प्रश्न - *अत्यधिक क्रोधी पत्नी और बातों को पकड़कर उसे बार बार दोहराने वाली पत्नी को हैंडल करने के उपाय बताएं। यदि सास-बहू का नित्य झगड़ा होता हो और कोई सुनने को तैयार न हों तो क्या करें?*
उत्तर - ऐसी परिस्थिति में शब्द काम नहीं आते तो मुंह से बोलकर समझाने का कोई फ़ायदा नहीं। अतः इस गृह महाभारत को टालने हेतु शांतिदूत बनने से काम नहीं चलेगा, क्रांतिकारी बनने या हाथ उठाने का भी कोई फायदा नहीं इससे केवल एलोपैथी की तरह समस्या दबती है कुछ दिनों के लिए उसके बाद और भयंकर बदले के रूप में गृहयुद्ध प्रारम्भ होता है।
माँ के गर्भ से जन्में हो इसलिए माँ का तुमपर प्रथम अधिकार है। तुम्हारा अस्तित्व जिससे है उसे छोड़ना और दुःख देना अर्थात महापाप है।
जीवनसंगिनी जो तुम्हारे साथ सात फेरे लेकर आई, तुम्हारे लिए सबकुछ छोड़ आई। वो अब अर्धांगिनी है। उसका भी तुम पर पूर्ण अधिकार है। तुम्हारे अंश की वो माँ है।
आंख (माँ) है और पत्नी चश्मा, अब चश्मे के लिए आंख का त्याग करना बेवकूफी है। लेकिन बिना चश्मा के बिना अब गृहस्थी दिखेगी नहीं। चश्मा भी बहुत जरूरी है। अब आँख और चश्मा साथ रहे इसके लिए आँख को अहसास करवाना होगा कि तुम कमज़ोर हो गई हो तुम्हारे लिए चश्मा जरूरी है। और चश्मे को अहसास करवाना पड़ेगा यदि आंख नहीं होती तो चश्मा भी न आता।
गांधी जी का अनशन/उपवास और असहयोग मौन आंदोलन घर पर करना पड़ेगा। लगातार घर मे सबकी सद्बुद्धि के लिए मन ही मन गायत्री जपते रहो।
जब भी झगड़ा हो खाना त्याग दो, और दोनों को बोलो रहना है तो तुम दोनों के साथ रहूँगा, नहीं तो किसी के साथ नहीं रहूँगा। पत्नी को बोलो- तुम भी बच्चे की माँ बनोगी और तुम्हारी बहु तुम्हारी तरह तुम्हे तुम्हारे बेटे से बोले कि तुम्हें छोड़कर अलग बस जाए तो कैसा लगेगा?
माँ तुम भी पिताजी की पत्नी थी, तुमने भी पिताजी के साथ घर गृहस्थी बसाई थी। क्या तुम चाहती हो मेरे रिश्ता बिखर जाए और मेरी गृहस्थी टूट जाये।
अलग रहना चाहते हो तो तुम दोनों अलग रहो। मैं 15 दिन माँ के साथ रहूँगा और 15 दिन पत्नी के साथ। अब यदि किसी को यह मंजूर नहीं तो मैं तुम दोनों को छोड़कर जा रहा हूँ।
दो दिन अनशन में वैसे ही दोनों की अक्ल ढीली हो जाएगी। नहीं तो तीसरे दिन बैग उठाओ और कुछ दिन बाहर होटल में रहो। बीबी मायके जाने की धमकी देती है तुम उसे छोड़कर जाकर जाने की धमकी दो। दो दिन बिना बताए बाहर रहो तो स्वयंमेव बुद्धि में यह समझ आ जायेगा कि यह भी छोड़कर जा सकता है।
जब तुम शिव का भोले रूप और रौद्र रूप दोनों को दिखाओगे। घर पर अनशन का तांडव नृत्य करोगे तब ही समस्या सुलझेगी। नाज़ायज मांग चाहे पत्नी की हो या माँ की दोनों को अस्वीकार कर दो। जाने वाला आज नहीं तो कल जाएगा। रहने वाला कभी छोड़कर नहीं जाएगा।
अनशन व्रत से अंग्रेज डरते थे, प्राचीन समय मे अनशन व्रत से मेघ बरसते थे।इस व्रत से असम्भव भी संभव है।
तुम सुनते हो इसलिए दोनों पार्टी सुनाती है। दोनों को क्लियर कर दो कि आप लोग सास बहू बन चुके हो, पति पत्नी का तलाक होता है सास बहू का तलाक नहीं होता। अतः मुझसे जुड़े होने के कारण रहना तुम दोनों को साथ पड़ेगा। माँ को क्लियर कर दो कि मैं इसे नहीं सुधार सकता और न हीं इसे तलाक़ दूंगा। पत्नी को क्लियर कर दो मैं किसी भी हाल में माँ को नहीं छोड़ूंगा। अपने जायज कर्तव्य निभाऊंगा। मेरे कान भरने का या माँ की बुराई मुझसे करने का कोई फायदा नहीं क्योंकि तुम्हारे लिए मैं माँ को सुधार नहीं सकता। तुम दोनों एक दूसरे को जो जैसा है वैसा स्वीकार लो इसी में भलाई है।
निर्भय होकर परिस्थिति का सामना करो, क्रोधी व्यक्ति को केवल अनशन की शक्ति से नियंत्रित किया जा सकता है। भगवान उसी की सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करता है। चमत्कार होते नहीं करने पड़ते है। सब कुछ स्वयमेव ठीक नहीं होता, इसे ठीक करना पड़ता है, साम-दाम-दण्ड-भेद अपनाना पड़ता है। कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती।
रोज़ अकबर बीरबल की कुछ यूट्यूब पर कहानियां देखो, और बीरबल की चतुराई सीखो कि कैसे वो क्रोधी और शक्तिशाली अकबर को भी अपनी बुद्धिमत्ता और चातुर्य से हैंडल करता था। बस फर्क यह है कि तुम्हारे पास एक नहीं दो अकबर है - एक तुम्हारी पत्नी और दूसरी तुम्हारी माँ। अतः बुद्धि को तेज करो और दोनों को सही राह दिखाओ।
यज्ञ करने से घर मे सबको सद्बुद्धि मिलती है और क्रोध शांत होता है।
📖 पुस्तक - आवेशग्रस्त होने से अपार हानि जरूर पढ़ें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - ऐसी परिस्थिति में शब्द काम नहीं आते तो मुंह से बोलकर समझाने का कोई फ़ायदा नहीं। अतः इस गृह महाभारत को टालने हेतु शांतिदूत बनने से काम नहीं चलेगा, क्रांतिकारी बनने या हाथ उठाने का भी कोई फायदा नहीं इससे केवल एलोपैथी की तरह समस्या दबती है कुछ दिनों के लिए उसके बाद और भयंकर बदले के रूप में गृहयुद्ध प्रारम्भ होता है।
माँ के गर्भ से जन्में हो इसलिए माँ का तुमपर प्रथम अधिकार है। तुम्हारा अस्तित्व जिससे है उसे छोड़ना और दुःख देना अर्थात महापाप है।
जीवनसंगिनी जो तुम्हारे साथ सात फेरे लेकर आई, तुम्हारे लिए सबकुछ छोड़ आई। वो अब अर्धांगिनी है। उसका भी तुम पर पूर्ण अधिकार है। तुम्हारे अंश की वो माँ है।
आंख (माँ) है और पत्नी चश्मा, अब चश्मे के लिए आंख का त्याग करना बेवकूफी है। लेकिन बिना चश्मा के बिना अब गृहस्थी दिखेगी नहीं। चश्मा भी बहुत जरूरी है। अब आँख और चश्मा साथ रहे इसके लिए आँख को अहसास करवाना होगा कि तुम कमज़ोर हो गई हो तुम्हारे लिए चश्मा जरूरी है। और चश्मे को अहसास करवाना पड़ेगा यदि आंख नहीं होती तो चश्मा भी न आता।
गांधी जी का अनशन/उपवास और असहयोग मौन आंदोलन घर पर करना पड़ेगा। लगातार घर मे सबकी सद्बुद्धि के लिए मन ही मन गायत्री जपते रहो।
जब भी झगड़ा हो खाना त्याग दो, और दोनों को बोलो रहना है तो तुम दोनों के साथ रहूँगा, नहीं तो किसी के साथ नहीं रहूँगा। पत्नी को बोलो- तुम भी बच्चे की माँ बनोगी और तुम्हारी बहु तुम्हारी तरह तुम्हे तुम्हारे बेटे से बोले कि तुम्हें छोड़कर अलग बस जाए तो कैसा लगेगा?
माँ तुम भी पिताजी की पत्नी थी, तुमने भी पिताजी के साथ घर गृहस्थी बसाई थी। क्या तुम चाहती हो मेरे रिश्ता बिखर जाए और मेरी गृहस्थी टूट जाये।
अलग रहना चाहते हो तो तुम दोनों अलग रहो। मैं 15 दिन माँ के साथ रहूँगा और 15 दिन पत्नी के साथ। अब यदि किसी को यह मंजूर नहीं तो मैं तुम दोनों को छोड़कर जा रहा हूँ।
दो दिन अनशन में वैसे ही दोनों की अक्ल ढीली हो जाएगी। नहीं तो तीसरे दिन बैग उठाओ और कुछ दिन बाहर होटल में रहो। बीबी मायके जाने की धमकी देती है तुम उसे छोड़कर जाकर जाने की धमकी दो। दो दिन बिना बताए बाहर रहो तो स्वयंमेव बुद्धि में यह समझ आ जायेगा कि यह भी छोड़कर जा सकता है।
जब तुम शिव का भोले रूप और रौद्र रूप दोनों को दिखाओगे। घर पर अनशन का तांडव नृत्य करोगे तब ही समस्या सुलझेगी। नाज़ायज मांग चाहे पत्नी की हो या माँ की दोनों को अस्वीकार कर दो। जाने वाला आज नहीं तो कल जाएगा। रहने वाला कभी छोड़कर नहीं जाएगा।
अनशन व्रत से अंग्रेज डरते थे, प्राचीन समय मे अनशन व्रत से मेघ बरसते थे।इस व्रत से असम्भव भी संभव है।
तुम सुनते हो इसलिए दोनों पार्टी सुनाती है। दोनों को क्लियर कर दो कि आप लोग सास बहू बन चुके हो, पति पत्नी का तलाक होता है सास बहू का तलाक नहीं होता। अतः मुझसे जुड़े होने के कारण रहना तुम दोनों को साथ पड़ेगा। माँ को क्लियर कर दो कि मैं इसे नहीं सुधार सकता और न हीं इसे तलाक़ दूंगा। पत्नी को क्लियर कर दो मैं किसी भी हाल में माँ को नहीं छोड़ूंगा। अपने जायज कर्तव्य निभाऊंगा। मेरे कान भरने का या माँ की बुराई मुझसे करने का कोई फायदा नहीं क्योंकि तुम्हारे लिए मैं माँ को सुधार नहीं सकता। तुम दोनों एक दूसरे को जो जैसा है वैसा स्वीकार लो इसी में भलाई है।
निर्भय होकर परिस्थिति का सामना करो, क्रोधी व्यक्ति को केवल अनशन की शक्ति से नियंत्रित किया जा सकता है। भगवान उसी की सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करता है। चमत्कार होते नहीं करने पड़ते है। सब कुछ स्वयमेव ठीक नहीं होता, इसे ठीक करना पड़ता है, साम-दाम-दण्ड-भेद अपनाना पड़ता है। कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती।
रोज़ अकबर बीरबल की कुछ यूट्यूब पर कहानियां देखो, और बीरबल की चतुराई सीखो कि कैसे वो क्रोधी और शक्तिशाली अकबर को भी अपनी बुद्धिमत्ता और चातुर्य से हैंडल करता था। बस फर्क यह है कि तुम्हारे पास एक नहीं दो अकबर है - एक तुम्हारी पत्नी और दूसरी तुम्हारी माँ। अतः बुद्धि को तेज करो और दोनों को सही राह दिखाओ।
यज्ञ करने से घर मे सबको सद्बुद्धि मिलती है और क्रोध शांत होता है।
📖 पुस्तक - आवेशग्रस्त होने से अपार हानि जरूर पढ़ें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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