*श्रीमद्भागवत गीता, अध्याय 1, श्लोक 20 से 24*
(अर्जुन द्वारा सैन्य-निरीक्षण)
अर्जुन उवाचः
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः ।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ॥ (२०)
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥ (२१)
भावार्थ : हे राजन्! इसके बाद हनुमान से अंकित पताका लगे रथ पर आसीन पाण्डु पुत्र अर्जुन ने धनुष उठाकर तीर चलाने की तैयारी के समय धृतराष्ट्र के पुत्रों को देखकर हृदय के सर्वस्व ज्ञाता श्री कृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहा कि हे अच्युत! कृपा करके मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खडा़ करें। (२०-२१)
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् ।
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥ (२२)
भावार्थ : जिससे मैं युद्धभूमि में उपस्थित युद्ध की इच्छा रखने वालों को देख सकूँ कि इस युद्ध में मुझे किन-किन से एक साथ युद्ध करना है। (२२)
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः ।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥ (२३)
भावार्थ : मैं उनको भी देख सकूँ जो यह राजा लोग यहाँ पर धृतराष्ट् के दुर्बुद्धि पुत्र दुर्योधन के हित की इच्छा से युद्ध करने के लिये एकत्रित हुए हैं। (२३)
संजय उवाचः
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥ (२४)
भावार्थ : संजय ने कहा - हे भरतवंशी! अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर हृदय के पूर्ण ज्ञाता श्रीकृष्ण ने दोनों सेनाओं के बीच में उस उत्तम रथ को खड़ा कर दिया। (२४)
*युगसन्देश:- वर्तमान जीवन में हम सब अर्जुन की तरह ऐसे युद्ध का हिस्सा हैं, जो हम लड़ना नहीं चाहते। फ़िर भी लड़ने को बाध्य हैं। यह महाभारत युद्ध मन में दो विचारधाराओं के बीच, परिवार में, ऑफिस में सर्वत्र है। इन सभी युद्धों में जीतेगा वही जो धर्म पर होगा। जिसके बुद्धि रथ पर ईश्वर होगा। जिसने वैभव और नारायणी सेना को ठुकरा कर बिना अस्त्र धारण किए श्रीकृष्ण को चुनने का दुस्साहस किया होगा। जिसने स्वयं के बुद्धि रथ की बागडोर श्रीकृष्ण को समर्पित कर दी होगी। वही अंत मे विजयी होगा।*
🙏🏻श्वेता, DIYA
(अर्जुन द्वारा सैन्य-निरीक्षण)
अर्जुन उवाचः
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः ।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ॥ (२०)
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥ (२१)
भावार्थ : हे राजन्! इसके बाद हनुमान से अंकित पताका लगे रथ पर आसीन पाण्डु पुत्र अर्जुन ने धनुष उठाकर तीर चलाने की तैयारी के समय धृतराष्ट्र के पुत्रों को देखकर हृदय के सर्वस्व ज्ञाता श्री कृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहा कि हे अच्युत! कृपा करके मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खडा़ करें। (२०-२१)
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् ।
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥ (२२)
भावार्थ : जिससे मैं युद्धभूमि में उपस्थित युद्ध की इच्छा रखने वालों को देख सकूँ कि इस युद्ध में मुझे किन-किन से एक साथ युद्ध करना है। (२२)
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः ।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥ (२३)
भावार्थ : मैं उनको भी देख सकूँ जो यह राजा लोग यहाँ पर धृतराष्ट् के दुर्बुद्धि पुत्र दुर्योधन के हित की इच्छा से युद्ध करने के लिये एकत्रित हुए हैं। (२३)
संजय उवाचः
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥ (२४)
भावार्थ : संजय ने कहा - हे भरतवंशी! अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर हृदय के पूर्ण ज्ञाता श्रीकृष्ण ने दोनों सेनाओं के बीच में उस उत्तम रथ को खड़ा कर दिया। (२४)
*युगसन्देश:- वर्तमान जीवन में हम सब अर्जुन की तरह ऐसे युद्ध का हिस्सा हैं, जो हम लड़ना नहीं चाहते। फ़िर भी लड़ने को बाध्य हैं। यह महाभारत युद्ध मन में दो विचारधाराओं के बीच, परिवार में, ऑफिस में सर्वत्र है। इन सभी युद्धों में जीतेगा वही जो धर्म पर होगा। जिसके बुद्धि रथ पर ईश्वर होगा। जिसने वैभव और नारायणी सेना को ठुकरा कर बिना अस्त्र धारण किए श्रीकृष्ण को चुनने का दुस्साहस किया होगा। जिसने स्वयं के बुद्धि रथ की बागडोर श्रीकृष्ण को समर्पित कर दी होगी। वही अंत मे विजयी होगा।*
🙏🏻श्वेता, DIYA
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