Wednesday, 9 January 2019

प्रश्न - *मेरी एक बहन से गाड़ी चलाते समय दुर्घटना हो गयी थी उसके बाद से वो बहुत डरने लग गयी है नींद भी ढंग से नहीं आती और मोटरसाइकिल पर बैठने में भी डरती है। उसका डर कैसे दूर करे। मन्त्र लेखन भी करती है।बहुत चिड़चिड़ी हो गयी है।*

प्रश्न - *मेरी एक बहन से गाड़ी चलाते समय दुर्घटना हो गयी थी उसके बाद से वो बहुत डरने लग गयी है नींद भी ढंग से नहीं आती और मोटरसाइकिल पर बैठने में भी डरती है। उसका डर कैसे दूर करे। मन्त्र लेखन भी करती है।बहुत चिड़चिड़ी हो गयी है।*

उत्तर - आत्मीय बहन अपनी बहन को यह पोस्ट फारवर्ड कर दीजिए:-

आत्मीय बहन, कभी कभी दिमाग़ में कोई घटना ऐसे बुरी तरह से फंस जाती है कि उससे बाहर निकलना संभव नहीं हो पाता है। यह एक प्रकार का दिमाग़ी कब्ज़ होता है जिसके कई इलाज़ इस संसार मे मौजूद है।

1- यदि पहली रोटी बनाते वक़्त रोटी जलने या हाथ जलने पर स्त्री भयग्रस्त होकर हाल छोड़ दे तो वो कभी भोजन न बना पाएगी।

2- यदि साइकल, बाइक या गाड़ी चलाते वक़्त कोई छोटी या बड़ी दुर्घटना हो जाये तो भयग्रस्त होकर यदि कोई गाड़ी चलाना छोड़ दे तो वो कभी वाहन चलाने में कुशल न हो पायेगा।

3- डॉक्टर सर्जन से पूंछो कभी कभी मरीज़ की रिपोर्ट परफेक्ट होती है, लेकिन फिर भी मरीज़ मर जाता है। कभी कभी डॉक्टर जानता है कि यह मरीज़ नहीं बचेगा, लेकीन वह बच जाता है। डॉक्टर यदि भयग्रस्त हो जाये तो इलाज कैसे करेगा?

4- सैनिक के जीवन में दुबारा कोई चांस ही नहीं मिलता, अनिश्चितता से भरा जीवन होता है, फिर भी वो अंतिम श्वांस तक बहादुरी से जीता है। 26/11 आतंकी हमले में रेस्क्यू ऑपरेशन करने गए कमांडो ने जीवन में कभी फ़ाइव स्टार होटल नहीं देखा था। फ़िर भी लोगों बचाया और आतंकियों को मारा।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
बहन, *तुम्हारे दिमाग़ में फँसी बात तो तुम स्वतः ही निकाल सकती हो, कोई और तुम्हारे दिमाग़ में प्रवेश कैसे करेगा? तुम्हारे द्वारा मन की सृष्टि बनी है उसे केवल तुम जब चाहोगी तब ही बदल सकती हो। भय का निर्माण तुमने किया है सोच सोच कर के, अब उसी भय का संघार भी तुम ही करोगी साहस के विचार सोच सोच करके..*

दुर्घटना हो गयी, तो हो गयी। प्रारब्ध घट गया। बीमारी होती है तो उसके लिए कोई जिम्मेदार नहीं होता, हम किसी को नहीं ढूंढते दोषारोपण के लिए, केवल डॉक्टर सही ढूंढकर इलाज करवाते है। जीवन में हुई दुर्घटना जीवन की एक बीमारी/अवरोध है इसे बुद्धिमत्ता से समझकर इसे दूर करो और आगे बढ़ जाओ।

👉🏼 *प्रत्येक दिन  स्वयं का नया जन्म मानो, प्रत्येक रात स्वयं की मौत मानो। जो वर्तमान दिन है उसे पूरे जिंदादिली से जियो, बेहतर जियो।*

*जो बीत गया वो भी तुम्हारे अब कंट्रोल में नहीं है, और जो भविष्य है वो भी तुम्हारे कंट्रोल में नहीं है। केवल वर्तमान तुम्हारे हाथ मे है। इसे तुम्हें निज प्रयत्नों और विवेक से ही संवारना है।*

मनुष्य ने ऐसी कोई मशीन नहीं बनाने में सफलता पाई, जिसमें अन्न, सब्जी और फ़ल डालें और वो रक्त बना दे। ऐसी भी कोई मशीन नहीं बनाई जिसमें चारा डाले और दूध निकल आवे। इसी तरह कोई इंजेक्शन इस संसार में नहीं बना है जो किसी के अंदर से भय के विचार निकाल दे और साहस के विचार भर दे।

👉🏼 *इसलिए भगवान की बनाई सृष्टि को समझो और मन में स्वयं द्वारा बनाई सृष्टि को समझो और उसे हैंडल करना/प्रबंधन करना सीखो।*

अतः भगवान के बनाये ब्रह्माण्ड की लाखों गैलेक्सी की एक गैलेक्सी, उस एक गैलेक्सी के लाखों ग्रहों में से एक ग्रह में, उस ग्रह के कई सारे देश मे से एक देश भारत में, इस भारत देश के कई राज्यों में से एक राज्य, उसके कई शहरों में से एक शहर में, उस शहर के भी एक स्थान में, अरबों जनसँख्या में से एक इंसान तुम हो। लेकिन यह शरीर भी तो तुम नहीं हो। यह शरीर रूपी वस्त्र तुम पहने हो और एक दिन यह यही छूट जाएगा और नए जन्म मे नया शरीर मिलेगा।

👉🏼 *उदाहरण* - मेरा नाम श्वेता चक्रवर्ती है, जब मृत्यु होगी और आत्मा यह शरीर त्याग देगी।  तो मेरे जिस शरीर को तुम श्वेता कहते हो, उसे बॉडी कहना शुरू हो जाएगा। लोग कहेंगे श्वेता चक्रवर्ती जी की मृत्यु हो गयी, चलो इनके पार्थिव शरीर को अग्नि में समर्पित कर दें। चिता तो ऐसी कई बार सजी होगी, कई जन्मों में कई बार...हैं न...फिर मृत्यु से कैसा भय?

*जब मैं(आत्मा) कभी मर ही नहीं सकती, तो फिर शरीर रुपी वस्त्र के फ़टने या छूटने के गम या भय क्यों मनाऊँ?*

अतः बहन भय त्याग के मुक्त और योगियों सा जीवन जियो। निर्भय रहो और आनन्दित रहो। न परिस्थिति तुम्हारे हाथ मे है और न ही प्रारब्ध, तुम्हारे हाथ में केवल प्रयास है। अतः बेहतर जीवन जीने का प्रयास करो और ईश्वर के निमित्त बन कार्य करो। रोज गायत्री जप, ध्यान, स्वाध्याय और लोकसेवा करो और वीरांगनाओं के जीवन चरित्र पढ़ो।

*भय को पकड़ा तुमने है तो छोड़ोगी भी तुम ही। पुरानी बीती हुई यादों के खंडहर में जीने का कोई लाभ नहीं, इससे बाहर आओ। मन के भीतर कुछ भी स्थूल नहीं और तुम्हारे मन मे कोई प्रवेश भी नहीं कर सकता। अतः भय को समझो, जो हुआ उसे स्वीकारो, अब आगे क्या करना है? उस पर विचार करो।*

पढ़ कर ही पास हुआ जा सकता है, टेंशन करके नहीं। इसी तरह जितनी मात्रा में भूल हुई है अर्थात गड्ढा हुआ है, उतनी मात्रा में तप और पुण्य कर्म करके उस गड्ढे को भर दो। प्रायश्चित कर लो, और नए सिरे से जीवन जियो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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