Sunday 23 December 2018

प्रश्न - *दी, सद्चिन्तन की क्यों आवश्यकता है? चलित युगसाहित्य पुस्तकालय क्यों चलायें, मनुष्य में सद्चिन्तन जगाने में यह कैसे सहायक है? अपने विचार दें..*

प्रश्न - *दी, सद्चिन्तन की क्यों आवश्यकता है? चलित युगसाहित्य पुस्तकालय क्यों चलायें, मनुष्य में सद्चिन्तन जगाने में यह कैसे सहायक है? अपने विचार दें..*

उत्तर - आत्मीय भाई, आपके प्रश्न का उत्तर देने से पहले मेरे चार प्रश्न का उत्तर आप दीजिये:-

1- *यदि मुझे मेरे आंगन में कॉकरोच, कीड़े-मकोड़े, रोगाणु-विषाणु, फंगस को बुलाना है तो मुझे क्या करना होगा?*

2- *चींटी बुलाना है तो मुझे क्या करना होगा?*

3- *तितलियों और भौंरो को बुलाना है तो मुझे क्या करना होगा?*

4- *पक्षियों को बुलाने के लिए क्या करना होगा?*

अब तुम बोलोगे ये कैसा प्रश्न है दी, इसके उत्तर तो बड़े आसान है, कोई इनविटेशन कार्ड छपवा के प्रिंट करने की जरूरत नहीं है, कोई फोन या ईमेल करने की जरूरत नहीं निम्नलिखित उपाय काफी होंगे।

👉🏼 पहले केस में गन्दगी, सड़ी-सब्जी, कूड़ा करकट रख तो स्वतः कॉकरोच, कीड़े-मकोड़े, रोगाणु-विषाणु, फंगस आ जाएंगे।

👉🏼 दूसरे केस में गुड़ या मिठाई रख दो स्वतः चींटी आ जायेगी।

👉🏼 तीसरे केस में सुंदर सुंदर रतग बिरंगे पुष्प के पौधे लगा दो स्वतः तितली भौरें आ जाएंगे।

👉🏼 चौथे केस में रोज दाने डालो पक्षी आ जाएंगे।

हाँजी, आपने सही उत्तर दिया, इसी में आपके प्रश्न युगसाहित्य के  चलित पुस्तकालय का उत्तर छिपा है।

हम सभी मनुष्य आकृति से मनुष्य और प्रकृति से भिन्न भिन्न है- जैसे कोई कॉकरोच है, तो कोई चींटी, कोई चूहा, कोई बिल्ली, कोई कुत्ता, कोई पक्षी, कोई पशु और कोई मनुष्य प्रकृति का होता है इत्यादि। जन्म से मनुष्य की आकृति मिलती है और पशु की प्रकृति मिलती है। मनुष्य की प्रकृति - मनुष्यता/इंसानियत जीवन साधना द्वारा प्राप्त की जाती है।

जैसे ही आप चलित पुस्तकालय/ज्ञान रथ/ झोला पुस्तकालय लेकर युगसाहित्य की साहित्य प्रदर्शनी करते हैं, जो मनुष्य प्रकृति के ज्ञान पिपासु होंगें वो स्वतः आप तक आएंगे। उनके लिए कोई कार्ड छपवाने या फोन-ईमेल कर बुलाने की आपको जरूरत नहीं पड़ेगी। जो समस्या में उलझे होंगे और समाधान ढूंढ रहे होंगे वो स्वतः आएंगे। जिनके अंदर मनुष्यता का बीज होगा, देवत्व का बीज होगा वो आपतक आएंगे। युगसाहित्य से स्वयं का निर्माण करेंगे, फिर परिवार निर्माण और अंत मे समाजनिर्माण में सहभागी होंगे।

मन्दिर में केवल उसी धर्म और देवी-देवता को पूजने वाले लोग ही आते हैं। लेकिन चलित पुस्तकालय ज्ञान मन्दिर में सभी जाति धर्म के ज्ञान पिपासु और समाधान चाहने वाले लोग आएंगे।

शक्तिपीठ का वजूद ज्ञान मन्दिर से ही है, साहित्य स्टॉल शक्तिपीठ में तो होना ही चाहिए साथ में प्रत्येक शक्तिपीठ कम से कम दो ज्ञानरथ, करीब दस से बीस चलित पुस्तकालय ज्ञान मन्दिर, करीब दस से बीस छोटे बड़े साहित्य स्टॉल और क़रीब 50 से 60 झोला पुस्तकालय चलाएगा तब जाकर उस क्षेत्र में युगनिर्माण नज़र आएगा। युगनिर्माण का आधार ही विचारों में क्रांति है, विचारों में क्रांति तो युगसाहित्य के स्वाध्याय से ही सम्भव होगी।

*आज समाज में उतपन्न समस्याओं और बीमारियों की जड़ की गहराई में जाओगे तो पाओगे कि मनुष्य का विकृत चिंतन ही समस्याओं की जड़ है। इसका समाधान सद्चिन्तन रूप में युगसाहित्य स्वाध्याय से ही मिलेगा।*

उपरोक्त जो प्रश्न पूँछा था उसे मन  के आँगन से सम्बन्ध कर सोचे तो पाओगे कि...

🐝 कचरा युक्त विकृत चिंतन मन मे करो स्वतः व्यक्तित्व कचरा बन जायेगा, मन अशांत हो जाएगा और आसपास विकृत घटनाएं स्वतः घटने लगेंगी, मनुष्य के विचारों की दुर्गंध उसके कार्य तक पहुंच के समाज को विकृत और अशांत करेगी।

*योग-प्राणायाम, गायत्री मंन्त्र जप- ध्यान -स्वाध्याय मत करो, पशुओं की तरह खाओ, टीवी सीरियल हिंसक, नशा और व्यभिचार को प्रेरित करने वाला नित्य देखो, नशा करो,  बुरी संगत में रहो, इतना काफ़ी है दिमाग़ में विकृत चिंतन उपजाने के लिए, जिससे जीवन स्वतः नर्क बन जाएगा, मन अशांत होगा, शरीर बीमार होगा, विकृत भ्रष्ट चिंतन घर को नरक और समाज को भ्रष्ट बना देगा।*

😇अच्छे विचारों युक्त सदचिंतन मन मे करो स्वतः व्यक्तित्व अच्छा बन जायेगा, मन शांत हो जाएगा और आसपास अच्छी घटनाएं स्वतः घटने लगेंगी, मनुष्य के विचारों की सुगंध उसके कार्य तक पहुंच के समाज को व्यवस्थित, समृद्ध और  शांत करेगी।

*योग-प्राणायाम, गायत्री मंत्रजप-ध्यान -स्वाध्याय नित्य करो, स्वास्थ्य कर मनुष्य की तरह खाओ, टीवी सीरियल हिंसक, नशा और व्यभिचार को प्रेरित करने वाले अनावश्यक मत देखो, नशा मत करो, अच्छी संगत में रहो, इतना काफ़ी है दिमाग़ में सद्चिन्तन  उपजाने के लिए, जिससे जीवन स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन के साथ स्वतः सुंदर बन जाएगा,  सद्चिन्तन से घर धरती का स्वर्ग बनेगा और समाज को श्रेष्ठ बना देगा।*

यह सद्चिन्तन देने का महान कार्य युगसाहित्य द्वारा जो भी करेगा वो पुण्य का भागीदार बनेगा।  किसी क्राइम को प्रेरित करने के लिए भी दण्ड मिलता है, ठीक उसी तरह अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित करने हेतु भी पुण्य मिलता है।

उन सभी भाई बहनों के चरणों मे नमन वंदन जो चलित पुस्तकालय, ज्ञानरथ, साहित्य स्टॉल और झोला पुस्तकालय चला कर समयदान कर रहे हैं , उनके चरणों मे भी प्रणाम जो अंशदान देकर इन कार्यो को गति दे रहे हैं। आप सब युगनिर्माण योजना- मनुष्य में देवत्व जगाने हेतु और धरती पर स्वर्ग अवतरण हेतु सबसे बड़ा कार्य कर रहे हैं। शत शत नमन चरण वंदन🙏🏻

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
https://awgpggn.blogspot.com

No comments:

Post a Comment

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...