प्रश्न - *प्रियजन की मृत्यु सम्बन्धी प्रश्न*
*स्वेता जी मैं आपके सभी मैसेज पढ़ती हु । अच्छा लगता है । लेकिन मेरी एक समस्या है मेरे हसबैंड को एक गाड़ी ने बुरी तरह मार दिया वे बच नही सके । मेरे दिमाग मे शांति नही है । क्या इसी तरह जाना था । अच्छा खासा चल फिर रहे थे । कभी इस तरह होगा आज भी विश्वास नही है ।*
दूसरा
*जब भी पूजा करने बैठती हु । हाथ मे पुजा का किताब रहता है और दिमाग एकत्रित नही रहता । घूमता है कि कभी की माँ मेरे से गलती होने के पहले एहसास कैसे होगा ताकि मुझे पता चले । मैं किसी गरीब की सेवा क्या और कैसे करूँ । कभी कम्बल कभी स्वेटर देती हूं । कभी बच्चों के एडमिशन के लिए कोशिश कभी पेंशन के लिए करती हूं । हमारे ग्रुप के एडमिन डॉ प्रजापतीजी है ।काफी सज्जन गरीबो के मशीहा कभी उनके साथ जब सेवा करते है तो जाती हूं । सुविधानुसार ।लेकिन इतने से शांति नही मिलती पूजाके ही समय सब सोचनाशुरू होता है । कैसे सिर्फ पूजा में ध्यान लगे । बहुत लोगो को आपके पास समाधानके लिए । मैसेज देखकर सोची अपना भी समाधान पुछु ।*
उत्तर- आत्मीय दी, जैसा कि आपने विज्ञान पढ़ा होगा, प्रत्येक पदार्थ की तीन अवस्था होती है:- ठोस, द्रव्य, गैस
पानी की तीन अवस्था - बर्फ़, जल, वाष्प
यदि बर्फ़ की कोई आकृति है, उसे आपका छोटा बेटा उसके साथ खेल रहा है। वो पिघल गया। अब वो रोने लगा। तो क्या बर्फ़ मर गयी? जल उबालने को रखा और पानी वाष्प बनकर उड़ गया तो क्या पानी मर गया? पानी पुनः बूदों के रूप में ठंडा होकर आ गया तो क्या वाष्प मर गयी?
*समुद्र से सूर्य की गर्मी से जल का वाष्पीकरण 👉🏼 बादल निर्माण👉🏼 वर्षा👉🏼 वर्षा का जल पुनः समुद्र तक नदियों इत्यादि के माध्यम से पहुंचना👉🏼 पुनः वाष्पीकरण अर्थात परिवर्तन जल की अवस्था का, कुछ भी मरा नहीं सब परिवर्तित होता गया। क्या जन्म-मृत्यु ऐसा ही जीवनचक्र नहीं है?*
कुछ नहीं इस संसार मे मरता है, केवल रूप बदलता है। यही ऋषि मुनि कहते है और यही विज्ञान कहता है। *मृत्यु अर्थात आत्मा के अवस्था का- शरीर का परिवर्तन। सबसे बड़ा सत्य मृत्यु है अर्थात परिवर्तन है। परिवर्तन संसार का नियम है।*
जो जन्मा है वो मरेगा, जो मरा है वो जन्मेगा। न बालक के जन्म पर ख़ुश होने की आवश्यकता है - क्योंकि बालक भी निश्चित आयु और मृत्यु की डेट लेकर आया है और न ही किसी की मृत्यु पर दुःखी होने की आवश्यकता है क्योंकि मृतक भी नए जन्म की डेट ले गया है।
फिर यह सब जानते हुए भी हम सब दुःखी क्यों होते है? वास्तव में हम किसी की मृत्यु से दुःखी होते ही नहीं। बल्कि उस व्यक्ति से जुड़े भावनात्मक सम्बन्धो और उस व्यक्ति से जुड़ी निर्भरता(dependency) के कारण दुःखी होते है।
उदाहरण - एक पुराना बेकार फ़ोन टूटने और एक नए उपयोगी फोन दोनों के टूटने पर समान दुःख नहीं होता। घर में ऐसे व्यक्ति की मृत्यु जिसका अब घर संसार चलाने में योगदान नहीं रहा, उससे कोई उम्मीद शेष नहीं रही, उसकी मृत्यु पर हम कम दुःखी होंगे। और ऐसे व्यक्ति जिसकी आर्थिक कमाई-भावनात्मक सपोर्ट की परिवार को जरूरत है-उम्मीदें है उसकी मृत्यु पर ज्यादा दुःखी होंगे।
एक ट्रेन में सफर कर रहे हैं, कई सारे लोग साथ में सफर कर रहे है, एक व्यक्ति से आपकी दोस्ती हो गयी, साथ मे टिफ़िन शेयर किया और बातों में समय का पता ही नहीं चला। अब उस व्यक्ति का स्टेशन आ गया और वो पहले उतर गया। अब उसकी कमी यात्रा में आपको खल रही है, आपको दुःख हो रहा है। लेकिन इस बीच इतने लोग आए और गए आप उनके लिए तो दुःखी नहीं हुए। अर्थात *जिससे सुख मिला तो केवल उसके वियोग से दुःख हुआ, जिससे सुख नहीं मिला उसके वियोग से दुःख भी नहीं मिला।*
लाखों लोग जन्मते है, लाखो लोग रोज मरते हैं, लाखों लोगों के एक्सिडेंट की ख़बर हम सुनते हैं, लेकिन हमें फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि इन सभी से हमें सुख नहीं मिला इसलिए दुःख भी नहीं हुआ।
दी, प्रत्येक मनुष्य का जो शरीर दिख रहा है, वो उस आत्मा का वस्त्र है। अब यह वस्त्र किसी एक्सीडेंट वजह से फट जाए या धीरे धीरे बीमारी से नष्ट हो, लेकिन यह वस्त्र नष्ट जरूर होगा। पूर्व जन्म के कर्मफ़ल के अनुसार हम कितने दिन जिएंगे और किसके साथ जिएंगे यह पूर्व निर्धारित है, इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता। इसको ऐसे भी समझो जिसने जितना कमा कर लाया होगा उतने दिन का किराया दे सकेगा और सराय(होटल) एन्जॉय कर सकेगा। पैसे खत्म तो सराय(होटल) छोड़ना पड़ेगा। अब मृत्यु कोई न कोई बहाना लेकर आती है - बीमारी, एक्सिडेंट, वृद्धावस्था इत्यादि।
*जीवनसाथी न हमारे साथ जन्मा है न हमारे साथ मरेगा। यह सोचना ही मूर्खता है कि वो हमारे साथ ही मृत्यु को प्राप्त हो या हमारी मृत्यु के बाद ही उसकी मृत्यु हो। जीवनसाथी केवल हमारी जीवन ट्रेन का हमसफ़र है एक स्टेशन(उम्र पड़ाव) में साथ चढ़ा जब भी हम दोनों से पहले जिसका स्टेशन आएगा वो पहले उतरेगा, उस समय हमारी या उसकी उम्र का पड़ाव जो भी हो वो उतरेगा। अतः जो इस बात को समझता है वो दुःख नहीं करेगा, जो नहीं समझेगा वो दुःखी रहेगा।*
👉🏼 *पूजा में मन नहीं लग रहा* - मन में जन्म और मृत्यु के प्रति गहरी समझ आते ही पूजा में मन लगने लगता है, आत्मा और परमात्मा का सम्बंध समझते ही मन स्वतः ईश्वरीय चेतना से जुड़ने लगता है। ठीक वैसे ही जैसे मैथ(गणित) के फार्मूले और उससे सवाल हल करने का तरीका समझ आ जाय तो पढ़ाई में मन लगने लगता है। अतः पूर्वाग्रह को छोड़कर नए नजरिये से जीवन और मृत्यु को समझिए पूजा में मन लगेगा। पढ़ते वक़्त भय नहीं करना चाहिए ग़लती होगी तो सुधार कर लेना। इसी तरह पूजा करते वक्त भय की जरूरत नहीं। परमात्मा भाव देखता है, कर्मकांड नहीं। वो प्रेम का भूखा है। रोज़ उगते हुए सूर्य का ध्यान करते हुए कम से कम 108 बार गायत्री मंत्र जपिये।
👉🏼 *समाजसेवा और पुण्यकर्म* - डॉक्टर डी सी प्रजापति भैया को हम पिछले पांच वर्षों से जानते है, वो एक साधक और कर्मयोगी है। उनके साथ समाजसेवा और पुण्यकर्म करने का जो आप कार्य कर रही हो वो सराहनीय है।
*एक सुझाव* - सौ पेंसिल, रबर, चॉकलेट, वैक्स कलर का सेट, रफ कॉपी खरीद लीजिये। सप्ताह में एक बार नज़दीकी सरकारी गरीब स्कूल में जाइये। बच्चो को मोरल/नैतिक कहानियां सुनाइये, फिर प्रश्न पूँछिये और जीतने वाले को पुरस्कृत कीजिये।। उनसे चुटकुले सुनिये उनकी भाषा में, जब बच्चे उत्साहित होंगे हंसेंगे और खिलखिलायेंगे उनके साथ हंसिये। ख़ुशी बांटने से बढ़ती है।
युगऋषि लिखित दो पुस्तक जरूर पढ़िये - *गहना कर्मणो गतिः(कर्म का सिद्धांत)* और *मरने के बाद क्या होता है*
आज से चिंता(टेंशन) की जगह चिंतन कीजिये। *चिंतन में दो धाराएं होती है - पहला समाधान ढूंढना और दूसरा जो समस्या को हम सुलझा नहीं सकते उसे समझ के उसे स्वीकारना। मृत्यु जिसे हम रोक नहीं सकते उसको समझ कर के उसे स्वीकार कर लेना ही -हमें मृत्यु के भय से मुक्त करता है*। जो हो रहा है अच्छा हो रहा है जो होगा अच्छा होगा, भयमुक्त होकर सबको प्रेम और खुशियां बाँटिये। खुश रहिये।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
Https://awgpggn.blogspot.com
*स्वेता जी मैं आपके सभी मैसेज पढ़ती हु । अच्छा लगता है । लेकिन मेरी एक समस्या है मेरे हसबैंड को एक गाड़ी ने बुरी तरह मार दिया वे बच नही सके । मेरे दिमाग मे शांति नही है । क्या इसी तरह जाना था । अच्छा खासा चल फिर रहे थे । कभी इस तरह होगा आज भी विश्वास नही है ।*
दूसरा
*जब भी पूजा करने बैठती हु । हाथ मे पुजा का किताब रहता है और दिमाग एकत्रित नही रहता । घूमता है कि कभी की माँ मेरे से गलती होने के पहले एहसास कैसे होगा ताकि मुझे पता चले । मैं किसी गरीब की सेवा क्या और कैसे करूँ । कभी कम्बल कभी स्वेटर देती हूं । कभी बच्चों के एडमिशन के लिए कोशिश कभी पेंशन के लिए करती हूं । हमारे ग्रुप के एडमिन डॉ प्रजापतीजी है ।काफी सज्जन गरीबो के मशीहा कभी उनके साथ जब सेवा करते है तो जाती हूं । सुविधानुसार ।लेकिन इतने से शांति नही मिलती पूजाके ही समय सब सोचनाशुरू होता है । कैसे सिर्फ पूजा में ध्यान लगे । बहुत लोगो को आपके पास समाधानके लिए । मैसेज देखकर सोची अपना भी समाधान पुछु ।*
उत्तर- आत्मीय दी, जैसा कि आपने विज्ञान पढ़ा होगा, प्रत्येक पदार्थ की तीन अवस्था होती है:- ठोस, द्रव्य, गैस
पानी की तीन अवस्था - बर्फ़, जल, वाष्प
यदि बर्फ़ की कोई आकृति है, उसे आपका छोटा बेटा उसके साथ खेल रहा है। वो पिघल गया। अब वो रोने लगा। तो क्या बर्फ़ मर गयी? जल उबालने को रखा और पानी वाष्प बनकर उड़ गया तो क्या पानी मर गया? पानी पुनः बूदों के रूप में ठंडा होकर आ गया तो क्या वाष्प मर गयी?
*समुद्र से सूर्य की गर्मी से जल का वाष्पीकरण 👉🏼 बादल निर्माण👉🏼 वर्षा👉🏼 वर्षा का जल पुनः समुद्र तक नदियों इत्यादि के माध्यम से पहुंचना👉🏼 पुनः वाष्पीकरण अर्थात परिवर्तन जल की अवस्था का, कुछ भी मरा नहीं सब परिवर्तित होता गया। क्या जन्म-मृत्यु ऐसा ही जीवनचक्र नहीं है?*
कुछ नहीं इस संसार मे मरता है, केवल रूप बदलता है। यही ऋषि मुनि कहते है और यही विज्ञान कहता है। *मृत्यु अर्थात आत्मा के अवस्था का- शरीर का परिवर्तन। सबसे बड़ा सत्य मृत्यु है अर्थात परिवर्तन है। परिवर्तन संसार का नियम है।*
जो जन्मा है वो मरेगा, जो मरा है वो जन्मेगा। न बालक के जन्म पर ख़ुश होने की आवश्यकता है - क्योंकि बालक भी निश्चित आयु और मृत्यु की डेट लेकर आया है और न ही किसी की मृत्यु पर दुःखी होने की आवश्यकता है क्योंकि मृतक भी नए जन्म की डेट ले गया है।
फिर यह सब जानते हुए भी हम सब दुःखी क्यों होते है? वास्तव में हम किसी की मृत्यु से दुःखी होते ही नहीं। बल्कि उस व्यक्ति से जुड़े भावनात्मक सम्बन्धो और उस व्यक्ति से जुड़ी निर्भरता(dependency) के कारण दुःखी होते है।
उदाहरण - एक पुराना बेकार फ़ोन टूटने और एक नए उपयोगी फोन दोनों के टूटने पर समान दुःख नहीं होता। घर में ऐसे व्यक्ति की मृत्यु जिसका अब घर संसार चलाने में योगदान नहीं रहा, उससे कोई उम्मीद शेष नहीं रही, उसकी मृत्यु पर हम कम दुःखी होंगे। और ऐसे व्यक्ति जिसकी आर्थिक कमाई-भावनात्मक सपोर्ट की परिवार को जरूरत है-उम्मीदें है उसकी मृत्यु पर ज्यादा दुःखी होंगे।
एक ट्रेन में सफर कर रहे हैं, कई सारे लोग साथ में सफर कर रहे है, एक व्यक्ति से आपकी दोस्ती हो गयी, साथ मे टिफ़िन शेयर किया और बातों में समय का पता ही नहीं चला। अब उस व्यक्ति का स्टेशन आ गया और वो पहले उतर गया। अब उसकी कमी यात्रा में आपको खल रही है, आपको दुःख हो रहा है। लेकिन इस बीच इतने लोग आए और गए आप उनके लिए तो दुःखी नहीं हुए। अर्थात *जिससे सुख मिला तो केवल उसके वियोग से दुःख हुआ, जिससे सुख नहीं मिला उसके वियोग से दुःख भी नहीं मिला।*
लाखों लोग जन्मते है, लाखो लोग रोज मरते हैं, लाखों लोगों के एक्सिडेंट की ख़बर हम सुनते हैं, लेकिन हमें फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि इन सभी से हमें सुख नहीं मिला इसलिए दुःख भी नहीं हुआ।
दी, प्रत्येक मनुष्य का जो शरीर दिख रहा है, वो उस आत्मा का वस्त्र है। अब यह वस्त्र किसी एक्सीडेंट वजह से फट जाए या धीरे धीरे बीमारी से नष्ट हो, लेकिन यह वस्त्र नष्ट जरूर होगा। पूर्व जन्म के कर्मफ़ल के अनुसार हम कितने दिन जिएंगे और किसके साथ जिएंगे यह पूर्व निर्धारित है, इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता। इसको ऐसे भी समझो जिसने जितना कमा कर लाया होगा उतने दिन का किराया दे सकेगा और सराय(होटल) एन्जॉय कर सकेगा। पैसे खत्म तो सराय(होटल) छोड़ना पड़ेगा। अब मृत्यु कोई न कोई बहाना लेकर आती है - बीमारी, एक्सिडेंट, वृद्धावस्था इत्यादि।
*जीवनसाथी न हमारे साथ जन्मा है न हमारे साथ मरेगा। यह सोचना ही मूर्खता है कि वो हमारे साथ ही मृत्यु को प्राप्त हो या हमारी मृत्यु के बाद ही उसकी मृत्यु हो। जीवनसाथी केवल हमारी जीवन ट्रेन का हमसफ़र है एक स्टेशन(उम्र पड़ाव) में साथ चढ़ा जब भी हम दोनों से पहले जिसका स्टेशन आएगा वो पहले उतरेगा, उस समय हमारी या उसकी उम्र का पड़ाव जो भी हो वो उतरेगा। अतः जो इस बात को समझता है वो दुःख नहीं करेगा, जो नहीं समझेगा वो दुःखी रहेगा।*
👉🏼 *पूजा में मन नहीं लग रहा* - मन में जन्म और मृत्यु के प्रति गहरी समझ आते ही पूजा में मन लगने लगता है, आत्मा और परमात्मा का सम्बंध समझते ही मन स्वतः ईश्वरीय चेतना से जुड़ने लगता है। ठीक वैसे ही जैसे मैथ(गणित) के फार्मूले और उससे सवाल हल करने का तरीका समझ आ जाय तो पढ़ाई में मन लगने लगता है। अतः पूर्वाग्रह को छोड़कर नए नजरिये से जीवन और मृत्यु को समझिए पूजा में मन लगेगा। पढ़ते वक़्त भय नहीं करना चाहिए ग़लती होगी तो सुधार कर लेना। इसी तरह पूजा करते वक्त भय की जरूरत नहीं। परमात्मा भाव देखता है, कर्मकांड नहीं। वो प्रेम का भूखा है। रोज़ उगते हुए सूर्य का ध्यान करते हुए कम से कम 108 बार गायत्री मंत्र जपिये।
👉🏼 *समाजसेवा और पुण्यकर्म* - डॉक्टर डी सी प्रजापति भैया को हम पिछले पांच वर्षों से जानते है, वो एक साधक और कर्मयोगी है। उनके साथ समाजसेवा और पुण्यकर्म करने का जो आप कार्य कर रही हो वो सराहनीय है।
*एक सुझाव* - सौ पेंसिल, रबर, चॉकलेट, वैक्स कलर का सेट, रफ कॉपी खरीद लीजिये। सप्ताह में एक बार नज़दीकी सरकारी गरीब स्कूल में जाइये। बच्चो को मोरल/नैतिक कहानियां सुनाइये, फिर प्रश्न पूँछिये और जीतने वाले को पुरस्कृत कीजिये।। उनसे चुटकुले सुनिये उनकी भाषा में, जब बच्चे उत्साहित होंगे हंसेंगे और खिलखिलायेंगे उनके साथ हंसिये। ख़ुशी बांटने से बढ़ती है।
युगऋषि लिखित दो पुस्तक जरूर पढ़िये - *गहना कर्मणो गतिः(कर्म का सिद्धांत)* और *मरने के बाद क्या होता है*
आज से चिंता(टेंशन) की जगह चिंतन कीजिये। *चिंतन में दो धाराएं होती है - पहला समाधान ढूंढना और दूसरा जो समस्या को हम सुलझा नहीं सकते उसे समझ के उसे स्वीकारना। मृत्यु जिसे हम रोक नहीं सकते उसको समझ कर के उसे स्वीकार कर लेना ही -हमें मृत्यु के भय से मुक्त करता है*। जो हो रहा है अच्छा हो रहा है जो होगा अच्छा होगा, भयमुक्त होकर सबको प्रेम और खुशियां बाँटिये। खुश रहिये।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
Https://awgpggn.blogspot.com
No comments:
Post a Comment