Thursday, 6 December 2018

प्रश्न - *दी, एक MBA के स्टूडेंट ने प्रश्न पूँछा है कि ईश्वर और सन्त में क्या अंतर है? यह प्रश्न वो अनेक धर्म गुरुओं से पूंछ चुका है लेकिन उत्तर से सन्तुष्ट नहीं हुआ। कृपया अपनी राय बतायें*

प्रश्न - *दी, एक MBA के स्टूडेंट ने प्रश्न पूँछा है कि ईश्वर और सन्त में क्या अंतर है? यह प्रश्न वो अनेक धर्म गुरुओं से पूंछ चुका है लेकिन उत्तर से सन्तुष्ट नहीं हुआ। कृपया अपनी राय बतायें*

उत्तर - आत्मीय दी, यह पोस्ट उस  युवा को फारवर्ड कर दें जिसके मन मे यह गूढ़ प्रश्न उठा है।

आत्मीय बेटे, जिस ऊर्जा से यह संसार गतिमान है। जो दृश्य सूर्य जैसे अनेकों सूर्यो और ग्रह नक्षत्रों और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रकाशित कर रहा है। उसे ही सविता शक्ति, गायत्री शक्ति, ईश्वर, भगवान, परमात्मा, परम चेतना या God इत्यादि कहते हैं।

वह शक्ति निराकार है, लेकिन अपने भक्तों के मानसिक दर्पण में उन्हीं की इच्छानुसार दिखती है या भक्त उसके स्वरूप की कल्पना करता है।

जिस तरह विद्युत ऊर्जा निराकार है, लेकिन उस निराकार शक्ति से साकार विद्युत उपकरण बल्ब, AC, Cooler, Heater, Fan, Machine इत्यादि चलते हैं। अब यदि कोई मूर्खता या अज्ञानतावश पंखे को या बल्ब को ईश्वर मान बैठे और दूसरे से लड़  बैठे तो क्या कहें। यदि बल्ब फ्यूज है तो न जलेगा, यदि कम पॉवर का है तो कम ऊर्जा खींचेगा, यदि ज्यादा पॉवर का है तो ज्यादा ऊर्जा खींचेगा। इसी को अध्यात्म में योग्यता-पात्रता, श्रद्धा-समर्पण कहते है।

सन्त एक तरह से पॉवर बैंक की तरह होता है, वो स्वयं को विभिन्न साधनाओ द्वारा तपाकर के इस योग्य बना लेता है कि उस परम चेतना/परमात्मा/ऊर्जा से जुड़कर उसकी शक्ति के कुछ अंश को स्वयं में धारण कर लेता है। जिस को वो सुपात्र समझता है या जिस पर दयाद्र् होता है, उसे वो अपनी तप ऊर्जा दान करके विपरीत परिस्थितियो से उबार लेता है। कुछ महान संत साधारण जन की चेतना को ऊर्ध्वगामी बनाने में मदद करते है।

हम उस परम ऊर्जा से डायरेक्ट भी जुड़ सकते हैं, और वाया किसी सन्त/सद्गुरु के भी जुड़ सकते हैं। उदाहरण स्वरूप स्वयं को मोबाइल जैसा मानो, तुम डायरेक्ट बिजली के प्लग(परमात्मा) से भी चार्ज हो सकते हो और किसी पॉवर बैंक(सन्त) से भी चार्ज हो सकते हो।

गायत्री मंत्र जप, ध्यान और यज्ञ भी उस परमचेतना से जुड़ने का ही माध्यम है।

किस कम्पनी का वायर के प्रयोग से ऊर्जा को स्वयं तक लाते हो, इससे ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता। इसी तरह किस माध्यम जल से वायु से ध्वनि से बायोगैस से या सोलर एनर्जी से या कोयला इत्यादि ऊर्जा उतपन्न करते हो, इससे भी ऊर्जा को फर्क नहीं पड़ता। ऊर्जा तो ऊर्जा ही है। इसी तरह किसी भी धर्म सम्प्रदाय या किसी भी मंन्त्र यंत्र या किसी भी तप-योग विधि को अपनाते हो, और सही तकनीक जानते हो, दिशा सही है तो उसी परम चेतना/ऊर्जा/प्रकाश तक ही पहुंचोगे।

पूरे समुद्र को प्रयोग शाला में लाना असम्भव है, लेकिन कप में कुछ जल समुद्र का लाकर प्रयोग किया जा सकता है। यदि कप में भरे जल को प्रयोगशाला में एनालिसिस करके समुद्र के गुण धर्म पता लगा सकते हो। इसी तरह उस परम् चेतना/ऊर्जा का एक बूंद तुम्हारी आत्मा में भी है। यदि उसे जानना चाहते हो तो स्वयं के मूल रूप को जान जाओ तो भी उसे जान सकोगे। क्योंकि यह चेतन को जानने का मार्ग है, अतः स्थूल उपकरण काम न आएंगे, शरीर रूपी स्थूल उपकरण को जब तुम तप द्वारा प्रकाशित करोगे तो उसकी अनुभूति कर सकोगे। स्वयं को जानने के लिए बाहर की ओर नहीं बल्कि भीतर की ओर यात्रा करनी होगी, उस ईश्वर की अनुभूति करने के लिए स्वयं के अंतर्जगत को ही प्रयोगशाला बनाना पड़ेगा, ज्यों ज्यों भीतर की ओर बढोगे प्रकाशित होते चलोगे ।

इस आध्यात्मिक यात्रा में कुछ पुस्तकें सहायक है, इन्हें पढो:-

1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
2- ईश्वर कौन है कहाँ है कैसा है?
3- मैं क्या हूँ
4- प्रसुप्ति से जागृति की ओर
5- गायत्री महाविज्ञान

हम अध्यात्म मार्ग के पथिक है, इस रास्ते मे ही परम आनन्द और प्रकाश की अनुभूति हो रही है, तो सोचो जब मंजिल मिलेगी तो कैसा अभूतपूर्व आनन्द मिलेगा वो अकल्पनीय होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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