Wednesday, 12 December 2018

माँसाहार - हलाला में समस्त जीव जो कटते है उन्हें पहले उन्हें तड़फाया जाता है,

हलाला में समस्त जीव जो कटते है उन्हें पहले उन्हें तड़फाया जाता है, जिससे उन्हें टेंशन हो कार्टिसोल हॉरमोन जहरीला निकले, दर्द से शरीर और मांसपेशियां  फूले जिससे मांस का वजन ज्यादा तौल में चढ़े। यह हलाल का मांस जहरीला और नुकसान दायक होता है।
बिना तड़फाये/ बिना हलाल का मांस सामान्य स्थिति में होता है।

शरीर से जीव निकलते ही ऑटोमैटिक सड़न की स्थिति शुरू हो जाती है, सूक्ष्म दर्शी से देखने पर आप पाएंगे कि प्रति मिनट रोगाणु और ख़तरनाक बैक्टीरिया मल्टी प्लाई होते है। सूक्ष्म दर्शी न हो तो सड़ने की दुर्गंध जो उतपन्न होती है उससे भी इसे समझ सकते हो।

जंगल मे तुरन्त शिकार करके जो जीव मांस भक्षण करते है, वो नुकसानदायक नहीं होता। क्योंकि मरने से पहले जीव जीवन से भरपूर होता है।

जो मांस लोग दूकानों में पूर्व से मृत पशु की लाश से कटवाते है या पोल्ट्री फार्म में पाली मुर्गियों को कटवाते है वो अत्यंत नुकसान दायक होता है। क्योंकि गन्दगी में पले यह जीव और हैवी एंटीबायोटिक के डोज़ से फुलाये इनके शरीर से निकला मांस बीमारी का गढ़ होता है। ऐसे एंटीबायोटिक से भरे मांस को खाने वाले लोग जब गम्भीर बीमार पड़ते हैं तो उन पर दवा असर नहीं करती, सारी एंटीबायोटिक और पेनकिलर काम नहीं करता।
(This is 100% True! The heavy antibiotics given to the poultry birds ultimately goes into the system of people who consume it. And when these people get sick other antibody fails to respond to cure them.)

तुलसीदास जी कहते है हित अनहित पशु पक्षी भी पहचानते है, यह जीव जो  कसाइयों द्वारा पाले जाते है, टेंशन में ही रहते है। प्रतिपल बढ़ती मौत को महसूस करने के कारण ये अर्ध विक्षिप्त और गुस्से में भरे हो जाते है, बद्दुआ देते रहते है। जिस प्रकार प्रति पल मौत के वातावरण में मनुष्य अर्ध विक्षिप्त और गुस्से में हो जाता है।

इन दर्दीली, तनावग्रस्त, विक्षप्तता, बद्दुआ मांस पेशियों की मेमोरी में भी स्टोर हो जाती है, इन्हें खाने वाले भी इन भावों से प्रभावित होते है।

शाकाहार में भी जीवन तो होता है लेकिन भावनाएं न के बराबर होती है,  इसलिए शाकाहार करने के लिए प्रेरित किया जाता है।

स्वयं के जीवन रक्षण के लिए और शाकाहार न खा सकने हेतु शारीरिक संरचना न होने के कारण मांसाहारी जीव यदि जीव हत्या करते है तो उन्हें पाप नहीं लगता। मांसाहार केवल स्वादलोलुपता के लिए करना और अपने फ्रिज़ को मृत पशुओं की लाश स्टोर करने के लिए मुर्दाघर बनाना सर्वथा घृणित है, जो हमे जीवहत्या के पाप का बोझ भी लादता है।

जो भाई बहन अंडे को शाकाहारी समझने की भूल करते हैं, वो बहुत बड़ी मूर्खता कर रहे हैं। अंडा मांसाहारी था है और रहेगा। किसी धर्मग्रन्थ में लिखने से धरती चपटी नहीं होगी, किसी मान्य नेता के मात्र बोलने से मांसाहारी अंडा शाकाहारी नहीं हो जाता। अंडे से चूजे बनते कई साइंटिफ़िक वीडियो उपलब्ध है, उन्हें देख लें।

माँसाहार के विषय पर अखण्डज्योति में छपा एक लेख अवश्य पढ़ें:-

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1968/March/v1.30

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