प्रश्न - *दीदी। कृपया ये बताए की कब ऐसा समझे कि मन सध अथवा नियंत्रित हो गया है। कई बार लगा कि मन संतुलित हो गया है पर फिर भटक जाता है।*
उत्तर - आत्मीय भाई,
जब मन को ऑन और ऑफ करने की क्षमता विकसित हो जाये तब समझ लेना मन सध गया है।
उदाहरण - एक दिनचर्या बनाओ, उसे मन को समझा दो। अगर एक महीने उस दिनचर्या को तुम्हारा मन बिना किसी विरोध और भटकाव के पालन कर ले तो समझना सध रहा है।
यदि एक घण्टे बिना हिले डुले बैठकर किसी एक विचार पर ध्यान केंद्रित कर सको तो समझना मन सध गया है।
विचार शून्य लगभग 10 से 15 मिनट हो सको तो समझना मन सध गया है।
👉🏼 मन में विचारों का अनवरत प्रवाह है और यह एक सफर की तरह है।
👉🏼मन कोई सीमेंट नहीं कि एक बार घर बना दिया तो बस रहने लग जाओ। बस एक बार मेहनत करनी पड़ेगी बस सध गया मन। ऐसा सोचना भी मत।
👉🏼मन साधना कुछ ऐसा है कि घुड़सवारी करना या बाइक चलाना। अर्थात हर वक्त घोड़े की लगाम पकड़े रहना, या बाइक का हर वक्त हैंडल पकड़े रहना और चैतन्य होकर बैलेंस बनाये रखना।
👉🏼घोड़े या बाइक पर बैठकर सो नहीं सकते, चैतन्य रहना पड़ता है। उसी तरह मन की साधना करते वक्त भी आपको चैतन्य रहना पड़ता है।
👉🏼सोने से पूर्व घोड़े को खूँटी से, बाइक को स्टैण्ड पर खड़ा करना और मन को संकल्पों से बांधना पड़ता है।
👉🏼ऊर्जा के लिए घोड़े को घास, बाइक को पेट्रोल और मन को सद्विचार/स्वाध्याय का चारा देना पड़ता है।
👉🏼घोड़े को नहलाना, बाइक को धोना और मन का आत्मशोधन जरूरी है।
👉🏼ध्यान हटा, लगाम छूटी, सन्तुलन बिगड़ा तो दुर्घटना निश्चित है। भटकाव निश्चित है।
👉🏼अतः जब तक सफर है तब तक घोड़े की लगाम थामना पड़ेगा। जब तक सफर है तब तक बाइक पर सन्तुलन बनाना पड़ेगा। जब तक जियोगे तब तक मन को साधना पड़ेगा।
👉🏼सफ़र में गड्ढे न मिलें या उतार चढ़ाव न मिले यह सम्भव नहीं है। इसी तरह जीवन के सफर में विपत्तियां और उतार-चढ़ाव न आएगा यह भी संभव नहीं। अतः कुशल ड्राइवर की तरह मन की गाड़ी को चैतन्य और जागरूक होकर सम्हालो। कब ब्रेक और कब रेस देना है इस पर ध्यान दो, सन्तुलन बनाये रखो। यह अनवरत प्रयास मांगता है।
*मन की ड्राइविंग सीखने के लिए निम्नलिखित पुस्तक पढ़े:*-
1- अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान भाग 1 एवं 2
2- ब्रह्मवर्चस की ध्यान धारणा
3- चेतन, अचेतन एवं सुपरचेतन
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई,
जब मन को ऑन और ऑफ करने की क्षमता विकसित हो जाये तब समझ लेना मन सध गया है।
उदाहरण - एक दिनचर्या बनाओ, उसे मन को समझा दो। अगर एक महीने उस दिनचर्या को तुम्हारा मन बिना किसी विरोध और भटकाव के पालन कर ले तो समझना सध रहा है।
यदि एक घण्टे बिना हिले डुले बैठकर किसी एक विचार पर ध्यान केंद्रित कर सको तो समझना मन सध गया है।
विचार शून्य लगभग 10 से 15 मिनट हो सको तो समझना मन सध गया है।
👉🏼 मन में विचारों का अनवरत प्रवाह है और यह एक सफर की तरह है।
👉🏼मन कोई सीमेंट नहीं कि एक बार घर बना दिया तो बस रहने लग जाओ। बस एक बार मेहनत करनी पड़ेगी बस सध गया मन। ऐसा सोचना भी मत।
👉🏼मन साधना कुछ ऐसा है कि घुड़सवारी करना या बाइक चलाना। अर्थात हर वक्त घोड़े की लगाम पकड़े रहना, या बाइक का हर वक्त हैंडल पकड़े रहना और चैतन्य होकर बैलेंस बनाये रखना।
👉🏼घोड़े या बाइक पर बैठकर सो नहीं सकते, चैतन्य रहना पड़ता है। उसी तरह मन की साधना करते वक्त भी आपको चैतन्य रहना पड़ता है।
👉🏼सोने से पूर्व घोड़े को खूँटी से, बाइक को स्टैण्ड पर खड़ा करना और मन को संकल्पों से बांधना पड़ता है।
👉🏼ऊर्जा के लिए घोड़े को घास, बाइक को पेट्रोल और मन को सद्विचार/स्वाध्याय का चारा देना पड़ता है।
👉🏼घोड़े को नहलाना, बाइक को धोना और मन का आत्मशोधन जरूरी है।
👉🏼ध्यान हटा, लगाम छूटी, सन्तुलन बिगड़ा तो दुर्घटना निश्चित है। भटकाव निश्चित है।
👉🏼अतः जब तक सफर है तब तक घोड़े की लगाम थामना पड़ेगा। जब तक सफर है तब तक बाइक पर सन्तुलन बनाना पड़ेगा। जब तक जियोगे तब तक मन को साधना पड़ेगा।
👉🏼सफ़र में गड्ढे न मिलें या उतार चढ़ाव न मिले यह सम्भव नहीं है। इसी तरह जीवन के सफर में विपत्तियां और उतार-चढ़ाव न आएगा यह भी संभव नहीं। अतः कुशल ड्राइवर की तरह मन की गाड़ी को चैतन्य और जागरूक होकर सम्हालो। कब ब्रेक और कब रेस देना है इस पर ध्यान दो, सन्तुलन बनाये रखो। यह अनवरत प्रयास मांगता है।
*मन की ड्राइविंग सीखने के लिए निम्नलिखित पुस्तक पढ़े:*-
1- अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान भाग 1 एवं 2
2- ब्रह्मवर्चस की ध्यान धारणा
3- चेतन, अचेतन एवं सुपरचेतन
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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