प्रश्न - *यदि परिवार के बड़े लोग कड़वे वचन बोलकर बेवजह ताने मारे, कुछ पूंछने पर परिवार वाले बेरुखी से उल्टा जवाब दें, बेवज़ह गुस्से से, चिड़चिड़ापन के साथ जवाब दे। तो ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए।*
उत्तर - आत्मीय बहन मान लो तुम गुस्से में हो... मेरे सामने आते ही तुम मुझे काली बदसूरत बोलो तो मुझे क्या करना चाहिए?
रोना चाहिए😭 या हंसना चाहिए😂😂😂...
अगर तुम मुझे बोलो मेरा कान कौवा ले गया,
तो मुझे क्या करना चाहिए?🤔
😇बहन, पहले मुझे मेरा रंग देखना चाहिए, यदि मैं काली हूँ और बदसूरत स्वयं को मानती हूँ तो नाराज होने की कोई बात ही नहीं क्योंकि सत्य तुम बोल रही हो, यदि मैं गोरी हूँ और स्वयं को सुंदर मानती हूँ तो मुझे हंसने की जरूरत है। क्योंकि तुमने यह मज़ाक किया है।😇
😇तुम्हारी कौवा कान ले गया वाली बातों पर, रिएक्ट करने से पहले मुझे अपने कान चेक करने चाहिए। यदि कान सही जगह है तो तुमने मज़ाक किया है, मुझे हंसने की जरूरत है। यदि सही में कान कट गया और कौवा ले गया तो यह सूचना हुई।😇
नाराज या बुरा लगने की कोई बात ही नहीं है। कोई कड़वा तभी बोलता है जब कड़वाहट से हृदय भरा हो, यदि प्रेम भरा हो तो कड़वाहट बोल मुंह से निकल ही न सकेगा।
🤔मुझे समझ में नहीं आता लोग बुरा क्यों मानते हैं? गुस्सा क्यों होते है?
शायद गुस्सा वो इसलिए होते है क्योंकि वो स्वयं की जिंदगी से नाराज है, स्वयं के अंदर किसी अन्य बात से पहले से ही गुस्सा लिए बैठे है। कोई ट्रिगर मिला तो वो गुस्सा बाहर निकालते है, जो पहले से जमा होता है।👿
तीन गुब्बारे लो, एक में पानी, एक मे हवा और एक मे रंगीन पानी भरो। तीनो में पिन चुभोकर देखो। पिन चुभोने की परिस्थिति एक है, लेकिन रिज़ल्ट रूप में वो निकलेगा जो भरा होगा।🎈🎈🎈
🍵कप में चाय हो तो धक्का लगने पर चाय गिरेगी, पानी भरा हो तो पानी गिरेगा, दूध भरा हो तो दूध गिरेगा।
🙏🏻अतः स्वयं में सुधार की आवश्यकता है, *ॐ इग्नोराय नमः* फ़ैमिली में हर वक्त जपने की आवश्यकता है। स्वयं के गिरेबान में झांक कर, स्वयं के अन्तर्मन की सफाई की आवश्यकता है।
😇अतः, यदि तुम्हारा अन्तर्मन स्वच्छ है, तुम्हारे सहज़ प्रश्न का परिवार वाले बेरुखी से, बेवज़ह गुस्से से, चिड़चिड़ापन के साथ जवाब दे रहे हैं। तो तुम्हें इससे व्यथित होने की आवश्यकता नहीं है। केवल दो मिनट का मौन रखकर *ॐ इग्नोराय नमः - इस व्यक्ति के कड़वे वचनों को हम इग्नोर करते है* जपो और आगे बढ़ो। जैसे ड्राइविंग करते वक्त गड्ढे से गाड़ी निकाल कर आगे बढ़ जाते हो। जैसे बीमार पड़ने पर इलाज करते हो।
बीमारी हो या गड्ढे हो दोनों को दिमाग़ में रखकर चिंता नहीं करते, वैसे ही दिन ब दिन पारिवारिक कड़वे वचनों के गड्ढों को इग्नोर करते हुए आनन्द पूर्वक जियो। उनके वैचारिक कचड़े के लिए अपने दिमाग़ में डस्टबिन की तरह उपयोग मत होने दो। उनका वैचारिक कूड़ा उन्हीं के पास रहने दो, अपने मन में केवल आनन्द भरकर रखो। ध्यान रखो कि तुम्हारा जवाब कड़वा बेरुखा न हो, तुम्हारे अंदर से अच्छे विचार और मुस्कुराहट सन्तो की तरह निकले चाहे जब भी धक्का मिले।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन मान लो तुम गुस्से में हो... मेरे सामने आते ही तुम मुझे काली बदसूरत बोलो तो मुझे क्या करना चाहिए?
रोना चाहिए😭 या हंसना चाहिए😂😂😂...
अगर तुम मुझे बोलो मेरा कान कौवा ले गया,
तो मुझे क्या करना चाहिए?🤔
😇बहन, पहले मुझे मेरा रंग देखना चाहिए, यदि मैं काली हूँ और बदसूरत स्वयं को मानती हूँ तो नाराज होने की कोई बात ही नहीं क्योंकि सत्य तुम बोल रही हो, यदि मैं गोरी हूँ और स्वयं को सुंदर मानती हूँ तो मुझे हंसने की जरूरत है। क्योंकि तुमने यह मज़ाक किया है।😇
😇तुम्हारी कौवा कान ले गया वाली बातों पर, रिएक्ट करने से पहले मुझे अपने कान चेक करने चाहिए। यदि कान सही जगह है तो तुमने मज़ाक किया है, मुझे हंसने की जरूरत है। यदि सही में कान कट गया और कौवा ले गया तो यह सूचना हुई।😇
नाराज या बुरा लगने की कोई बात ही नहीं है। कोई कड़वा तभी बोलता है जब कड़वाहट से हृदय भरा हो, यदि प्रेम भरा हो तो कड़वाहट बोल मुंह से निकल ही न सकेगा।
🤔मुझे समझ में नहीं आता लोग बुरा क्यों मानते हैं? गुस्सा क्यों होते है?
शायद गुस्सा वो इसलिए होते है क्योंकि वो स्वयं की जिंदगी से नाराज है, स्वयं के अंदर किसी अन्य बात से पहले से ही गुस्सा लिए बैठे है। कोई ट्रिगर मिला तो वो गुस्सा बाहर निकालते है, जो पहले से जमा होता है।👿
तीन गुब्बारे लो, एक में पानी, एक मे हवा और एक मे रंगीन पानी भरो। तीनो में पिन चुभोकर देखो। पिन चुभोने की परिस्थिति एक है, लेकिन रिज़ल्ट रूप में वो निकलेगा जो भरा होगा।🎈🎈🎈
🍵कप में चाय हो तो धक्का लगने पर चाय गिरेगी, पानी भरा हो तो पानी गिरेगा, दूध भरा हो तो दूध गिरेगा।
🙏🏻अतः स्वयं में सुधार की आवश्यकता है, *ॐ इग्नोराय नमः* फ़ैमिली में हर वक्त जपने की आवश्यकता है। स्वयं के गिरेबान में झांक कर, स्वयं के अन्तर्मन की सफाई की आवश्यकता है।
😇अतः, यदि तुम्हारा अन्तर्मन स्वच्छ है, तुम्हारे सहज़ प्रश्न का परिवार वाले बेरुखी से, बेवज़ह गुस्से से, चिड़चिड़ापन के साथ जवाब दे रहे हैं। तो तुम्हें इससे व्यथित होने की आवश्यकता नहीं है। केवल दो मिनट का मौन रखकर *ॐ इग्नोराय नमः - इस व्यक्ति के कड़वे वचनों को हम इग्नोर करते है* जपो और आगे बढ़ो। जैसे ड्राइविंग करते वक्त गड्ढे से गाड़ी निकाल कर आगे बढ़ जाते हो। जैसे बीमार पड़ने पर इलाज करते हो।
बीमारी हो या गड्ढे हो दोनों को दिमाग़ में रखकर चिंता नहीं करते, वैसे ही दिन ब दिन पारिवारिक कड़वे वचनों के गड्ढों को इग्नोर करते हुए आनन्द पूर्वक जियो। उनके वैचारिक कचड़े के लिए अपने दिमाग़ में डस्टबिन की तरह उपयोग मत होने दो। उनका वैचारिक कूड़ा उन्हीं के पास रहने दो, अपने मन में केवल आनन्द भरकर रखो। ध्यान रखो कि तुम्हारा जवाब कड़वा बेरुखा न हो, तुम्हारे अंदर से अच्छे विचार और मुस्कुराहट सन्तो की तरह निकले चाहे जब भी धक्का मिले।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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