प्रश्न - *दी, मैं एक सैनिक हूँ, मेरी ड्यूटी बॉर्डर पर होती है। हमें ड्यूटी के समय चैतन्य और चौकन्ना रहना होता है। मुश्किल से 3 से 4 घण्टे हम सब सैनिक सोते है। ऐसे में गायत्री साधना केवल मौन मानसिक होती है। ड्यूटी के वक्त फोन जमा होता है, केवल रूम पर ही थोड़े वक्त के लिए फोन उपयोग करते है आपके मैसेज सभी फौजी भाइयो को पढ़ाता हूँ, सभी को प्रश्नोत्तर अच्छा लगता है। ज्यादा मौन मानसिक जप नुकसानदायक तो नहीं है? कभी कभी मख्खी की भिनभिनाहट या झींगुर या अन्य ध्वनियां बड़ी तेजी से सुनाई देती है, यही एकांत में गुरूदेव के साहित्य पढ़ते वक्त भी होता है। हम सैनिकों के लिए सहज आनन्दमय साधना बताइये।*
उत्तर - आत्मीय भाई, एक बिग सैल्यूट आपके लिए। हम आप जैसे भारतीय वीरों को नमन करते है। हमें खुशी है कि आपकी सेवा का सौभाग्य गुरुवर हमे दे रहे है, आप सब पोस्ट पढ़कर लाभान्वित हो रहे है।
आत्मीय भाई, खरा आध्यात्मिक जीवन वही जी सकता है, जिसके अन्दर संघर्ष एवं त्याग की दोनों क्षमताएँ हों। प्रगति चाहे आत्मिक हो या भौतिक, दोनों ही दिशाएँ संघर्ष चाहती हैं। आत्मिक जीवन में अपने-अपने दोष-दुर्गुणों कुसंस्कारों और प्रलोभनों-अवरोधों से लड़ना पड़ता है। *गीता का प्रशिक्षण ही अन्तरंग जीवन में पाँच प्राणों को-सौ दोष-दुर्गुणों के कौरव-पाण्डवों के रूप में लड़ा देने के लिए प्रादुर्भूत हुआ। आत्मिक साधना को भी समर कहा जाता है। दुर्गा सप्तशती में महिषासुर, मधुकैटभ और शुम्भ-निशुम्भ के रूप में स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर में घुसे बैठे असुरों को आत्मशक्ति के द्वारा निरस्त करने की शिक्षा है। इस तरह संघर्ष आत्मिक प्रगति का मुख्य आधार है।*
*भौतिक जीवन का तो कहना ही क्या? यहाँ प्रगति तो दूर अपने अस्तित्व को बनाए रखना भी बिना संघर्ष के सम्भव नहीं। संघर्ष से ही जीवन के हर क्षेत्र में विभूतियाँ और उपलब्धियाँ बटोरी जाती हैं, परन्तु त्यागवृत्ति के बिना इनका ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ उचित उपयोग सम्भव नहीं*।इन दोनों विरले गुणों का मेल प्रायः कहीं नजर नहीं आता, लेकिन सैनिक इसे सहज साध सकता है। क्योंकि उसके अंदर संघर्ष और त्याग दोनों होता है।
सैनिक आध्यात्मिक क्षेत्र में गृहस्थ सांसारिक जनों से हज़ार गुना स्पीड से आगे बढ़ सकता है।
सन्त, सुधारक, शहीद(सैनिक) तीनों मुक्त आत्माएं होती है। सभी सैनिक को स्वयं पर गर्व करना चाहिए। एक सैनिक हमारे सभी डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, व्यवसायी इत्यादि सबसे ज्यादा सर्वश्रेष्ठ और महत्त्वपूर्ण जॉब करते है। सभी समाज के लोग जो मेरी पोस्ट पढ़ रहे है उन्हें सैनिक का खड़े होकर और ताली बजाकर स्वागत करना चाहिए।
भाई, हमारा कान वही सुन सकता है जिस पर हमारा ध्यान हो। उदाहरण टीवी में मन पसन्द प्रोग्राम चल रहा हो तो हमे कोई पुकारे तो भी हम सुन नहीं सकते। यह संसार ध्वनि का कम्पन मात्र है। ध्वनि एक ऊर्जा है। जब हम बाह्य जगत की ओर ध्यान देते है तो बाहर की ध्वनियां सुनाई देती है, जब वही ध्यान अंतर्जगत की ओर मोड़ते है तो अन्तःजगत की ध्वनियां सुनाई देती है। झींगुर, मक्खी तथा अन्य प्रकार की अबूझ ध्वनियां हमारे ही भीतर की ध्वनि है। अतः इस ध्वनि में भी कई प्रकार की ध्वनि का मिश्रण है, उनमें से एक ध्वनि ॐ और शंखनाद की भी है, जिसे अथक प्रयास से सुना जा सकता है।
खड़े खड़े ड्यूटी के वक्त पूर्ण चैतन्य और जागरूक रहते हुए भी आप बंदूक हाथ में लेकर निम्नलिखित साधना कर सकते हैं।
1- गायत्री मंत्र जपकर भावना कीजिये ब्रह्माण्ड की आकाशगंगा से जल आपके ऊपर पड़ रहा है और आप अंदर-बाहर पवित्र हो रहे है।
2- मुंह हल्का खोलकर मुंह थोड़ा सा ऊपर आकाश की ओर करिये, तीन बार मन ही मन गायत्री मंत्र जपिये, भावना कीजिये मां गंगा आपको तीन दिव्य बूंद गंगा जल की पिला कर आपका स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर को प्राणवान बना रही है।
3- एक बार पुनः गायत्री मंत्र पढ़कर भावना कीजिये कि शिखा से एक तार आकाश में पहुंच गया है, वहां के प्राण प्रवाह से आप जुड़ गए।
4- डीप ब्रीदिंग और प्राणाकर्षण प्राणायाम कीजिये, श्वांस लेते वक्त भाव कीजिये कि ब्राह्मण में व्याप्त ऊर्जा आपके भीतर प्रवेश कर रही है, आप प्राणवान ऊर्जा वान बन रहे हैं। श्वांस छोड़ते समय भाव करो कि समस्त टेंशन परेशानी सबकुछ बाहर निकल गया।
5- न्यास में भाव करो, मुख में, नाक में, कान में, आंख में, दोनों भुजाओं में और दोनों पैरों में मां गंगा दिव्यता भर रही है।
अब पृथ्वी माता को स्पर्श करके गायत्री मंत्र जपो और प्रणाम करो।
अब भावना करो भारत माता ही गायत्री माता है, उसकी पूजा-अर्चना स्वरूप तुम यह ड्यूटी कर रहे हो। आकाश से वह मुस्कुरा के तुम्हे आशिर्वाद दे रही है। जितना मौन मानसिक जप कर सकते हो करो। अब तुम जब भगवान का कार्य कर रहे हो तो भगवान तुम्हारा कार्य करेगा, तुम्हारे पत्नी, बच्चो का ख़्याल भगवान रखेगा। अतः उनके प्रति चिंता मुक्त हो जाओ।
उसके बाद श्वांस से अजपा गायत्री जप *सो$हम* जपो, श्वांस लेते समय *सो* और छोड़ते वक्त *हम*। श्वांस पर ध्यान केंद्रित करो। जिस तरह बॉर्डर की सुरक्षा के प्रति जागरूक चैतन्य हो, उसी तरह अपनी श्वांस के प्रति भी जागरूक चैतन्य रहो।
घर पर जब भी फोन करो उससे पहले गायत्री मंत्र जप लो, सैनिक घर जब फोन करते है तो इस उम्मीद में करते है कि उधर से प्रेम की वर्षा हो, बोले कि तुम्हारी याद आ रही है, यहां सब ठीक है। लेकिन होता ठीक इसके विपरीत है, फोन पर समस्या का ढेर, चुगली चपाटी और क्रोध भड़काने वाली बात पहले होती है, हाल चाल बाद में पूंछते है। सैनिक जो आध्यात्मिक नहीं है उसका दिमाग इन जहरीली बातों को सोचता रहता है और कार्टिसोल हॉर्मोन अपने भीतर उतपन्न करता है। इससे उसे शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य हानि उठानी पड़ती है।
अतः तुम सभी सैनिकों को समझाओ, जिस तरह एक सैनिक जहाँ है वहीं की सुरक्षा कर सकता है, पूरे देश के समस्त बॉर्डर की नहीं। दूसरे बॉर्डर को उसे तब तक नहीं सोचना चाहिए जब तक उसकी ड्यूटी वहां न लगाई जाए। इसी तरह मेरे भाई बॉर्डर पर घर मत सोचना और जब घर जाना तो बॉर्डर मत सोचना। जहाँ शरीर हो वहीं मन भी रखना।
घर वाले कभी जॉब वालो की कठिनाई पूरी नहीं समझ सकते, और जॉब वाले कभी घर वालो की कठिनाई पूरी नहीं समझ सकते। समस्या को जो समाधान सुझा सकते हो फोन पर सुझा दो, फिर फोन रखते ही वो बात भी वहीं रख दो। ज्यों ही आकाश के नीचे पहुंचो भावना करो माता भगवती गायत्री या गुरूदेव का चित्र आकाश में। धीरे धीरे रोज आकाश में ध्यान करने से तुम आकाश तत्व से जुड़ जाओगे। आकाश के नीचे आते ही स्वतः मन से ध्यानस्थ हो जाओगे। गर्व और आनंद से ड्यूटी होगी। तुम बॉर्डर पर और घर मे भी सब कुशल मंगल रहेंगे।
गायत्री साधना एक प्रकार का आध्यात्मिक धन है, इसके अधिक संचय से लाभ ही लाभ है। अधिक जप से लाभ ही लाभ है।
आप यदि चाहोगे तो हम आप सबके लिए सहित्य उपलब्ध करवा देंगे।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
Https://awgpggn.blogspot.com
उत्तर - आत्मीय भाई, एक बिग सैल्यूट आपके लिए। हम आप जैसे भारतीय वीरों को नमन करते है। हमें खुशी है कि आपकी सेवा का सौभाग्य गुरुवर हमे दे रहे है, आप सब पोस्ट पढ़कर लाभान्वित हो रहे है।
आत्मीय भाई, खरा आध्यात्मिक जीवन वही जी सकता है, जिसके अन्दर संघर्ष एवं त्याग की दोनों क्षमताएँ हों। प्रगति चाहे आत्मिक हो या भौतिक, दोनों ही दिशाएँ संघर्ष चाहती हैं। आत्मिक जीवन में अपने-अपने दोष-दुर्गुणों कुसंस्कारों और प्रलोभनों-अवरोधों से लड़ना पड़ता है। *गीता का प्रशिक्षण ही अन्तरंग जीवन में पाँच प्राणों को-सौ दोष-दुर्गुणों के कौरव-पाण्डवों के रूप में लड़ा देने के लिए प्रादुर्भूत हुआ। आत्मिक साधना को भी समर कहा जाता है। दुर्गा सप्तशती में महिषासुर, मधुकैटभ और शुम्भ-निशुम्भ के रूप में स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर में घुसे बैठे असुरों को आत्मशक्ति के द्वारा निरस्त करने की शिक्षा है। इस तरह संघर्ष आत्मिक प्रगति का मुख्य आधार है।*
*भौतिक जीवन का तो कहना ही क्या? यहाँ प्रगति तो दूर अपने अस्तित्व को बनाए रखना भी बिना संघर्ष के सम्भव नहीं। संघर्ष से ही जीवन के हर क्षेत्र में विभूतियाँ और उपलब्धियाँ बटोरी जाती हैं, परन्तु त्यागवृत्ति के बिना इनका ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ उचित उपयोग सम्भव नहीं*।इन दोनों विरले गुणों का मेल प्रायः कहीं नजर नहीं आता, लेकिन सैनिक इसे सहज साध सकता है। क्योंकि उसके अंदर संघर्ष और त्याग दोनों होता है।
सैनिक आध्यात्मिक क्षेत्र में गृहस्थ सांसारिक जनों से हज़ार गुना स्पीड से आगे बढ़ सकता है।
सन्त, सुधारक, शहीद(सैनिक) तीनों मुक्त आत्माएं होती है। सभी सैनिक को स्वयं पर गर्व करना चाहिए। एक सैनिक हमारे सभी डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, व्यवसायी इत्यादि सबसे ज्यादा सर्वश्रेष्ठ और महत्त्वपूर्ण जॉब करते है। सभी समाज के लोग जो मेरी पोस्ट पढ़ रहे है उन्हें सैनिक का खड़े होकर और ताली बजाकर स्वागत करना चाहिए।
भाई, हमारा कान वही सुन सकता है जिस पर हमारा ध्यान हो। उदाहरण टीवी में मन पसन्द प्रोग्राम चल रहा हो तो हमे कोई पुकारे तो भी हम सुन नहीं सकते। यह संसार ध्वनि का कम्पन मात्र है। ध्वनि एक ऊर्जा है। जब हम बाह्य जगत की ओर ध्यान देते है तो बाहर की ध्वनियां सुनाई देती है, जब वही ध्यान अंतर्जगत की ओर मोड़ते है तो अन्तःजगत की ध्वनियां सुनाई देती है। झींगुर, मक्खी तथा अन्य प्रकार की अबूझ ध्वनियां हमारे ही भीतर की ध्वनि है। अतः इस ध्वनि में भी कई प्रकार की ध्वनि का मिश्रण है, उनमें से एक ध्वनि ॐ और शंखनाद की भी है, जिसे अथक प्रयास से सुना जा सकता है।
खड़े खड़े ड्यूटी के वक्त पूर्ण चैतन्य और जागरूक रहते हुए भी आप बंदूक हाथ में लेकर निम्नलिखित साधना कर सकते हैं।
1- गायत्री मंत्र जपकर भावना कीजिये ब्रह्माण्ड की आकाशगंगा से जल आपके ऊपर पड़ रहा है और आप अंदर-बाहर पवित्र हो रहे है।
2- मुंह हल्का खोलकर मुंह थोड़ा सा ऊपर आकाश की ओर करिये, तीन बार मन ही मन गायत्री मंत्र जपिये, भावना कीजिये मां गंगा आपको तीन दिव्य बूंद गंगा जल की पिला कर आपका स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर को प्राणवान बना रही है।
3- एक बार पुनः गायत्री मंत्र पढ़कर भावना कीजिये कि शिखा से एक तार आकाश में पहुंच गया है, वहां के प्राण प्रवाह से आप जुड़ गए।
4- डीप ब्रीदिंग और प्राणाकर्षण प्राणायाम कीजिये, श्वांस लेते वक्त भाव कीजिये कि ब्राह्मण में व्याप्त ऊर्जा आपके भीतर प्रवेश कर रही है, आप प्राणवान ऊर्जा वान बन रहे हैं। श्वांस छोड़ते समय भाव करो कि समस्त टेंशन परेशानी सबकुछ बाहर निकल गया।
5- न्यास में भाव करो, मुख में, नाक में, कान में, आंख में, दोनों भुजाओं में और दोनों पैरों में मां गंगा दिव्यता भर रही है।
अब पृथ्वी माता को स्पर्श करके गायत्री मंत्र जपो और प्रणाम करो।
अब भावना करो भारत माता ही गायत्री माता है, उसकी पूजा-अर्चना स्वरूप तुम यह ड्यूटी कर रहे हो। आकाश से वह मुस्कुरा के तुम्हे आशिर्वाद दे रही है। जितना मौन मानसिक जप कर सकते हो करो। अब तुम जब भगवान का कार्य कर रहे हो तो भगवान तुम्हारा कार्य करेगा, तुम्हारे पत्नी, बच्चो का ख़्याल भगवान रखेगा। अतः उनके प्रति चिंता मुक्त हो जाओ।
उसके बाद श्वांस से अजपा गायत्री जप *सो$हम* जपो, श्वांस लेते समय *सो* और छोड़ते वक्त *हम*। श्वांस पर ध्यान केंद्रित करो। जिस तरह बॉर्डर की सुरक्षा के प्रति जागरूक चैतन्य हो, उसी तरह अपनी श्वांस के प्रति भी जागरूक चैतन्य रहो।
घर पर जब भी फोन करो उससे पहले गायत्री मंत्र जप लो, सैनिक घर जब फोन करते है तो इस उम्मीद में करते है कि उधर से प्रेम की वर्षा हो, बोले कि तुम्हारी याद आ रही है, यहां सब ठीक है। लेकिन होता ठीक इसके विपरीत है, फोन पर समस्या का ढेर, चुगली चपाटी और क्रोध भड़काने वाली बात पहले होती है, हाल चाल बाद में पूंछते है। सैनिक जो आध्यात्मिक नहीं है उसका दिमाग इन जहरीली बातों को सोचता रहता है और कार्टिसोल हॉर्मोन अपने भीतर उतपन्न करता है। इससे उसे शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य हानि उठानी पड़ती है।
अतः तुम सभी सैनिकों को समझाओ, जिस तरह एक सैनिक जहाँ है वहीं की सुरक्षा कर सकता है, पूरे देश के समस्त बॉर्डर की नहीं। दूसरे बॉर्डर को उसे तब तक नहीं सोचना चाहिए जब तक उसकी ड्यूटी वहां न लगाई जाए। इसी तरह मेरे भाई बॉर्डर पर घर मत सोचना और जब घर जाना तो बॉर्डर मत सोचना। जहाँ शरीर हो वहीं मन भी रखना।
घर वाले कभी जॉब वालो की कठिनाई पूरी नहीं समझ सकते, और जॉब वाले कभी घर वालो की कठिनाई पूरी नहीं समझ सकते। समस्या को जो समाधान सुझा सकते हो फोन पर सुझा दो, फिर फोन रखते ही वो बात भी वहीं रख दो। ज्यों ही आकाश के नीचे पहुंचो भावना करो माता भगवती गायत्री या गुरूदेव का चित्र आकाश में। धीरे धीरे रोज आकाश में ध्यान करने से तुम आकाश तत्व से जुड़ जाओगे। आकाश के नीचे आते ही स्वतः मन से ध्यानस्थ हो जाओगे। गर्व और आनंद से ड्यूटी होगी। तुम बॉर्डर पर और घर मे भी सब कुशल मंगल रहेंगे।
गायत्री साधना एक प्रकार का आध्यात्मिक धन है, इसके अधिक संचय से लाभ ही लाभ है। अधिक जप से लाभ ही लाभ है।
आप यदि चाहोगे तो हम आप सबके लिए सहित्य उपलब्ध करवा देंगे।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
Https://awgpggn.blogspot.com
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