प्रश्न - *श्वेता जी, हम आपसे आध्यात्मिक पुस्तक मेले में मिले थे, मुझे थोड़ा सतयुग के बारे में बताएं, सतयुग में क्या क्या होगा? सतयुग आने में कितना वक्त लगेगा? सतयुग कब आएगा और कैसा होगा? सतयुग आ गया है इसे पहचानेंगे कैसे? युगनिर्माण योजना का लक्ष्य सतयुग की वापसी ही है न...?*
उत्तर - आत्मीय भाई, चार प्रसिद्ध युगों में सत्य युग(सतयुग) या कृतयुग प्रथम माना गया है।
यद्यपि प्राचीनतम वैदिक ग्रंथों में सत्ययुग, त्रेतायुग आदि युगविभाग का निर्देश स्पष्टतया उपलब्ध नहीं होता, तथापि स्मृतियों एवं विशेषत: पुराणों में चार युगों का सविस्तार प्रतिपादन मिलता है।
पुराणादि में सत्ययुग के विषय में निम्नोक्त विवरण मिलता है -
वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया रविवार को इस युग की उत्पत्ति हुई थी। इसका परिमाण 17,28,000 वर्ष है। इस युग में भगवान के मत्स्य, कूर्म, वराह और नृसिंह ये चार अवतार हुए थे। इस काल में स्वर्णमय व्यवहारपात्रों की प्रचुरता थी। मनुष्य अत्यंत दीर्घाकृति एवं अतिदीर्घ आयुवाले होते थे। इस युग का प्रधान तीर्थ कुरुक्षेत्र था।
इस युग में ज्ञान, ध्यान या तप का प्राधान्य था। प्रत्येक प्रजा पुरुषार्थसिद्धि कर कृतकृत्य होती थी, अत: यह "कृतयुग" कहलाता है। धर्म चतुष्पाद (सर्वत: पूर्ण) था। मनु का धर्मशास्त्र इस युग में एकमात्र अवलंबनीय शास्त्र था। महाभारत में इस युग के विषय में यह विशिष्ट मत मिलता है कि कलियुग के बाद कल्कि द्वारा इस युग की पुन: स्थापना होगी (वन पर्व 191/1-14)। वन पर्व 149/11-125) में इस युग के धर्म का वर्ण द्रष्टव्य है।
ब्रह्मा का एक दिवस 10,000 भागों में बंटा होता है, जिसे चरण कहते हैं:[2]
चारों युग
4 चरण (1,728,000 सौर वर्ष) सत युग
3 चरण (1,296,000 सौर वर्ष) त्रेता युग
2 चरण (864,000 सौर वर्ष) द्वापर युग
1 चरण (432,000 सौर वर्ष) कलि युग
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*यह तो हुआ शास्त्रोक्त वर्णन, अब व्यवहारिक वर्णन सुनिये*:-
👉🏼जब स्वधर्म से अनभिज्ञ हो मोह की निंद्रा में स्वार्थ केंद्रित हो सोते है तो *कलियुग* होता है,
👉🏼जब कर्तव्य पर मोह भारी पड़ता है और ऊंघते हुए स्वधर्म की उपेक्षा *द्वापर युग* है।
👉🏼स्वधर्म का ज्ञान हो और सो नहीं रहे लेकिन प्रवचन में है आचरण में नहीं उतरा तो *त्रेता युग* है।
👉🏼लेकिन जब स्वधर्म का ज्ञान है आत्मतत्व के लिए बोध है, और सत्य धर्म आचरण में है, अनवरत स्वधर्म पालन चैतन्य अवस्था में हो रहा है। तो यही *सतयुग* है।
*उदाहरण* - एक पैसों से भरा बैग मिला उसे पुलिस को लौटा दिया, फिर पुलिस ने उस व्यक्ति को लौटा दिया। वह व्यक्ति निश्चिंत वो पैसा ले सका, क्योंकि वो उसकी काली कमाई नहीं थी, कमाया हुआ टेस्ट चुकाया हुआ पैसा था। *यह सतयुग है।* सबके आचरण में सत्य है।
एक लड़की बिना भय के रात्रि में पूरे श्रृंगार के साथ करोड़ो का जेवर पहन के एक स्थान से दूसरे स्थान चली जाए, घर पहुंच जाए। न किसी के मन में गहने चुराने का विचार आये और न ही किसी के मन मे उसकी इज्जत लूटने का विचार आये। ऐसे सुरक्षित समाज को *सतयुग* कहेंगें।
इसलिए गुरुदेव कहते हैं- स्वयं का सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है। शिक्षण शब्दों से नहीं बल्कि आचरण से दें।
सतयुग की वापसी वही कर सकेगा, जो सतयुग के लिए पहले स्वयं को बदल सकेगा। स्वयं में देवत्व जगा सकेगा। युगनिर्माण योजना - वास्तव में जनमानस के सोच, प्रवृत्तियों को परिष्कृत कर पुनः सत्य की ओर उन्मुख करने की विधिव्यवस्था है। जब लगभग 90% लोगों की सोच और आचरण में सत्य का अनुसरण दिखने लग जाएगा तब वह युग सत्य युग कहलायेगा।
सतयुग की वापसी कैसे होगी, सतयुग कब तक आएगा इसे विस्तार से ऑनलाइन निम्नलिखित लिंक पर जाकर पढ़ें:-
http://literature.awgp.org/book/satyug_ki_vapasee/v1.2
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई, चार प्रसिद्ध युगों में सत्य युग(सतयुग) या कृतयुग प्रथम माना गया है।
यद्यपि प्राचीनतम वैदिक ग्रंथों में सत्ययुग, त्रेतायुग आदि युगविभाग का निर्देश स्पष्टतया उपलब्ध नहीं होता, तथापि स्मृतियों एवं विशेषत: पुराणों में चार युगों का सविस्तार प्रतिपादन मिलता है।
पुराणादि में सत्ययुग के विषय में निम्नोक्त विवरण मिलता है -
वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया रविवार को इस युग की उत्पत्ति हुई थी। इसका परिमाण 17,28,000 वर्ष है। इस युग में भगवान के मत्स्य, कूर्म, वराह और नृसिंह ये चार अवतार हुए थे। इस काल में स्वर्णमय व्यवहारपात्रों की प्रचुरता थी। मनुष्य अत्यंत दीर्घाकृति एवं अतिदीर्घ आयुवाले होते थे। इस युग का प्रधान तीर्थ कुरुक्षेत्र था।
इस युग में ज्ञान, ध्यान या तप का प्राधान्य था। प्रत्येक प्रजा पुरुषार्थसिद्धि कर कृतकृत्य होती थी, अत: यह "कृतयुग" कहलाता है। धर्म चतुष्पाद (सर्वत: पूर्ण) था। मनु का धर्मशास्त्र इस युग में एकमात्र अवलंबनीय शास्त्र था। महाभारत में इस युग के विषय में यह विशिष्ट मत मिलता है कि कलियुग के बाद कल्कि द्वारा इस युग की पुन: स्थापना होगी (वन पर्व 191/1-14)। वन पर्व 149/11-125) में इस युग के धर्म का वर्ण द्रष्टव्य है।
ब्रह्मा का एक दिवस 10,000 भागों में बंटा होता है, जिसे चरण कहते हैं:[2]
चारों युग
4 चरण (1,728,000 सौर वर्ष) सत युग
3 चरण (1,296,000 सौर वर्ष) त्रेता युग
2 चरण (864,000 सौर वर्ष) द्वापर युग
1 चरण (432,000 सौर वर्ष) कलि युग
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*यह तो हुआ शास्त्रोक्त वर्णन, अब व्यवहारिक वर्णन सुनिये*:-
👉🏼जब स्वधर्म से अनभिज्ञ हो मोह की निंद्रा में स्वार्थ केंद्रित हो सोते है तो *कलियुग* होता है,
👉🏼जब कर्तव्य पर मोह भारी पड़ता है और ऊंघते हुए स्वधर्म की उपेक्षा *द्वापर युग* है।
👉🏼स्वधर्म का ज्ञान हो और सो नहीं रहे लेकिन प्रवचन में है आचरण में नहीं उतरा तो *त्रेता युग* है।
👉🏼लेकिन जब स्वधर्म का ज्ञान है आत्मतत्व के लिए बोध है, और सत्य धर्म आचरण में है, अनवरत स्वधर्म पालन चैतन्य अवस्था में हो रहा है। तो यही *सतयुग* है।
*उदाहरण* - एक पैसों से भरा बैग मिला उसे पुलिस को लौटा दिया, फिर पुलिस ने उस व्यक्ति को लौटा दिया। वह व्यक्ति निश्चिंत वो पैसा ले सका, क्योंकि वो उसकी काली कमाई नहीं थी, कमाया हुआ टेस्ट चुकाया हुआ पैसा था। *यह सतयुग है।* सबके आचरण में सत्य है।
एक लड़की बिना भय के रात्रि में पूरे श्रृंगार के साथ करोड़ो का जेवर पहन के एक स्थान से दूसरे स्थान चली जाए, घर पहुंच जाए। न किसी के मन में गहने चुराने का विचार आये और न ही किसी के मन मे उसकी इज्जत लूटने का विचार आये। ऐसे सुरक्षित समाज को *सतयुग* कहेंगें।
इसलिए गुरुदेव कहते हैं- स्वयं का सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है। शिक्षण शब्दों से नहीं बल्कि आचरण से दें।
सतयुग की वापसी वही कर सकेगा, जो सतयुग के लिए पहले स्वयं को बदल सकेगा। स्वयं में देवत्व जगा सकेगा। युगनिर्माण योजना - वास्तव में जनमानस के सोच, प्रवृत्तियों को परिष्कृत कर पुनः सत्य की ओर उन्मुख करने की विधिव्यवस्था है। जब लगभग 90% लोगों की सोच और आचरण में सत्य का अनुसरण दिखने लग जाएगा तब वह युग सत्य युग कहलायेगा।
सतयुग की वापसी कैसे होगी, सतयुग कब तक आएगा इसे विस्तार से ऑनलाइन निम्नलिखित लिंक पर जाकर पढ़ें:-
http://literature.awgp.org/book/satyug_ki_vapasee/v1.2
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
युग तो आते है जाते है,युगों के चक्रीय परिभ्रमण में धर्म के उत्थान और पतन का मूल कारक ईश्वर स्वयं होता है।प्रकृति के संतुलन के लिए यह आवश्यक है कि त्रि युगों के धर्म के तुल्य कलिकाल में अधर्म का प्रभाव बढे।
ReplyDeleteवास्तविकता में कलिकाल की पूर्णाहुति में समय का बहुत बड़ा भाग शेष है,परन्तु वर्तमान काल (कलिकाल के 5000 वर्ष पश्चात) इसी कलयुग मे एक स्वर्णिम रुद्रराज्य स्थापित होगा ही जो रामराज्य के समान ही धर्म को सम्पूर्ण भूलोक में स्थापित करेगा।इस रुद्रराज्य कि आयु 10000 वर्ष तक होनी है जिसमे धर्म कृतयुग के स्तर तक उठ कर पुनः शैन शैन कलयुग के स्तर पर आएगा।इस रुद्रराज्य के स्थापित होने का यह संधिकाल है,जो अपनी पूर्णता पर ही है। अतिशीघ्र श्री कृष्ण की गीता का अगला भाग ईश्वरीय कृपा से अवतरित होने वाला है जो गीता के ही अर्थो को वर्तमान स्वरूप में लायेगा। समय की मांग आज सांसारिक वैराग्य को समझने की है,यही इस प्रकति को चलायमान रखते हुए स्वर्णयुग को स्थापित करेगा। आज ब्राह्मण का जड़ भरत बन मोक्ष की अभिलाषा में जीना आवश्यक नही आज मोक्ष के परे शिव को समझने की जानने की अभिलाषा आवश्यक है। तत्वज्ञान को जिस स्तर पर विभिन्न प्रकार से स्वरचित बना दिया गया है उनसे विमुख हो वास्तविक तत्वज्ञान के प्रसार की आवश्यक्ता है,यह वास्तविक तत्वज्ञान आज की सांस्कृतिक सामाजिक और संवैधानिक सीमाओं से परे है आज इसका प्रसार भी आपराधिक मोहर लगा सकता है क्यों कि यह इस युग की इस काल की सोच है ही नही यह सनातन है अमृत है और अवयव भाव युक्त है जिसमे काल के संवैधानिक सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तनों से बदलाव नही किया जा सकता।
युग निर्माण का समय आ चुका है,रुद्रराज्य आएगा ही।
जिज्ञासु और धर्म की स्थापना में रुचि युक्त मेरे अपने आत्मजो की प्रतीक्षा में...
अदभुत
Delete9149155308 बहुत कुछ आभास करा सकता हूँ जय जय श्री राम
Deleteहरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे रामा हरे रामा रामा रामा हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे रामा हरे रामा रामा रामा हरे हरे कृष्णा कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण
ReplyDeleteRadhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe
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