Monday, 11 February 2019

प्रश्न - *माला में 108 दाने ही क्यों होते हैं? अधिक या कम क्यों नहीं हो सकते?*

प्रश्न - *माला में 108 दाने ही क्यों होते हैं? अधिक या कम क्यों नहीं हो सकते?*

उत्तर - आत्मीय भाई, *अखण्डज्योति पत्रिका के मार्च, 1957 अंक में प्रोफ़ेसर अवधूत, गोरेगांव, महाराष्ट्र ने इस विषय पर विस्तार से लेख दिया है।*

उपासना में जप का स्थान सबसे ऊपर है। राम नाम से लेकर गायत्री मंत्र तक सभी मंत्रों का जप माला पर ही किया जाता है। माला में 108 दाने होते हैं।

*ऋषियों ने प्रत्येक व्यवस्था बहुत विचारपूर्वक और शोध करके की है। माला तथा दानों की संख्या 108 के सम्बंध में निम्न तथ्य विचारणीय हैं-*

 प्रथम तो माला के फेरने से कितना जप हुआ इस बात का ठीक पता चल जाता है।

 *दूसरे अंगुष्ठ और अंगुली के संघर्ष से एक विलक्षण विद्युत उत्पन्न होती है जो धमनी के तार द्वारा सीधी हृदय-चक्र को प्रभावित कर मन को तुरंत ही निश्चल कर देती है।*

 सब कार्यों में नित्य कार्य में आने वाली माला एक सौ आठ दाने की होती है, जिसके ऊपरी भाग में सुमेरु पृथक् रहता है। *माला के इन 108 दानों का अपना विशुद्ध वैज्ञानिक रहस्य है*।

 1- *प्रकृति-विज्ञान की दृष्टि से विश्व में प्रमुख रूप से कुल 27 नक्षत्रों को मान्यता दी गयी है। तथा प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण ज्योतिष-शास्त्र में प्रसिद्ध हैं। 27 को चार-चरणों से गुणाकार करने पर 108 संख्या होती है।*

 अतः 108 संख्या समस्त विश्व का प्रतिनिधित्व करने वाली सिद्ध होती है।

 ब्रह्मांड में सुमेरु की स्थिति सर्वोपरि मानी गयी है। अतः माला में सुमेरु का स्थान सर्वोपरि ही रखा जाता है तथा उसका उल्लंघन नहीं किया जाता।

 2- *दिन-रात में मनुष्य-मात्र के श्वासों की संख्या 21 हजार 6 सौ वेद शास्त्रों में निश्चित की गयी है।*

 *दिन भर के श्वाँस 10800 हुए तथा रात भर के श्वाँसों की संख्या भी 10800 हुई।*

 जप प्रमुख रूप से उपाँशु किया जाता है जिसका फल सामान्य रूप से सौ गुना बताया गया है।

  *अतः प्रातः सायं संध्या में 108-108 जप करने से 108&108= 10800 हुआ।*

 3- *ज्योतिष शास्त्र में समस्त विश्व-ब्रह्मांड को 12-12 भागों में विभाजन किया गया है, जिनको “राशि” की संज्ञा प्रदान की गयी है। तथा प्रमुख रूप से 9 ग्रह माने गये हैं। अतः 12 राशि और 9 ग्रह का गुणनफल 108 होता है।*

 4- सृष्टि का मूल है ब्रह्म, जो कि निर्गुण, निर्विकार नित्य सत्य एवं सत्व युक्त है। उसके उत्पन्न अव्यक्त में इस गुण के अतिरिक्त आवरण शक्ति का प्राधान्य है जिससे उसका स्वभाव दो प्रकार का हो ही जाता है। इससे आगे महत् है, जिसमें उपरोक्त दो गुणों के अतिरिक्त विक्षेप शक्ति का समावेश भी है।

 फलतः वह त्रिगुणात्मक हुआ।

 अहंकार ब्रह्म का चतुर्थावकार है, जो तत्वों के आधिक्य और पूर्ववर्ती पदार्थ के तीन गुणों को भी धारण करने से 4 गुणों वाला हुआ।

 इस प्रकार आकाशादि सभी पदार्थ अपने एक विशेष गुण के साथ पूर्ववर्ती पदार्थों के गुणों से भी युक्त होते हैं। इस प्रकार जो जितने गुणों को धारण करता है, उतने गुणों वाला कहलाता है।

 *1-अव्यक्त-2, महत्-3, अहंकार-4, आकाश-5, वायु-6, तेज-7, जल-8, भूमि-9 और नवगुणात्मक जगत् को धारण करने वाली अपरा 10-प्रकृति=54*

 यह तो सृष्टि क्रिया हुई, अब इसी क्रम में प्रलय प्रक्रिया समझनी चाहिए।

 फलतः ‘सुमेरु’ रूप ब्रह्म से आरम्भ करके 54 उपादानों द्वारा जिस सृष्टि का निर्माण हुआ था, वह 54 उपादानों द्वारा ही प्रलय को प्राप्त होकर 108 की संख्या पूर्ण कर सुमेरु पर ही समाप्त हो जाती है।

अतः उपरोक्त लाभों के कारण ही माला के जप की माला में मोती 108 ही रखे गए। अब यह माला चाहे तुलसी की हो या रुद्राक्ष या अन्य की, संख्या 108 ही होती है। गायत्री जप के लिए तुलसी की माला सर्वश्रेष्ठ होती है और रुद्राक्ष की माला से भी गायत्री जप लाभ देता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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