा हम सबका विश्वास है, क्योंकि हमें हमारे युगऋषि के कथन पर पूरा विश्वास है।

यूटर्न मंजिल की ओर मोडता है, मंजिल तक नहीं पहुंचाता, अतः यूटर्न पर मंजिल दर्शन नहीं होता। युगसंधि काल मे विलक्षणता का बीजारोपण होता है, अतः विलक्षणता का वृक्ष और फ़ल युगसंधि काल मे नहीं दिखता।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
Https://awgpggn.blogspot.com

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