Tuesday, 5 February 2019

गायत्री मंत्र जप के नियम और विधि

*गायत्री मंत्र जप के नियम और विधि*

यह आलेख उन सभी के लिए है जो मंत्र की शक्ति तो जानते है पर जप विधि में ध्यान नही दे पाते | मंत्र को कैसे सिद्ध करे और उसका पूर्ण लाभ उठाने के लिए ध्यान से पढ़े मंत्र से जुड़े मुख्य नियम |

👉🏼 *मंत्र जप के लिए बैठने का आसन*: मंत्र को सिद्ध करने के लिए और उसका पूर्ण लाभ उठाने के लिए सबसे पहले सही आसन का चुनाव करे | हमारे ऋषि मुनि सिद्धासन का प्रयोग किया करते थे | इसके अलावा पद्मासन , सुखासन , वीरासन या वज्रासन भी काम में लिया जा सकता है |
👉🏼 *समय का चुनाव* : मंत्र साधना के लिए आप सही समय चुने | जब आप आलस्य से दूर और वातावरण शांत हो | इसके लिए ब्रह्म मुहूर्त अर्थात् सूर्योदय से पूर्व का समय उपयुक्त है | संध्या के समय पूजा आरती के बाद भी जप का समय सही माना गया है | मौन मानसिक जप या मन्त्रलेखन किसी भी वक्त किया जा सकता है। जरूरत पड़ने पर दोपहर के वक्त भी जप किया जा सकता है।

👉🏼 * षट्कर्म और देवावाहन* - जल से जप के पूर्व पवित्रीकरण, आचमन, शिखा बन्धन, प्राणायाम और न्यास अवश्य करें। ततपश्चात पृथिवी पूजन। उसके बाद गुरु गायत्री का आह्वाहन करें।

👉🏼 *दीपक प्रज्ववलन और कलश स्थापना* - जप से पूर्व दीपक जला लें और एक लोटे जल में मिश्री के एक दो दाने डालकर रख दें।जप के बाद शांतिपाठ मंन्त्र में उस लोटे से जल लेकर स्वयं के ऊपर छिड़क लें। फ़िर जल को सूर्य को तुलसी के गमले में अर्पित कर दें।

यदि अकेले हॉस्टल में रहते हो और दीपक घी का जलाने में असुविधा है तो अगरबत्ती जला लो। अगर कुछ भी संभव नहीं तो एक ग्लास या लोटे जल को समक्ष  रख के आह्वाहन करके जप कर लो।

👉🏼 *एकाग्रचित ध्यान* : मंत्र जप करते समय आपका ध्यान और मन एकाग्रचित होना चाहिए | आपको बिल्कुल भी बाहरी दुनिया में ध्यान नही देना चाहिए | मन दूसरी बातो में ना लगे | जिस देवता का आप मंत्र उच्चारण कर रहे है बस उन्हें रूप का ध्यान करते रहे |
👉🏼 *मंत्र जाप दिशा* : ध्यान रखे मंत्र का जाप करते समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए |

👉🏼 *माला और आसन नमन* : जिस आसन पर आप बैठे हो और जिस माला से जाप करने वाले हो , उन दोनों को मस्तिष्क से लगाकर  नमन करे |

👉🏼 *माला का चयन* : आप जिस देवता के मंत्र का जाप कर रहे है , उनके लिए बताई गयी उस विशेष माला से ही मंत्र जाप करे | शिवजी के लिए रुद्राक्ष की माला तो माँ दुर्गा के रक्त चंदन की माला बताई गयी है | गायत्री मंत्र सद्बुद्धि का मंन्त्र है इसके लिए तुलसी की माला सर्वोत्तम है। रुद्राक्ष की माला से भी गायत्री मंत्र जपा जा सकता है।

👉🏼 *आसन में बैठने हेतु बिछाने वाले आसन का चयन* - जप व पूजन के लिए कुस का आसन सर्वोत्तम है।गृहस्थों के लिए श्वेत या पीला या लाल रंग का कम्बल या शॉल या ऊनी वस्त्र का आसन सर्वोत्तम है।

👉🏼 *माला छिपाकर करे जाप* : मंत्र उच्चारण करते समय माला को कपडे की थैली में रखे | माला जाप करते समय कभी ना देखे की कितनी मोती शेष बचे है | इससे अपूर्ण फल मिलता है |

👉🏼 *मंत्रो का सही उच्चारण* : ध्यान रखे की जैसा गायत्री मंत्र बताया गया है वो ही उच्चारण आप करे | गायत्री मंत्र उच्चारण में गलती ना करे |

👉🏼 *उपांशु जप* - होठ हिले और हल्की फुसफुसाहट सी हो लेकिन बगल में बैठा व्यक्ति भी मंन्त्र न सुन सके। ऐसे जपना है, जिससे मुख का अग्निचक्र एक्टिवेट हो जाये।

👉🏼 *माला को फेरते समय* : माला को फेरते समय दांये हाथ के अंगूठे और मध्यमा अंगुली का प्रयोग करे | माला पूर्ण होने पर सुमेरु को पार नही करे | माला पूरी होने पर माला को प्रणाम करके माथे पर लगाएं । फ़िर जप पुनः प्रारम्भ करें।

👉🏼 *एक ही समय* : मंत्र जाप जिस समय पर आप कर रहे है अगले दिन उसी समय पर जाप करे |

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*गायत्री मन्त्र जप /उच्चारण मात्र से स्वचालित प्रक्रिया द्वारा शरीर की 24  ग्रन्थियों (चक्रों) के जागरण, स्फुरण का रहस्य*~

( *गायत्री के ग्रन्थि योग का परिचय* - Reference book - *गायत्री महाविज्ञान और प्रसुप्ति से जागृति की ओर*)

1. मनुष्य की देह में जो चक्र और ग्रन्थियाँ गुप्त रूप से रहती हैं- वे चक्र और ग्रन्थियाँ मनुष्य के शुद्ध ह्रदय में प्रचण्ड प्रेरणा को प्रदान करती हैं। उन समस्त चक्र और ग्रन्थियों को जाग्रत करके साधना में रत मनुष्य कुण्डलिनी का साक्षात्कार करता है। वह ही ग्रन्थि योग कहलाता है।

2. गायत्री के अक्षरों का गुम्फन ऐसा है जिससे समस्त गुह्म ग्रन्थियाँ जाग्रत हो जाती हैं। जाग्रत हुई ये सूक्ष्म ग्रन्थियाँ साधक के मन में निस्सन्देह शीघ्र ही दिव्य शक्तियों को पैदा कर देती हैं।

3. मनुष्यों के अन्तःकरण में गायत्री मन्त्र के अक्षरों से सूक्ष्म भूत चौबीस शक्तियाँ प्रकट होती हैं।

4. मनुष्य के शरीर में अनेकों सूक्ष्म ग्रन्थियाँ होती हैं, जिनमें से छै प्रधान ग्रन्थियों/चक्रों का सम्बन्ध कुण्डलिनी-शक्ति जागरण से है। यथा शून्य चक्र, आज्ञा चक्र, विशुद्धारष्य चक्र, अनाहत चक्र, मणिपूरक चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र एवं मूलाधार चक्र। उनके अतिरिक्त और भी अनेकों महत्वपूर्ण ग्रन्थियाँ हैं, जिनका जागरण होने से ऐसी शक्तियों की प्राप्ति होती है, जो जीवनोन्नति के लिए बहुत ही उपयोगी हैं।

5. हमें ज्ञात है कि विभिन्न अक्षरों का उच्चारण मुख के विभिन्न स्थानों से होता है- कुछ का कंठ से, तालू से, होठों एवं दाँतों आदि स्थानों से। जिन स्थानों से गायत्री के विभिन्न शब्दों अक्षरों का मूल उद्गम है वे स्थान भिन्न हैं। शरीर के अन्तर्गत विविध स्थानों के स्नायु समूह तथा नाडी तन्तुओं का जब स्फुरण होता है तब उस शब्द का पूर्व रूप बनता है जो मुख में जाकर उसके किसी भाग से प्रस्फुटित होता है।

6. गायत्री के 24 अक्षर इसी प्रकार के हैं, जिनका उद्गम स्थान इन 24 ग्रन्थियों पर है। जब हम गायत्री मन्त्र का उच्चारण करते हैं तो क्रमशः इन सभी ग्रन्थियों पर आघात पहुँचता है और वे धीरे-धीरे सुप्त अवस्था का परित्याग करके जागृति की ओर चलती हैं। हारमोनियम बजाते समय जिस परदे/ बटन पर हाथ रखते हैं, वह स्वर बोलने लगता है। इसी प्रकार इन 24 अक्षरों के उच्चारण से वे 24 ग्रन्थियाँ झंकृत होने लगती हैं। इस झंकार के साथ उनमें स्वयंमेव (Automatically) जागृति की विद्युत दौड़ती है। फलस्वरूप धीरे-धीरे साधक में अनेकों विशेषतायें पैदा होती जाती हैं और उसे अनेकों प्रकार के भौतिक तथा आध्यात्मिक लाभ मिलने लगते हैं।

7. गायत्री मन्त्र के चौबीसों अक्षर अपने-अपने स्थान पर अवस्थिति उन शक्तियों को जगाते हैं - जिनके फलस्वरूप विविध प्रकार के लाभ होते हैं। इतने महान लाभों के लिए कोई पृथक क्रिया नहीं करनी पड़ती, केवल गायत्री मन्त्र के शब्दोच्चारण मात्र से स्वयंमेव ग्रन्थि जागरण होता चलता है और साधक से अपने आप ग्रन्थि योग की साधना होती चलती है।

8. सम्भवतः यही कारण है कि हिन्दू धर्म ग्रन्थों में, प्रत्येक धार्मिक क्रिया में, पूजा-पाठ में, दैनिक सन्ध्या उपासना में, विभिन्न संस्कारों में-  जब भी हो सके अधिकाधिक एवं बार-बार गायत्री मन्त्र का उच्चारण / पाठ / जप करने का विधि-विधान सम्मिलित किया गया है।

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*बुद्धिकुशलता और मानसिक संतुलन बढ़ाने की दिव्य औषधि - गायत्री मंत्र*

1- गायत्री मंत्र जप वह विद्या है, जिससे मानसिक संतुलन और बौद्धिक कुशलता सहज़ ही पाई जा सकती है। दवाईयां और मंन्त्र साम्प्रदायिक नहीं होते। दवा हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जो खायेगा उसे असर करेगी, संस्कृत में गायत्री मंत्र जो हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जपेगा उसे मानसिक सन्तुलन और बौद्धिक कुशलता मिलेगी।
रेफरेन्स के लिए AIIMS  के डॉक्टर रामा जयसुंदर की मेडिकल रिसर्च समझें:-

https://youtu.be/9UgLBVs7k6o

https://youtu.be/30bJ4SKHgbs

https://www.sbs.com.au/yourlanguage/hindi/en/article/2018/05/17/could-chanting-ancient-sanskrit-mantras-increase-size-your-brain

2- डॉक्टर रामा जयसुन्दर ने अपने रिसर्च में यह भी सिद्ध किया कि गायत्री मंन्त्र संस्कृत में पढ़ने पर ही प्रभावशाली है, क्योंकि संस्कृत के मंन्त्र की ध्वनियां न्यूरोसिस्टम पर असर डालती है। इसका ट्रांसलेशन करके अन्य भाषा मे पढ़ना कम लाभप्रद है।

3- आज की पाश्चात्य की अन्धनकलची मॉडर्न जनता गायत्री मंत्र के वैज्ञानिक लाभ से अंजान है, इसे मात्र धार्मिक कर्मकांड समझती है। जबकि धर्म में इसके प्रवेश का मूल कारण लोगों की बुद्धिकुशलता, बौद्धिकक्षमता और मानसिक संतुलन के साथ निरोगी रहने के लिए इसे जोड़ा गया था।

4- डॉक्टर से पर्ची लिखवा के भी दवा ली जा सकती है और डायरेक्ट दवा की दुकान से भी लेकर उपयोग की जा सकती है। इसीतरह गायत्री जप गुरुदेव से गुरुदीक्षा से लेकर विधिविधान से किया जाता है, और बिना गुरुदीक्षा के गायत्री मंत्र जप कर इसका औषधीय लाभ लिया जा सकता है।

5- इसके बहु आयामी लाभ को देखते हुए ही इसे महामंत्र की वेदों में संज्ञा दी गयी है। भागवत गीता में स्वयं भगवान कृष्ण ने इसका महत्त्व बताया है।

6-  युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने गायत्रीमंन्त्र के लाभ से परिचित थे, उन्होंने इस पर अनेकों शोध करके गायत्री महाविज्ञान नामक पुस्तक भी लिखी है। युगऋषि ने मनुष्य के मानसिक असंतुलन और विकृत चिंतन से उपजी समस्याओं के निदान के लिए गायत्री मंत्र और यज्ञ को चुना। घर घर तक पहुंचाया, जन जन को गायत्री मंत्र जपवाया।

7- आज भी गायत्री परिजन गायत्री मंत्र के लाभ को जन जन तक पहुंचा रहे हैं और लोग अपने जीवन के कष्टों को गायत्री जप के माध्यम से बौद्धिकक्षमता पाकर दूर करने में सफल भी हो रहे हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

5 comments:

  1. गायत्री मंत्र का महत्व शेयर करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद.

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  2. Jap upanshu ya manashik Kare Maharaj ji
    Margdarshan karen
    Better kya rahega

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  3. KiyA Bina mala ka jap Kar sakte ha

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    1. जहा तक मेरा अनुभव है, बिना माला के जप ही सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि उंगली से माला फेरते समय कई बार ध्यान टूट जाता है| समय सीमा तय करने के लिए शायद माला के द्वारा जप अस्तित्व में आया होगा| कुल मिलाकर जिस तरह हमारा ध्यान केंद्रित हो हमें वैसे ही जप करना श्रेयस्कर होगा|

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  4. इतनी अच्छी पोस्ट लिखने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद�� बहुत ही महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी|

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