प्रश्न - *युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा ने चुनाव और मतदान सम्बन्धी कोई पुस्तक लिखी है? जिसमें मतदाताओं के जागरण की बात लिखी हो...*
उत्तर- युगऋषि की लिखी एक पुस्तक है - 📖 *एक अनुरोध मतदाताओं से*, उसमें गुरूदेव लिखते हैं कि प्रजातंत्र व्यवस्था का जहां यह लाभ है वहां हानि भी कम नहीं है। *यदि मतदाता अबोध या अनुत्तरदायी हों तो वे मतदान को मात्र खिलवाड़ समझेंगे और जिस तरह खेल-कूद में बच्चे किधर भी 🎾गेंद फेंक देते हैं या पानी उछाल देते हैं उसी तरह कभी भी अपने हाथ में आई हुई इस पवित्र धरोहर को ऐसे हाथों में सौंप देंगे जिनके द्वारा विनाश और विपत्ति का ही सृजन हो सकना सम्भव है।*
यह कथा भूलने की नहीं है कि *🤴🏻एक राजा ने रखवाली के लिए 🐵बंदर पाला और सोते समय देखभाल करने का काम सौंप दिया। राजा सोया उसकी नाक पर 🐝मक्खी बैठी, 🐵बन्दर ने पास में पड़ी 🗡तलवार उठाई और 🐝मक्खी पर चलाई। मक्खी तो उड़ गई पर 🤧राजा की नाक कट गई। नासमझी के कारण बंदर भी तिरस्कृत हुआ और राजा की नाक भी चली गई। प्रजातंत्र में मतदाता की नासमझी उपरोक्त बंदर की अज्ञानता से भी अधिक खतरनाक है।* यदि वह *अपना मत पत्र अवांछनीय हाथों में सौंप देने जैसी भूल कर देता है तो समझना चाहिए अपनी 🔑तिजोरी की चाबी 😈डाकू के हाथों सौंप देने जैसी भूल कर दी गई। प्रजातंत्र की सफलता इस बात पर निर्भर है कि मतदाता राष्ट्र की समस्याओं के प्रति कितना सजग है और उन्हें सुलझा सकने के लिए अपने हाथों में उपस्थित ‘‘मतदान के अधिकार’’ का कैसी सूझ-बूझ के साथ उपयोग करता है*। इस उपयोग करता है। इस उपयोग में चूक होती रहे तो फिर यही कहा जायेगा कि यह शासन पद्धति जितनी अच्छी है उतनी ही बुरी भी है। *मूर्खता का लाभ 👹धूर्तता उठाती रही है*। मतदान के समय भी यही स्थिति रहे तो समझना चाहिए कि जो लोग चुने जाने वाले हैं वे राष्ट्रीय हित साधन की अपेक्षा अपना हित साधन करेंगे और उसका परिणाम समस्त समाज को भुगतना पड़ेगा। इस बुराई से बचने और बचाने के लिए *मतदाता का दूरदर्शी और उत्तरदायी होना नितान्त आवश्यक है।*
इससे पहले प्रजातंत्र चलाने का अवसर अपने देशवासियों को चिरकाल से नहीं मिला। प्राचीन काल की बात अलग है। कम से कम पिछली अनेक शताब्दियों से तो इस प्रकार ही शासन व्यवस्था चलाने का अधिकार प्रजा को मिला ही नहीं। सो उस तरह का न तो अभ्यास हुआ न अनुभव मिला। पाश्चात्य देशवासी बहुत दिनों से इस अधिकार का उपयोग कर रहे हैं जबकि अपने देश में थोड़े ही समय से इसका वास्तविक लाभ मिला है। फिर प्रजा अशिक्षित भी है और पिछड़ी हुई भी। इसलिए उसने शासन तंत्र चला सकने की जिम्मेदारी के प्रतीक मतदान के महत्वों और दूरगामी परिणामों को अनायास ही हृदयंगम कर लेने की आशा नहीं की जा सकती। ऐसी दशा में मत का दुरुपयोग ही हो सकता था और हो भी रहा है। फलस्वरूप प्रजातंत्र के लाभ हमें मिल नहीं पा रहे हैं। झूठे चुनावी वायदे के जाल में जनता फँसती है, बाद में जनता सर धुन के पछताती है।
याद रखिये, फ़्री सामान किसी प्रोडक्ट के साथ तभी उतारा जाता है जब वो प्रोडक्ट स्वयं के दम पर बिक न रहा हो। फ़्री बिजली पानी, सबको सरकारी रोजगार और कर्जमाफी यह सब तब ही चुनावी वायदे में आते है जब देश की आजादी के इतने वर्षों बाद भी इन समस्याओं के समाधान न हुए, आय में वृद्धि न हुई और किसान की समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। बढ़ती जनसंख्या की रोकथाम हेतु दो बच्चों का कानून जो पारित न हुआ, प्रकृति के अंधाधुंध दोहन न रुका, गौ-गीता-गायत्री-गंगा का आधार जनसामान्य ने नहीं लिया तो, वृक्षारोपण तेजी से न हुआ तो अगले कुछ वर्षों बाद ऑक्सीजन सिलेंडर, फ्री पीने को पानी, फ्री कैंसर की दवा और दो वक्त फ्री भोजन चुनावी वायदों में होगा। जनसँख्या वृद्धि से पृथ्वी की साइज नहीं बढ़ने वाली, प्रकृति संसाधन केवल कम पड़ेंगे।
जितने पढ़े लिखे बेरोजगार युवा भारत देश मे है उतनी जॉब भारत तो क्या पूरे विश्व में उपलब्ध नहीं है। धरती के बढ़ते तापमान और बढ़ते रेडिएशन के दुष्प्रभाव से कम होते जीव वनस्पति, कम होते जल संसाधन, कम वर्षा से बिगड़ती कृषि व्यवस्था का स्थायी समाधान न हुआ तो सृष्टि का विनाश निश्चित है।
*आज की अस्त-व्यस्त शासन व्यवस्था तथा समाज में चल रहे आंतरिक अनेक विग्रहों का मूल कारण शासन का कौशल एवं स्तर गिरा हुआ होना ही नहीं है वरन् यह भी है कि परिस्थितियों का निर्माण कर सकने के शक्ति सूत्र ‘मतदान’ का ठीक प्रकार उपयोग नहीं किया जा रहा है। गलती यहां से आरम्भ होती है और वह वहां तक बढ़ती चली जाती है जहां हम प्रगति में अवरोध और व्यवस्था में बिखराव को देखते हुए खीज और घुटन अनुभव करते हैं।*
यदि अच्छी सरकार चाहिए तो मतदाता का जागरूक होना नितांत आवश्यक है। यदि आपने आसपास के मतदाताओं को उनके कर्तव्य बोध और राष्ट्रीय हित का बोध कराने की कोशिश नहीं की और आपके क्षेत्र में, आपकी विधानसभा में, आपके संसदीय क्षेत्र में यदि सही उम्मीदवार नहीं चुना गया तो इसके लिए एक अंश के उत्तरदायी हम और आप भी है।
*चाणक्य ने कहा था- शासन चुनते वक्त लिंग जाति स्वार्थ और स्वहित से पहले राष्ट्र हित को वरीयता देनी चाहिए, राष्ट्रहित से ही स्वहित सधता है।*
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- युगऋषि की लिखी एक पुस्तक है - 📖 *एक अनुरोध मतदाताओं से*, उसमें गुरूदेव लिखते हैं कि प्रजातंत्र व्यवस्था का जहां यह लाभ है वहां हानि भी कम नहीं है। *यदि मतदाता अबोध या अनुत्तरदायी हों तो वे मतदान को मात्र खिलवाड़ समझेंगे और जिस तरह खेल-कूद में बच्चे किधर भी 🎾गेंद फेंक देते हैं या पानी उछाल देते हैं उसी तरह कभी भी अपने हाथ में आई हुई इस पवित्र धरोहर को ऐसे हाथों में सौंप देंगे जिनके द्वारा विनाश और विपत्ति का ही सृजन हो सकना सम्भव है।*
यह कथा भूलने की नहीं है कि *🤴🏻एक राजा ने रखवाली के लिए 🐵बंदर पाला और सोते समय देखभाल करने का काम सौंप दिया। राजा सोया उसकी नाक पर 🐝मक्खी बैठी, 🐵बन्दर ने पास में पड़ी 🗡तलवार उठाई और 🐝मक्खी पर चलाई। मक्खी तो उड़ गई पर 🤧राजा की नाक कट गई। नासमझी के कारण बंदर भी तिरस्कृत हुआ और राजा की नाक भी चली गई। प्रजातंत्र में मतदाता की नासमझी उपरोक्त बंदर की अज्ञानता से भी अधिक खतरनाक है।* यदि वह *अपना मत पत्र अवांछनीय हाथों में सौंप देने जैसी भूल कर देता है तो समझना चाहिए अपनी 🔑तिजोरी की चाबी 😈डाकू के हाथों सौंप देने जैसी भूल कर दी गई। प्रजातंत्र की सफलता इस बात पर निर्भर है कि मतदाता राष्ट्र की समस्याओं के प्रति कितना सजग है और उन्हें सुलझा सकने के लिए अपने हाथों में उपस्थित ‘‘मतदान के अधिकार’’ का कैसी सूझ-बूझ के साथ उपयोग करता है*। इस उपयोग करता है। इस उपयोग में चूक होती रहे तो फिर यही कहा जायेगा कि यह शासन पद्धति जितनी अच्छी है उतनी ही बुरी भी है। *मूर्खता का लाभ 👹धूर्तता उठाती रही है*। मतदान के समय भी यही स्थिति रहे तो समझना चाहिए कि जो लोग चुने जाने वाले हैं वे राष्ट्रीय हित साधन की अपेक्षा अपना हित साधन करेंगे और उसका परिणाम समस्त समाज को भुगतना पड़ेगा। इस बुराई से बचने और बचाने के लिए *मतदाता का दूरदर्शी और उत्तरदायी होना नितान्त आवश्यक है।*
इससे पहले प्रजातंत्र चलाने का अवसर अपने देशवासियों को चिरकाल से नहीं मिला। प्राचीन काल की बात अलग है। कम से कम पिछली अनेक शताब्दियों से तो इस प्रकार ही शासन व्यवस्था चलाने का अधिकार प्रजा को मिला ही नहीं। सो उस तरह का न तो अभ्यास हुआ न अनुभव मिला। पाश्चात्य देशवासी बहुत दिनों से इस अधिकार का उपयोग कर रहे हैं जबकि अपने देश में थोड़े ही समय से इसका वास्तविक लाभ मिला है। फिर प्रजा अशिक्षित भी है और पिछड़ी हुई भी। इसलिए उसने शासन तंत्र चला सकने की जिम्मेदारी के प्रतीक मतदान के महत्वों और दूरगामी परिणामों को अनायास ही हृदयंगम कर लेने की आशा नहीं की जा सकती। ऐसी दशा में मत का दुरुपयोग ही हो सकता था और हो भी रहा है। फलस्वरूप प्रजातंत्र के लाभ हमें मिल नहीं पा रहे हैं। झूठे चुनावी वायदे के जाल में जनता फँसती है, बाद में जनता सर धुन के पछताती है।
याद रखिये, फ़्री सामान किसी प्रोडक्ट के साथ तभी उतारा जाता है जब वो प्रोडक्ट स्वयं के दम पर बिक न रहा हो। फ़्री बिजली पानी, सबको सरकारी रोजगार और कर्जमाफी यह सब तब ही चुनावी वायदे में आते है जब देश की आजादी के इतने वर्षों बाद भी इन समस्याओं के समाधान न हुए, आय में वृद्धि न हुई और किसान की समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। बढ़ती जनसंख्या की रोकथाम हेतु दो बच्चों का कानून जो पारित न हुआ, प्रकृति के अंधाधुंध दोहन न रुका, गौ-गीता-गायत्री-गंगा का आधार जनसामान्य ने नहीं लिया तो, वृक्षारोपण तेजी से न हुआ तो अगले कुछ वर्षों बाद ऑक्सीजन सिलेंडर, फ्री पीने को पानी, फ्री कैंसर की दवा और दो वक्त फ्री भोजन चुनावी वायदों में होगा। जनसँख्या वृद्धि से पृथ्वी की साइज नहीं बढ़ने वाली, प्रकृति संसाधन केवल कम पड़ेंगे।
जितने पढ़े लिखे बेरोजगार युवा भारत देश मे है उतनी जॉब भारत तो क्या पूरे विश्व में उपलब्ध नहीं है। धरती के बढ़ते तापमान और बढ़ते रेडिएशन के दुष्प्रभाव से कम होते जीव वनस्पति, कम होते जल संसाधन, कम वर्षा से बिगड़ती कृषि व्यवस्था का स्थायी समाधान न हुआ तो सृष्टि का विनाश निश्चित है।
*आज की अस्त-व्यस्त शासन व्यवस्था तथा समाज में चल रहे आंतरिक अनेक विग्रहों का मूल कारण शासन का कौशल एवं स्तर गिरा हुआ होना ही नहीं है वरन् यह भी है कि परिस्थितियों का निर्माण कर सकने के शक्ति सूत्र ‘मतदान’ का ठीक प्रकार उपयोग नहीं किया जा रहा है। गलती यहां से आरम्भ होती है और वह वहां तक बढ़ती चली जाती है जहां हम प्रगति में अवरोध और व्यवस्था में बिखराव को देखते हुए खीज और घुटन अनुभव करते हैं।*
यदि अच्छी सरकार चाहिए तो मतदाता का जागरूक होना नितांत आवश्यक है। यदि आपने आसपास के मतदाताओं को उनके कर्तव्य बोध और राष्ट्रीय हित का बोध कराने की कोशिश नहीं की और आपके क्षेत्र में, आपकी विधानसभा में, आपके संसदीय क्षेत्र में यदि सही उम्मीदवार नहीं चुना गया तो इसके लिए एक अंश के उत्तरदायी हम और आप भी है।
*चाणक्य ने कहा था- शासन चुनते वक्त लिंग जाति स्वार्थ और स्वहित से पहले राष्ट्र हित को वरीयता देनी चाहिए, राष्ट्रहित से ही स्वहित सधता है।*
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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