Sunday, 16 December 2018

प्रश्न - *स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर क्या है? सूक्ष्म और कारण शरीर में क्या अंतर है? दोनों को धारण करने की समय सीमा क्या है? हिमालयीन ऋषिसत्ताएँ सूक्ष्म शरीर में तप कर रही है या कारण शरीर में? स्थूल-सूक्ष्म-कारण तीनों शरीर को पोषण और बल किससे मिलता है?*

प्रश्न - *स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर क्या है? सूक्ष्म और कारण शरीर में क्या अंतर है? दोनों को धारण करने की समय सीमा क्या है? हिमालयीन ऋषिसत्ताएँ सूक्ष्म शरीर में तप कर रही है या कारण शरीर में? स्थूल-सूक्ष्म-कारण तीनों शरीर को पोषण और बल किससे मिलता है?*

उत्तर - आत्मीय भाई क्रमशः उत्तर दे रही हूँ:-

👉🏼मानवी सत्ता ने तीन कलेवर ओढ़े हैं। *'स्थूल' अर्थात् दृश्यमान। 'सूक्ष्म' अर्थात् अदृश्य किन्तु अधिक व्यापक अधिक सक्षम। 'कारण' अर्थात् दिव्य लोक से सम्बन्ध ब्राह्मी चेतना के साथ तालमेल बिठाने आदान प्रदान करने में समर्थ* ये तीनों ही स्तर क्रमश: अधिकाधिक उच्च स्तर की विशेषताओं विभूतियों से सम्पन्न पाए जाते हैं।

आमतौर से मरने के उपरान्त ही प्रेत पितर के रूप में सूक्ष्म शरीर का अनुभव होता है।

देवात्मा, ऋद्धि-सिद्ध पुरुष, अवतार, हिमालयिन ऋषिसत्ताएँ कारण शरीर की योग साधना एवं तपश्चर्या द्वारा समुन्नत बनते हैं और स्वर्गवासियों की तरह जीवन मुक्तों की स्थिति में रहते हैं।

सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व दृश्यमान काया में रहते हुए मनोबल के रूप में प्रकट होता रहता है। गुण कर्म, स्वभाव की विशेषताएँ सूक्ष्म शरीर में ही केन्द्रीभूत रहती है। साहस, सख्त, पराक्रम रख दृष्टिकोण की जाँच पड़ताल करके सूक्ष्म शरीर के उत्थान पतन का अनुमान लगाया है। प्रतिभावना ओजस्वी, तेजस्वी, मनस्वी देखने में सामान्य होते हुए भी सूक्ष्म शरीर की दृष्टि से प्रखर पहलवान होते हैं। इन्द्रिय शक्ति से आगे बढ़कर अतीन्द्रिय क्षमताओं से सुसम्पन्न होना ऋद्धि सिद्धियों की दृष्टि से अपने विभूति भण्डार भरे रहना सूक्ष्म शरीर के लिए ही सम्भव है।

👉🏼 *स्थूल शरीर(physical body)* - मनुष्य शरीर जो दृश्य है इसे स्थूल शरीर कहते हैं। यह रक्त मांस मज्जा हड्डियों से बना होता है। पदार्थ का गुण हैं क्रिया। शरीर प्रकृत पदार्थों से बना है अस्तु उसमें निर्वाह के निमित्त चलने वाली पाचन रक्ताभिषरण आकुंचन-प्रकुंचन जैसी आन्तरिक गतिविधियों का चलना स्वाभाविक है। निर्वाह के अतिरिक्त शरीर का दूसरा दायित्व हैं सुविधाओं का उपार्जन अवरोधों का निराकरण। यह भी बहिरंग क्रियाशीलता है। शरीर की गतिविधियों का समापन इसी छोटे क्षेत्र में हो जाता है। समस्त प्राणी इसी गतिचक्र में भ्रमण करते हुए शरीर यात्रा पूरी करते हैं। जिनकी क्षमता एवं चेष्टा इसी परिधि में सीमाबद्ध है उन्हें स्थूल शरीर में आवद्ध कहा जाता है।

*स्थूल शरीर समर्थ बनाने के लिए* - स्थूल भोजन (फल दूध सब्जियां जल) , योग-प्राणायाम- व्यायाम द्वारा आरोग्य रक्षा।

👉🏼 *सूक्ष्म शरीर(subtle body)* - मनुष्य का दूसरा कलेवर है। अस्तित्व के प्रत्येक स्तर के संगत एक सूक्ष्म शरीर होता है। *भगवत्गीता के अनुसार सूक्ष्म शरीर के तीन भाग होते हैं- मन, बुद्धि और अहंकार।* सूक्ष्म शरीर, स्थूल शरीर का नियंत्रण करता है। यह इच्छा, विचारणा की दृष्टि से स्थूल शरीर जैसी आदतों का अभ्यस्त हो सकता है, पर उसे निर्वाह के लिए साधन नहीं जुटाने पड़ते। ऋतु प्रभावों से प्रताड़ित नहीं होना पड़ता। मात्र इच्छा और आदत ही भली बुरी क्रिया-प्रतिक्रिया उत्पन्न करती रहती हैं यही उसका स्वनिर्मित परलोक है। स्वर्ग और नरक की भाव संवेदनाओं से सूक्ष्म शरीर धारी इसी स्थिति में आँख मिचौनी खेलता रहता है। दृश्य की दृष्टि से स्थूल शरीर और अदृश्य में प्रखर होने की दृष्टि से सूक्ष्म शरीर वरिष्ठ बैठता है।

*सूक्ष्म शरीर को समर्थ बनाने के लिए* - दृष्टिकोण एवं स्वभाव संस्कार का परिमार्जित करना आवश्यक है। उसके लिए स्वाध्याय, सत्संग, चिन्तन, मनन की आवश्यकता पड़ती है। साथ ही स्वार्थ को घटाने परमार्थ को बढ़ाने के लिए लोक मंगल की सेवा की सेवा साधना को भी चिन्तन तथा व्यवहार के साथ जोड़ना पड़ता है। आदर्शों की कसौटी पर खरा उतरने के लिए शौर्य, पराक्रम एवं त्याग बलिदान की वरिष्ठता का भी परिचय देना पड़ता है। सूक्ष्म शरीर ऐसे ही आधार अपनाने से बलिष्ठ होता है। उसका सहयोग पाकर स्थूल शरीर की क्षमता अनेक गुनी बढ़ जाती है। व्यक्तित्व की प्रखरता प्रतिभा के रूप में प्रकट होती है। असामान्य क्षमताओं के धनी प्राय: इसी स्तर के होते हैं। *कुछ लोगों के सूक्ष्म शरीर पूर्व संचित संस्कार सम्पदा के कारण अनायास भी अपनी विशिष्टता का परिचय देने लगते हैं। किन्तु साधारणतया प्रयत्नपूर्वक ही उसे बलिष्ठ बनाना पड़ता है।*

👉🏼 *कारण शरीर(casual body)* - कारण शरीर को देव शरीर भी कहते हैं, कारण कि पाँचों प्रसिद्ध देवताओं(आकाश, वरुण, पृथ्वी, वायु, अग्नि) की दिव्य शक्तियों का उसमें समावेश रहता है।परमेश्वर को परमपूज्य कहा है और पाँच देव तत्वों का अधिष्ठाता कहा है।

 *कारण शरीर(casual body) को समर्थ बनाने के लिए* -  परमात्मा की उपासना का तात्पर्य है श्रद्धा, निष्ठा, प्रज्ञा की त्रिधा, सद्भावनाओं का संगम। इस समागम को जिसने अन्तरात्मा में धारण कर लिया, समझना चाहिए कि उसने ब्राह्मी स्थिति उपलब्ध कर ली, कारण शरीर को समर्थ बना लिया। स्वर्ग मुक्ति और ऋद्धि, सिद्धी का भण्डार परब्रह्म को माना जाता है। उसका अवतरण जब कभी जहाँ कहीं हुआ है उसे अन्तःकरण का उच्च स्तर एवं कारण शरीर का आधार बिन्दु के रूप में पाया गया है। समस्त सत्प्रवृत्तियों एवं सद्भावनाओं का उद्गम केन्द्र कारण शरीर ही है। *उसी को परिष्कृत और पुष्ट करने के लिए भक्ति भाव की साधना की जाती है।* विवेकानन्द जी और युगऋषि ने जो यह कथन कहा था कि मनुष्य में देवत्व बीज रूप में है, वो इसी कारण शरीर को कहा था। देवत्व का उदय इस कारण शरीर में हो जाता है, तब ही व्यक्तित्व में देवत्व झलकता है।

*तीनों शरीर धारण की समयाविधि* - कौन सा शरीर कितनी समयाविधि के लिए आत्मा धारण करेगी, यह पूर्णतया कर्मफ़ल सिद्धांत पर आधारित है। अतः सभी आत्माओं की अपनी यात्रा है और सबका भिन्न भिन्न समय है। कोई उम्र का निश्चित रूल सब पर लागू नहीं होता।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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